गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 14 Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 14

लड़की के मैके से ससुराल आते ही कर्तव्यबोध आ जाता है।वह नीचे चली गयी थी
माँ मुझसे बोली थी,"बहू के लिए साड़ी ला दे।'
"साड़ी,"मैं बोला," साड़ी तो इतनी सारी आयी है।फिर साड़ी क्यो?"
"वो सब भारी साड़ी है।रोज पहिनने के लिए हल्की साड़ी चाहिए
और माँ के साथ जाकर मैं दो साड़ी खरीद लाया था।हमारे यहां कोई भी शुभ काम देव सोने पर नही होता।इसलिय करीब चार महीनों के लिए शुभ कार्य जैसे शादी आदि रुक जात है।
देव सोने वाले थे।इसलिए पहली बार पत्नी को सिर्फ दो दिन के लिए ही ससुराल में रुकना था।28 जून को मेरे सभी साले आ गए थे और दूसरे दिन मुझे भी पत्नी के संग ही जाना था।वहाँ पर कथा आदि कार्यक्रम थे।।एक दिन वहाँ रहने के बाद मैं पत्नी को विदा कराकर अपने साथ ले आया था।और इस तरह आने जाने की जो बाधा थी।खुल गयी थी।अब पत्नी के अपने मायके जाने पर कोई रोक नही थी।औरत एक खुशबू है।पत्नी भी तो एक औरत ही होती है।वह हवा के एक झोंके की तरह जिंदगी में आती है।हवा का झोंका आता है और शीतलता का एहसास कराकर चला जाता है।लेकिन पत्नी के साथ ऐसा नही होत।हमारे यहां।विदेशों में तलाक की प्रथा है।तलाक को तो हमारे यहां भी कानूनी मान्यता है।लेकिन हमारे दमज में तलाक सर्वमान्य नही है।आज भी हमारे यहां शादी का मतलब है आजीवन का बंधन।लेकिन पश्चिम में ऐसा नही है।वहा पर छोटी छोटी बात पर तलाक हो जाते है।कहने का मतलब है आदमी की जिंदगी में एक से ज्यादा पत्नी भी आ सकती है।
हमारे यहाँ पत्नी आती हवा के झोंके की तरह है और आकर ठहर जाती है।
कुछ अन्य यादगार बाते भी
एक दिन कमरे में गांव में मैं पलंग पर लेटा था और पत्नी नीचे बैठी थी।मैं उससे बोला,"तुम्हारा नाम क्या है?"
"शादी हो गयी और अभी मेरा नाम ही पता नही है?"
"मालूम है,कार्ड में भी लिखवाया था।
"
"क्या?
"इंद्रा।"
"फिर कैसे कह रहे हो कि मेरा नाम पता नही है।"
"वो नाम तो बाहर का है।घर मे भी तो तुम्हे किसी नाम से बुलाते होंगे।"
"इसी नाम से बुलाते है।"
"नही।"
"तो?"
"मैने तुम्हारे मामाजी को गगगो कहते हुए सुना था।"
कुछ देर तक वह टालती रही।फिर बोली,"हा।इसी नाम से बुलाते है।"
"गगगो।'
"पापा ने घर मे मेरा नाम गगन रख रखा था और शार्ट में वह गगगो हो गया
और उस दिन से मेरी पत्नी मेरे लिये भी गगन हो गयी थी और मैं भी उसे गगगो के नाम से बुलाने लगा।
वो दिन भी क्या दिन थे।
मेरी माँ पूरी सास थी।शुरुआत के दिनों की बात।अभी शादी हुए ज्यादा दिन नही हुए थे।या कहे तो कुछ ही दिन
हम 7 भी बहन है।उन दिनों सब छोटे थे।मा गांव में किसी के घर चली गयी थी।शाम का समय
खाना बनाने का समय हो गया था।उन दिनों में गांव में चूल्हे पर रोटी बनती थी।पत्नी बाहर आकर कुछ ढूंढने लगी।मैं बाहर आया तो बोला,"क्या देख रही हो।"
"चूल्हा जलाना है।"
"क्यो?"
"खाना बनाना है।"
"मा आ जायेगी कर लेगी।"
"पता नही कब तक आये।अभी सब भूख छिलने लगेंगे।"
"मैं निकालता हूँ।"
"आप रहने दो
लेकिन मैंने उसे बताई लकड़ी कहा है और चूल्हा जलाने में उसकी मदद करता रहा।वह घबरा रही थी।ताई सास व उनकी बहू क्या सोचेगी।
और उसने गाँव मे पहली बार रोटी सब्जी बनाई थी