उस रात के बाद सरगम और आदेश में फिर से सुलह हो गई और फिर से वें एकदूसरे के संग पहले की तरह ही व्यवहार करने लगे,सरगम ने तो आदेश की बातों पर पूरी तरह से भरोसा कर लिया था लेकिन आदेश के मन में तो कुछ और ही चल रहा था,उसे तो बस सरगम से उस रात उसके गाल पर पड़े थप्पड़ का बदला लेना था,उसने तो सरगम से कभी प्यार किया ही नहीं था,लड़कियों को अपने झूठे प्यार के जाल में फँसाकर उनकी जिन्दगी से खिलवाड़ करना ये ही तो उसका शौक था,उसका मानना था कि अपनी दौलत के बल पर वो कुछ भी हासिल कर सकता है और उसके पिता सदानन्द जी समझते थे कि उनका बेटा बहुत शरीफ है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था और शीतला जी भी यहीं समझतीं थीं कि मेरे बेटे जैसा नेक लड़का कहीं नहीं होगा,लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही थी जिसे वें दोनों अभी रूबरू नहीं हो पाए थे...
और इधर सरगम रोज शाम को सिमकी को भी पढ़ाने जाने लगी थी ,इसी तरह एक शाम वो सिमकी के कमरें में पहुँची,दरवाजे पहले से ही खुले थे और गनपत बाहर बगीचें में ही बैठा था ,हर शाम वो ऐसा ही करता था क्योंकि उसे पता रहता था कि सरगम सिमकी को पढ़ाने आने वाली है इसलिए वो पहले से ही बाहर बगीचे में आकर बैठ जाता था ,सरगम भीतर पहुँची तो उस वक्त सिमकी रात के भोजन के लिए सब्जियाँ काट रही थी और उसने जैसे ही सरगम को कमरें में आते देखा तो सब्जियांँ एक ओर खिसकाकर उसने अपनी स्लेट,वर्ती और किताब उठा ली,फिर फर्श पर चटाई बिछाकर सरगम से बैठ जाने को बोली,सरगम के बैठते ही सिमकी भी चटाई में बैठ गई और फिर सरगम उसे पढ़ाने लगी,करीब एक घण्टा पढ़ाने के बाद सरगम सिमकी से बोली...
"जितना आज पढ़ाया है उसे तैयार कर लेना,बाकी का कल पढ़ाऊँगी"
"ठीक है दीदी!हम आज का पढ़ाया तैयार कर लेगें",सिमकी बोली...
"कल बोल बोलकर लिखवाऊँगीं,कल किताब देखकर पढ़ाई नहीं होगी",सरगम बोली...
"ठीक है,हम सब तैयार कर लेगें",सिमकी बोली....
"ठीक है तो मैं अब चलती हूँ",सरगम बोली...
और इतना कहकर सरगम बाहर आई तो गनपत उसके सामने जाकर बोला...
"बहुत बहुत शुक्रिया दीदी!जो आप सिमकी को पढ़ा रहीं हैं",
"इसमें शुक्रिया की क्या बात है गनपत भइया!जो मेरे पास है अगर वो बाँटने से किसी का भला हो जाता है तो उसमें हर्ज ही क्या है",सरगम बोली...
"आप जैसे लोंग कम ही मिलते हैं दुनिया में",गनपत बोला...
"ऐसी कोई बात नहीं है गनपत भइया,सिमकी ने पढ़ने की इच्छा की तो मैं उसे पढ़ाने लगी,इसमें मैनें उस पर कोई इतना बड़ा एहसान तो नहीं कर दिया",सरगम बोली...
"आपका मन बहुत पवित्र है दीदी!इसलिए आप इतना अच्छा सोचतीं हैं",गनपत बोला...
"ऐसा कुछ नहीं गनपत भइया! जो इन्सान खुद अच्छा होता है ना तो उसे सब में अच्छाई ही दिखाई देती है,जैसे कि तुम हो ",सरगम बोली....
"दीदी!आपकी इस अच्छाई का हम दोनों पति पत्नी बदला तो नहीं चुका सकते लेकिन कभी भविष्य में कोई भी जरूरत पड़े तो निःसंकोच कहिएगा",गनपत बोला...
"अच्छा ! तो यहाँ गुरूदक्षिणा की बात हो रही है",सरगम बोली...
"बस ऐसा ही कुछ समझ लीजिए",गनपत बोला...
"ठीक है कभी कुछ जरूरत पड़ी तो जरूर कहूँगीं",
और फिर इतना कहकर सरगम वहाँ से चली आई,वो घर के भीतर ही घुस रही थी तभी आँफिस से आदेश भी वहाँ आ पहुँचा और उसने सरगम से पूछा....
"सर्वेन्ट क्वार्टर की ओर क्यों गई थीं?
"ओह....मैं तो आपको बताना ही भूल गई कि मैं वहाँ सिमकी को पढ़ाने जाती हूँ",
"कौन सिमकी"?,आदेश ने पूछा..
"वो ड्राइवर भइया है ना गनपत ,उनकी पत्नी का नाम सिमकी है",सरगम बोली...
"तुम एक नौकर की बीवी को पढ़ाने जाती हो,क्या ये ठीक है?",आदेश बोला...
"नौकर क्या इन्सान नहीं होते"?,सरगम ने पूछा...
"नौकरों को पढ़ाने की जरूरत क्या है उन्हें ज्यादा सिर चढ़ाने से उनके दिमाग खराब हो जाते हैं",,आदेश बोला....
"देखिए आदेश जी! मैं ऐसा नहीं समझती और मेरी सोच आपसे बहुत अलग है,मैं खुद को आपकी तरह अमीर नहीं समझती और ना ही मैं आपकी तरह अमीर हूँ",सरगम बोली...
सरगम की बात सुनकर आदेश ने उस समय उससे बहस करना ठीक नहीं समझा,उसने सोचा बड़ी मुश्किल से तो मछली जाल में फँसी है अगर उसने फिर से कोई गलत हरकत की तो सरगम उससे फिर दूर हो जाएगी, उससे बात करना बंद कर देगी और उसे मनाने के लिए उसे फिर से पापड़ बेलने पड़ेगें,इसलिए उस समय आदेश ने चुप रहना ही बेहतर समझा और उससे बोला...
"सरगम!अब यहाँ अमीर गरीब की बात कैसें आ गई?"
"आप बीच में लाए अमीरी-गरीबी वाली बात,मैं नहीं",सरगम बोली....
"अच्छा!बाबा!माँफ कर दो मुझे,अब से ऐसी कोई भी बात कभी भी अपनी जुबान पर नहीं लाऊँगा", आदेश बोला...
"ठीक है माँफ किया लेकिन मैं सिमकी को पढ़ाना बंद नहीं करूँगी",सरगम बोली...
"मैनें कब ऐसा कहा कि तुम उसे पढ़ाना बंद कर दो",आदेश बोला....
"मुझे लगा कि आप मुझे ऐसा करने को कहेगें",सरगम बोली...
"ये तुम्हारा निजी मामला है कि तुम कहाँ जा रही हो और कहाँ नहीं",आदेश बोला...
"लेकिन अभी कुछ देर पहले आप मुझसे इसी बात को लेकर बहस कर रहे थे",सरगम बोली...
"अब कभी भी बहस नहीं करूँगा मेरी माँ!,जो तुम्हें अच्छा लगे तुम वो करो",आदेश मुस्कुराते हुए बोला....
"ठीक है तो मैं अब रसोई में जा रही हूँ सबके लिए चाय बनाने",
और इतना कहकर सरगम रसोई में चाय बनाने चली गई और इधर आदेश मन में सोचने लगा,बहुत ही अकड़ू लड़की है,सीधे मुँह बात भी नहीं करती और इसे पैसें का लालच भी नहीं है,भला कैसे इसे काबू में करूँ? कुछ और ही सोचना पड़ेगा इसे अपने काबू में करने के लिए....
दिन गुजर रहे थे और इधर कमलकान्त को सरगम की फिक्र होने लगी थी क्योंकि वो आदेश की हरकतों के बारें में सब जानता था,कमलकान्त सरगम को पसंद जरूर करता था लेकिन वो अय्याश किस्म का बिल्कुल नहीं था,आदेश ने सरगम से उसके बारें में बिल्कुल झूठ कहा था,कमलकान्त को ऐसा लगता था कि कहीं आदेश सरगम के साथ कुछ उल्टी-सीधी हरकत ना कर दें,इस बारें में वो पहले भी सरगम से बात कर चुका था,लेकिन सरगम ने उसकी बात पर भरोसा ही नहीं किया.....
और फिर एक दिन शीतला जी के मायके से फोन आया कि उनके भान्जे युगान्तर की शादी है और सभी को उस शादी में जरूर आना है,शीतला जी इस बात से बहुत खुश हुई क्योंकि बहुत दिनों बाद उन्हें मायके जाने को मिल रहा था और फिर उन्होंने,आदेश,भानूप्रिया और सदानन्द जी से शादी में चलने को कहा,लेकिन सदानन्द जी शीतला जी से बोले...
"यहाँ बहुत से आँफिस के काम अधूरे पड़े है ,मैं उन्हें छोड़कर तुम्हारे संग युगान्तर की शादी में नहीं जा सकता"
"आप नहीं जाऐगें तो कैसें चलेगा?आप उस घर के इकलौते दमाद हैं",शीतला जी बोलीं...
"तुम भानू और आदेश को ले जाओ ना!,शादी में मेरा जाना जरा मुश्किल है",सदानन्द जी बोले...
"आप नहीं जाऐगे तो मैं भी नहीं जाऊँगीं",शीतला जी रूठते हुए बोलीं...
"ये क्या बच्चों जैसी जिद पकड़ रखी है?,मैनें कहा ना कि बहुत काम है आँफिस में, मैं शादी में नहीं जा सकता",सदानन्द जी बोलें...
तब दोनों की बहस देखकर आदेश बोला...
"पापा!आप और भानू माँ के साथ चले जाइए,मैं यहांँ रहकर आँफिस का काम सम्भाल लूँगा"
"हाँ!ये हो सकता है,अगर आदेश आँफिस का काम सम्भाल ले तो फिर मैं तुम्हारे संग युगान्तर की शादी में चल सकता हूँ",सदानन्द जी बोलें...
ये सुनकर शीतला जी बहुत खुश हुई और भानू के संग शादी में जाने की तैयारी में लग गई...
क्रमशः...
सरोज वर्मा....