अमृत मंथन Abhishek Joshi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अमृत मंथन

यदि  आज  के  समय  के  हिसाब  से  सोचा  जाए  तो  अमृत मंथन  क्या  है  ?

यह  प्रश्न  कही  ना  कही  दिमाग  मे  उठता  ही  है । 

अमृत मंथन  यानि  के  विचारों  का  मंथन  । 

आज  के  युग  मे  कोई  दानव  या  देवता  नहीं  है । 

बस  सब  हमारे  विचारों  पे  निर्भर  करता  है  । 

 

इसका  मतलब  ये  भी  नहीं  है  की  । 

देवता  ओर  दानव  नहीं  थे  । 

है  ओर  रहेंगे  भी  । 

क्योंकि  अछाई  ओर  बुराई  एक  सिक्के  की  दो  बाजू  है । 

जैसे  सच  ओर  जूठ । 

 

हमारे  लिए  अमृत  मंथन  का  मतलब  है  । 

विचारों  का  मंथन । 

जिससे  दोनों  ने  जकड़ा  हुआ  है । 

जो  अच्छे  विचार  है  वो  है  देवता  ओर  जो  बुरे  विचार  है  वो  है  दानव  । 

दोनों  का मिश्र  यानि  हम  मानव  । 

 

इसमे  वासुकि  नाग  जैसी  भूमिका  है  । 

आस- पास  के  माहौल  की  जो  तय  करेगी  की  तुम  विष  देना  है  या अमृत । 

 

ओर  आज  के युग  का  सबसे  बड़ा  विष  है  ।  वो  तो आपके  हाथों  मे  ही  है । 

जि  हा  ठीक  पहेचाने  मोबाइल । 

पूरे  विश्व  का  सबसे  बड़ा  विष  । 

जो  इन्सान  को  जीते  जि  मार  डालता  है  । 

वो  ही  सबसे  घटिया  विष  है  । 

 

दुशरे  तरीके  से  देखे  तो  अमृत -मंथन  मे  से  १४  रत्न  निकले  । 

तो  हमारे  तरफ  से  देखे  तो  नव रत्न यानि  की  नो  ग्रह  । 

ओर  बाकी  बचे  पाच  जो  हमारी  इंद्रिया  है  । 

 

राहू  ओर  केतु  तो  वैसे  दानव  थे  ही  । 

ओर  सूर्य  , चंद्र , जैसे  देवता  भी  थे  । 

तो  इसका  अर्थ  ये  भी  हुआ  की  । 

अगर  हमारे  ग्रह  ठीक  हो  गए  तो  । 

विष  निकल ना  बंध  हो  जाएगा  । 

 

हमारे  पास  कैसे  विचार  आएंगे  । 

ओर  कब  तक  रहेंगे  । 

ये  एक  तरफ  से  कुंडली  से  ही  पता  लगाया  जाता  है । 

 

तो  अमृत-मंथन  का  अर्थ  कुंडली  मंथन  भी  हुआ  । 

 

आज  के  युग  मे  पहले  जैसा  कुछ  भी  नहीं  होगा । 

अमृत पाने  के  लिए  स्वयं  को  ही  टटोलना  पड़ेगा  । 

कहा  से  कैसे  विचार  ग्रहण  करने  इस  बात  का  मंथन  भी  कोई  अमृत - मंथन  से  कम  नहीं  है  । 

 

इस  मंथन  का  तिशरा  ओर  काल्पनिक  पहलू  । 

कई  साल  पहले  एक  सीरीअल  आई  थी  । 

जिसका  नाम  था  ।  महाकुंभ  

जिसमे  अमृत  के  सात  गरुड  रक्षक  बताए  थे  । 

ओर  हमारे  शरीर  मे  भी  सात  चक्र  है  । 

ओर  हर  एक  चक्र  जागृत  होने  पर  इंशान  को  कुछ  न  कुछ  स्परिचयूआल  पावर  मिलता  है  । 

तो  इस  तरह  से  अमृत - मंथन  का  मतलब  अपने  शरीर  का  मंथन  भी  हुआ  । 

 

ओर  अंतिम  बात  तो  यह  सास्वत  सत्य  है  । की 

मौत  सबको  आनी  ही  है  । 

तो  जो  अच्छे  कर्म  करता  है  । 

ओर  जो  सबकी  यादों  मे  जिंदा  रहता  है  । 

वही  अमर  कहलाता  है  । 

 

अब  ये  आप  पे  निर्भर  करता  है  की  । 

आप  को  विष  चाहिए  या  फिर  अमृत  । 

अगर  अमृत  चाहिए  तो  अच्छे  कर्म  करो  । 

ओर  सबकी  यादों  मे  अमर  हो  जो  । 

वरना  मृत्यु  तो  सब  हिसाब  ठीक  कर  देती  है  । 

ओर  अगर  हिसाब  तबही  कुछ  रह  जाए  तो  गरुड - पुराण ही  पढ़लो  । 

भगवान  हिसाब बराबर  कर  ही  देता  है  । 

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