मैं पापन ऐसी जली--भाग(३५) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मैं पापन ऐसी जली--भाग(३५)

"क्या कहा बिटिया! राधे को बुखार है,दोपहर में कह तो रहा था कि सिर में दर्द है,मैनें सोचा ऐसे ही हल्का फुल्का दर्द होगा तो बाम लगाने से चला जाएगा,इसलिए मैनें उससे बाम लगाने को कह दिया,मतलब उसकी तबियत सुबह से ही ठीक नहीं थी,चल मैं उसे देखता हूँ",
और ऐसा कहकर शास्त्री जी राधेश्याम के कमरें में गए और उन्होंने राधे के माथे पर हाथ धरकर देखा तो उसे सच में बहुत तेज बुखार था और बुखार से उसका चेहरा एकदम लाल पड़ गया था,ये देखकर शास्त्री जी घबरा गए और सरगम से बोलें...
"बिटिया! तू इसका ख्याल रख! मैं जरा डाक्टर साहब को लेकर आता हूँ,सुबह होने का इन्तजार नहीं कर सकते अगर बुखार इससे भी तेज हो गया तो फिर सम्भालना मुश्किल हो जाएगा",
"जी!बाबा!आप जाइए,मैं तब तक इनका ख्याल रखती हूँ",सरगम बोली...
फिर शास्त्री जी डाक्टर साहब को लिवाने चले गए और कुछ देर में वें डाक्टर साहब को साथ लेकर आ गए और फिर डाक्टर साहब ने राधेश्याम का चेकअप करते हुए कहा....
" शास्त्री जी! शायद इन्हें टाइफाइड हो गया है, लक्षण तो यही कह रहे हैं,बाकी खून की जाँच के बाद पता चलेगा कि मर्ज क्या है,मैं अभी बुखार उतरने की दवा दिए देता हूँ,कल बड़े अस्पताल में इनके खून की जाँच करवाकर रिपोर्ट मुझे दिखा दीजिएगा,तब मैं उसी हिसाब से इन्हें दवा दे दूँगा",
"जी! डाक्टर साहब! वैसे कोई घबराने वाली बात तो नहीं है",शास्त्री जी ने कहा...
"नहीं...नहीं...टाइफाइड कोई गम्भीर बिमारी नहीं है,बस थोड़ा खाने पीने का ख्याल रखेगें तो ये एक हफ्ते के भीतर ही ठीक हो जाऐगें",डाक्टर साहब बोलें...
फिर डाक्टर साहब ने राधे का पूरा चेकअप करने के बाद उसे बुखार की दवा दी और जाने लगे तो शास्त्री जी बोले...
"चलिए! मैं आपको छोड़ आता हूँ",
"अरे! नहीं! शास्त्री जी! अभी रात के केवल दस ही तो बजे हैं,मैं खुद चला जाऊँगा,आप बस इनका ख्याल रखिए",
और ऐसा कहकर डाक्टर साहब चले गए तो शास्त्री जी सरगम से बोले...
"बिटिया! आज मेरा बिस्तर यहीं फर्श पर लगा दे,मैं आज यहीं राधे के कमरें में ही सो जाता हूँ",
"ठीक है बाबा!",
और ऐसा कहकर सरगम शास्त्री जी के लिए बिस्तर लेने चली गई और फिर उनका बिस्तर वहीं राधे के कमरें के फर्श पर लगा दिया और फिर खुद भी अपने कमरें में सोने चली गई ,लेकिन वो रातभर राधेश्याम की फिक्र में सो नहीं पाई और सुबह उठते ही सबसे पहले वो राधे के कमरें में गई और उसके माथे पर हाथ धरकर देखा तो उसका बुखार उतर चुका था,शास्त्री जी तब तक जागकर स्नान भी कर चुके थे और मंदिर जाने की तैयारी कर रहे थे,उन्होंने सरगम को देखा तो बोलें....
"जाग गई बिटिया! मैं अब मंदिर जा रहा हूँ , तू मेरे घर आने तक राधेश्याम का ख्याल रखना,रातभर बुखार रहा बेचारे को एकाध घण्टे पहले ही उतरा है,मैं रातभर चिन्ता के मारे जागता रहा,क्योंकि बेचारा राधे बुखार से रात भर कराहता रहा ,मैं मंदिर से आ जाऊँगा तो फिर नाश्ता करके राधे को मैं बड़े अस्पताल ले जाऊँगा, उसके खून की जाँच कराने के लिए ",
"जी! बाबा!" मैं उनका ख्याल रख लूँगीं,आप बेफिक्र होकर मंदिर जाइए",सरगम बोली...
और फिर शास्त्री जी मंदिर चले गए,राधेश्याम अभी भी सो रहा था इसलिए सरगम ने मन में सोचा,मैं राधेश्याम जी के जागने से पहले नहाकर आ जाती हूँ,फिर उनके जागने के बाद मुझे उन्हें नाश्ता और दवाई भी तो देनी है और आज मैं स्कूल से छुट्टी भी ले लेती हूँ"
और फिर सरगम जल्दी से नहाकर आ गई और उसने नाश्ते में पोहा और चाय बना दी,तब तक राधे भी जाग चुका था और शास्त्री जी भी मंदिर से वापस आ चुके थे,फिर शास्त्री जी ने राधेश्याम को सहारा देकर उठाया और उसे स्नानघर से हाथ मुँह धोकर आने को कहा,इसके बाद सरगम ने दोनों को नाश्ता और चाय दी,फिर राधे को बुखार की दवा खिलाकर शास्त्री जी उसे रिक्शे में बैठाकर बड़े अस्पताल ले गए,खून की जाँच करवाने के बाद दोनों घर आ गए और जब शाम तक रिपोर्ट आ गई तो डाक्टर साहब के पास रिपोर्ट ले जाने पर पता चला कि राधेश्याम को सच में टाइफाइड ही हो गया है....
इसलिए अब राधेश्याम का ख्याल रखने के लिए सरगम ने स्कूल से एक हफ्ते की छुट्टी ले ली और वो उसका ख्याल रखने लगी,खुद का इतना ख्याल रखने पर राधे ने सरगम से पूछा....
"जब आपके मन में लिए कोई जज्बात ही नहीं है तो क्यों आप मेरा इतना ख्याल रख रहीं हैं",?
"इन्सानियत के नाते,अगर आपकी जगह बाबा भी होते तब भी मैं उनका इतना ही ख्याल रखती ",सरगम बोली...
"कहाँ से लाती हैं आप ऐसे जवाब ढूढ़कर"? ,राधेश्याम ने पूछा...
"इसमें जवाब ढूढ़ने वाली कौन सी बात है? ये तो केवल साधारण सी बात है",सरगम बोली...
"ऐसी बातें करके क्यों मेरा जी जलातीं हैं आप"?,राधेश्याम बोला...
"कृपया! मेरी बातों से आप अपना जी ना जलाएं,बुखार ने आपका जी और शरीर पहले से ही जला रखा है", सरगम बोली...
"आप इतनी पत्थरदिल क्यों हैं सरगम जी",?,राधेश्याम बोला...
"और आप इस पत्थरदिल को पिघालने की कोशिश ना करें",सरगम बोली....
"मेरी मौहब्बत की जरा भी कदर नहीं आपको हैं ना!",राधेश्याम ने पूछा....
"आपको जो समझना है आप समझते रहें",
और ऐसा कहकर सरगम राधेश्याम के कमरें से बाहर चली गई और स्नानघर में जाकर फूट फूटकर बहुत रोई,उससे राधेश्याम की ऐसी बातें सही नहीं जा रहीं थीं,वो भी राधे को पसंद करती थी लेकिन वो उसकी जिन्दगी में शामिल नहीं होना चाहती थी,उसका दिल तो चाहता था कि वो सदा के लिए उसी घर में बस जाए लेकिन ऐसा करने से उसे उसका मस्तिष्क रोक रहा था....
वो स्नानघर से बाहर आई और फिर घर के कामों में लग गई,उसने लगातार एक हफ्ते तक राधेश्याम की मन लगाकर सेवा की,ये सब शास्त्री जी भी महसूस कर रहे थे ,उन्हें लग रहा था कि अब शायद सरगम का मन बदल जाए और वो राधेश्याम से शादी के लिए हाँ कर दे और वें इसी उम्मीद रहने लगें थे....
और अब राधेश्याम कुछ ठीक हो चला था लेकिन अब भी उसे कमजोरी थी,इसलिए सरगम ने अपनी छुट्टियाँ एक हफ्ते के लिए और बढ़ा ली और एक दिन शाम के समय राधेश्याम छत पर ताजी हवा खाने चला गया,शाम की चाय बन चुकी थी तो सरगम ने शास्त्री जी को चाय दी और राधेश्याम की चाय लेकर वो छत पर पहुँची और चाय रखकर जब वो वापस आने लगी तो राधेश्याम बोला....
" सरगम जी! बाबा कह रहे थे कि आपने अपनी छुट्टियांँ एक हफ्ते के लिए और बढ़ा दीं हैं",
"जी! अभी आप पूरी तरह से ठीक नहीं हैं इसलिए मैनें और छुट्टियाँ ले लीं,",
" लेकिन क्यों? आप मेरी इतनी चिन्ता क्यों कर रहीं हैं,आखिर मेरा आपसे नाता ही क्या है",?, राधेश्याम बोला...
" किसी का ख्याल रखने के लिए नाता बनाने की जरूरत नहीं होती",सरगम बोली...
"तो बिना नाते के ही आप मेरा इतना ख्याल रख रहीं हैं",राधेश्याम बोला...
"मैं नीचें जा रही हूँ,आपके साथ बहस करने के अलावा और भी बहुत से काम हैं मेरे पास",
सरगम ऐसा कहकर नीचें आ गई और राधेश्याम उसे जाते हुए देखता रहा....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....