सरगम ने पहले ही सोच लिया था कि वो अब कहाँ जाएगी और वो मनप्रीत जी के यहाँ जा पहुँची तो उसे पता चला कि मनप्रीत जी तो नहीं रहीं,उन्हें दिल का दौरा पड़ा था,जसवीर थी घर में जिसकी अब शादी हो चुकी थी,सरगम ने जसवीर से कोई काम दिलवाने को कहा तो जसवीर ने उसे एक अस्पताल में टेम्परेरी नर्स की नौकरी दिलवा दी और उससे कहा कि तुम इसी दौरान नर्सिंग का कोर्स कर लो तो फिर तुम्हें किसी अच्छे से अस्पताल में नर्स की नौकरी मिल जाएगी,जसवीर के लाख कहने पर भी सरगम उसके घर में नहीं रही उसने किराएं पर एक छोटा सा कमरा ले लिया और इस दौरान उसने बहुत मेहनत की,नर्सिंग की पढ़ाई भी जारी रखी और नौकरी भी,जब खर्च नहीं चल पाया तो संगीत के एक दो ट्यूशन भी देने लगी और उसकी मेहनत रंग लाई....
फिर उसने चार साल तक नर्सिंग का कोर्स किया ,इसके एक साल बाद उसे एक सरकारी अस्पताल में नियुक्त कर लिया गया और वहाँ उसने बहुत मन लगा कर मरीजों की सेवा और फिर एक साल बाद उसका उस अस्पताल से दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में ट्रान्सपर हो गया,लेकिन वो दिल्ली नहीं जाना चाहती थी,उसने मन में सोचा इन आठ सालों में उसने दिल्ली की पुरानी कड़वी यादों को भूलने की कितनी कोशिश की लेकिन नहीं भूल पाई और आज फिर उसका कड़वा अतीत उसके सामने आकर उसके साथ हुए धोखें को फिर से उसे याद दिलाने आ गया और इस मसले में उसने अपनी एक सहकर्मी सुजाता से बात की तो सुजाता उससे बोली....
"सरगम! हमारी जिन्दगी की किताब के कुछ पन्ने ऐसे होते हैं जिन्हें काली स्याही से लिखा जाता है और हम चाहकर भी उन पन्नों की लिखावट मिटा नहीं सकते इसलिए जो हो रहा उसे स्वेच्छा से स्वीकार कर लो, अपने अतीत से कब तक भागोगी"?
"अगर वो मेरे सामने आ पहुँचा तो",सरगम ने पूछा...
"कौन? आदेश! सैण्डिल पहनती हैं ना! तो इस बार बिना संकोच के उसका मुँह लाल कर देना",सुजाता बोली...
और फिर सुजाता की बात सुनकर सरगम हँसने लगी और सुजाता से बोली....
"सुजाता! ये बता! भगवान ऐसे लोगों को सजा नहीं देते जो दूसरों का बुरा करते हैं",
"देर से ही सही लेकिन भगवान हमेशा न्याय करते हैं और तू ये देख भी लेना,क्योंकि उसके घर में देर है अन्धेर नहीं",सुजाता बोली...
"समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ"?,सरगम बोली...
"तू धड़ल्ले से दिल्ली वाली नौकरी ज्वाइन कर और तुझे वहाँ कोई दिल्ली का दिलवाला दिख जाए तो घर भी बसा लेना",सुजाता बोली...
"शादी करनी जरूरी है क्या"?सरगम बोली....
"और क्या? काम से लौटकर बच्चों का मुँह देखकर सुकून मिलता है और अपने सुख दुख बाँटने के लिए भी तो कोई साथी चाहिए,जिससे कभी कभी झगड़ भी सको,देख मेरी उम्र और तेरी उम्र लगभग बराबर होगी और मेरे दो बच्चे भी हैं लेकिन तू अब तक अकेली की अकेली है",सुजाता बोली....
"सच कहा! कभी कभी अकेलापन काटने को दौड़ता है,ये नौकरी ना होती तो मैं तो कब की मर जाती"?, सरगम बोली...
"तो सुन नौकरी ज्वाइन करने से पहले तू कहीं घूम आ,तुझे अच्छा लगेगा",सुजाता बोली...
"लेकिन कहाँ जाऊँ"?,सरगम बोली...
"क्या कोई नहीं तेरा? कोई दूर का रिश्तेदार भी नहीं है",सुजाता ने पूछा...
"जसवीर है लेकिन वो रिश्तेदार थोड़े ही है,उसकी शादी भी कब की हो चुकी थी अब तो शायद एक दो बच्चे भी हों,ट्रेनिंग के पहले मिली थी उससे तब से उससे मिली भी नहीं हूँ",सरगम बोली...
"जसवीर के अलावा कोई और",सुजाता ने पूछा...
"हाँ! बनारस में बाबा थे,जिन्होंने मुझे उस वक्त आसरा दिया था जब भगवान ने मुझसे मेरा सबकुछ छीन लिया था",सरगम ने लेकिन यहाँ राधेश्याम का जिक्र नहीं किया....
"तो तू वहाँ चली जा",सुजाता बोली...
"हाँ! ना जाने कितने साल हो गए उनसे मिले हुए,सोचती हूँ कि वहीं चली जाऊँ",सरगम बोली...
"तो फिर सोच क्या रही है,सामान बाँध और निकल जा",सुजाता बोली...
और आखिरकार सरगम ने सुजाता की बात मानकर बनारस जाने की योजना बना ही ली और फिर वो वहाँ रात के वक्त पहुँची ,जैसे कि वो जब पहली बार बनारस आई थी बिल्कुल उसी तरह और फिर प्लेटफार्म पर उतरते ही उसे राधेश्याम से उसकी पहली मुलाकात याद आ गई और प्लेटफार्म के बाहर आकर उसने टैक्सी पकड़ ली,वैसे शास्त्री जी का घर पास ही था लेकिन उसने रात होने के कारण टैक्सी से जाना सुरक्षित समझा,कुछ देर में वो घर भी पहुँच गई और सकुचाते हुए उसने घर के दरवाजे खटखटाएं,भीतर से आवाज़ आई...
"आ रहा हूँ",
और फिर कुछ देर में राधेश्याम ने दरवाजे खोले और अपने सामने सरगम को देखकर भौचक्का सा रह गया, तब सरगम बोली...
"भीतर आने को नहीं कहेगें",
"हाँ...हाँ...मैं तो भूल ही गया और उसने ऐसा कहकर विनती को पुकारा....
"विनती....विनती देखो तो कौन आया है"?
और फिर विनती बाहर आई और सरगम को देखकर बोली...
"सरगम दीदी! आप ! इतने सालों बाद,कैसीं हैं...आइए...आइए...भीतर आइए",मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूँ "
और ऐसा कहकर विनती रसोईघर में चली गई,तब सरगम ने राधेश्याम से पूछा...
"बाबा कहाँ हैं",
तब दुखी मन से राधेश्याम बोला...
"बाबा! तो नहीं रहे,दो साल पहले सीढ़ियों से गिर गए थे,कूल्हें की हड्डी टूट गई ,बहुत इलाज कराया लेकिन आँपरेशन के बाद भी हालत ना सुधरी,अपना आखिरी समय उन्होंने बिस्तर पर काटा और आपको बहुत याद करते थे वें"
राधेश्याम की बातें सुनकर सरगम की आँख से आँसू छलक आएं और वो उन्हें पोछते हुए बोली...
"भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे",
और तभी भीतर के कमरे से छोटे बच्चे के रोने की आवाज़ आई तो सरगम ने खुश होकर पूछा....
"बच्चा.....कितने महीनें का है"?
" अभी तीन महीनें का हुआ है और एक बिटिया भी है पाँच साल की",राधेश्याम बोला...
"बेटे और बेटी का नाम क्या रखा है",सरगम ने पूछा...
"बेटे का नाम पुष्पांकर और बेटी का सरगम",राधेश्याम बोला...
बेटी का नाम सुनकर सरगम कुछ चौकी और फिर खुद को सन्तुलित करते हुए बोली....
"आपने विनती को सब कुछ बता दिया क्या",?
"हाँ! उससे कुछ नहीं छुपाया मैनें",राधेश्याम बोला...
"तो उसने कुछ कहा नहीं",सरगम ने पूछा...
"कहा ना!",राधेश्याम बोला...
"क्या कहा उसने",सरगम ने पूछा....
"यही कि वो आपका अतीत था और आपका वर्तमान मैं हूँ,किसी से प्यार करना कोई गुनाह तो नहीं,आप उन्हें ताउम्र भी चाहते रहें ना तो भी मुझे कोई दिक्कत ना होगी,आप दोनों का प्यार इतना पवित्र है कि उन्होंने आपकी भलाई के लिए आपको छोड़ दिया,जैसे कि राधा ने कृष्ण को उनकी भलाई के लिए त्याग दिया था, इतने पवित्र प्रेम पर भला मैं कौन होती हूँ ऊँगली उठाने वाली",राधेश्याम बोला...
"ऐसा कहा उसने",सरगम ने पूछा...
"हाँ!",राधेश्याम बोला....
"तब तो बड़ी समझदार है विनती है",सरगम बोली
और दोनों यूँ ही बातें कर ही रहे थे कि विनती उनके लिए चाय बना लाई और फिर बच्चे को गोद में लेकर सरगम के पास गई,सरगम ने बच्चे को गोद में लेकर प्यार किया,बेटी अभी तक सोई हुई थी,इसलिए वो उससे बाद में मिली फिर तीनों ने साथ बैठकर चाय पी ....
सरगम वहाँ दो दिन रूकी और फिर से वापस आ गई और अब वो अपना बोरिया बिस्तर बाँधकर दिल्ली की ओर रवाना हो गई,ज्वाइन करते ही उसे अस्पताल का ही क्वार्टर मिल गया रहने के लिए और फिर उसने वहाँ मन लगाकर काम करना शुरू कर दिया और एक दिन वो अस्पताल में एक ट्रे में कुछ सामान लेकर कोरिडोर में जा रही थी,उस ट्रे में काँच की शीशियाँ थी,जिनमें दवा थी,वो उन्हें मरीजों के पास देने जा रही थी,तभी एक पाँच-छः साल का बच्चा भागते हुए आया और सरगम से जा भिड़ा,वो बच्चा सरगम से भिड़ा तो सरगम को धक्का लगा जिससे ट्रे में रखी शीशियाँ फर्श पर गिरकर टूटकर यहाँ वहाँ बिखर गई,सरगम ने उस बच्चे से कुछ नहीं कहा और पहले उसने फर्श पर बिखरें काँच को उठाना ठीक समझा,उसने सोचा कोई यहाँ से गुजरा तो खामखाँ में काँच उसे चुभ ना जाएं और उधर बच्चे की मम्मी उसे जोर से डाँटने में लग गई कि देखकर नहीं चल सकते ,देखो सिस्टर की सारी दवा बिखर गई,अब उन्हें डाँट पड़ेगी और वें पेसेंट को क्या देगीं...
अपनी माँ की डाँट सुनकर बच्चा जोर जोर से रोने लगा और बोला....
"साँरी! माँ! अब ऐसा नहीं करूँगा"
बच्चे की बात सुनकर सरगम को दया आ गई और उसने उस बच्चे और उसकी माँ को देखने के लिए अपनीं निगाहें ऊपर उठाई तो जो उसने देखा उसे देखकर वो सन्न रह गई और बिखरा हुआ सामान दोबारा ट्रे में डालकर चुपचाप वहाँ से जाने लगी तो बच्चे की माँ उससे बोली....
"साँरी सिस्टर! आपकी दवाइयांँ बच्चे की गलती की वजह से गिर गईं,अगर आप चाहें तो मैं इसका बिल भर सकती हूँ",
"नहीं! इसकी कोई जरूरत नहीं है",सरगम ने पीठ की ओर खड़े होकर ही जवाब दिया,वो मुड़ी नहीं",
तब बच्चे की माँ बोली....
"जाओ निपुण! सिस्टर से साँरी बोलकर आओ",
और बच्चा सरगम के पास भागकर आया और बोला....
"साँरी सिस्टर! ये मुझसे गलती से हुआ है",
"कोई बात नहीं बेटा! मैं आपसे नाराज नहीं हूँ",सरगम बोली....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....