तबादलों का मौसम Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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तबादलों का मौसम

तबादला करा लो

 

यशवन्त कोठारी

 

   ये दिन तबादलों के दिन है । सरकारी, अर्ध सरकारी और गैर सरकारी सभी प्रकार के कर्मचारियों, अधिकारियांे को तबादलों के भूकम्प का सामना करना पड़ रहा है । कोई घर के पास आना चाहता है तो कोई घर से दूर जाना चाहता है । कोई पत्नी बच्चों के शहर में नौकरी चाहता है तो कोई इस जंजाल से छूटने के लिए दूर चला जाना चाहता है । प्रान्तों की राजधानियांे और देश की राजधानी में तबादलों के आकांक्षी गरजी, अरजी और तबादलों के मारे बदनसीब नेताओं के बंगलो, दफ्तरों और दलालों के चक्कर लगा रहे है । भैया एक बार गांव के पास ट्रांसफर करा दो। जो मांगोगे दूंगा । अखबार भी तबादलों की सूचियोें से भरे रहते हैं ।

   आखिर ये क्या है, तबादलों के नाम से ही कार्यालयों में भूचाल आ जाते हैं । शांति से जीवन चला रहे परिवार सकते में आ जाते हैं बच्चों की शिक्षा-दिक्षा की चिंता सताने लगती है । एक आशियाना उजड़ जाता है । एक घर नए सिरे से जमाना पड़ता है ।

       सच पूछो तो नौकरी की अनिवार्य शर्त है स्थानान्तरण जो एक अनिवार्य बुराई है । एक कर्मचारी बेचारा जैसे-तैसे करके एक नौकरी पाता है । नए शहर में आता है। किराए का घर ढूंेढता है बीवी बच्चों को लाता है बच्चों को स्कूल में दाखिल कराता है । नई-नई जान पहचान, रिश्ते बनाता है कि 2-3 वर्ष हो जाते हैं और आ जाते हैं तबादलों के आदेश । उठाओ अपने बोरिया-बिस्तर और खानाबदोशी की नई जिन्दगी शुरू करो । अब पत्नी बच्चों और माँ बाप को गांव पहुंचाओ । नए शहर जाओ । मकान ढूंढो । नहीं मिले तो होटल या धर्मशाला में पड़े रहो । आराम से चल रही जिन्दगी के बसन्त में फिर तबादलों का पतझड़ । लेकिन अगर नौकरी करनी है तो तबादलों को भी भुगतना ही है ।

   अफसर अगर नाराज है तो तबादला । खुश है तो तबादला । प्रारम्भ से ही स्थाई व्यक्ति को सजा देने का सरकारी तरीका ये है कि उसे उसके निवास स्थान से दूर ट्रांसफर कर दो । और सरकारी नियमों में ट्रांसफर को सजा नहीं माना जाता है । पदोन्नति पर ट्रांसफर पर जाना कर्मचारी अपनी खुशकिस्मती मानता है मगर शहर रच बस गए कर्मचारी पदोन्नति पर भी बाहर नहीं जाना चाहते और कई बार तो पदोन्नति को भी छोड़ देते हैं ।

   कई बार राजनीतिक कारणों से स्थानीय नेताओं से मनमुटाव होने पर भी कर्मचारी को सजा के रूप में ट्रांसफर भुगतना पड़ता है । जो ज्यादा ताकतवर होता है वह जीतता है । आजकल तो ट्रांसफर की भी दरें हैं । पैसा दो ट्रांसफर कराओ या फिर निरस्त कराओ ।

   कुछ सेवाएं ऐसी भी होती हैं जिनमें ट्रांसफर एक निश्चित समय के बाद होना आवश्यक है । लेखा सेवाएं, प्रशासनिक सेवाओं में व्यक्ति 2-4 साल में स्थानान्तरित होता ही है पर इन सेवाओं से संबधित अधिकारी इसके लिए मानसिक रूप से तैयार भी होते हैं जिन कर्मचारियों, अधिकारियों को मकान की सुविधा मिल जाती है वे तबादलों से ज्यादा परेशान नहीं होते । मगर अध्यापक, छोटे कर्मचारी, नर्स, कम्पाउण्डर, लिपिक, इंजीनियर, वैध, डॉक्टर तबादलों से अत्यधिक पीड़ित होते हैं ।

   तबादलों की राजनीति है ओर राजनीतिक तबादले हैं । चुनाव के समय से पूर्व थोक में तबादले होते है। । नेता अपनी-अपनी पसन्द के कर्मचारियों, अधिकारियों केा अपने-अपने क्षेत्र में लगाते हैं ताकि वोटों की खेती की जा सके । और विधायकों की फसल काटी जा सकें ।

   उन सभी नौकरियों में जहां पर कर्मचारी का जनता से सीधा संवाद होता है स्थानीय नेता अधिकारियों को काम के लिए कहते हैं और यदि अधिकारी उनकी बात नहीं मानते तो वे उसका स्थानान्तरण करवा देते हैं । मंत्री की इच्छा (डिजायर) पर होने वाले ट्रांसफरों की संख्या काफी अधिक होती है ।

   अधिकांश कर्मचारी भी एक स्थान पर टिके रहने के लिए स्थानीय नेताओं, मंत्रियों, विधायकों आदि से साठ-गांठ रखते हैं । विरोधी अफसर को हटवाने में ट्रांसफर ही उपाय है । ट्रांसफर के रोचक किस्से भी आपको हर दफ्तर में मिल जायेंगे । एक प्रोफेसर साहब हैं । शादी की नहीं, एक अटैची और ब्रीफकेस के सहारे पूरा प्रदेश ट्रांसफर पर घूम लिया । सरकार से नियमानुसार यात्रा भत्ता वसूल करते हैं । एक अन्य सज्जन हैं जो है तो लिपिक मगर अफसर से बदतमीजी के कारण वर्ष में दो बार स्थानान्तरित होते हैं । केन्द्रीय सेवा के एक अधिकारी देश भ्रमण कर चुके हैं । लेखा सेवा और प्रशासनिक सेवा से जुड़े अधिकारयांे को ट्रांसफर माफिक आ जाता है । सरकारी मकान, नौकर-चाकर, सुविधाएं और वह सब कुछ जो सामान्य नौकर को नहीं मिलता । कुछ विभाग ही ऐसे होते हैं जहाँ पर सभी जाना चाहते है और कुछ ऐसे भी जहाँ पर कोई नहीं जाना चाहता । ये काला पानी विभाग कहलाते है । कुछ अफसर इसीलिए स्थानान्तरित होते हैं कि बेचारे बेहद ईमानदार हैं । न खाते हैं और न खाने देते हें जबकि कुछ का ट्रांसफर इसलिए होता है कि सब खुद ही खा जाते हैं किसी को कुछ देते ही नहीं हैं ।

   कुछ स्थान भी अच्छे होते हैं हर कोई वहाँ रहना चाहता है कुछ स्थानों पर कोई जाना नहीं चाहता । डॉक्टर, वैध गांवो में नहीं जाते । मास्टरों को शहर नसीब नहीं ।

   स्थानान्तरण से बड़े अधिकारियों को कम परेशानी होती है मगर छोटा कर्मचारी तो बस समझो मर गया ।

   ट्रांसफर से सुख सुविधा, शिक्षा की व्यवस्था, मकान की परेशानी, सामाजिक पर्यावरण आदि के कारण भी परेशानी होती है । सैकड़ों कर्मचारी बीमारी के कारण स्थानान्तरण निरस्त कराना चाहते हैं ।

   तबादलों से सामान का बड़ा नुकसान होता है । पहले मालगाड़ी से सामान जाता था । अब कई लोग अपना सामान बेच देते हैं और नए स्थान पर पुनः खरीदते हैं । ट्रंको से भी सामान ले जाते हैं । तबादला सच में पूरी बड़ी घटना है जो कर्मचारी के परिवार, कार्यालय और समाज को प्रभावित करती है । सम्पन्न और समर्थ तो अपना ट्रांसफर निरस्त करा लेते हैं मगर जो भुगतता है वही जानता है ट्रांसफर की त्रासदी । कई दफ्तरों में बोलियां लगती हैं हजारों के बारे न्यारे होते हैं और लोग ले देकर अच्छे पदों पर अपना स्थापन कराते हैं । डॉक्टर, वैध भी अपनी पसन्द के स्थानों के लिए हजारों देने को तैयार रहते हैं ।

   इंजीनियर निर्माण व अकाल राहत में पोस्टिंग चाहते हैं । बैंकेा में ऋण शाखा मंे हर कोई जाना चहाता है । पी.डब्ल्यू.डी. एक्साइज, पुलिस, सैल्स टैक्स, इनकम टैक्स, रेवेन्यू, सेटलमेंट आदि महकमों में पोस्टिंग स्थानान्तरण के लिए क्या-क्या नहीं किया जाता । आजकल तो तबादला एक वृहद व्यवसाय है जो नेताओं के द्वारा चलाया जाता है । मंत्रियों, विधायकों, संसद सदस्यों, स्थानीय नेताओं, दलालों और कर्मचारियों के नेताओं के द्वारा यह व्यवसाय फल-फूल रहा हैं । राजनेता को विरोधी पक्ष से सहानुभूति रखने वाला अफसर फूटी आंख नहीं सुहाता । वह उसका तबादला करा कर ही दम लेता है । आम चुनाव या उप चुनाव या गर्मियों में अक्सर थोक में ट्रांसफर होते हैं । सरकारें के बदलने मात्र से हजारों के ट्रांसफर होते हैं । एक मोटे अनुमान के अनुसार पच्चीस प्रतिशत तबादले प्रति वर्ष होते है और करोड़ो रूपये यात्रा भत्ते के रूप में सरकारें देती हैं जो कई बार रोका जा सकता है । बिना वजह या गलत शिकायतों पर या राजनीतिक या जातिगत द्वेष पर भी स्थानान्तरण हो जाते हैं । प्रशासन से जुड़े बड़े अधिकारियों को भी सजा के रूप में सचिवालय में बुला लिया जाता है । जिला मुख्यालय पर रौबदाब का मालिक अफसर सचिवालय में एक छोटे कमरे में फाइलों में उलझा मिलता है ।

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यशवन्त कोठारी

86लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर,

जयपुर 302002