परिवर्तन - उसके प्यार में - 1 Kishanlal Sharma द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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परिवर्तन - उसके प्यार में - 1

"आप क्या लेंगे?"
"तुम कौन हो?"उसके सामने खड़ी मंझले कद की युवती से उसके प्रश्न के उत्तर में उसने उसकी तरफ प्रश्न उछाल दिया था।
"मैं बार बाला हूँ।इस बार मे काम करती हूँ।"सामने बैठे युवक का प्रश्न सुनकर शांत स्वर में उसने उत्तर दिया था।
"ओहो बार बाला।सुंदर हो।"उस युवती की बात सुनकर वह बोला था
"आपके लिए क्या लाऊं।"उस युवती ने फिर अपना प्रश्न दोहराया था।
"विहस्की।"
उसका ऑडर लेकर युवती चली गयी थी।राजन इस बार मे पहली बार आया था।आज वह पूना गया था।पूना से वह अपनी कार से वापस लौट रहा था।शाम ढल चुकी थी।और शाम होते ही उसकी प्यास जग उठती।उसे शराब की तलब महसूस होने लगी थी।मुम्बई की सीमा में प्रवेश करते ही उसकी नजर इस बार पर पड़ी थी। वह कार को बाहर पार्क करके अंदर चला आया था।
"आपकी विहस्की।"वह युवती लौट आयी थी।मेज पर विहस्की की बोतल और गिलास रखते हुए वह बोली।वह जाने लगी तो राजन उससे बोला,"सुनो।"
"कहिय।"वह युवती उसके पास आते हुए बोली।
"क्या मैं तुम्हारा नाम जान सकता हूँ?"
"क्या विहस्की पीने के लिए मेरा नाम जानना जरूरी है?"वह युवती प्रश्नसूचक नजरो से राजन को देखते हुए बोली थी।
"अगर तुम्हें अपना नाम बताने में ऐतराज है,तो फिर रहने दो।""
"नाम बताने में ज कैसा ऐतराज,"वह युवती बोली,"मेरा नाम इला है।"
इला सांवले रंग और मझले कद की साधारण नेंन नक्श की युवती थी।उसे सुंदर हरगिज नही कहा जा सकता था।लेकिन उसमें एक आकर्षण था।और उसकी वजह थी।उसकी आंखें।ऐसा लगता उसकी आंखें बुला रही हो।।और न जाने उसमें ऐसा क्या था कि राजन पहली बार इला को देखते ही उस पर फिदा हो गया।
और उस दिन के बाद राजन सिर्फ उसी बार मे जाने लगा।वह जितनी देर भी बार मे रहता उसकी नजरे इला पर ही जमी रहती।राजन,इला को बार मे इधर से उधर भागते हुए देखता रहता।राजन भी किसी ने किसी बहाने से उसे अपने पास बुलाता रहता।
बार मे आने वाले कुछ लोग उससे मजाक और छेड़छाड़ करना अपनी शान समझते थे।इला को सब सहन करना पड़ता था।वो जगह ही ऐसी थी।लेकिन राजन इस तरह की घटिया और ओछी हरकत कभी नही करता था।इला,राजन के इस व्यहार से प्रभावित हुई थी।इसी का परिणाम था कि शाम होते ही वह राजन के आने का बेकरारी से इंतजार करने लगती।
न जाने इला को राजन से क्यो लगाव हो गया था।जिस दिन वह बार मे न आता उस दिन इला उदास हो जाती।वह बार मे काम तो रोज की तरह ही करती रहई।लेकिन बेमन से। यंत्र चलित गुड़िया की तरह।वह तब तक उदास और खिन्न रहती जब तक दूसरे दिन राजन को देख न लेती।राजन को देखते ही उसका चेहरा खिल उठता और वह कहना नही भूलती,"कल क्यो नही आये?"
"कल नही आ सका।"राजन माफी मांगते हुए न आने का कारण इला को बताता।
राजन के आटे ही इला में जोश और उमंग का संचार हो जाता।वह फुर्ती से कम करने लगती।बार हमेशा भरा रहता।काफी ग्राहक होने पर भी इला,राजन का पूरा ख्याल रखती।वह उसके पास आकर पूछती रहती,"और क्या
एक रात की बात है,उस रात