Kya Tumne - Part 5 books and stories free download online pdf in Hindi

क्या तुमने - भाग - ५

गोविंद आज मोहन के मन में पल रहे पाप को पहचान गया था। वह जानता था कि बिना शक के मोहन यह सब नहीं करता। वह सच में उस पर शक करता है। घर में किसी तरह का तनाव ना हो इसलिए गोविंद ने बसंती से बातचीत करना कम कर दिया। बेचारी बसंती भी अब घबराने लगी थी। वह भी गोविंद से कम ही बात करती थी लेकिन मोहन बिल्कुल नहीं बदला। अब वह हर रोज़ शराब पीकर आने लगा और किसी ना किसी बात पर घर में तमाशा करने लगा। बसंती के ऊपर हाथ भी उठाने लगा। एक हंसता मुस्कुराता परिवार शक के उस भयानक कीड़े का शिकार होने लगा।

माँ-बाप परेशान थे कि उनका बेटा शराबी हो गया, पागल हो गया है। वह बिना किसी कारण के गोविंद और बसंती पर शक कर रहा है। 

माया ने अपने पति सखाराम से कहा, “अरे जल्दी ही कुछ करो वरना सब कुछ ख़त्म हो जाएगा। वह फूल-सी नाज़ुक बच्ची पर रोज़ हाथ उठाता है। उसके माँ-बाप को पता चलेगा तो कैसा लगेगा उनको। वह बेचारे तो सोच रहे होंगे कि उनकी बेटियाँ बहुत ख़ुश होंगी। छोटी बहन को पिटता देख बड़ी भी कहाँ सुख से रह सकती है?”

“हाँ माया समझ नहीं आता कि क्या करें, कैसे सुधारे उसे?”

इतने में मोहन अपने कमरे से उठ कर आया और कहा, “अम्मा बाबूजी मुझे मेरा हिस्सा दे दो। यहाँ मुझे नहीं रहना है जहाँ मेरी बीवी पर …”

माया ने फिर उसके गाल पर एक तमाचा जड़ते हुए कहा, “पागल हो गया है तू। शक की अग्नि ने तुझे अपने में समेट लिया है मोहन, एक दिन तू और तेरा शक हमारे पूरे परिवार को ही भस्म कर देगा। अरे पागल गोविंद अपनी छोटी बहन मानता है बसंती को और तू …”

“मैं नहीं सुनना चाहता तुम्हारा भाषण। मैं कोई बच्चा नहीं हूँ। हमारे बाजू वाले दोनों कमरे खाली हैं, मैं वहाँ जा रहा हूँ।”

“क्या …क्या सच में तू अलग रहने की बात कर रहा है?” 

“हाँ अब मैं यहाँ नहीं रहना चाहता। मेरा दम घुटता है यहाँ। यहाँ रहूँगा तो या तो मैं मर जाऊंगा या उन दोनों को …”

आज पानी सर के ऊपर तक पहुँच गया था।

मोहन के मुंह से ऐसे शब्द निकलते ही सखाराम ने उसे धक्का देते हुए कहा, “जा निकल जा, तू है ही नहीं यहाँ हमारे साथ रहने के काबिल।”

“हाँ-हाँ जा रहा हूँ, चल बसंती …”

“बसंती नहीं जाएगी, मोहन तू जा।”

“चल बसंती …” 

बसंती ने कहा, “बाबूजी मुझे जाने दो, इसी में हम सबकी भलाई है।”

“बसंती वह तुझे मार …”

“नहीं बाबू जी मैं संभाल लूंगी मोहन को।”

इस तरह मजबूर बसंती ना चाहते हुए भी अपना पत्नी का फ़र्ज़ निभाने के लिए मोहन के साथ घर से बाहर निकल गई। पूरा परिवार सदमे में था। सभी को केवल बसंती की चिंता थी।

जयंती ने रोते हुए माया से कहा, “अम्मा मेरी बहन।”

“जयंती तू चिंता मत कर बेटा। बाजू वाले कमरे में ही तो रहेगा। जाएगा कहाँ, इतनी हिम्मत नहीं है उसमें कि कहीं दूर चला जाए। हमारी गलती हो गई बेटा जो खोटे सिक्के के साथ एक हीरे का गठबंधन करवा दिया।”

“नहीं अम्मा आप ऐसा मत बोलो, सब ठीक हो जाएगा।”

“जयंती शक ऐसी जोंक होती है जो आसानी से पीछा नहीं छोड़ती। कुछ ना कुछ लेकर ही वापस जाती है पर तब तक बहुत देर हो जाती है बिटिया।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED