अपना आकाश - 31 - विकल्प डेयरी Dr. Suryapal Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपना आकाश - 31 - विकल्प डेयरी


अनुच्छेद- 31
विकल्प डेयरी

पहली तारीख । आज ही विकल्प डेयरी का उद्घाटन । यद्यपि उद्घाटन भँवरी देवी को ही करना है पर बिना अंजलीधर के संभव नहीं। माँ जी भी सवेरे चार बजे से ही तैयारी कर रही हैं। नहा धोकर पति के चित्र के सामने खड़ी हो गईं। 'तुम्हारा ही छूटा हुआ काम कर रही हूँ। देखना इसे रिक्शा पहले से ही तय कर रखा था। सुबह छह बजे उन्हें हठीपुरवा पहुँचना ही है । वे लड्डू के पैकेट और कैमरा साथ लिए रिक्शे पर बैठ गईं ।
विपिन और कान्तिभाई को भी पहुँचना था। माँ अंजली का रिक्शा गाँव के निकट पहुँचा तब तक विपिन और कान्तिलाल भी आ गए। पूरा पुरवा उत्फुल्ल, प्रसन्नता से दीप्त । दूध थैलियों में पैक कर लिया गया। पेटी में नमक और बर्फ की तह लगा दी गई। कोशिश की जा रही है कि बिना कोई रासायनिक पदार्थ डाले ही दूध को शुद्ध रखा जाए। तन्नी ने भँवरी को भी तैयार किया। एक मड़हे में चार तख्ते लगा दिए गए थे। एक तख्ते पर दूध और उसकी पेटी । तीन तख्ते बैठने के लिए।
पुरवे के स्त्री, पुरुष, बच्चे इकट्ठा हो गए। नन्दू और हरवंश ने 'विकल्प' डेयरी की पट्टी पहन ली। माँ अंजलीधर ने भँवरी को साथ लिया । उनके द्वारा पहला पैकेट पेटी में रखते ही तालियाँ बज उठीं। हरवंश और नन्दू तैयार। साइकिल पर पेटियाँ बाँधी गई। माँ जी ने दोनों को एक एक लड्डू खिलाया और साइकिल चल पड़ी। तन्नी, रामदयाल लड्डू का पैकेट लिए सबके आगे घुमाते रहे। सबने एक एक लड्डू लिया। पुरवे के विकास का नया संकल्प, नई दिशा, नई प्रदीप्ति। विपिन प्रसन्नता से दीप्त क्षणों को कैमरे में कैद करते रहे।
पुरवे वालों के साथ ही माँ जी, कान्तिभाई, विपिन सभी प्रसन्न, उत्साहित ।
'अच्छा अब चलते हैं। अच्छी शुरूआत हुई।' माँ जी ने कहा।
'आपकी कृपा है।' अंगद ने हाथ जोड़ लिया ।
ग्राहक तय थे ही। विकल्प डेयरी की पट्टी पहने जैसे ही नन्दू और हरवंश पुरवे के बाहर हुए, हर आदमी इन्हें ही देखता। शहर तक पहुँचते दोनों ने विकल्प डेयरी की चर्चा शुरू करा दी। एक-दो लोगों ने पूछा भी, दूध कैसे मिलेगा । नन्दू हरवंश का दिमाग भी उड़ रहा था। विकास के सपने उगने लगे थे। पुरवा विकास करेगा.....फिर......फिर.....फिर न जाने क्या क्या मन में आता रहा। दूध देकर दोनों लौटे हवा से बातें करते हुए। सपनों का उगना जारी ।
जैसे ही दोनों साइकिल सवार पुरवे के निकट पहुँचे, छोटे बच्चे दौड़ पड़े। स्त्री-पुरुष भी अनुभव बाँटने के लिए आने लगे। लगता था दोनों किला फतह कर आए हो । केवल जाना, दूध देना और लौटना हुआ था पर सभी के चेहरे पर नई आशा, नई किरण खेल रही थी ।
'हर आदमी हम दोनों को ही देख रहा था।' नन्दू ने कहा। 'इस पट्टी ने बड़ा काम किया चाचा।' हरवंश का चेहरा भी दमक रहा था।
'चाचा आपने 'विकल्प डेयरी की पट्टी क्या बनवा दी प्रचार का अभियान ही.....।' नन्दू ही नहीं सभी की प्रसन्नता फूटी पड़ रही थी।
केवल दूध का विक्रय ही नहीं पशुओं के लिए चारा, खली, दाना, पोषक आहार की भी व्यवस्था शुरू हुई। इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए डेयरी के माध्यम से काम शुरू हुआ। पशुपालक निश्चिन्त हुए। खली, दाना, पोषक आहार का मूल्य दूध से कट जायगा। अंगद, हरवंश, नन्दू, तन्नी सभी हर काम को उत्तमता पूर्वक करने के लिए सन्नद्ध रेकार्ड का रख रखाव पूरी तरह वैज्ञानिक यद्यपि सभी काम हाथ से। अच्छे पोषण से पशुओं ने भी दूध बढ़ाना शुरू किया। पुरवे के घरों में नए सपने उगने की सुगबुगाहट ।