जब शीतला जी और भानूप्रिया शादी में जाने की तैयारियाँ करने लगी तो सरगम ने शीतला जी पूछा....
"चाची जी!कहाँ जाने की तैयारियाँ हो रहीं हैं"?
"सरगम बेटा!मेरे भान्जे युगान्तर की शादी है,हम सब वहाँ जा रहे हैं",शीतला जी बोलीं....
"ओह...ये तो बहुत अच्छी बात है",सरगम बोली...
"सरगम बेटा!तुम भी चलो ना हमारे संग शादी में",शीतला जी बोलीं...
"नहीं!चाची जी!मुझे पढ़ाई करनी क्योंकि इग्जाम आने वाले हैं",सरगम बोली....
"दीदी!तुम भी चलतीं तो अच्छा रहता",भानूप्रिया बोली...
"ना!मैं यहीं ठीक हूँ",सरगम बोली...
"चलो ना दीदी!अच्छा लगेगा,",भानू बोली...
"ना!भानू! आप सब लोग जाओ,मेरा वहाँ जाना ठीक नहीं रहेगा,वें सब मुझे पहचानते भी नहीं हैं इसलिए मुझे वहाँ हिचकिचाहट महसूस होगी",सरगम बोली...
"सरगम बेटी!मेरे मायके वाले बहुत अच्छे हैं",शीतला जी बोलीं...
" चाची जी!मैं वहाँ जाकर खुद को सहज ना कर पाई तो वें सब क्या समझेगें मेरे बारें में,इसलिए बेहतर यही होगा कि आप सब जाएं और मुझे वहाँ ले जाने का ना सोचें",सरगम बोली...
"ठीक है यदि तेरा मन नहीं है तो तू मत जा,तू यहाँ रहेगी तो मुझे आदेश के खाने पीने की चिन्ता नहीं रहेगी",शीतला जी बोलीं...
"तो क्या आदेश जी भी शादी में नहीं जा रहे"?,सरगम ने पूछा...
"हाँ! वो भी नहीं जा रहा,तेरे चाचाजी को आँफिस में जरूरी काम थे इसलिए वें शादी में नहीं जाना चाहते थे,तब आदेश तेरे चाचा जी से बोला कि आप शादी में चले जाइएं,आँफिस के काम मैं सम्भाल लूँगा", शीतला जी बोलीं...
"ओह...तो ये बात है",सरगम बोली...
"अच्छा! तू शादी में तो नहीं चल रही लेकिन हमारी शाँपिंग करवाने तो चलेगी ना!",शीतला जी ने पूछा...
"हाँ!वो तो मैं आप दोनों के साथ जरूर चलूँगी",सरगम बोली...
"तो फिर दोपहर को तैयार रहना क्योंकि घर से जल्दी निकलेगें तभी शाँपिंग ठीक से हो पाएगी,फिर भी लौटते हुए रात तो हो ही जाएगी",शीतला जी बोलीं...
"लेकिन फिर शाम के खाने का क्या होगा"?,सरगम ने पूछा...
"कोई बात नहीं,आज बाहर खा लेगें,"शीतला जी बोलीं...
"तब ठीक है",सरगम बोली...
और फिर उस दिन सभी शाँपिंग पर चले गए,आँफिस से सदानन्द जी और आदेश भी सबके पास शाँपिंग के लिए पहुँच गए,फिर शीतला जी और भानूप्रिया ने जेवर और साड़ियाँ खरीदीं,शीतला जी ने सरगम से भी कहा...
"सरगम बेटी!तू भी अपने लिए कुछ पसंद कर ले",
"नहीं!चाची जी!मेरे पास सबकुछ है",सरगम बोली...
"फिर भी बेटी!कुछ तो ले ले",शीतला जी बोलीं...
"नहीं!चाची जी!रहने दीजिए,अभी मुझे किसी चींज की जरूरत नहीं है",सरगम बोली...
"जब माँ इतना कह रहीं हैं तो कुछ ले लो ना दीदी!",भानूप्रिया बोली...
"भानू!तू भी ना!,कहा ना कुछ नहीं चाहिए मुझे,सब कुछ है मेरे पास",सरगम बोली...
"जब माँ कह रहीं हैं तो ले लो ना कुछ अपने लिए,ये हरी साड़ी बहुत जँचेगी तुम पर,ये ले लो ,बहुत खूबसूरत है ये साड़ी",आदेश बोला...
"हाँ!दीदी!भइया ठीक कह रहे हैं,ये साड़ी सच में बहुत खूबसूरत है",भानूप्रिया बोली....
"साड़ी और मैं....मैं साड़ी नहीं पहनती",सरगम बोली...
"ये शिफान की साड़ी है बहनजी!बिल्कुल हल्की है,आपको इसे पहनने के बाद ज्यादा सम्भालने की भी जरूरत नहीं",दुकान वाला बोला....
"अब तो सबने ग्रीन सिगनल दे दिया,तुम्हें अब तो ये साड़ी लेनी ही पड़ेगी",आदेश बोला....
"अब आप सब इतनी जिद कर रहे है तो फिर मैं ये साड़ी ले लेती हूँ",सरगम बोली....
"ये हुई ना बात",आदेश बोला...
और फिर सबके कहने पर सरगम ने आदेश की पसंद की ही हुई वो हरे रंग की शिफान की साड़ी खरीद ली और इसके बाद सभी ने एक रेस्टोरेन्ट में डिनर किया और घर चले आएं,एक दो दिन यूँ ही शादी की तैयारी में लग गए फिर सभी शादी के लिए रवाना हो गए और इधर घर में नौकरों के अलावा आदेश और सरगम ही घर पर थे और फिर एक दिन आदेश ने सरगम से कहा....
"सरगम!शाम को मेरे साथ मंदिर चलोगी",
"मंदिर...वो क्यों भला!",सरगम ने पूछा...
"और किसलिए भला!भगवान से प्रार्थना करने,",आदेश बोला...
"आप भी भगवान को मानते हैं",सरगम ने पूछा...
"पहले नहीं मानता था लेकिन अब भगवान की पूजा करने को जी चाहता है",आदेश बोला...
"भला!अब क्यों भगवान की पूजा करने को जी चाहता है",सरगम ने पूछा...
"क्योंकि ?तुम जो मिल गई हो इसलिए भगवान पर अब मैं बहुत भरोसा करने लगा हूँ", आदेश बोला...
"सच!कह रहे हैं आप!",सरगम ने पूछा...
तब आदेश बोला...
"बिल्कुल सच सरगम! जब से तुम मिली हो तो मेरे जीवन में बहार ही बहार आ गई है,तुमसे प्यार होने के बाद मुझे पता चला कि मैं अब तक कितना अकेला था,मेरी जिन्दगी में जो एक खालीपन था उसे तुमने भर दिया है,मैं अब तुम्हारे बिन जीने की सोच भी नहीं सकता",
"सच!आप मुझसे इतना प्यार करते हैं",
"हाँ!सरगम !मैं तुमसे बेइन्तहा मौहब्बत करता हूँ",आदेश बोला...
"हमेशा मुझे इसी तरह चाहते रहेगें",सरगम ने पूछा...
"हाँ!अपनी आखिरी साँस तक चाहता रहूँगा तुम्हें",आदेश बोला...
लेकिन भोली सरगम को क्या मालूम था कि आदेश की वो सब बातें झूठी हैं,उसके दिल में तो फरेब के अलावा और कुछ भी नहीं था,नई नई लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फँसाना तो उसका शौक था, जिन्दगी कौन सा खिलवाड़ करने जा रही थी सरगम के साथ ये उसे कहाँ मालूम था....
और फिर शाम को सरगम गुलाबी रंग के सलवार-कमीज पहनकर आदेश के संग मंदिर जाने के लिए तैयार हो गई और आदेश के पास जाकर बोली...
"चलिए!मैं तैयार हूँ"
"ओह....ये क्या पहन लिया तुमने"?आदेश बोला...
"क्यों?ये सलवार कमीज अच्छे नहीं है क्या?सरगम ने पूछा...
"नहीं"!,आदेश बोला...
"भला! क्या बुराई है इनमें"?,सरगम ने पूछा...
"ये रंग तुम्हारे ऊपर अच्छा नहीं लग रहा",आदेश बोला...
"ठीक है तो मैं कपड़े बदलकर आती हूँ",
इतना कहकर सरगम जाने लगी तो आदेश बोला...
"सुनो!तुम ना वो वाली साड़ी पहनकर आना जो उस दिन खरीदी थी",आदेश बोला...
"भला!साड़ी पहनने की क्या जरूरत है",?सरगम बोली...
"तो रहने दो,अब हम मंदिर नहीं जा रहे",आदेश बोला...
"आप तो नाराज हो गए",सरगम बोली...
"तुम बात ही ऐसी कर रही हो",आदेश बोला...
"आप नाराज क्यों हो रहे हैं?मैं अभी आई कपड़े बदलकर"
और ऐसा कहकर सरगम अपने कमरें में कपड़े बदलने चली गई और इधर आदेश अपनी चाल पर मंद मंद मुस्कुराते हुए मन में बोला....
"तुझे तो मैं मसल कर ही रहूँगा,तेरी सारी ऐठन ना निकाल दी तो मेरा नाम भी आदेश नहीं"
और फिर कुछ देर में सरगम तैयार होकर बाहर आई तो आदेश उसे देखता ही रह गया,सरगम ने अपने लम्बे बालों को खुला रख छोड़ा था,कत्थई आँखों में काजल और होठों पर हल्की लिपस्टिक लगाई थी, कानों में सुन्दर से मोतियों के एयरिंग्स और गले में पतली मोतियों की माला उस पर खूब फब रही थीं,हरी पारदर्शी शिफान की साड़ी में उसकी छरहरी काया बस गजब ही ढ़ा रही थीं,सरगम की खूबसूरती देखकर तो जैसे आदेश की लार ही टपकने लगी थी और वो सोच रहा था कि कब सरगम का यौवन उसकी गिरफ्त में आ जाएं....?
जब सरगम को देखकर आदेश की पलकें ना झपकीं तो सरगम ने उससे पूछा...
"मिस्टर!कहाँ खो गए?"
"तुम्हारे रूप के समुन्दर ",आदेश बोला....
"बस रहने दीजिए,अब मंदिर चलें",सरगम बोली....
और फिर दोनों मंदिर जाने के लिए कार में बैठ गए....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....