मैं तो ओढ चुनरिया - 10 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मैं तो ओढ चुनरिया - 10

मैं तो ओढ चुनरिया

अध्याय दस

बुआ के जाने के दसवें दिन बुआ का पत्र मिला । एक पोस्टकार्ड जिस पर लिखा कम गया था । काट पीट ज्यादा की गयी थी । हर लाईन लिखकर काट दी गयी थी । फिर आगे किसी फिल्म की कहानी लिखी थी और अंत में अनुरोध कि इस छोटी बच्ची का नाम सेवारानी नहीं सुलोचना या सुरैया ऐसे ही ढेरों सिने तारिकाओं के नाम थे और साथ ही ताकीद की गयी थी कि जल्दी जलदी मिलने के लिए बुलवा लिया करें । माँ कितनी देर तक उस पोस्टकार्ड को सीने से लगाये अपनी इस अभागिन ननद के लिए आँसू बहाती रही थी ।
फिर अगला खत मिला फूफा जी का जिसमें उन्होंने सूचना दी थी कि वे अपनी इलाहाबाद वाली बहन के पास यूपी में बसने जा रहे हैं । जहाँ पति वहीं अयोध्या । बुआ इलाहाबाद चली गयी ।
इसके बाद बुआ का कोई खत नहीं आया । आता भी कैसे अनपढ औरत थी , अक्षरज्ञान से भी वंचित । बाहर निकलने के लिए गज भर का घूँधट और साङी पर दोहरी चादर ओढे दरवाजा झांकने वाली औरतें एक बार घर में ले ली जाती तो बाहर निकलने के सारे रास्ते उनके लिए बंद हो जाते । पोस्टकार्ड लाने और डाकडब्बे में डालने के लिए जाने की बात वे सोच भी कैसे सकती थी । यह मर्दों की दुनिया थी जहाँ औरत की दो ही जगह थी । एक जगह रसोई में थी जहाँ उसे मर्द की पसंद की रसोई बनाकर उसके पेट की आग शांत करनी थी या फिर पलंग जहाँ मर्द की दैहिक आदिम भूख उसका इंतजार कर रही होती । अपनी न कोई इच्छा न तमन्ना ।
अलबत्ता फूफाजी का खत महीने दो महीने में आ जाता । सब कुशल है , से शुरु होकर सब ठीक है , के बीच एक दो लाईन में बुआ के हिस्टीरिया के दौरे पङने का जिकर होता । धीरे धीरे यह भी सामान्य सी घटना हो गयी ।
हाँ इस सबमें एक महत्वपूर्ण बात हुई , मेरा नाम सेवारानी से स्नेहलता रख दिया गया जो उस जमाने की नामचीन अभिनेत्री थी । कई हिट फिल्में दे चुकी थी । पर यह नाम सिर्फ माँ ही पुकारा करती , वह भी पूरा का पूरा । बाकी लोग पहले भी रानी कहते थे , अब भी रानी कहते ।
माँ और पिताजी फरीदकोट लौट आये थे । पिताजी को अब काम का सुभीता हो गया । वे सुबह रोटी खाकर निकलते तो दिन ढले ही लौटते ।
मैं इस बीच आठ महीने की हो गयी थी । बैठना , घुटनों के बल खिसकना सीख चुकी थी और आजकल सहारा पकङ कर खङे होना सीख रही थी । कुछ शब्द भी बोलने सीख लिए थे । जिन्हें माँ के साथ दिन में कई बार दोहराया करती । कि इस बीच एक भयंकर काण्ड हो गया । ये दुर्घटना मैंने अलग अलग लोगों के साथ अलग अलग संस्करणों में इतनी बार सुनी है कि लगता है ,मैंने अपने सामने कई बार घटित होते देखी है । आप भी सुनिए । एक शाम माँ ने कोयले की अंगीठी सुलगाई । सर्दियों के दिन थे । इसलिए रात का खाना बाहर खुले में बनने की जगह कमरे में ही बनता था । अंगीठी अंदर रख वे नलके पर दाल धोने गयी । मुझे निवारी पलंग पर खिलौनों के साथ खेलने के लिए छोङ गयी । मैंने एक खिलौना पलंग से नीचे फेंका । खिलौना धम की आवाज से नीचे गिरा । मुझे अच्छा लगा होगा । मैंने अपनी गुङिया नीचे फेंकी और गेंद भी और ये दोनों सीधे अंगीठी में जा गिरे । पल भर में एक अजीब सी गंध सारे घर में फैल गयी । कमरे में धुआँ ही धुँआ हो गया । मेरी आँखों में गले में धुँआ भर गया । मेरा साँस लेना मुश्किल हुआ तो मैं पलंग के साथ वाली खिङकी के सरिये पकङ कर खङी हो गयी । बदबू माँ तक पहुँची तो वे दाल वहीं पटक भागी । कमरे में धुँए के सिवाय कुछ सुझाई नहीं दे रहा था । वे उसी धुँए में भीतर घुसी । जैसे तैसे ढूँढकर मुझे सुरक्षित बाहर निकाल लाई पर धुँआ उनके फेफङों में चला गया । लोगों ने खिङकियाँ खोलकर धुँआ निकल जाने दिया । अंगीठी में पानी डाल दिया । कितनी देर तक मेरी और माँ की पीठ सहलाते रहे तब जाकर हमारी साँसें सामान्य हुई ।
माँ मुझे सीने से चिपकाए रोये जा रही थी । मुझे खो देने की कल्पना उन्हें बेहाल किये दे रही थी कि इतने में पिताजी आ गये । उन्हें गली के मोङ पर ही किसी ने खबर दे दी थी । आते ही उन्होंने माँ के तीन चार थप्पङ जङ दिये ।“ बेवकूफ औरत तू पूरा दिन करती क्या रहती है । बच्ची को कुछ हो जाता तो तुझे यहीं जमीन में गाङ देता “ । माँ तो पहले ही सदमे में थी । सारे मौहल्ले के आदमी औरतों के सामने इस तरह मार और गाली गलौज मिलेगी , उन्होंने सोचा भी नहीं था । वे सुन्न हो गयी । क्या यह बच्ची उनकी नहीं है ? सिर्फ पति की है ? नौ महीने अपनी कोख में रखा । जान की बाजी लगाकर जन्म दिया । अपना खून पिलाकर पाल रही हैं । वे दुश्मन हैं क्या ? लोग पकङ कर रवि को घर से बाहर ले गये । झाई माँ को समझा रही थी – मरद ऐसे ही होते हैं । औरतों को बच्चे पालने के लिए बहुत कुछ सहना पङता है । अभी थोङी देर में गुस्सा ठंडा हो जाएगा तो आ जाएगा । तू हौंसला रख ।
करीब एक घंटे बाद पिताजी घर आ गये । पर अबोला दोनों में कायम रहा । उस रात किसी ने एक निवाला भी नहीं खाया ।

बाकी अगली कङी में ...