यदि आज के समय के हिसाब से सोचा जाए तो अमृत मंथन क्या है ?
यह प्रश्न कही ना कही दिमाग मे उठता ही है ।
अमृत मंथन यानि के विचारों का मंथन ।
आज के युग मे कोई दानव या देवता नहीं है ।
बस सब हमारे विचारों पे निर्भर करता है ।
इसका मतलब ये भी नहीं है की ।
देवता ओर दानव नहीं थे ।
है ओर रहेंगे भी ।
क्योंकि अछाई ओर बुराई एक सिक्के की दो बाजू है ।
जैसे सच ओर जूठ ।
हमारे लिए अमृत मंथन का मतलब है ।
विचारों का मंथन ।
जिससे दोनों ने जकड़ा हुआ है ।
जो अच्छे विचार है वो है देवता ओर जो बुरे विचार है वो है दानव ।
दोनों का मिश्र यानि हम मानव ।
इसमे वासुकि नाग जैसी भूमिका है ।
आस- पास के माहौल की जो तय करेगी की तुम विष देना है या अमृत ।
ओर आज के युग का सबसे बड़ा विष है । वो तो आपके हाथों मे ही है ।
जि हा ठीक पहेचाने मोबाइल ।
पूरे विश्व का सबसे बड़ा विष ।
जो इन्सान को जीते जि मार डालता है ।
वो ही सबसे घटिया विष है ।
दुशरे तरीके से देखे तो अमृत -मंथन मे से १४ रत्न निकले ।
तो हमारे तरफ से देखे तो नव रत्न यानि की नो ग्रह ।
ओर बाकी बचे पाच जो हमारी इंद्रिया है ।
राहू ओर केतु तो वैसे दानव थे ही ।
ओर सूर्य , चंद्र , जैसे देवता भी थे ।
तो इसका अर्थ ये भी हुआ की ।
अगर हमारे ग्रह ठीक हो गए तो ।
विष निकल ना बंध हो जाएगा ।
हमारे पास कैसे विचार आएंगे ।
ओर कब तक रहेंगे ।
ये एक तरफ से कुंडली से ही पता लगाया जाता है ।
तो अमृत-मंथन का अर्थ कुंडली मंथन भी हुआ ।
आज के युग मे पहले जैसा कुछ भी नहीं होगा ।
अमृत पाने के लिए स्वयं को ही टटोलना पड़ेगा ।
कहा से कैसे विचार ग्रहण करने इस बात का मंथन भी कोई अमृत - मंथन से कम नहीं है ।
इस मंथन का तिशरा ओर काल्पनिक पहलू ।
कई साल पहले एक सीरीअल आई थी ।
जिसका नाम था । महाकुंभ
जिसमे अमृत के सात गरुड रक्षक बताए थे ।
ओर हमारे शरीर मे भी सात चक्र है ।
ओर हर एक चक्र जागृत होने पर इंशान को कुछ न कुछ स्परिचयूआल पावर मिलता है ।
तो इस तरह से अमृत - मंथन का मतलब अपने शरीर का मंथन भी हुआ ।
ओर अंतिम बात तो यह सास्वत सत्य है । की
मौत सबको आनी ही है ।
तो जो अच्छे कर्म करता है ।
ओर जो सबकी यादों मे जिंदा रहता है ।
वही अमर कहलाता है ।
अब ये आप पे निर्भर करता है की ।
आप को विष चाहिए या फिर अमृत ।
अगर अमृत चाहिए तो अच्छे कर्म करो ।
ओर सबकी यादों मे अमर हो जो ।
वरना मृत्यु तो सब हिसाब ठीक कर देती है ।
ओर अगर हिसाब तबही कुछ रह जाए तो गरुड - पुराण ही पढ़लो ।
भगवान हिसाब बराबर कर ही देता है ।
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