मैं पापन ऐसी जली--भाग(३८) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मैं पापन ऐसी जली--भाग(३८)

शास्त्री जी तो पाण्डेय जी के जाने का ही इन्तज़ार कर रहे थे और जैसे ही वो घर से निकले तो उन्होंने सरगम से कहा...
"बिटिया! ये तुमने क्या किया?,मैं तो चाहता हूँ कि तुम इस घर की बहू बनो,लेकिन तुमने तो सारा मामला ही बिगाड़ कर रख दिया,राधेश्याम के बारें में भी तो कुछ सोचा होता",
"बाबा! मैं ने उन्हीं के बारें में सोचकर ऐसा किया",सरगम बोली...
"ठीक है बाकीं बातें बाद में करते हैं,पहले मैं मंदिर हो आता हूँ",
और ऐसा कहकर शास्त्री जी स्नान करके मंदिर चले गए,इसी बीच राधेश्याम पाण्डेय जी को रेलवें स्टेशन छोड़कर घर आ चुका था और उसने बाहर के दरवाज़े बंद किए और आँगन के तख्त पर बैठी सरगम का हाथ पकड़कर अपने कमरें में ले जाने लगा,सरगम बार बार कहती रही कि मेरा हाथ छोड़ दीजिए राधेश्याम जी....मेरा हाथ छोड़ दीजिए, लेकिन राधेश्याम ने उसका हाथ तब तक ना छोड़ा जब तक कि वो उसे अपने कमरें में लेकर पहुँच ना गया,तब सरगम अपना हाथ छुड़ाकर गुस्से से बोली...
"ऐसा करके क्या जताना चाहते हैं आप"?
तब राधेश्याम बोला....
"अपना प्यार जताना चाहता हूँ सरगम जी! ये रहीं वो चिट्ठियांँ ,जो मैनें इन दो सालों में आपके लिए लिखीं थीं लेकिन आपको देने की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया,आपको पता भी है मेरे दिल का हाल,शायद नहीं पता तभी तो आप मेरी शादी विनती से कराने चलीं हैं,आपने ऐसा क्यों किया ?,क्यों मेरी उलझन को और बढ़ा दिया, मैं क्या करूँ आपका? जी में तो आता है कि दो थप्पड़ लगा दूँ आपको,लेकिन मैं ऐसा भी तो नहीं कर सकता"
और राधेश्याम ने वो सारी चिट्ठियाँ अलमारी से निकालकर हवा में उछाल दीं,तब सरगम राधेश्याम से बोली...
"अगर आपका जी कर रहा मुझे दो थप्पड़ लगाने को तो लगा दीजिए,मैं आपको मना नहीं करूँगी",
"नहीं लगा सकता आपको थप्पड़! आपको पता है कि मैं ऐसा नहीं कर पाऊँगा",राधेश्याम बोला...
"तो फिर आपका गुस्सा कैसें शान्त होगा"? सरगम ने पूछा...
"आप मुझसे शादी के लिए हाँ कर देगीं तो मेरा गुस्सा शान्त हो जाएगा",राधेश्याम बोला...
"आपको पता है कि मैं ऐसा नहीं करूँगीं",सरगम बोली....
"लेकिन क्यों? आपको क्या दिक्कत है इस शादी से",राधेश्याम ने पूछा...
"बस! मैं आपकी भलाई के बारें में सोचकर ही इस शादी से मना कर रही हूँ,आप विनती से शादी करके खुश रहेगें,वो आपके बचपन की दोस्त है,आपका बहुत ख्याल रखेगीं वो",सरगम बोली..
"नहीं! मैं आपसे शादी करना चाहता हूँ,मैं आपसे भीख माँगता हूँ,मुझे खुद से अलग मत कीजिए",
और ऐसा कहते कहते राधेश्याम अपने घुटनों के बल बैठकर रोने लगा,उसका रोना देखकर सरगम को भी रोना आ गया और वो उसे उठाते हुए बोली....
"आप मुझे मजबूर मत कीजिए,मैं आपसे शादी नहीं कर पाऊँगीं",
"मैं सारी उम्र आपका बहुत ख्याल रखूँगा,कभी आपसे नहीं झगड़ूगा,लेकिन प्लीज मुझसे शादी कर लीजिए", राधेश्याम फिर से बोला....
राधेश्याम का गिड़गिड़ाना अब सरगम से देखा ना गया और वो फूट फूटकर रो पड़ी,उसे रोता देखकर राधेश्याम बोला...
"मुझे मालूम है कि आप भी मुझसे और बाबा से दूर नहीं जाना चाहती तो फिर रह जाइए ना हम लोगों के साथ,क्यों जिद पर अड़ीं हैं?",
और इतना सुनते ही सरगम खुद को सम्भाल ना सकी और राधेश्याम के गले लग गई और सुबकते हुए बोली....
"मुझे पता है कि इतना प्यार मुझे कहीं नहीं मिलेगा,लेकिन फिर भी मैं यहाँ से जाना चाहूँगी,क्योंकि जिस घर ने मुझे आसरा दिया,उस घर की मैं और बदनामी नहीं होने दे सकती,मैं चाहे कितनी भी कोशिश कर लूँ और चाहे आप जितनी भी कोशिश कर लें लेकिन मेरी बदनामी मुझे एक दिन ढूढ़ते हुए यहाँ आ पहुँचेगी,इसलिए सबकी भलाई इसी में है कि मैं ये घर छोड़कर कहीं और चली जाऊँ,इन दो सालों में आप दोनों ने मुझे बहुत प्यार दिया,बहुत सम्मान दिया और मैं चाहती हूँ कि वो प्यार और सम्मान यूँ ही बरकरार रहें,इसलिए आप विनती से ही शादी करेगें,आपको मेरी कसम और अगर आप मुझसे प्यार करते हैं तो आपको मेरी बात माननी ही होगी,
मैं नहीं चाहती कि मैं आपसे शादी करके जिन्दगी भर खुद को कोसती रहूँ और ऐसे में ना आप खुश रह पाऐगें और ना मैं,सम्बन्ध दोनों की रजामन्दी से होता है और जब मैं ही रजामन्द नहीं हूँ इस सम्बन्ध के लिए तो आप कहाँ तक इस सम्बन्ध को बनाए रखने की कोशिश करते रहेगें,आप हमेशा मेरे ज़हन में रहेगें, शायद ही मैं आपको कभी भूल पाऊँ,इसलिए इस बात को यहीं खतम करते हैं और इतवार को आप बाबा के साथ विनती को देखकर जाऐगें",
तब राधेश्याम बोला....
" मुझे अब आपकी बात समझ आ गई है,मैं अब आपसे शादी करने की जिद नहीं करूँगा,लेकिन एक शर्त पर कि आप भी विनती को देखने चलेगीं,अगर वो आपको पसंद आई तो ही मैं उससे शादी करूँगा",
"ठीक है मैं चलूँगी आपके साथ और अब आप अपने आँसू पोछ लीजिए,क्या छोटे बच्चों की तरह रोने लग गए",सरगम बोली...
"और आप भी अपने आँसू पोछ लीजिए",राधेश्याम बोला...
और फिर सरगम ने भी अपने आँसू पोछे और राधेश्याम से अलग होकर कमरें से बाहर जाने लगी तो राधेश्याम बोला....
"आखिरी बार गले नहीं मिलेगीं,फिर ना जाने कब मिलना हो या फिर शायद हम कभी मिले ही ना!",
और फिर राधेश्याम की बात सुनकर सरगम उसके गले लगते ही फफक फफककर रो पड़ी और राधेश्याम से बोली....
"मैं आपको कभी भी भूल नहीं पाऊँगी",
"और मैं भी",राधेश्याम बोला....
और इतने में बाहर के दरवाजों पर दस्तक हुई शायद शास्त्री जी मंदिर से आ चुके थे और फिर सरगम अपने आँसू पोछते हुए राधेश्याम से अलग हुई और बाहर के दरवाजे खोल दिए,शास्त्री जी घर के भीतर आए और सरगम से पूछा...
"राधे आ गया क्या"?
"हाँ"
और ऐसा कहकर सरगम स्नानघर की ओर चली गई,इधर राधे अपने कमरें से निकलकर बाहर आया तो शास्त्री जी ने उससे पूछा....
"तुझे बताया कुछ कि सरगम ने कि उसने ऐसा क्यों किया"?
"जी! बाबा! इसलिए अब हम इतवार को विनती को देखने जा रहे हैं और इसके आगें आप मुझसे कुछ नहीं पूछेगें",राधेश्याम बोला...
"तू भी उसी की भाषा बोलने लगा,तुझे उसने ऐसी क्या पट्टी पढ़ा दी जो तू इस शादी के लिए तैयार हो गया ", शास्त्री जी ने पूछा..
"बाबा! उन्होंने कुछ नहीं कहा,बस अब मेरा मन ही बदल गया है",राधेश्याम बोला...
"झूठ मत बोला",शास्त्री जी चीखे...
तभी सरगम स्नानघर से बाहर आई और शास्त्री जी से बोली...
"बाबा! वें झूठ नहीं बोल रहे हैं,वें अब विनती से ही शादी करेगें",सरगम बोली...
"ये क्या कह रहे हो तुम दोनों"?शास्त्री जी ने पूछा...
"बाबा! जो हो रहा है वही सही है",सरगम बोली...
"ये सही नहीं है बिटिया!",शास्त्री जी बोले...
तब सरगम बोली....
"बाबा! जिन्दगी में सबको सबकुछ मनचाहा नहीं मिलता,मुझे जो दो सालों में इस घर में प्यार और सम्मान मिला है उसे मैं ताउम्र याद रखूँगीं,कड़वाहटों के साथ जीने से अच्छा है कि हम प्यार के साथ दूर दूर रहें, मैं इस घर और आपको कभी नहीं भूल सकती,आपने मुझे तब सहारा दिया जब मुझसे भगवान ने मेरे सारे सहारे छीन लिए थे,जब नदी बहती है तो बहुत कुछ अपने साथ लेकर चलती है और बहुत कुछ पीछे छोड़ भी जाती है,उसके जीवन में कभी ठहराव नहीं आता,मैं वैसी ही नदी हूँ,अभी शायद मेरे जीवन में ठहराव नहीं आया है,इसलिए अभी शायद तय करने के लिए और भी रास्ते रह गए हैं मेरे लिए,अभी शायद मेरी मंजिल नहीं आई है,मुझे अभी और चलना है,बहुत दूर जाना है",
"ठीक है बिटिया! जैसी तेरी मर्जी! अब मैं तुझे नहीं रोकूँगा,तू बस हमारे साथ विनती को देखने चल और मैं तुझसे कुछ नहीं चाहता",शास्त्री जी बोले...
"जी! बाबा! मैं इसी काम के लिए तो रूकी हूँ अब तक यहाँ",सरगम बोली....
और फिर सरगम इतवार के दिन शास्त्री जी और राधेश्याम के साथ विनती को देखने गई,विनती सच में बहुत अच्छी लड़की थी,वो काफी हँसमुख और मिलनसार थी,उसे सबने पसंद कर लिया फिर रिश्ता भी पक्का हो गया और वहाँ से आने के बाद सरगम ने शास्त्री जी और राधेश्याम से विदा ली और फिर शास्त्री जी के पैर छूकर और राधेश्याम से आँखों ही आँखों में माँफी माँगते हुए वो फिर से कहीं चल पड़ी.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....