भाग ११
अब तक आपने देखा की राजकुमारी शिवन्या रानी निलंबा को कहती है कि में विवाह के लिए लड़का देखने को तैयार हु, यह सुनकर रानी निलंबा खुश हो गई वह आगे कुछ भी बोले उससे पहले शिवन्या तलवार बाजी का अभ्यास करने चली जाती हैं, अब आगे की कहनी देखते है।
राजकुमारी शिवन्या एक बड़े से मैदान के बाजू में अपने तलवार बाजी का अभ्यास करने चली जाती है , वह जब भी अपने खुद के कार्य से कही निकलती तो वह अपनी सुरक्षा के लिए साथ सैनिकों को नहीं ले जाती थी वह कहती थी की....... "मेने खुद को इतना काबिल योद्धा तो बनाया ही है की में खुद की सुरक्षा कर सकू"। जो खुद की सुरक्षा नही कर पायेगा वह दुनिया के जालिम लोगो से कभी खुद को नही बचा पायेगा।
राजकुमारी तलवार चला रही थी , तभी एक घर के बाहर एक साधु भिक्षा मांग रहा था तभी जो आदमी उस घर में रह रहा था उसने उस साधु का अपमान किया ओर भिक्षा देने से इंकार कर दिया वही शिवन्या खड़ी थी वह सब कुछ देख रही थी , तब उस आदमी की नजर राजकुमारी शिवन्या पर पड़ी उसने देखा वह तलवार ले कर खड़ी है , वह आदमी बहुत डर गया क्युकी शिवन्या की गुस्से से लाल हो चुकी आंखे उस आदमी को ही देख रही थी, उसने तुरंत ही साधु के पैर पकड़े और माफी मांगी और साधु को भिक्षा भी दी।
राजकुमारी शिवन्या उस आदमी के पास गई और उसे बोला "अगर अगली बार मेने तुम्हे किसी भी साधु संत का अपमान करते देखा तो तुम्हे कही भी रहने के लायक नही रहने दूंगी"
वह आदमी इस बात से इतना डर गया की उसने अपने कांपते हुए हाथ जोड़े और शिवन्या से माफी मांगी और बोला आइंदा किसी भी साधु का अपमान नही करूंगा और हमेशा अच्छे से पेश आऊंगा , यह बोल कर वह तुरंत अपने घर के भीतर चला गया।
उस साधु ने कहा पुत्री तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद हम जेसे साधु का पक्ष आज कल कोई नही लेता तुम्हारी ऐसी दया भावना देख कर में बहुत प्रसन्न हुआ हु, फिर वह कहते है पुत्री अब में चलता हु मेरी साधना का समय हो गया है , शिवन्या ने उनको अलविदा कह कर अपने महल वापिस आ गई, दुपहर हो चुकी थी राजकुमारी अपने कमरे में लेटी हुई थी वह आज जो उस साधु के साथ हुआ उसी का वो विचार कर रही थी। फिर उसके अतरंगी दिमाग में कुछ सूजा।
उसने सोचा की वह एक साध्वी का वेश धारण करेगी और घर घर भिक्षा मांगने जायेगी , राजकुमारी शिवन्या अपनी इस तरकीब से जानना चाहती थी की विलम नगर में ऐसे कितने लोग है जो साधु संतो का अपमान करते है, विचार करते करते शाम हो चुकी थी , रानी निलंबा राजकुमारी के कक्ष में आई उन्हे ढूंढते ढूंढते ओर आकार बोली पुत्री आज पहली बार तुम पूरी दुपहर अपनी शैया में लेटी रही, ऐसे पहले तो कभी नहीं किया हमेशा पूरे महल में भाग दौड़ मचाने वाली कन्या को आज क्या हो गया।
उसने बोला , कुछ नही माता ऐसी कोई बात नही है वो तो में ऐसे ही लेटी थी , रानी ने कहा हां तो फिर ठीक है , राजकुमारी ने कहा माता क्या मुझे एक साध्वी के वस्त्र मिल सकते है। यह सुनते ही रानी निलंबा ने आश्चर्य भरी निगाहों से राजकुमारी की ओर देखा और कहा , साध्वी के वस्त्र? किंतु एक साध्वी के वस्त्र की आपको क्या आवश्यकता आन पड़ी?? माता वह सब में आपको बाद में कहूंगी आप बस मुझे कही से भी साध्वी के वस्त्र दीजिए कल मुझे वह पहनने है।
रानी निलंबा ने कहा चलिए ठीक है , पता नही आपके अतरंगी मस्तीस में क्या क्या चलता रहता है, राजकुमारी शिवन्या ने कहा माता आप बिल्कुल भी चिंतित ना हो यह मेरी कोई शरारत नहीं है, रानी निलंबा कहती है तो फिर ठीक है जैसा आपको उचित लगे। रात हो जाती है, शिवन्या राजा विलम ओर रानी निलंबा भोजन ग्रहण करने बैठ जाते है, दासी उन्हे भोजन परोसती है।
राजा विलम ने हस्ते हुए कहा पुत्री मेने सुना है कल आपको साध्वी के वस्त्र धारण करने है , मुझे आशा है कि यह आपकी कोई नई शरारत नहीं होगी , शिवन्या ने भी हस्ते हुए उत्तर दिया नही पिताजी मेरी कोई नई शरारत नहीं। फिर भोजन ग्रहण करके सब लोग सो जाते है। सोने से पहले रानी राजकुमारी को साध्वी के वस्त्र दे जाती है।
अगले दिन सुबह होती है राजकुमारी ने स्नान करके साध्वी के वस्त्र धारण कर लिए कोई नही कह सकता की यह एक राजकुमारी है वे बिल्कुल एक साध्वी जेसी दिखाई दे रही थी , उन्होंने कपड़े से अपना मुंह ढक लिया था ताकि कोई भी उन्हे पहचान न पाये की वह राजकुमारी शिवन्या है ।
इस कहानी को यही तक रखते है कहानी का अगला भाग जल्द आएगा।😊