अब सरगम राधेश्याम से बात ना करने के बहाने ढूढ़ती रहती क्योंकि उसे पता था कि अगर उसने राधेश्याम से बात की तो वो उसे फिर से अपने प्यार की दुहाई देने लगेगा और उसकी बातों से उसका दिल दुखेगा, इसलिए सरगम अपने काम निपटाती और फिर अपने कमरें में चली जाती ताकि उसका सामना राधेश्याम से ना हो .....
अब राधेश्याम बिल्कुल से ठीक हो चुका था और सरगम की छुट्टियांँ भी खतम हो चुकीं थीं,इसलिए उसकी फिर वही दिनचर्या शुरु हो गई,लेकिन अभी राधेश्याम ने काम पर जाना शुरू नहीं किया था,क्योंकि अभी उसे थोड़े और आराम की जरूरत थी,इसलिए वो घर पर ही रहता था,फिर एक दिन शास्त्री जी किसी के यहाँ सत्यनारायण की कथा करवाने गए थे और जब सरगम स्कूल से लौटी तो शास्त्री जी की जगह जब राधेश्याम ने दरवाजा खोला तो उसने राधे से पूछा...
"बाबा! घर पर नहीं है क्या"?
"नहीं! वें किसी के यहाँ सत्यनारायण की कथा करवाने गए हैं",राधेश्याम बोला...
"अच्छा"!
और ऐसा कहकर सरगम ने अपना बैग आँगन में ही रखा और स्नानघर में हाथ-मुँह धोने चली गई,वो स्नानघर से वापस आई तो राधेश्याम ने उससे पूछा...
"मैं चाय बनाने जा रहा था,अगर आपको भी चाय पीनी हो तो एक प्याली और बढ़ा लूँ",
"हाँ! मैं भी पी लूँगी",सरगम बोली...
और कुछ देर में सरगम अपने कमरें से कपड़े बदलकर आ गई,तब तक राधेश्याम चाय के दोनों प्याले रसोईघर से लाकर आँगन में आ चुका था और फिर सरगम चाय की प्याली लेकर अपने कमरें में जाने लगी तो राधेश्याम उससे बोला....
"मुझसे इतना बैर है कि आप अपनी चाय की प्याली लेकर अपने कमरें में जा रहीं हैं,आप यहाँ मेरे साथ बैठकर भी तो चाय पी सकतीं हैं",
"वो तो मैं आपके साथ बैठकर चाय पी सकती हूँ लेकिन पीना नहीं चाहती",सरगम बोली...
"वो क्यों भला"?,राधेश्याम ने पूछा....
"आपकी बेतुकी बातों के कारण",सरगम बोली...
"मैनें ऐसी कौन सी बेतुकी बातें कर दीं ,जो आप मेरे साथ बैठकर चाय भी नहीं पीना चाहतीं",राधेश्याम ने पूछा...
"वों आप अच्छी तरह से जानते हैं कि कैसीं बातें"सरगम बोली....
"अब अपनी चाहत के बारें में कहना आपके लिए बेतुकी बात हो गई",राधेश्याम बोला...
"जी! हाँ! और क्या?"सरगम चाय पीते हुए बोली...
तब राधेश्याम बोला....
"आपको पता है सरगम जी,मैनें काँलेज में कभी किसी लड़की की तरफ आँखा उठाकर नहीं देखा,मेरे कई दोस्तों की प्रेमिकाएँ थीं लेकिन मेरे मन में कभी ऐसा विचार आया ही नहीं,मुझे ये सब अच्छा ही नहीं लगता था,मैनें सोच लिया था कि जिसे मेरे बाबा मेरे लिए पसंद करेगें ,मैं चुपचाप उसी के साथ शादी कर लूँगा, लेकिन जब आपको रेलवें स्टेशन के बाहर पहली बार देखा तो आपको देखकर मैं एक पल के लिए अपनी सुधबुध खो बैठा था,आपको देखकर मुझे लगा था कि शायद मैं आप जैसी लड़की को ही अब तक ढूढ़ रहा था,मुझे लगा कि अब मेरी तलाश पूरी हो चुकी है,लेकिन......."
"मैनें कहा ना कि मैं आपके लायक नहीं हूँ",सरगम बोली....
"मैं ऐसा नहीं मानता",राधेश्याम बोला...
"लेकिन मुझे ऐसा ही लगता है,फिजूल की जिद मत कीजिए",सरगम बोली....
"मैं तब तक यही जिद करता रहूँगा जब तक कि आप शादी के लिए हाँ नहीं कर देतीं",राधेश्याम बोला...
"मैं शादी के लिए हाँ कभी नहीं करूँगीं",सरगम बोली...
तब राधेश्याम बोला...
"तो ठीक है! आप हाँ मत कीजिए शादी के लिए मैं यूँ ही बूढ़ा हो जाऊँगा आपके इन्तजार में",
"चिन्ता मत कीजिए,मैं आपको बूढ़ा नहीं होने दूँगी",सरगम बोली....
"तो मैं अब भी आपसे शादी की उम्मीद रख सकता हूँ",राधेश्याम बोला...
"मैनें ऐसा तो नहीं कहा",सरगम बोली....
"तो फिर आपके कहने का क्या मतलब था"?,राधेश्याम ने पूछा....
"मेरे कहने का मतलब था कि मैं आपकी शादी किसी और अच्छी सी लड़की से करवा दूँगी",सरगम बोली...
"मुझे आपसे अच्छी लड़की और कहाँ मिलेगी"? ,राधेश्याम बोला...
"ढूढ़ेगें तो जरूर मिल जाएगी",सरगम बोली...
"अगर मैं ढूढ़ना ही ना चाहूँ तो",राधेश्याम बोला...
"आपकी घड़ी की सुई तो वहीं अटकी पड़ी है",सरगम बोली....
"और मैं चाहता हूँ कि जिन्दगी भर वहीं अटकी रहे",राधेश्याम बोला...
"क्यों अपनी जिन्दगी तबाह करने पर तुले हैं"?सरगम बोली....
"तबाह तो मैं हो ही चुका हूँ सरगम जी! अब तबाह होने के लिए कुछ बचा नहीं है",राधेश्याम बोला....
"मैं इसलिए आपके पास नहीं बैठ रही थी,आपकी यही बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं",सरगम बोली.....
"इन बातों के सिवा मेरे पास और कोई बातें हैं भी नहीं ",राधेश्याम बोला....
"हम दोनों शादी किए बिना एक दूसरे के दोस्त बनकर भी तो रह सकते हैं",सरगम बोली...
"मुझे ऐसी दोस्ती मंजूर नहीं",राधेश्याम बोला...
"तो मैं अब जाती हूँ आपकी बातों ने मेरे सिर में दर्द कर दिया", सरगम बोली...
"अपने सिर का दर्द सुनाने बैठ गईं आप मुझे,लेकिन किसी के दिल का दर्द नहीं सुना जाता आपसे", राधेश्याम बोला...
"और उतनी देर से मैं किसी के दिल का दर्द ही तो झेल रही थी",सरगम बोली...
"तब भी रहम नहीं आता आपको",राधेश्याम बोला...
"तो अब आप समझ ही गए होगें कि मैं कितनी बेरहम हूँ,फिर भी अपने दिल का दर्द मुझे बताने क्यों चले आते हैं आप"?,सरगम बोली....
"इसका मतलब है कि आप कुछ समझना ही नहीं चाहती",राधेश्याम बोला...
"मैं बड़ी नासमझ भी हूँ राधेश्याम जी!",सरगम मुस्कुराते हुए बोली....
"कलेजे में खंजर चलाना तो कोई आपसे सीखें",राधेश्याम बोला...
"ये हुनर मैं किसी को सिखाती भी नहीं राधेश्याम जी!",सरगम बोली....
"ये गलत काम मुझे सीखना भी नहीं है",राधेश्याम बोला...
"तब तो ये बड़ी अच्छी बात है",सरगम बोली....
दोनों के बीच बातें चल ही रहीं थीं कि तभी शास्त्री जी घर आ पहुँचे,राधे और सरगम दोनों ही आँगन में ही बैठे थे इसलिए दरवाजा पहले से ही खुला था और फिर शास्त्री जी बाहर से ही बोलें....
"राधे! देख तो कौन आया है"?
"कौन आया है बाबा?,राधेश्याम ने शास्त्री जी से पूछा....
"पाण्डेय जी आए हैं",
और ऐसा कहकर शास्त्री जी ने पाण्डेय जी के साथ आँगन में प्रवेश किया,पाण्डेय जी को देखकर राधेश्याम सोच में पड़ गया लेकिन उसे उनके बारें में कुछ याद नहीं आया तब पाण्डेय जी राधेश्याम से बोले....
"राधे बेटा! शायद तुमने मुझे पहचाना नहीं",
"हाँ! सच में नहीं पहचाना मैनें आपको",राधेश्याम बोला....
तब शास्त्री जी बोले...
"ये वही पाण्डेय जी हैं जो सालों पहले अपने मोहल्ले में ही किराएं के मकान में अपने परिवार के साथ रहा करते थे,जिनकी बेटी विनती के साथ तू घर घर खेला करता था और गुड्डे गुड़ियों की शादी रचाया करता था,तेरा विनती से कितना झगड़ा होता था",
तब राधे बोला....
"हाँ! याद आया विनती! अब कैसी है वों"?
तब पाण्डेय जी बोलें.....
"बस उसकी ही शादी के सिलसिले में बनारस आया था,एक लड़का बताया था किसी ने ,बस उसे ही देखने आया था यहाँ,लेकिन बात नहीं बनी....
"ओह...",राधेश्याम बोला....
"वो तो ये मुझे रास्ते में दिख गए इसलिए मैं इन्हें घर लिवा लाया,नहीं तो ये तो मुझसे बिना मिले ही चले जाते",शास्त्री जी बोले...
"अरे! नहीं! शास्त्री जी! मैं इसी ओर ही आ रहा था,आप रास्ते में ना मिलते तब भी मैं आपसे मिलने आपके घर आता", पाण्डेय जी बोले...
और फिर पाण्डेय जी को सरगम ने भी नमस्ते की तो उन्होंने शास्त्री जी से पूछा....
"ये कौन है,कोई रिश्तेदार है क्या",?
"जी! नहीं! मैं इनकी किराएदार हूँ", सरगम बोली...
और फिर सरगम के जवाब पर शास्त्री जी कुछ ना बोल सके....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....