"तो अचलराज ! अब चले राजमहल को ओर",कालवाची बोली...
"हाँ! सखी! चलो",अचलराज ने युवती के स्वर में बोला...
अचलराज की बात पर पुनः सबको हँसी आ गई और तभी भैरवी ने पूछा...
"अचलराज! अभी तुमने अपना नामकरण तो किया नहीं,वहाँ जाकर क्या कहोगे सबसे कि तुम कौन हो?", भैरवी बोली...
"हाँ! इस बात का तो मैनें ध्यान ही नहीं दिया",अचलराज बोला....
"वैशाली....हाँ...वैशाली नाम उचित रहेगा",रानी कुमुदिनी बोली...
"हाँ! तो वैशाली अब चले",कालवाची बोली...
"हाँ! चलो कर्बला सखी!",अचलराज बोला...
क्योंकि इस कार्य के लिए कालवाची पुनः कर्बला बन गई थी और दोनों सखियाँ आपस में बहनें बनकर राजमहल की ओर चल पड़ीं,कुछ समय पश्चात वें राजमहल पहुँच गईं और अब वें राजमहल के मुख्य द्वार पर थीं,द्वारपालों ने उन्हें देखा तो उनके रुप पर मोहित हो उठे और यही वें दोनों चाहती भी थीं,तब वें दोनों द्वारपालों के समक्ष गईं और वैशाली ने अपनी अंगभंगिमाओं के द्वारा द्वारपालों को मोहित करते हुए कहा....
"द्वारपाल जी! हम दोनों बहनें असहाय एवं अत्यन्त अकेलीं हैं,इस राजमहल में हमारे योग्य कोई कार्य मिल जाता तो अत्यधिक उपकार होगा हम पर",
"प्रिऐ! कार्य तो बहुत हैं इस राजमहल में किन्तु इसके प्रतिदान में हमें क्या मिलेगा"? पहले द्वारपाल ने पूछा...
"इसके प्रतिदान में आपको क्या चाहिए महाशय",कर्बला ने द्वारपालों को मोहित करने की चेष्टा करते हुए कहा...
"तुम दोनों इतनी रूपमती,इतनी कोमलांगी,यौवन से भरपूर हो,जो तुम दोनों का जी चाहे सो दे देना",दूसरा द्वारपाल बोला...
"अच्छा! इतना सबकुछ है हम में,ये तो हमें ज्ञात ही नहीं था,तो हमें अब तो इस राजमहल में दासी का कार्य तो मिल ही जाएगा ना!",वैशाली ने पूछा...
"अरे! तुम दोनों स्वयं को दासी के योग्य क्यों समझती हो?",पहला द्वारपाल बोला....
तब कर्बला बोली...
"स्वयं को दासी ना समझें तो क्या समझें द्वारपाल जी! ईश्वर ने तो हमारे संग बहुत बड़ा छल किया है, बाल्यकाल में हमारे पिता को हमसे छीन लिया और अब हमारी माता भी चल बसीं,जीवनयापन हेतु कोई कार्य तो चाहिए ना! हम दोनों बहनें जहाँ भी कार्य हेतु गए तो वहाँ सबकी दृष्टि हमारे यौवन पर ही पड़ी, बड़ी आशा लेकर हम यहाँ आएं हैं,कृपया हमें निराश मत कीजिए महानुभाव",
"हमें भी तुम दोनों पर दया आ रही है किन्तु तुम दोनों को राजमहल में कार्य दिलवाना हमारे वश में नहीं, इसके लिए तो हमें यहाँ के राजा की आज्ञा चाहिए होगी",दूसरा द्वारपाल बोला...
"कहाँ मिलेगें आपके महाराज? कृपया हमें ये बता दीजिए,हम स्वतः ही उन से इस विषय पर बात कर लेगें",वैशाली बोली...
"वें सरलता से किसी से नहीं मिलते",पहला द्वारपाल बोला...
"आप केवल हम दोनों को राजमहल में प्रवेश करने दीजिए,शेष कार्य हम स्वतः कर लेगें",कर्बला बोली...
" यदि हमने तुम्हें राजमहल में प्रवेश करने दिया तो राजा हम दोनों द्वारपालों पर क्रोधित हो उठेगें",दूसरा द्वारपाल बोला...
"कृपया हमें राजमहल के भीतर प्रवेश करने दो,मैं आपके चरण स्पर्श करती हूँ,",कर्बला बोली...
"कहा ना! समझ में नहीं आ रहा क्या तुम दोनों को,हम दोनों द्वारपाल ऐसा नहीं कर सकते",पहला द्वारपाल बोला...
"इतने निर्दयी मत बनिए द्वारपाल जी,यदि आपने हम दोनों की सहायता नहीं की तो हम दोनों कहाँ जाऐगीं"?, वैशाली बोली...
"कहीं भी जाओं,इससे हमें क्या?",दूसरा द्वारपाल बोला...
उन सभी के मध्य वार्तालाप चल ही रहा था तभी उस के राज्य के सेनापति राजमहल से बाहर जा रहे थे और उन्होंने उन दोनों युवतियों को देखा जो कि अत्यधिक सुन्दर थीं तो उन्होंने द्वारपाल से पूछा...
"यहाँ क्या हो रहा है द्वारपाल और ये युवतियाँ कौन हैं"?
तब द्वारपाल ने सेनापति के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा....
"सेनापति जी! ये युवतियाँ चाहती है कि इन दोनों को राजमहल में प्रवेश मिल जाएं, परन्तु हम इन्हे राजमहल में प्रवेश नहीं करने दे रहे तो हमसे विनती कर रहीं हैं",
"ये दोनों राजमहल में प्रवेश क्यों पाना चाहतीं हैं"?सेनापति ने पूछा..
तब दूसरा द्वारपाल बोला...
"सेनापति जी! इन्हें राजमहल में कार्य चाहिए",
"तो ये कार्य चाहतीं हैं",सेनापति जी बोलें...
तब सेनापति की बात सुनकर वैशाली बोली....
"हाँ! सेनापति जी! कोई भी कार्य कर लेगीं हम दोनों बहनें,किसी की दासी, किसी की सेविका,हम कुछ भी बनने को तत्पर हैं,बस हमें यहाँ कार्य चाहिए क्योंकि हम दोनों सम्पूर्ण राज्य का भ्रमण करके थक चुकें हैं,परन्तु हमें किसी ने कार्य नहीं दिया"कर्बला बोली...
"अच्छा! ये बताओ,तुम दोनों को नृत्य संगीत आता है",सेनापति ने पूछा...
"हाँ! नृत्य संगीत दोनों आता है",कर्बला बोली...
"तो क्या तुम दोनों राजमहल में राजनर्तकी की दासी बनकर रह सकोगी",?,सेनापति जी ने पूछा...
"हाँ....हाँ... क्यों नहीं !भला हम दोनों को इसमें क्या आपत्ति हो सकती है"?,कर्बला बोली...
"किन्तु!पहले इस कार्य हेतु महाराज की अनुमति चाहिए,उनके आदेश पर ही तुम्हें राजमहल में प्रवेश मिल सकता है",सेनापति जी बोलें...
"तो हमारी भेट महाराज से कैसें होगी"?,वैशाली ने पूछा...
"चलो! मैं तुम दोनों को अभी उनके पास ले चलता हूँ,यदि उन्हें लगा कि तुम दोनों राजनर्तकी की दासी बनने योग्य हो तो वें तुम दोनों को राजमहल में प्रवेश दे देगें",सेनापति जी बोलें...
"तो बिलम्ब किस बात का,हम दोनों उनके पास जाने को तत्पर हैं",कर्बला बोली....
और सेनापति बालभद्र कर्बला और वैशाली को महाराज गिरिराज सिंह के पास लेकर पहुँचें और उनके कक्ष के समक्ष जाकर उन्होंने उनके कक्ष में प्रवेश करने की अनुमति माँगी और महाराज गिरिराज ने सेनापति बालभद्र को अपने कक्ष में प्रवेश करने की अनुमति दे दी ,जब सेनापति बालभद्र वैशाली और कर्बला के संग महाराज गिरिराज के कक्ष में पहुँचे तो उन्होंने जैसे ही कर्बला और वैशाली को देखा तो सेनापति बालभद्र से पूछ बैठे...
"सेनापति जी! ये अनुपम सुन्दरियाँ कौन हैं"?
"महाराज ! ये निर्धन युवतियाँ राजमहल में दासी का कार्य चाहतीं हैं",सेनापति बालभद्र बोले....
"तो आपने क्या सोचा"?,महाराज गिरिराज ने सेनापति बालभद्र से पूछा...
"महाराज! मैं सोच रहा था कि क्यों ना इन दोनों को राजनर्तकी की दासी बनाकर उनके पास भेज दिया जाए",सेनापति बालभद्र बोले...
"नहीं! हम चाहते हैं कि ये वाली सुन्दरी हमारे कक्ष की दासी बने और दूसरी वाली का तुम देख लो कि उसको कहाँ स्थान देना है",महाराज गिरिराज ने वैशाली की ओर संकेत करते हुए कहा...
महाराज गिरिराज की बात सुनकर तो जैसे वैशाली का रक्त ही सूख गया और वो महाराज से बोली....
"महाराज! आपके कक्ष में क्यों"?
"तुम्हारा ये साहस कि तुम हमसे प्रश्न पूछ रही हो",
महाराज गिरिराज वैशाली पर दहाड़े ,तब बात को सम्भालते हुए कर्बला बोली....
"महाराज! ये तो मूर्ख है,बावरी है,आप चाहते हैं कि ये आपके कक्ष में दासी बनकर रहे तो यही होगा"
"कोई बात नहीं! हम इसे इसकी भूल के लिए क्षमा करते हैं,किन्तु अगली बार से ऐसा नहीं होना चाहिए, हमने तुम्हें अपने कक्ष के लिए चुना है तो अवश्य तुम में कोई ना कोई योग्यता होगी और सच कहें तो हम प्रथम दृष्टि में ही तुम पर अपना हृदय हार बैठे हैं",महाराज गिरिराज बोले....
तब कर्बला बोली...
"ये तो इसका भाग्य है महाराज कि इसे आपने अपने कक्ष के लिए चुना है,ये भी मन ही मन अत्यन्त प्रसन्न है,देखिए ना इसके मुँख पर आभा चमक रही है,है ना वैशाली ! तुम प्रसन्न हो ना तो महाराज को तनिक मुस्कुराकर दिखाओ",
और वैशाली ने एक झूठी सी मुस्कुराहठ अपने अधरों पर बिखरा दी तो कर्बला बोली...
"देखिए! महाराज! कितनी प्रसन्न है वैशाली",
"और तुम राजनर्तकी के कक्ष में दासी बनकर जाओ,मेरा रही आदेश है",महाराज गिरिराज बोलें...
और दोनों सखियाँ विलग होकर अपने अपने कार्य को करने चल पड़ीं....
क्रमशः....
सरोज वर्मा...