मैं पापन ऐसी जली--भाग(२५) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मैं पापन ऐसी जली--भाग(२५)

सरगम ने अपनी माँ को खत लिखकर सूचित ही कर दिया था कि वो कहाँ रह रही है,अब सरगम ने सोच लिया था कि वो पुरानी बातों को अपनी जिन्दगी में नहीं आने देगी और अब अपनी जिन्दगी नए सिरे से शुरु करेगी और फिर जब वो एक महीने बाद बिल्कुल से स्वस्थ हो गई तो उसने मनप्रीत जी से अपने घर जाने की बात कही तब मनप्रीत जी बोलीं....
"पुत्तर! ठीक है तो कब जाना चाहती है तू"?
"सोचती हूँ कि कल ही चली जाऊँ",सरगम बोली....
"इतनी जल्दी क्यों जाना चाहती है पुत्तर"?,मनप्रीत जी ने पूछा...
"माँ!इन्तज़ार करती होगी और सोच रही होगी कि मैं आपके यहाँ क्यों रूकी हुई हूँ",सरगम बोली...
"ठीक है पुत्तर! तो जा तू अपने घर, अपना ख्याल रखना और एक बात हमेशा याद रखना कि जिन्दगी में कभी हिम्मत मत हारना,चाहें कितना भी बुरा दिन क्यों ना देखना पड़े",मनप्रीत जी बोलीं...
"जी! आपकी जिन्दगी से मैनें ये सीख बहुत अच्छी तरह से सीख ली है,मैं भी आपकी ही तरह हिम्मती बनूँगी",सरगम बोली...
"शाबस! पुत्तर! जीती रह!",मनप्रीत जी बोलीं....
और फिर दूसरे दिन सरगम मनप्रीत और जसवीर से विदा लेकर अपने घर की ओर चल पड़ी और उधर कमलकान्त इतने दिनों से काँलेज में भानुप्रिया से मिलने की कोशिश कर रहा था लेकिन भानुप्रिया उसे अनदेखा करके आगें बढ़ जाती थी,भानुप्रिया कमलकान्त से मिलना ही नहीं चाहती थी वो इस बात पर कमलकान्त से गुस्सा थी कि उसके कारण ही सरगम को ऐसा दिन देखना पड़ा,भानुप्रिया अब भी गलतफहमी का शिकार थी,वो उन बातों का कमलकान्त को ही गुनाहगार समझती थी और जब कमलकान्त के इतनी बार कोशिश करने के बावजूद भी भानुप्रिया उससे ना मिली तो एक दिन उसने भानुप्रिया की कार को रोकना चाहा जिसे गनपत चला रहा था और भानुप्रिया उसमें बैठी थी, जब कमलकान्त ने कार के सामने आकर कार रुकवाई तो फिर मजबूरी में गनपत को कार रोकने पड़ी,कार रुकने पर कमलकान्त कार के पास आया,तब तक भानुप्रिया अपनी कार का शीशा खोल चुकी थी और फिर कमलकान्त भानुप्रिया से बोला....
"भानू!मुझे तुमसे कुछ बात करनी है",
"लेकिन मैं तुम जैसे इन्सान से कोई बात नहीं करना चाहती",भानुप्रिया बोली...
"ऐसा मैनें क्या गुनाह कर दिया जो तुम मुझसे बात नहीं करना चाहती",कमलकान्त ने पूछा...
"इतने अन्जान मत बनिए कमलकान्त बाबू!",भानुप्रिया बोली...
"खुलकर कहोगी कि क्या कहना चाहती हो"?,कमलकान्त बोला...
"मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी कमलकान्त बाबू!",भानुप्रिया बोली...
"भानू!मैनें ऐसा क्या कर दिया जो तुम ऐसी बातें कर रही हो",कमलकान्त ने पूछा....
"मुझसे क्या पूछते हैं,ये आप अपनी अन्तरात्मा से पूछिए कि ऐसा घिनौना काम करके आपको नीद कैसे आ जाती है",भानुप्रिया बोली...
"भानू! ये क्या बक रही हो",कमलकान्त चीखा..
"सच कह रही हूँ मैं! आपने एक लड़की की जिन्दगी बर्बाद करके अच्छा नहीं किया",भानुप्रिया बोली...
"भला! किस लड़की की जिन्दगी बर्बाद कर दी मैनें!",कमलकान्त ने पूछा...
"सरगम दीदी की और किसकी",भानुप्रिया बोली...
" ये क्या बक रही हो तुम?,कमलकान्त गुस्से से बोला....
"हाँ! सरगम दीदी माँ बनने वाली थी और उस बच्चे के बाप आप थे", भानुप्रिया सब एक साँस में कह गई..
"ये झूठ है भानू! तुमसे ऐसा किसने कहा",कमलकान्त ने पूछा...
"आदेश भाइया ने",भानुप्रिया बोली....
अब भानूप्रिया और कमलकान्त की बातें सुनकर गनपत चुप ना रह सका और उसने भानुप्रिया से कहा....
"छोटी मालकिन! ये सब झूठ है,उस बच्चे के बाप कमलकान्त बाबू नहीं कोई और ही है",
"तुम्हें कैसे पता गनपत भइया?",भानुप्रिया ने पूछा...
"मुझे पूरी बात पता है,क्योंकि सरगम दीदी ने सब कुछ सिमकी को बताया था",गनपत बोला...
"क्या बताया था",?,भानुप्रिया ने पूछा...
"यही कि उस बच्चे के बाप कमलकान्त बाबू नहीं छोटे मालिक हैं,",गनपत बोला...
"इसका मतलब सरगम दीदी सच कह रही थी",भानुप्रिया बोली...
"हाँ!यही तो मैं तुम्हें इतने दिनों से बताने की कोशिश कर रहा था लेकिन तुम मुझे अनदेखा करके चली जाती थी",कमलकान्त बोला...
"क्या कह रहे हैं कमलकान्त बाबू?",भानुप्रिया बोली...
तब कमलकान्त बोला....
"मैं सही कह रहा हूँ भानू! वो उस रात ये शहर छोड़ने से पहले मेरे घर आईं थीं और मैनें उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की,उनसे कहा कि मैं उन्हें और उनके होने वाले बच्चे को अपनाने के लिए भी तैयार हूँ लेकिन वें बोली कि भानू आपको चाहती है और मैं उसका हक नहीं छीन सकती,फिर वो चली गईं",
"क्या आप सच कह रहे हैं कमलकान्त बाबू?",भानुप्रिया ने पूछा...
"हाँ!छोटी मालकिन यही सच है,क्योंकि मैं ही तो उस रात सरगम दीदी को कमलकान्त बाबू के घर लेकर गया था और फिर बस स्टैण्ड भी छोड़ने गया था",गनपत बोला....
"ओह...ये मुझसे क्या हो गया?,मैं सरगम दीदी की सच्चाई जाने बिना ही उन्हें गलत समझ बैठी और उन्हें ऐसी हालत में घर से जाने दिया",भानुप्रिया ये कहते कहते रो पड़ी...
"अब क्यों रो रही हो भानू!जो होना था वो तो हो ही गया,बेचारी सरगम की जिन्दगी तो तबाह हो ही गई ना!,",कमलकान्त बोला...
"मैं घर जाकर ये सच्चाई माँ और पापा से कहूँगीं",भानुप्रिया बोली...
"वें तुम्हारी बात पर भरोसा नहीं करेगें भानू! अगर उन्हें इस बात पर भरोसा करना होता तो वें उसी रात भरोसा कर लेते",कमलकान्त बोला...
"तो अब मैं क्या करूँ"?,भानुप्रिया बोली....
तब कमलकान्त बोला....
"कुछ नहीं! वक्त का इन्तजार करो,वक्त आने पर खुदबखुद आदेश की सच्चाई सबके सामने जाएगी कि उसने ना जाने कितनी लड़कियों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ किया है,मैनें सरगम जी को अगाह किया था लेकिन उन्होंने तो आदेश पर आँख मूँदकर भरोसा कर लिया और फिर उसका ये अन्जाम हुआ..."
और फिर भानुप्रिया ने कमलकान्त से माँफी माँगी और कमलकान्त ने उसे माँफ कर दिया....
इधर सरगम अपने घर पहुँची तो उसकी माँ सुभागी ने उसके वापस आने का कारण पूछा तो सरगम झूठ बोलते हुए बोली कि....
"सदानन्द चाचाजी के बेटे की शादी है इसलिए बहुत से मेहमान आऐगें और मेरे बारें में पूछेगें कि कौन है ये तो फिर मैं वहाँ किस किस को बताती फिरूँगीं कि मैं कौन हूँ,इसलिए वहाँ से चली आई,शादी निपट जाएगी तो वापस चली जाऊँगीं",
फिर सरगम की माँ सुभागी ने सरगम से कोई सवाल ना पूछा और सरगम ऐसे ही पुरानी बातों को भूलकर खुशी खुशी अपने घर में रहने लगी और फिर एक दिन एक सेठ जी घर आएं और सरगम की माँ सुभागी से कहने लगें कि....
"मास्टरनी जी !उधार कब तक चुकाओगी,ये घर मेरे पास गिरवीं पड़ा है और यदि समय पर उधार ना चुकाया तो फिर मैं इस घर पर कब्जा कर लूँगा",
तब समझा बुझाकर सरगम ने सेठ जी को भेज दिया और उसे पता चला कि घर खर्च के लिए माँ ने ये घर गिरवीं रख दिया है क्योंकि इस घर के अलावा उनके पास और कोई सम्पत्ति नहीं थी,सरगम के बाबूजी के स्वर्ग सिधारने के जाने के बाद घर में पैसों की बहुत तंगी हो गई थी इसलिए सरगम की माँ सुभागी को मजबूरीवश घर को गिरवीं रखना पड़ा, इसलिए सरगम ने अपने घर के खर्च के लिए फिर से अपने पिता कुलभूषण त्रिपाठी जी की तरह संगीत का ट्यूशन देना शुरू कर दिया,उसके पास काफी बच्चे ट्यूशन लेने आने लगे थे,
दिन ऐसे ही गुजर रहे थे और फिर एक दिन एक मनहूस खबर आई कि सरगम के दोनों भाई ,माधव जो कि अठारह साल का था और गोपाल जो कि सोलह साल का था ,साइकिल से स्कूल जा रहे थे और एक ट्रक ने उन्हें टक्कर मार दी और दोनों ने ही उसी समय दम तोड़ दिया,ये खबर सरगम के लिए दिल दहलाने वाली थी,उसकी तो अक्ल ही काम नहीं कर रही थी कि वो क्या करें,क्या ना करें और फिर उसने जैसे तैसे खुद को सम्भाला लेकिन उसकी माँ तो ये खबर सुनकर जैसे पत्थर ही बन गई, वो पागलों की तरह दीवार से टेक लगाकर बैठ गई और उसकी आँख से एक बूँद आँसू ना टपका,पड़ोसी सरगम के दोनों भाइयों की लाशें घर लाए और फिर वें ही उन्हें श्मशानघाट भी ले गए और उन्हीं पड़ोसियों में से एक ने उनका दाह संस्कार किया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....