कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४२) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(४२)

प्रातःकाल हुई तो सभी जागें और सभी बिलम्ब ना करते हुए नियत कार्यों से निश्चिन्त होकर यात्रा के लिए तत्पर हो गए,त्रिलोचना ने सभी के लिए भोजन का प्रबन्ध किया और जब सभी ने वहाँ से जाने का विचार किया तो तभी भूतेश्वर व्योमकेश जी से बोला...
"सेनापति व्योमकेश ! मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ",
"हाँ! कहो भूतेश्वर कि क्या बात है",व्योमकेश जी बोलें...
"मैं कहना चाह रहा था कि क्या हम दोनों भाई बहन भी आप सभी के संग वैतालिक राज्य चल सकते हैं,आपको इसमें कोई आपत्ति तो नहीं होगी", भूतेश्वर बोला....
"यदि तुम दोनों की इच्छा है हमारे संग चलने की तो भला इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है"?, व्योमकेश जी बोले....
"बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो आपने हमें संग चलने की सहमति दे दी",भूतेश्वर बोला...
"किन्तु! हमारे पास तुम दोनों के लिए अश्व नहीं है",भैरवी बोली...
"कोई बात नहीं! अचलराज के संग भूतेश्वर बैठ जाएगा और भैरवी के संग त्रिलोचना,हम सभी ऐसे यात्रा कर लेगें",कालवाची बोली....
"हाँ! यही उचित रहेगा",अचलराज बोला....
"मैं आपलोगों से एक बात और कहना चाहता था,जो कि कल रात्रि मैंने आप सब से नहीं कही",भूतेश्वर बोला....
"वो कौन सी बात है भूतेश्वर?",अचलराज ने पूछा...
"मैं रानी कुमुदिनी के नेत्रों की ज्योति वापस ला सकता हूँ,मुझे ऐसी विद्या आती है",भूतेश्वर बोला...
"ये तो तुमने बहुत अच्छी बात बताई भूतेश्वर! तुम यदि ऐसा कर पाएं तो बहुत बड़ा उपकार होगा मुझ पर,इसका तात्पर्य है कि अब मेरी माँ संसार को देख सकेगीं,क्या ये सम्भव है?", भैरवी बोली...
"हाँ! मैं ये कर सकता हूँ",भूतेश्वर बोला...
"तो तुम्हें और त्रिलोचना को हमारे संग अवश्य चलना चाहिए",भैरवी बोली...
और सभी ने वैतालिक राज्य पहुँचने हेतु अपनी यात्रा प्रारम्भ कर दी,दिनभर यात्रा करने के पश्चात रात्रि को उन्होंने किसी वृक्ष के तले विश्राम किया और दूसरे दिन सायंकाल के समय वें सभी रानी कुमुदिनी के पास पहुँचे और भैरवी ने अपनी माँ कुमुदिनी से सभी का परिचय करवाया,अचलराज ने रानी कुमुदिनी के चरणस्पर्श किए तो रानी कुमुदिनी ने उसे अपने हृदय से लगा लिया,त्रिलोचना और भूतेश्वर ने भी रानी कुमुदिनी के चरण स्पर्श किए,इसके पश्चात कालवाची ने रानी कुमुदिनी के समक्ष जाकर क्षमा माँगते हुए कहा....
"मुझे क्षमा कर दीजिए रानी कुमुदिनी! मैं ही कालवाची हूँ,मैंने ये बात अब तक आपसे और भैरवी से छुपाई, मैं भयभीत हो गई कि यदि आप दोनों को मैने अपनी सच्चाई बता दी तो आप दोनों मुझसे घृणा करने लगेगें और मैं ये नहीं चाहती थी क्योंकि मैनें अब तक बहुत घृणा सही है,अब इससे अधिक घृणा सहने का मुझमें साहस नहीं है",
तब कालवाची की बात सुनकर रानी कुमुदिनी बोली...
"कालवाची! मैंने तुमसे कभी घृणा नहीं की,बल्कि मुझे तो तुम्हारे संग हुए व्यवहार का सदैव से गहरा विषाद रहा है,मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि महाराज ने तुम्हारे संग जो व्यवहार किया था उसका परिणाम था जो कि हमारा परिवार बिखर गया,कदाचित ऊपरवाले का यही ढंग हो तुम्हें न्याय दिलवाने का"
"नहीं! रानी कुमुदिनी! मैंने जो अपराध किए थे तो उनका दण्ड तो मिलना ही था मुझे ",कालवाची बोली...
"किन्तु! तुमने वें सभी अपराध केवल अपने जीवनयापन हेतु ही किए थे",रानी कुमुदिनी बोली...
"किन्तु! निर्दोष जीवों की हत्या करना केवल अपने स्वार्थ हेतु ये तो उचित नहीं था ना!",कालवाची बोली...
"उसमें उचित और अनुचित का कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता कालवाची! वो तो तुम्हारी विवशता थी,तुम्हें अपने आहार हेतु ऐसा करना पड़ता है",रानी कुमुदिनी बोली...
"किन्तु! रानी! अब बस कुछ और दिनों की बात है,इसके पश्चात मुझे मानवहृदय ग्रहण करने की आवश्यकता नहीं रहेगी",कालवाची बोली...
"क्यों कालवाची?,तुम ऐसा क्यों कह रही हो,मैं कुछ समझी नहीं",रानी कुमुदिनी बोली...
"वो इसलिए की अब हम सभी वैतालिक राज्य की ओर प्रस्थान करेगें और वहाँ आपके राज्य को पुनः उस वर्तमान क्रूर राजा से छीनकर आपको वापस लौटा देगें,हम सभी यही योजना लेकर यहाँ आए हैं",कालवाची बोली...
"क्या ये सम्भव है"?रानी कुमुदिनी बोली...
"हाँ! क्यों नहीं?,प्रयास से सब कुछ सम्भव है",कालवाची बोली...
"आप सभी को जब ये कार्य सरल लग रहा है तो मैं भी अपनी सहमति जताती हूँ इस कार्य के लिए"रानी कुमुदिनी बोली...
"हाँ! अब हम सभी वैतालिक राज्य वापस लेकर ही रहेगें",अचलराज बोला...
"पुत्र! अचलराज मैं इन सभी से वार्तालाप के मध्य तुमसे ये पूछना तो भूल ही गई कि तुम्हारी माँ देवसेना कैसीं है"?रानी कुमुदिनी ने कहा...
"रानी माँ! वें भी उसी समय इस संसार से विदा हो गईं थीं जब उस क्रूर राजा ने वैतालिक राज्य पर आक्रमण किया था,",अचलराज दुखी होकर बोला...
"ओह...तो देवसेना भी अब इस संसार में नहीं है",रानी कुमुदिनी बोली...
"हाँ! वें भी महाराज की भाँति स्वर्गलोक जा चुकीं हैं",अचलराज बोला...
"कितना विनाश हुआ उस आक्रमण में दोनों परिवारों के सदस्यों के सदस्य दूर हो गए",रानी कुमुदिनी बोली...
"हाँ! अब हम सभी उस क्रूर राजा से इस बात का प्रतिशोध लेगें",भैरवी बोली...
"किन्तु! इन सभी कार्यों से पहले आप के नेत्रों की ज्योति वापस आऐगी",भूतेश्वर बोला...
"क्या कह रहे हो भूतेश्वर? क्या मेरे नेत्रों की ज्योति वापस आ सकती है, मैं पुनः सभी को देख पाऊँगी", रानी कुमुदिनी बोली...
"हाँ! महारानी जी! आप इस संसार की सभी वस्तुओं और सभी जीवों को पुनः देख पाएगीं", भूतेश्वर बोला...
"किन्तु! ऐसा होगा कैसें? ",रानी कुमुदिनी ने पूछा...
"ऐसा मैं अपनी विद्या के बल पर करूँगा",भूतेश्वर बोला...
"तब तो ये कार्य तुम शीघ्र से शीघ्र कर दो,मैं अत्यधिक उत्साहित हूँ इस बात को सुनकर",रानी कुमुदिनी बोली...
"बस! तनिक धैर्य धरे महारानी! कल रात्रि अमावस की रात्रि है,उस रात्रि में अर्द्धरात्रि के व्यतीत होते ही मैं इस कार्य को करूँगा,अपनी शक्तियों को जाग्रत करके कुछ मंत्रों के उच्चारण के साथ इस कार्य को परिणाम तक पहुँचाऊँगा",भूतेश्वर बोला...
"हम सभी को उस क्षण की प्रतीक्षा है जिस क्षण को महारानी के नेत्रों की ज्योति पुनः आ जाएगी", सेनापति व्योमकेश बोले...
"अब आप सभी विश्राम करें,यात्रा में थक गए होगें",रानी कुमुदिनी बोली...
"अब विश्राम तो हम तभी करेगें जब हम वैतालिक राज्य के राजमहल में होगें",अचलराज बोला...
"बस! कुछ ही समय का बिलम्ब है और वैतालिक राजमहल हमारा होगा",भैरवी बोली...
और ऐसे ही वार्तालाप के मध्य सभी ने भोजन करके विश्राम किया और दूसरे दिन अमावस की रात्रि के समय भूतेश्वर ने अपनी सिद्धियों द्वारा रानी कुमुदिनी के नेत्रों की ज्योति वापस ला दी ,रानी कुमुदिनी अब सभी को अपने नेत्रों द्वारा साक्षात् देखकर अत्यधिक प्रसन्न हुई और अगले दिन सभी ने वैतालिक राज्य की ओर प्रस्थान किया,वैतालिक राज्य पहुँचकर कालवाची बोलीं...
"मैं आज ही राजमहल का भ्रमण करके आती हूँ,कुछ तो ज्ञात हो कि राजमहल में चल क्या रहा है,उसी अनुसार हम अपनी योजनाऐं बनाएं",
"तुम अकेली मत जाओ कालवाची! मैं भी तुम्हारे संग चलूँगीं",भैरवी बोली...
"नहीं! तुम्हारे लिए वहाँ संकट खड़ा हो सकता है,मैं और अचलराज वहाँ जाऐगें",कालवाची बोली...
"किन्तु!अचलराज वहाँ कैसें जा सकता है? अभी हम सभी के समक्ष अचलराज को नहीं ला सकते,क्योंकि उसी को तो युद्घ लड़कर विजय प्राप्त करनी है",व्योमकेश जी बोलें...
"अरे! सेनापति जी! मैं अभी इसे सुन्दर युवती में बदल देती हूँ,तब ये सरलता से राजमहल की गुप्तचरी कर सकता है,हो सकता है कि ये राजा के निकट भी पहुँच जाए और राजा इसके रूप पर मोहित होकर इसे अपनी प्राणप्यारी बना लें", कालवाची बोली...
और फिर सभी ने वहाँ पहले अपने रहने योग्य एक उचित स्थान खोजा,इसके पश्चात कालवाची ने अचलराज को एक सुन्दर युवती में परिवर्तित कर दिया,तब अचलराज ने अपना रुप देखा तो बोल पड़ा....
"आय...हाय...क्या लग रहा हूँ? जी में आ रहा है कि स्वयं से विवाह कर लूँ",
और सभी अचलराज की बात सुनकर हँस पड़े....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....