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बार-बार दिल में आता कि मैं क्यों न अविवाहित रहने का व्रत ले लूँ लेकिन वह भी तो कह पाना या पचा पाना, कठोर निर्णय ले पाना इतना आसान नहीं था | जानती हूँ कि एक बार अम्मा-पापा असहज ज़रूर होते लेकिन वे भी समझते तो थे ही कि बिना पसंदगी के शादी-विवाह जैसे मामले में आगे बढ़ना कैसे ठीक हो सकता है ? यह केवल तन का मिलन नहीं होता, जब तक मन न मिले तह तक कैसे? या तो यह होता कि मुझ पर साधुपने का बुखार चढ़ गया होता | जो बिलकुल भी नहीं था और मेरा मन अब भी अपने साथी की तलाश कर रहा था | मुझे बिलकुल शिद्दत से महसूस हो चुका था कि मेरे शरीर व मन की आवश्यकताएँ उतनी ही उद्विग्न थीं जितनी किसी आम इंसान की हो सकती होंगी | उम्र के बढ़ने के बावज़ूद भी !
मुझे अचानक अपनी एक क्लासमेट की याद आ गई जो जैन परिवार से थी | शायद वह किसी के प्रेम में इतनी डूब चुकी थी कि उसके बिना रहना उसके लिए सौ मौत मरने जैसा था | जैन कट्टर परिवार की बेटी को किसी दक्षिण भारतीय ब्राह्मण से प्रेम हो जाए, यह स्वीकारना जैन परिवार के लिए केवल कठिन ही नहीं आसमान से गिरने जैसा था | बहुत प्रयत्नों के बावज़ूद भी जैन परिवार इस मिलन के लिए तैयार नहीं था जबकि दक्षिण भारतीय परिवार सहर्ष उस जैन परिवार से संबंध बनाने के लिए तैयार था | रश्मि भीतर से मुरझाती जा रही थी, यह हम उसके साथ पढ़ने वाले देख व महसूस कर पा रहे थे |
मुझसे उसकी इतनी दोस्ती तो नहीं थी कि वह मुझसे कुछ इतना पर्सनल शेयर कर पाती, लेकिन हुआ कुछ ऐसा था कि एक दिन न जाने किस धुन में हम दोनों कॉरीडोर में टकरा गए और उसके पर्स के खुले रहने के कारण उसमें से कुछ चीज़ें जमीन पर गिर गईं थीं | हमने एक दूसरे से ‘सॉरी’ कहा और उन गिरी हुई चीज़ों को समेटने के लिए उसके साथ मैं भी नीचे झुक गई | हमारे सिर टकरा गए और हम दोनों ज़ोर से हँस पड़े |
“एक बार और रश्मि, दादी कहती हैं कि अगर एक बार सिर टकरा जाए तो दूसरी बार भी टकरा लेना चाहिए | ” मैंने हँसते हुए सिर आगे करके धीरे से एक बार उसके सिर से अपना सिर और टकरा लिया और एक बार फिर से हम दोनों हँसने लगे |
सामान समेटकर हम साथ-साथ चलने लगे | वैसे तो विपरीत दिशाओं में चल रहे थे लेकिन मैं मुड़कर उसके साथ चलने लगी | उसे आश्चर्य हुआ और उसने ठिठककर मेरी ओर देखा |
“तुम तो कहीं और जा रही थीं न अमी, फिर—? ”उसने मुझसे पूछा |
“हम्म, जा तो रही थी लेकिन तुम्हें देखकर मन हुआ कि तुम्हारे साथ चलूँ ? ”मैंने मस्ती से उसकी बात का उत्तर दिया | उसे समझ में नहीं आया कि मैंने ऐसा क्यों कहा होगा ? मैं उसकी इतनी करीबी दोस्त तो थी नहीं | वह चुप रही और अपने पर्स को ऊपर से टटोलने लगी, अचानक उसका चेहरा पीला पड़ने लगा |
“मैं ज़रा अभी आती हूँ----”, एक झटके से वह पीछे की ओर मुड़ी और तेज़ी से उधर की ओर चलने लगी जिधर हम टकराए थे | मैं आराम से उसे जाते हुए देख रही थी | उसकी शारीरिक गति व चेहरे पर पसरी हवाइयाँ उसकी चुगली खा रही थीं जैसे वह एकदम परेशान हो उठी थी | मैं वहीं खड़ी उसकी भंगिमाओं से कुछ पहचानने की कोशिश करती रही |
उस जगह पहुँचकर उसने खोजी दृष्टि से दूर-दूर तक देखा बल्कि उससे भी अधिक दूर जाकर लेकिन वह जो तलाशने गई थी उसे कुछ नहीं मिला | सिर झुकाए लेकिन अपनी नीची नजरें इधर-उधर फेंकते हुए वह अभी भी कुछ तलाशने की कोशिश कर रही थी | वह मेरे पास तक आ गई थी, उसकी दृष्टि वहाँ खड़ी हुई मुझ तक पड़ी और वह मेरे चेहरे पर देखने लगी |
“क्या हुआ---? ”मैंने पूछा |
“यू आर स्टिल हीयर ? ”उसके मुँह से अचानक फिर निकला |
“कुछ खो गया है क्या ? ”मैंने फिर पूछा और उसके चेहरे पर अपनी दृष्टि गडा दी |
“हाँ---कुछ गिर गया है मेरे पर्स से----”दबी हुई आवाज़ में उसने कहा |
“ये तो नहीं ढूंढ रही हो? ”मैंने अपनी मुठ्ठी खोलकर उसके सामने कर दी |
उसकी आँखों में पल भर को एक चमक सी आ गई और उसने जैसे झपट्टा मारकर मुझसे वह छोटी सी बॉटल लेनी चाही लेकिन मैंने अपनी मुट्ठी कसकर बंद कर ली | उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? न वह बता सकती थी कि यह उसकी थी और न ही मुझसे ज़बरदस्ती छीन सकती थी | उसकी आँखों में मैंने आँसु भरे हुए देखे और मैं परेशान हो गई |
“रश्मि ! चलो, गार्डन की तरफ़ चलते हैं---”मैने उससे कहा और आगे-आगे चल पड़ी | उसके पास इसके अतिरिक्त कोई चारा ही नहीं था कि वह मेरे पीछे-पीछे आए | धीमे कदमों से मैं गार्डन की ओर पहुँचकर एक बोगनबेल के झाड़ के नीचे बने गोल चबूतरे पर जा बैठी | उसे मेरे पीछे-पीछे आकर वहाँ बैठना पड़ा |
“ये क्या और क्यों है रश्मि ? ” मैंने वह छोटी सी बॉटल उसे दिखाकर पूछा और फिर से अपनी मुट्ठी में उसे कैद कर लिया |
सकपकाई हुई रश्मि कुछ भी कहने, बोलने की स्थिति में नहीं थी |
“मुझे दे दो न प्लीज़, तुम्हारे काम की नहीं है----”उसने ढबरे हुए बड़ी अज़ीज़ी से कहा |
“तुम्हारे काम की है क्या? ” मैंने बड़ी कठोरता से उससे पूछा था जिसके उत्तर में वह फुट-फूटकर रोने लगी थी |
“मेरे पास और चारा भी क्या है ? ” ज़ार-ज़ार रोते हुए उसके मुँह से निकला |
“जीवन इतना सस्ता समझा है क्या? ” मेरे शब्द कठोर थे |
“तो क्या करूँ? न मैं प्रकाश के बिना नहीं रह सकती और मम्मी-पापा मेरी शादी के पीछे पड़े हुए हैं | उनके लिए अमीर घर और अपनी जाति का बड़ा बिजनैस परिवार बहुत जरूरी है----” रोते-रोते उसने अपना सिर मेरे कंधे पर टिका दिया था, उसे होश भी नहीं था कि जिस अमी से कभी उसकी खुलकर बात भी नहीं हुई थी। उसे वह अपने आप ही सब बातें खोलकर बताए जा रही थी |
“रश्मि ! लेकिन यह पॉयज़न इसका इलाज है क्या? ” मैंने उसे अपने बैग से पानी की बॉटल निकालकर ठंडा पानी पिलाया और उससे मुँह-हाथ धोने के लिए कहा | उसने मेरी बात चुपचाप मान ली |
“यह किसी भी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन नहीं है रश्मि--- | ”मैंने उसे बहुत प्यार से समझाया था |
“क्या करूँ अमी ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, तुम्हारी फ़ैमिली जैसी नहीं है मेरी फ़ैमिली ---दे आर सो कंजरवेटिव----”उसने कहा | हम सब क्लास के लोग यह सब जानते ही थे | उसकी एक पक्की दोस्त थी रागिनी –उसे पिछले दिनों मलेरिया हो गया था इसलिए वह कॉलेज नहीं आ रही थी और यह घर में बैठना नहीं चाहती थी क्योंकि हर समय इस पर शादी का प्रेशर बनाया जाता था |
“अच्छा, अगर तुम्हारे सामने यह सिचवेशन होती तो तुम क्या करतीं ? ”उसने मुझसे सीधे पूछा |
समझ में नहीं आया था कि क्या कहूँ उसे? फिर भी जितना मुझसे हुआ मैंने उसे समझाने की कोशिश की | पता नहीं मेरे मन में कैसे यह सब आया था | मुझे अच्छी तरह से याद है, मैंने उसे कहा था कि उसके पास ऐसी स्थिति में दो रास्ते हैं---या तो अपनी फ़ैमिली के अगेन्सट जाकर प्रकाश से शादी कर ले या फिर प्रकाश को भूलने की कोशिश करे और अपने मम्मी-पापा की इच्छा से शादी करे और मस्ती से लाइफ़ इन्जॉय करे | मैंने उसके सामने बॉटल में भरा हुआ लिक्विड पॉयज़न बोगन बेल की जड़ों में खाली कर दिया, वह नन्ही सी बॉटल डस्टबिन में फेंक आई और उसे समझाती हुई उसके साथ कैंटीन में कॉफ़ी पीने आ गई | मुझे अच्छा लगा शायद यह भी कि मैं काफ़ी समझदार हूँ शायद कि अपनी हमउम्र को समझा पाई हूँ | उसने मुझसे वायदा किया कि वह ऐसा कोई स्टैप नहीं लेगी कि ज़िंदगी खतम हो जाए | उसके बाद कई बार हम मिले, रागिनी भी ठीक होकर आ गई थी और रश्मि के दिमाग में जो कुछ भी परेशानी होती, न जाने क्यों वह मुझे ज़रूर बताती और मेरी बात मानती भी |
कुछ दिनों बाद अचानक रश्मि ने कॉलेज में आना बंद कर दिया था और कुछेक दिनों में ही उसके परिवार की पसंद के लड़के से उसके विवाह का निमंत्रण पत्र हमारे सामने था | थोड़ा स दुख हुआ मुझे लेकिन इस बात से संतुष्टि भी हुई कि बेशक वह अपनी पसंद से शादी नहीं कर पा रही थी लेकिन पॉयज़न पीकर अपनी जान लेने के विचार से उसने छुट्टी पा ली थी |
उसने मुझे बताया था कि प्रकाश यू.के जाने का मन बना लिया था | वे दोनों आखिरी बार मिले थे और एक दूसरे को अलविदा कर दिया था | हम सभी समझते थे उसकी मानसिक स्थिति बड़ी उलझी हुई थी फिर भी उसने अपने आपको तैयार कर लिया था | शादी होकर वह बंबई चली गई थी | उसकी सूचनाएं मिलती रही थीं और अब वह टीन-एज बच्चों की माँ थी | समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक इस समय मुझे वह कहानी क्यों याद आ गई थी? इंसान का मनोमस्तिष्क भी न !!