अधुरी इच्छा Captain Dharnidhar द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अधुरी इच्छा

पहाड़ो से घिरा गांव , गांव के मध्य कालू का घर , कालू के घर में गौर वर्ण सुन्दर सुशीला चंचल नयनी गृह कार्य में दक्ष उसकी पुत्री.. नाम लच्छी ।
कालू एक मजदूर कृषकाय दूसरो के खेतों में काम करता अपने परिवार का भरण पोषण करता । उसकी पत्नी नारंगी.. लंबी बिमारी से बिमार.. उसकी देखभाल पिता पुत्री दोनों करते, वह चल फिर नही सकती । उसका इलाज गांव के वैद्य जी कर रहे थे । उस जमाने में लोग अंग्रजी दवा न लेकर अपना इलाज जड़ी बूंटी से खुद कर लिया करते । कालू वैद्य जी के घर के लिए जंगल से लकड़ी व जड़ी बूंटी ला दिया करता । वैद्य जी भले आदमी इलाज के बदले कुछ मांगते नही, कहते मैने कुछ किया ही नही ..सब कुछ जंगल की जड़ी बूंटी ने किया है । मैं तो सिर्फ जड़ी का नाम बताता हूँ । लेकिन लोग उनके घर अनाज व पशुओं के लिए चारा लाकर डाल दिया करते, वैद्य जी के घर का खर्च इस तरह से चलता रहता । गांव मे पक्के मकान बहुत कम थे, अधिकतर लोगो ने लकड़ियों से घर बना रखे थे । मुख्य आय का स्रोत कृषि व पशुपालन था ।
गांव मे अक्सर ..शादी ब्याह कम उम्र मे ही कर दिया करते । कालू ने अपनी बेटी का विवाह नो साल की उम्र मे ही कर दिया था । लच्छी अब 16 साल की होगयी है उसे विदा करने की चिन्ता कालू को होती है । लच्छी के मन मे प्रथम मिलन के अरमान जाग रहे हैं । हृदय मे पति से मिलने की उत्सुकता है , उसे अनजान ससुराल मे अनजान लोगो मे जाने का भय भी है । अपनी बेटी की विदाई को लेकर नारंगी की तबियत ओर बिगड़ जाती है । कालू अपनी बेटी लच्छी को विदा करना चाह रहा था । तभी.. उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाती है । कालू शोक से संतप्त हो गया..वह जानता था कि नारंगी कभी भी उसका साथ छोड़कर जा सकती है । लंबी बिमारी के कारण मौत होने से कालू को ज्यादा दु:ख तो नही हुआ । मन ही मन अपने आपसे से कहने लगा ..अरे नारंगी ! तुम्हे इसी वक्त जाना था, चार पांच दिन ओर रूक जाती ,बेटी विदा हो जाती । बेटी की विदाई आगे बढ गयी न अब । मैने तो समधी जी को सूचना भी भेज दी थी । अगले ही पल अपने आपको उत्तर देने लगा ..शायद तुम बेटी की जुदाई का गम बर्दाश्त नही कर पाई ।
मौत की खबर पूरे गांव मे फेल गयी थी , लोग कालू के घर जमा होने लगे .. गांव के लोगों ने अंतिम यात्रा की तैयारी कर ली .. वैद्य जी ने कालू के कंधे पर हाथ रखा और बोले .. कालू ! अंतिम संस्कार का समय आ गया है । कालू की आंखो मे आंसू छलक आये । कालू उठकर बाहर आगया ।
कुछ महिलाओ ने नारंगी को स्नान कराया उसके हाथों पांवों में मेहन्दी लगाई माथे पर बिंदी आंखो काजल लगाया , उसका पूरा श्रृंगार किया, लाल रंग की ओढणी ओढाकर लच्छी ने अपनी मा की मांग में सिंदूर लगाया ,गहने पहनाये फिर रोती हुई मा के शव से लिपट गयी । महिलाओ ने उसे दूर कर दिया । नारंगी के शव को अर्थी पर लिटा दिया । अर्थी चल पड़ी थोड़ी देर बाद कुछ महिलाओ के अतिरिक्त कालू के घर पर कोई नही था । लच्छी को महिलाएं शान्त्वना दे रही हैं ।
लगभग तीन घंटे बाद ..नारंगी का अंतिम संस्कार कर लच्छी का पिता घर आचुके थे । रिवाज के अनुसार तेरहवी हुई । तेरहवी के दिन लच्छी का ससुर भी वहां आया था .. कालू से वह कुछ फुसफुसाकर बात कर रहा था ..लच्छी ने अपने कान उसी तरफ लगा रखे थे ..उसे कुछ सुनाई दिया ..ससुर कह रहा था ..अब बहु को हम अपने साथ लेकर जायेंगे तेरहवी भी हो गयी है ।
कालू ने हाथ जोड़कर कहा ..समधी जी बहु आपकी है ,भला मैं कैसे मना कर सकता हूँ .. किन्तु सवा महिने के बाद मै बेटी को धूमधाम से विदा करना चाहता था । लच्छी के ससुर ने मुस्करा कर कह दिया...ठीक है हम आने वाली पूनम को लेने आजायेंगे ..
यह सब सुन लच्छी का दिल धक धक करने लगा ..मन मे पति को देखने की खुशी है पर अपनी खुशी को चेहरे पर नही आने दे रही ।
समय बीतता गया और एक दिन वह पूनम भी आ गयी । लच्छी को दुल्हन का बेस पहनाया गया । वह बेस उसकी मा ने खुद बैठे बैठे तैयार किया था । और कहा था, बेटी तुम इसे पहनकर बहुत सुन्दर लगोगी। यह सही भी था , लच्छी उसे पहनकर बहुत सुन्दर लग रही थी मानो कोई अप्सरा स्वर्ग से उतकर आ गयी हो । गांव की महिलाओ ने मंगल गीत गाये .. लच्छी को उपहार दिये ..उधर पुरूषों ने लच्छी के ससुर को उपहार दिये । बैल गाड़ी मे सब भेंट उपहार रख दिये गये । किसी फ्लो का टोकरा दिया , किसी ने हाथो से बनाई हुई बांस की टोकरी दी । किसी ने कागज को गलाकर बनाये हुए डोंगे दिये । लच्छी की आंखे भर आई अपने पिता को देख रही है ..वह सोच रही है मेरे पिता तो अब अकेले पड़ गये है ..अगले ही पल ससुर की आवाज आई..बहु डोली में कुछ भोजन व फल रखे है खा लेना । लच्छी विदा हो गयी ..
लगभग तीन घड़ी के बाद लच्छी अपने ससुराल पहुंच गयी थी , वहा उसकी सास ने बहु की अगवानी की । लच्छी को उसका शयन कक्ष दिखाया,रसोई दिखाई..किन्तु जिसे देखने को उसकी आंखे बार बार चारों तरफ घूम रही थी ..वह नजर नही आरहा था ।
तभी एक युवक ने घर मे प्रवेश किया , लच्छी ने उसे देखा और सोचने लगी क्या ये वे ही हैं उसने अपने पास से गुजरती अपनी ननद से पूछा । कौन आया है ? ननद ने युवक को देखकर कहा यह तो घर का नौकर है । पिताजी ने इसे कोई काम भेजा था ..तब आया है । लच्छी ने फिर पूछ लिया ..आपके भैया कहां गये है ? ननद ने मुस्कुराकर कहा.. पास के गांव गये हैं । शाम तक लौटेंगे ।
लच्छी ने सोचा चलो शाम भी होने ही वाली है । लच्छी अपने कक्ष मे चली गयी । अपने कक्ष को देखने लगी । लच्छी का शयनकक्ष का आंगन गोबर से लिपा हुआ था । दीवार पत्थरो से बनी थी, दीवार मिट्टी से लिपी हुई थी उस पर चूना किया हुआ था । ऊपर छप्पर था । छप्पर से एक रस्सी बंधी थी , रस्सी से एक टोकरी बंधी थी जिस पर एक मिट्टी की हांडी थी शायद उसमे दही या घी रखा हुआ था । आंगन मे रंगोली बनी थी जो सुन्दर लग रही थी । कक्ष का फर्श पूरी तरह खाली था । क्योंकि उस जमाने में लोग नीचे ही सोया करते थे । चारपाई बाहर आंगन मे रखी जाती थी । लच्छी का ससुराल लच्छी के पीहर से धनाढ्य था । उनके पास अच्छी खेती की जमीन थी । लच्छी ने एक गहरी सांस ली और अपनी किस्मत को धन्यवाद देने लगी ..चलो यहां किसी चीज की कमी नही है ।
कब शाम होगयी और पूनम का चांद पूर्व दिशा मे उदित हो गया । लच्छी की उत्सुकता अपने पति को देखने की बढती जा रही थी । उसी समय कोई आदमी दौड़ता हुआ आया ..उसकी सांसे फूल रही थी ..उसने टूटे फूटे शब्दों मे कुछ कहा और उसे सुनते ही लच्छी का ससुर उसके पीछे पीछे दौड़ने लगा । लच्छी को समझ मे नही आया । वह अपनी सास के पास चली गयी ..
उधर लच्छी का पति अपनी पत्नी को देखने के उत्साह मे जल्दी जल्दी पहाड़ी से उतर रहा था और फिसलकर गहरे नाले मे गिर गया । नाले मे पानी नही था । उसकी मौके पर ही मौत हो गयी उसके साथ चल रहा उसके गांव का आदमी जैसे तैसे नाले मे उतरा ,उसने उसे हिला डुलाकर देखा ..उसने जोर से आवाज देकर मदद के लिए पुकारा । उसकी आवाज सुन पहाड़ पर बने घर से दो लोग आये । तीनो ने मिलकर उसे बाहर निकाला , सिर से खून काफी बह गया था । पहाड़ से आये आदमियो ने कहा आप इसे जानते है क्या ? आदमी ने कहा ..हां यह मेरे गांव का है मै इसके घरवालो को सूचना देकर आता हूँ । वह दौड़ता हुआ गया और लच्छी के ससुर को साथ ले आया । लच्छी के ससुर ने आते समय वैद्य जी को साथ ले लिया । सब मौके पर पहुंचे वैद्य जी ने नब्ज देखी आंखो की पुतली देखी और गर्दन हिलाकर बोले नरपत जी इसे घर ले चलो , अब कुछ नही हो सकता ..
लच्छी का ससुर नरपत फूट-फूटकर रोने लगा ..वैद्य जी ने सहारा देते हुए कहा ..आप समझदार है घर मे बड़े हैं थोड़ी हिम्मत से काम लीजिए। जब आप ही ऐसा करेंगे तो आपकी पत्नी का क्या हाल होगा । ऊपर वाले ने इतनी ही सांसे दी थी । आपके बेटे दिनेश का साथ इतना ही था । वैद्य जी की समझाइश का नरपत पर कोई प्रभाव नही पड़ा । वह धहाड़े मार मार कर अपने बेटे दिनेश का नाम ले लेकर कहने लगा अरे बेटा पप्पू ! (दिनेश) तेरे जाने की उम्र थोड़े ही थी, मुझे जाना था तुझसे पहले ..देख.. तेरी पत्नी तेरा इन्तज़ार कर रही है अब उसका क्या होगा ..तू उठ बेटा ! तुझे तेरे बापू की कशम है उठ । वैद्य जी ने साथ आये लोगो को इशारा किया ..ले चलो इसे ।
उधर लच्छी व उसकी सास द्वार से देख रही थी .. आस पडौस के लोग भी पूछने लगे क्या हुआ भाभी ? कहां गये है भैया ? लच्छी की सास ने उनको बस इतना ही कहा.. पता नही .. लच्छी की सास को दूर से एक चारपाई को लाते हुए कुछ लोग दिखाई दिये ..जब तस्वीर साफ होने लगी तो लच्छी की सास के मुख से निकला ..पप्पू को क्या होगया ? लच्छी की सास रोने लगी ..लच्छी भी पास ही खड़ी खड़ी सब देख रही है ..वह असमंजस मे है , वह क्या करे ..लच्छी का चेहरा तो कुम्हला गया था ..जिस पति को उसने देखा ही नही उसके लिए हृदय मे वेदना कैसे हो ।
 
दिनेश की अंत्येष्टि गांव वालों ने रात मे ही कर दी थी । अब सुबह होगयी थी ..बाहर लच्छी का पिता भी बैठा हुआ था , उसे भी खबर लग गयी थी । सब पप्पू को लेकर रो रहे थे ..सहसा सास का रोना क्रोध मे तब्दील होगया ..उसने लच्छी को धक्का मारा और बोली अरी कलमुही तेरे कदम पड़ते ही मेरा बेटा चला गया ..निकल जा मेरे घर से ..तू यहां रहेगी तो न जाने कितने लोगों को खाएगी...बाहर लच्छी के ससुर ने लच्छी के पिता से कहा ..आप अपनी बेटी को यहां से ले जाओ ..वह अब यहां रहकर क्या करेगी ...लच्छी का पिता कुछ कहता ..लच्छी के ससुर के चेहरा कठोर होगया ..लच्छी के पिता ने लच्छी को आने का इशारा किया ...लच्छी कहते ही आगयी .. लच्छी को लेकर उसका पिता चल पड़ा ..रास्ते मे लच्छी ने सहज भाव मे कहा ..बापू ! इसमे मेरी क्या गलती है ? लच्छी का पिता बोला बेटा सब भाग्य का खेल है ।
लच्छी ने रास्ते से जाती हुई कुछ साध्वियो को देखा उन्हे देखकर उसमे वैराग्य भाव जग गया , उसने मन ही मन निर्णय कर लिया ..मुझे अब इस संसार मे नही रहना ..जिसमे दुख ही दुख है । अब मैं उस ईश्वर को खोजूंगी .. पिता को छोड़ वह उन साध्वियों के संग चल दी । पिता ने रोकना चाहा । तभी एक साध्वी ने कहा ..इसे मत रोक ! इसे खुदको जान लेने दे । यदि यह तेरी है तो कुछ दिनो मे तेरे पास लौट आयेगी । हर हर महादेव !! चिन्ता मत कर संसारी मनुष्य ! यह महादेव की शरण मे आरही है ।
लच्छि के पिता ने सोचा लच्छी घर जाकर क्या करेगी यह भी ठीक ही है । कालू ने कहा बेटी .. जब मन मे शान्ति हो जाये और अपने पिता से मिलने की इच्छा हो जाये तो आजाना । कालू की आंखो से अश्रु की धार बह निकली। वह सुबक सुबक कर रोने लगा ..आसमान की ओर देखते हुए बोला ... मेरा सब कुछ छिन गया ..पत्नी दामाद बेटी ..अब मै बचा हूँ मै अकेला घर जाकर क्या करूंगा ? समधन के वे शब्द उसे याद आरहे है ..वह कहने लगा इतनी कड़वी बाते मेरी फूलसी बेटी को कह रही थी ..ले समधन अब मेरी बेटी ने संसार ही त्याग दिया । तुमने तो अपना एक पुत्र ही खोया है , मैने तो बेटी दामाद और पत्नी तीन तीन को खो दिये । तेरा दुख मेरे दुख के सामने बड़़ा है क्या ? क्या मै दामाद को दोषी ठहराऊं..मैं भी कहूँ कि दामाद से रिश्ता होते ही मेरी नारंगी बिमार रहने लगी और लच्छी की बिदाई का समय आया तो वह चल बसी ।
लेकिन तुम्हारा दोष नही है मेरा भाग्य ही ऐसा है। जिन्दगी मे सुख क्या होता है मैने तो कभी देखा ही नही ।
और अब देखना भी नही है ।
कालू लड़खड़ाकर गिरने वाला था , तभी एक राहगीर ने उसे संभाल लिया । कालू से राहगीर ने पूछा ..आपकी तबियत तो ठीक है ? ..क्या हो गया ? कालू ने अपनी आपबीती उसे बताना शुरू कर दिया ..और चलते चलते कालू अपने घर पहुंच गया ..और राहगीर राम राम कर अपनी राह पर आगे बढ गया ।
 
15 साल बाद लच्छी साध्वियों के संग अपने गांव आई .. लच्छी ने गांव के बाहर अपना धूणा लगा लिया । गांव मे अब पक्के मकानो की संख्या बढ गयी थी गांव के बाहर एक धर्मशाला मे लच्छी ठहर जाती है । गांव के लोगो को पता चला की साध्वी आई है । गांव के लोग साध्वियो के दर्शन करने पहुंच ने लगे । लच्छी बड़ी साध्वी थी उसके साथ 8 -10 उसकी शिष्याएं थी । दोपहर मे प्रवचन होते और भस्म की प्रसादी व बतासा भक्तों को दिया जाता । लच्छी ने अपनी प्रिय शिष्या को अपने घर पर भेजा कि वह उसके पिता कालू के हालचाल जानकर आये । शिष्या भिक्षा मांगने जब लच्छी के घर पहुंची तो पता चला कालू तो मर गया है । घर के स्थान पर पशु बैठे है । एक पेड़ जो लच्छी ने खुद लगाया था वह पेड़ ही वहां खड़ा था । लोगों ने बताया यह जमीन अब पंचायत ने ले ली है ।
शिष्या ने आकर सारी कहानी लच्छी को सनाई। लच्छी ने एक लंबी श्वास ली ..उसकी आंखो से अश्रुओ की धार निकल पड़ी ..मुख से ऊं नम शिवाय कहते हुए प्रियंवदा से कहा.. कुछ क्षण के लिए मुझे तुम अकेली छोड़ दो ..शिष्या वहां से चली गयी ।
 
रातभर लच्छी रोती रही.. मैने संसार छोड़ा किन्तु संसार ने मुझे नही छोड़ा । यदि संसार ने मुझे छोड़ा होता तो आज मुझे रोना नही आता । सच मे मैने संसार को वैराग्य के कारण नही छोड़ा ..सिर्फ अपने दुख से छोड़ा । मेरा वैराग्य अधुरा है ।
रात का चौथा प्रहर हो गया सभी साध्वी उठ चुकी हैं , लच्छी ने भी नित्यक्रिया की ..सभी साध्वी भिक्षा के लिए गांव मे जा चुकी है । एक शिष्या जो लच्छी की प्रिय थी उसको लच्छी ने अपने पास ही रोक लिया .. लच्छी ने कहा अब संसार त्यागने का समय आगया है , तुम मेरे पास ही रहो । प्रियंवदा कातर दृष्टि से लच्छी को देखने लगी .. बोली.. आप यह क्या कह रही हैं ?
मै सच कह रही हूँ । लच्छी अपने कक्ष मे जाकर बैठ जाती है । लच्छी के सामने जीवन का सब घटनाक्रम घूमने लगता है । उसकी श्वास प्रश्वास बदलने लगती है । वह इशारे से प्रियंवदा को बुलाती है और कहती है तुम मेरा एक काम करोगी ..शिष्या ने कहा हां हां मै जरूर करूंगी आप आदेश करे .. लच्छी ने कहा पास के गांव (जहां लच्छी का ससुराल था ) वहां जाओ मेरे लिए भिक्षा मे मेरे दुल्हन के कपड़े लेकर आवो। शिष्या ने आश्चर्य से देखा और वहां से तुरंत चल दी ।
प्रियंवदा लच्छी के ससुराल पहुंची उसने भिक्षा मांगी और कहा आपकी बहु जो संन्यासी बन गयी है उसका दुल्हन वाला जोड़ा मुझे भिक्षा मे चाहिए.. लच्छी की सास ने अवाक होकर उसे देखा ..यह क्या मांग रही है .. फिर आंखो मे अश्रु लिए बोली क्या तुम्हे हमारी बहु ने भेजा है ..प्रियंवदा ने हां मे सिर हिलाया । मै उसकी दोषी हूँ उससे कहना मुझे माफ कर दे । मेरी वजह से उसका घर बर्बाद हो गया .. प्रियंवदा ने कुछ नही कहा सिर्फ देखती रही ..
लच्छी की सास ने दुल्हन का जोड़ा व उसके गहने सब उसको दे दिये ..।
प्रियंवदा तेज कदमो से वहां से चल दी । वहां पहुंचते पहुंचते शाम होगयी थी ।
दुल्हन का जोड़ा देखकर लच्छी की आंखो मे चमक आगयी । लच्छी ने कहा तुम भोजन कर लो और आज मेरे पास ही रहना ।
 
रात का दूसरा प्रहर होने को है लच्छी ने प्रियंवदा से कहा .. प्रियंवदा ! मुझे यह जोड़ा पहना दो ..मुझे दुल्हन की तरह सजा दो ..प्रियंवदा ने कहा आप तो साध्वी है यह सब ठीक है क्या ? लच्छी ने उसे याचना की दृष्टि से देखा ..
प्रियंवदा उसे वह जोड़ा पहनाने लगी ।
आखों मे काजल लगाया मांग में सिंदूर हाथों मे चूड़िया पहनाई । लच्छी ने पूछा मैं कैसी लग रही हूँ ? शिष्या ने कहा आप बहुत सुन्दर लग रही हैं ।
लच्छी की श्वासे उखड़ने लगती है । वह कहती है प्रियंवदा तुम एक काम ओर करोगी ? हां हां आप आदेश कीजिए।
तुम दुल्हा बन जाओ .. लच्छी यह सुन चौंक जाती है ..लच्छी फिर कहती है मेरे पास समय नही है । मै कोई अधुरी इच्छा लिए जाना नही चाहती । लच्छी का चेहरा पीला पड़ने लगता है । प्रियंवदा ने अपने मूंछे बनायी सिर पर साफा पहन लिया । लच्छी ने कहा आज पूनम है न ? हां आज पूनम है शिष्या ने कहा । लच्छी ने कहा तुम मेरे पास आवो मै तुम्हारी गोद मे सोना चाहती हूँ । प्रियंवदा उसके पास बैठ गयी लच्छी ने अपना सिर उसकी गोद मे रख दिया और मुस्कुराकराने का प्रयास कर रही थी कि उसकी श्वासो को डोर थम गयी । प्रियंवदा ने देखा कि लच्छी अब संसार छोड़ चुकी है । वह झट से उसके दुल्हन के भेष को हटाकर उसे साध्वी का भेष पहना देती है ।
सभी साध्वियो को सूचना देती है सबकी आंखे नम हो जाती है ।