मैं तो ओढ चुनरिया - 45 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मैं तो ओढ चुनरिया - 45

45

वह सारी रात मैंने तरह तरह की बातें सोचते हुए जाग कर निकाली । एक अजीब सा अहसास था जो न दुखी होने देता था न खुश । मन में घबराहट अलग हो रही थी । बिल्कुल गुड्डे गुडिया के खेल की तरह लग रहा था । जैसे हम खेला करते थे । मेरी गुडिया है तू कल बारात लेकर आ जाना । घर में पङी मिठाई , नमकीन , कोई पकवान सभी सहेलियां ले आती और हम बाराती घराती कही बैठ कर वे सारा सामान खा लेते और अपने अपने खिलौने लेकर घर चले जाते । बिल्कुल उसी अंदाज में मेरा रोका हो गया और मुझे पता भी नहीं चला ।
रात को जब वे घर गये तो सुना वहाँ भी बङा हंगामा हुआ । इनकी माँ को यह रिश्ता पसंद नही आया था । सबसे बङी उन्हें यह शिकायत थी कि उन्हें किसी ने पूछा ही नहीं था । पिताजी किसी गांव में वैद्यक की दुकान करते थे । वे घर पर नहीं थे । ऊपर से इतनी दूर का समधियाना , वह भी यू पी में तो वह बुरी तरह से भङक गई थी ।
इनके बङे भाई फौज में थे जो छुट्टी आए हुए थे । वे बेहद हंसमुख और मिलनसार आदमी थे । फौज के नाते उन्होंने काफी राज्य देखे थे तो वे उन सब राज्यों से जुङी बातें करते । वहाँ के रीति रिवाजों और खानपान को लेकर अक्सर मेरे साथ बातें किया करते थे । ये रिश्ता उनको भी बहुत पसंद था । वे गरज उठे – तुझे पसंद है या नहीं । मैंने जबान दे दी है । शादी तो उसी लङकी से होगी । ये मेरा फैसला है ।
घर में बङे बेटे की बात कोई काटता नहीं था तो सब लोग चुप हो गये । उन्होने भाई से कहा – तू घबरा मत । लङकी तुझे पसंद है न तो शादी हो कर रहेगी ।
तब तक उनके जीजा जी भी पहुँच गये – अगर तुम लोगों को शादी नहीं करनी है तो इसे मैं अपने घर ले जाऊंगा । अपने घर से धूमधाम से शादी कर दूंगा । ये दोनों मेरे पास रह लेंगे ।
भैया ने कहा – इसकी नौबत नहीं आएगी जीजा जी । आप निश्चिंत रहें ।
एक बार तो बात ठप हो गई । सब लोग सो गये । सुबह भैया ने अपनी पत्नी से कहा – इसका तो शगण हो गया अब हमें भी कुछ करना चाहिए तो शाम को दोनों भाभियां और बहन एक दर्जन चूङी , बिंदी , सिंदूर , रिबन मेहंदी के साथ एक लड्डुओं का डिब्बा और मौली में बंधे पैसे लेकर आए । चूङी पहना कर मेंहदी का शगुण करके डिब्बा और पैसे मेरे हाथ में रख दिए । मेरी सभी सहेलियों की गोद भराई धूमधाम से हुई थी । ये क्या मजाक हुआ मेरे साथ पर बोलने की कोई गुंजाइश कहाँ थी ।
इतने में बुआ का छोटा बेटा बिट्टू जो मेरा लाडला था दौङता हुआ आय़ा – बहन जी बहनजी आप के लिए कुछ लाया हूँ । वह मुझे खींचता हुआ भीतर ले गया । उसने बुश्शर्ट के नीचे कुछ छिपा रखा था ।
क्या है बता जल्दी से ।
पहले आप आंख बंद करो ।
ले करली । अब तो बता – मुझे लगा था कि कहीं से मेरे लिए अमरूद तोङ कर लाया होगा या फिर चिङिया या मुर्गी का छोटा सा सद्यजात बच्चा होगा जो वह मुझे दिखाने को उठा लाया होगा ।
उसने मेरे हाथ पर कुछ टिकाया – ये क्या यह तो कापी या किताब जैसा कुछ है । मैंने आँख खोली । एरे य़ह तो फ्रेम में जङी किसी की तस्वीर थी ।
ये कहां से लाया तू ।
भाई के कमरे में शो केस में पङी थी । वहाँ से । मैंने मांगी थी तो बार बार पूछ रहा था कि तेरी बहन ने कहा है क्या । तंग कर रहा था तो मैं चुपके से उठा लाया । वह फोटो मेरे हाथ में छोङ कर बाहर खेलने चला गया ।
मैं फोटो पकङे कितनी ही देर बुत बनी खङी रही । उस अकेली कोठरी में भी मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि फोटो को सीधा करके एक नजर देख लूं । मैंने वह फोटो धीरे से अपनी संदूकची में सरका दी ।
इस समय तक साढे पाँच बज चुके थे और साढे छ बजे हमारी गाङी चलती थी तो हम सामान संभालने लग गये । इतने में मेरा छोटा भाई आया उसे किसी ने बताया था कि तुम्हारे जीजा के घर में पैंतीस जन रहते हैं ।
उसने आते ही पहला सवाल किया – दीदी वे सब सोते कहाँ है
कौन सब
जीजा के घर में ।
रसोई के दाल वाले डिब्बों में । चल तू तेरे हाथ पैर धो कर तेरे कपङे बदल दूं । वह मेरे साथ नल पर चल दिया ।
तभी उसे इनके भाई याद आए । पौने छ फुट से कम कोई न था ।
पर दीदी वो डिब्बे में घुसते कैसे है वे तो इतने लंबे हैं उसने अपने सिर से हाथ ऊपर उठा कर दिखाया ।
मेरा प्यारा सा नौ साल का भोला भाला भाई । मैं उसकी बात का क्या जवाब देती । उसे पकङ कर भीतर ले गई और कपङे बदलवा कर जूते पहनाने लगी ।
दस मिनट बाद हम रिक्शा पर स्टेशन जा रहे थे । उस वक्त मन में जेल से छूट पाने जैसा अहसास हो रहा था । खैर हम स्टेशन पहुँचे । पिताजी ने चार टिकट खरीदे और हम प्लेटफार्म पर पहुँचे । गाङी आने में अभी दस मिनट थे तो हम गाङी का इंतजार कर रहे थे कि अचानक मैंने बुआ के बङे बेटे जो दस ग्यारह साल का था के साथ किसी को पुल से उतरते देखा । हमारा घर में कुछ छूट गया था क्या जो राज देने आ रहा है ।
मामाजी अचानक राज ने पिता जी को आवाज दी । पिताजी घूम कर देख पाते इससे पहले ही साथ वाले ने राज का मुँह बंद करके आङ में ले लिया था ।
अरे यह तो वही है जो उस रात तकिए लेने कमरे में आया था और पूछ रहा था कि मैं तुझे पसंद नही हूँ क्या
हे भगवान इस आदमी की तो छुट्टी ही पांच बजे होती है । तब यह दप्तर से निकला होगा फिर फरीदकोट के बस स्टैंड आकर बस ली होगी । कोटकपूरा के बस स्टैंड से पैदल घर गया होगा । वहाँ जाकर पता चला होगा कि हम निकल चुके है तो राज को साथ चलने के लिए मनाया होगा तब लगभग साइकिल दौङाते हुए यहाँ पहुँचा होगा ।
पिताजी इधर उधर खोज रहे थे पर कोई उन्हें दिखाई नहीं दिया । उन्होंने माँ से कहा – मुझे लगा राज ने मुझे पुकारा ।
माँ ने कहा – पिछले आठ दिन से उन बच्चों के साथ थे न । आपको वहम हुआ है । वह अकेला यहाँ कैसे आएगा ।
इतने में गाङी प्लेटफार्म पर आ लगी । हम सामान उठा कर गाङी में जा बैठे ।पिताजी और माँ सामान व्यवस्थित करने लगे । मैंने देखा , राज और ये दोनों पुल की तीसरी सीढी पर खङे रेल छुटते देख रहे थे ।
गाङी यहाँ एक मिनट ही रुकती थी । धीरे धीरे सरकने लगी । स्टेशन , स्टेशन पर खङे लोग सब पीछे छूटने लगे ।

बाकी फिर ...