मैं पापन ऐसी जली--भाग(२६) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मैं पापन ऐसी जली--भाग(२६)

भाइयों के जाने के बाद सरगम तो जैसे टूट सी गई थी,उसे अभी तक भरोसा नहीं हो रहा था कि उसके भाई माधव और गोपाल अब इस दुनिया में नहीं हैं और उसकी माँ सुभागी अब तक अपनी सुध बुध बिसराए बैठी थी,सुभागी को मोहल्ले की औरतों ने बहुत रुलाने की कोशिश की लेकिन वो ना रोई और वो बेजान पत्थर सी बनी बैठी रही,अब सरगम से अपनी माँ सुभागी की दशा देखी नहीं जा रही थी,मुहल्ले के लोगों ने सरगम से कहा कि अपनी माँ को रूलाने की कोशिश करो नहीं तो सुभागी के भीतर सदमा बैठ जाएगा और यदि ऐसा हुआ तो वो पागल हो जाएगी,अब सरगम के पास अपनी माँ को रुलाने के सिवाय और कोई चारा नहीं था और फिर उस रात वो उनके पास जा बैठी और उनसे बोली....
"माँ! माधव और गोपाल मर गए हैं,एक ट्रक ने उन्हें कुचल दिया है....माँ...तुम सुन रही हो ना...कि मैनें क्या कहा....वो दोनों अब तुम्हें छोड़कर बाऊजी के पास चले गए हैं,अब वो कभी भी लौटकर नहीं आऐगें,... ना अब माधव तुम्हारी गोद में सिर रखकर सो पाएगा और ना ही गोपाल को तुम दुलार कर पाओगी....सुन रही हो ना माँ तुम... वें दोनों अब कभी वापस नहीं आऐगे....कभी भी वापस नहीं आऐगें"
ये सब कहते कहते सरगम ने सुभागी को झिकझोर डाला और फिर तब सुभागी जोर से चीखकर बोली....
"ऐसे कडवें वचन मत बोल....भगवान के लिए ऐसा मत बोल सरगम!"
"हाँ...ये सच है माँ!...ये सच है",सरगम भी जोर से बोली...
और फिर सुभागी ने गुस्से से सरगम के गाल पर जोर का थप्पड़ मारते हुए कहा....
" सरगम! शरम नहीं आती तुझे ऐसा कहते हुए"
" माँ! काश ये झूठ होता",सरगम रोते हुए बोली...
और फिर सुभागी ने सरगम को गले से लगा लिया और फूट फूटकर रोते हुए बोली....
"सरगम!मैनें भगवान का क्या बिगाड़ा था जो उसने मेरे साथ ऐसा किया,पहले मेरे पति को छीन लिया अब मेरे बच्चों को भी अपने साथ ले गया,सोचती थी पति के जाने के बाद अपने बच्चों के सहारे अपना बुढ़ापा काट लूँगी,लेकिन अब तो मेरी चिता को आग देने के लिए भी कोई नहीं बचा,मैं सुभागी नहीं अभागी हूँ तभी तो भगवान ने मेरे दो दो जवान बेटों को मुझसे छीन लिया,इससे अच्छा होता कि भगवान मुझे मौत दे देता"
"चुप हो जाओ माँ...चुप हो जाओ,भगवान के लिए ऐसा ना बोलो,तुम भी चली जाओगी तो मेरा क्या होगा?,शायद होनी को यही मंजूर था, ना जाने भगवान हम दोनों की और कितनी परीक्षा लेगा",सरगम रोते हुए बोली...
"बेटी! मैंने जीवन भर संघर्ष किया है,ऊपरवाले ने जिस हाल में रखा मैं रही,भगवान ने तेरे पिता को मुझे अलग कर दिया तब भी मैनें उनसे कोई शिकायत नहीं की लेकिन अब मेरे बच्चे मुझसे दूर चले गए हैं,कैसें जी पाऊँगीं मैं उनके वगैर,बेटी !अब मुझ में और दुख सहने की हिम्मत नहीं रह गई है", सुभागी रोते हुए बोली...
"लेकिन माँ जीना तो होगा ना! अब तुम्हें मेरी खातिर जीना होगा" सरगम रोते हुए बोली...
और फिर दोनों माँ बेटी एकदूसरे से लिपटकर यूँ ही रोती रहीं और फिर यूँ ही सरगम से लिपटे लिपटे सुभागी सो गई,तब सरगम सुभागी से बोली...
"माँ! यहाँ मत सोओ ,चलो बिस्तर पर चलकर लेट जाओ,",
लेकिन सरगम के ऐसा कहने पर सुभागी ने कोई जवाब ना दिया तो सरगम ने सुभागी को जोर से हिलाकर एक बार और कहा...
"माँ! चलो बिस्तर पर लेट जाओ"
लेकिन इस बार भी सुभागी ने कुछ नहीं कहा तो सरगम बहुत जोर से डर गई और उसने अपनी माँ के सीने पर कान लगाकर उनके दिल की धड़कन को सुनने की कोशिश की और सरगम को महसूस हुआ कि उनके दिल की धड़कन बंद हो गई है,इसलिए सरगम जोर से चीखी....
"माँ...ऐसा नहीं हो सकता माँ...तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती"
सरगम की चीख सुनकर पड़ोसी भी दौड़ पड़े और उन्होंने फौरन पड़ोस में रहने वाले डाक्टर को बुलाया तो पता चला कि अब सुभागी इस दुनिया को छोड़कर जा चुकी है,दो दिन के भीतर तीन जनो की मौत,इस खबर ने सरगम के कलेजे के टुकड़े टुकड़े कर दिए और जब उसकी माँ को दाह संस्कार के लिए पड़ोसी ले जा रहे थे तो मुहल्ले की औरतों ने सरगम को बड़ी मुश्किल से सम्भाला....
अब अपनी माँ और भाइयों के जाने के बाद सरगम दिन भर घर में भूखी प्यासी पड़ी रहती,उसे किसी चींज की सुध ना रहती,क्योंकि अब उसके पास अपना कहने वाला कोई ना बचा था,मुहल्ले की कोई बड़ी बूढ़ी औरत घर आकर उसे खाना खिला देती तो वो खाना खा लेती नहीं तो ऐसी ही पड़ी पड़ी सोचती रहती, मुहल्ले की औरतें उसे बहुत समझातीं लेकिन इन्सान समझ कहाँ पाता है क्योंकि जिसके ऊपर बीतती है वो ही जानता है,उसमें हालातों से लड़ने की ताकत नहीं रह जाती,अगर हमें बुरे हालातों से कोई उबार पाता है तो वो है वक्त...
अब इस बात को गुजरे दो महीने होने को आए थे और सरगम खुद को अँधेरों से उजालों की ओर ले जाने की कोशिश कर रही थीं,उसने अपने दुख को भूलने के लिए फिर से बच्चों को संगीत का ट्यूशन देना शुरू कर दिया था,लेकिन कहते हैं ना कि जब मुसीबतें आतीं हैं तो थोक के भाव आती हैं और फिर एक दिन सेठ जी अपना उधार माँगने आए सरगम के पास आए,तब सरगम बोली...
"चाचा जी!अभी तो मेरे पास कुछ भी नहीं है,जो जमापूँजी थी वो तो खर्च हो चुकी है"
"अगर उधार नहीं चुका सकती तो फिर ये घर खाली कर दो क्योंकि तुम्हारी माँ ने इसे मेरे पास गिरवीं रखा था और जब वें स्वर्ग सिधार गईं हैं तो फिर इस घर पर मेरा अधिकार बनता है",सेठ जी बोलें...
"लेकिन चाचाजी!इस घर के अलावा मेरा और कोई ठिकाना नहीं है,मैं कहाँ जाऊँगीँ"?,सरगम बोली...
"मैं कुछ नहीं जानता,कहीं भी जाओ,लेकिन अब ये घर मेरा है,तुम्हें इसे फौरन खाली करना होगा",सेठ जी बोले...
तभी मुहल्ले की एक बुजुर्ग महिला आकर सेठ जी से बोली....
"क्यों लाला! तुझे शरम नहीं आती,बेचारी लड़की विपत की मारी है,उसके घर में अभी तीन तीन मौतें हुईं हैं और तू ताकादा करने आ गया",
"शरम किस बात की अम्मा? नगद रूपऐ दिए थे और जब देने में मुझे शरम नहीं आई तो फिर उन्हें वापस लेने में कैसी शरम"? सेठ बोला...
"कैसा बेहरम है तू! जरा भगवान से तो डर",बूढ़ी महिला बोली...
"रूपयों के में मामलों में मैं बेहरम हो जाता हूँ अम्मा! तुम लाख गालियाँ देती रहो,कितना भी कोसती रहो,मुझे फरक पड़ने वाला नहीं",सेठ बोला...
तब सरगम उन बूढ़ी महिला से बोली...
"दादी! आप जाओ,मैं इनसे बात करती हूँ",
और फिर उन बूढ़ी औरत के जाने के बाद सरगम सेठ जी से बोली...
"चाचा जी! कल शाम तक की मोहलत दे दीजिए,मैं आपका घर खाली करके कल शाम तक चली जाऊँगी,आप शाम को यहाँ आकर इस घर की चाबियाँ ले लीजिएगा",
"ठीक है तो मैं कल आऊँगा,अपनी बात से मुकर मत जाना",सेठ जी बोलें...
"आप निश्चिन्त रहें ऐसा कुछ भी नहीं होगा,कल शाम को आपका घर खाली हो जाएगा", सरगम बोली...
और फिर सेठ जी चले गए और फिर सरगम ने दूसरे दिन शाम तक घर खाली कर दिया क्यों अब वैसे भी उस घर में उसके लिए कुछ रह नहीं गया, इसलिए वो अपने कागजात और कुछ सामान लेकर घर से बाहर निकल गई,तब मोहल्ले वालों ने पूछा कि.....
"अब कहाँ जाओगी बेटी"?
तो वो बोली...
"पता नहीं,जहाँ किस्मत ले जाएंँ"
तब मोहल्ले के एक व्यक्ति ने कहा...
"बेटी सरगम! तुम बनारस चली जाओ,वहाँ मेरे दूर के फूफाजी रहते हैं जो कि एक मंदिर में पुजारी हैं,उनका नाम शिवसुन्दर शास्त्री है,तुम्हें संगीत की समझ है और बनारस में संगीतप्रेमी ही रहते हैं,शास्त्री जी तुम्हें वहाँ किसी ना किसी संगीतविद्यालय में नौकरी दिलवा देगें,मैं तुम्हें उनका पता लिखकर दे देता हूँ और उनके लिए एक चिट्ठी भी लिख देता हूँ,बहुत अच्छे व्यक्ति हैं,हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हैं,वें तुम्हारी भी मदद जरूर कर देगें",
और फिर सरगम बेचारी करती भी क्या,उसके पास और कोई रास्ता भी तो नहीं था इसलिए वो उन सज्जन की लिखी चिट्ठी लेकर उन्हें धन्यवाद और मोहल्ले वालों को अलविदा कहकर रात को ही बनारस जाने वाली ट्रेन में जा बैठी.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....