मैं पापन ऐसी जली--भाग(७) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मैं पापन ऐसी जली--भाग(७)

"कोई तो बात जरूर है भानू!तभी तो तू उनके आने पर इतना चहक रही थी,",सरगम ने पूछा....
"ना!दीदी!ऐसा कुछ नहीं है",भानू बोली...
"ऐसा कुछ नहीं है......,मैं नहीं मानती,कुछ तो है मोहतरमा!बात क्या है बतानी तो पड़ेगी ही ?"सरगम ने आँखें मटकाते हुए पूछा...
"दीदी!तुम गलत समझ रही हो",भानू बोली....
"मैं बिल्कुल सही समझ रहीं हूँ,तू कमल बाबू को पसंद करती है ना!",सरगम ने पूछा...
सरगम का सवाल सुनकर पहले तो भानू शरमाई और फिर बोलीं...
"हाँ!दीदी!वें मुझे अच्छे लगते हैं"
"कब से चल रहा है ये चक्कर"?,सरगम ने पूछा....
तब भानू बोली....
"आदेश भइया और कमलकान्त तो बहुत समय से दोस्त थे,लेकिन मेरे दिल में पहले कभी ये बात आई ही नहीं,फिर दो साल पहले मैं गिर पड़ी और मुझे चोट लग गई,तब कमल मुझे अपनी गोद में लेकर अस्पताल भागा और जब मैं उसकी गोद में थीं,तब खुद को उसके इतने करीब पाकर मेरे मन में कुछ कुछ हुआ, उसकी देह की खुशबू ने मेरे मन को छू लिया और मैं उसकी बाँहों में मोम की तरह पिघल गई,उस दिन से मैं उसकी हो गई,उस दिन के बाद मुझे महसूस हुआ कि इसे ही मौहब्बत कहते हैं"
"तो क्या कमल बाबू को तेरे दिल का हाल पता है"?,सरगम ने पूछा...
"नहीं!मैनें कभी उन्हें अपने जज्बातों को जाहिर ही नहीं होने दिया,इसलिए तो मैं उनसे इतना लड़ती-झगड़ती रहती हूँ कि उन्हें मेरे दिल का हाल पता ही ना चल सकें"भानू बोली....
"ये तो गलत है,अगर तुझे उनसे मौहब्बत है तो फिर इजहार क्यों नहीं कर देती"?,सरगम बोली....
"नहीं!दीदी!जैसा चल रहा है चलने दो,यदि मेरा प्यार सच्चा है तो उन्हें एक ना एक दिन इसका एहसास हो ही जाएगा",भानू बोली...
"और इस बीच उन्हें तुझसे छीनकर कोई और परी उड़ाकर ले गई तो फिर क्या करेगी तू"?,सरगम ने पूछा...
तब भानू बोली....

"ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है "

भानू का शेर सुनकर सरगम बोली....
"तू तो शायर साहब के साथ रहकर शायरी भी झाड़ने लगी",
और फिर इस बात पर दोनों जोर जोर से हँसने लगी,तभी भानू ने सरगम से पूछा...
"दीदी!क्या तुमने कभी किसी से मौहब्बत की है"?
तब सरगम बोली....
"मैनें तो किसी से मौहब्बत नहीं की लेकिन हाँ काँलेज में एक लड़का था ,उसे जरूर मुझसे मौहब्बत हो गई थी"
"फिर तुमने क्या किया?",भानू ने पूछा...
"और क्या करती,मैनें उसकी मौहब्बत को ठुकरा दिया",सरगम बोली...
"तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था बेचारे के साथ",भानू बोली...
"तो क्या करती ,पढ़ाई छोड़कर इश्क़बाजी करने बैठ जाती",सरगम बोली....
"कुछ भी हो बेचारे का दिल नहीं तोड़ना चाहिए था",भानू बोली...
"अच्छा तो!उसका दिल ना तोड़ती लेकिन माँ बाप की इज्ज़त पर बट्टा लगा देती",सरगम बोली....
"दीदी!सच्ची मौहब्बत बड़ी मुश्किल से मिलती है",भानू बोली...
"तुझे कैसे पता कि वो मुझसे सच्ची मौहब्बत करता था",सरगम ने पूछा....
"दीदी!कच्ची उम्र की मौहब्बत ही सच्ची मौहब्बत होती है"भानू बोली....
"वो मौहब्बत-वौहब्बत कुछ नहीं थी,वो तो बस उस दीवाने लड़के के मन का फितूर था",सरगम बोली...
"वैसे उस दीवाने लड़के का नाम क्या था"?भानू ने पूछा...
"क्यों ?तू क्या करेगी उस लड़के का नाम जानकर",सरगम बोली....
"बस ऐसे ही",भानू बोली....
"उसका नाम शाश्वत था",सरगम बोली.....
"ओह....तो आपके दीवाने का नाम शाश्वत था",भानू बोली....
"तो क्या हो गया"?,सरगम बोली....
"काश !हमसे भी कोई शाश्वत की तरह अपना हाल-ए-दिल कहता",भानू बोली...
"अब अगर तूने फिर से ऐसा कुछ कहा ना! तो तू मुझसे थप्पड़ खाएगी",सरगम बोली....
तब भानू बोली.....
"दीदी!तुम्हें किसी से प्यार होता,तब तुम समझती ना कि मौहब्बत कैसी होती है?तब भानू गाते हुए बोली....

"ऐ काश किसी दीवाने को
हम से भी मोहब्बत हो जाए
हम लुट जाए दिल खो जाए
बस आज क़यामत हो जाए"

तब सरगम बोली.....

"है वक़्त अभी तौबा कर लो
हैं वक़्त अभी तौबा कर लो
अल्लाह मुसीबत हो जाए
अल्लाह मुसीबत हो जाए"

और फिर दोनों खिलखिलाकर हँसते हँसते बिस्तर पर लेट गई और फिर कुछ देर बात करने के बाद भानू अपने कमरें में आकर बिस्तर पर लेट गई और कमल के बारें में सोचने लगी....
दिन ऐसे ही गुजर रहे थे लेकिन अब भानू के घर कमल का आना ज्यादा होने लगा था,वो अब घर आने का कोई ना कोई बहाना ढूढ़ ही लेता था,भानू को ऐसा लगने लगा था कि कमल शायद उससे मिलने आता है लेकिन कमल तो सरगम की एक झलक पाने के लिए वहाँ आता था,लेकिन जब कमलकान्त भानू के घर आता तो सरगम या तो पूरा समय रसोईघर में काम करते बिताती या तो फिर अपने कमरें में पढ़ाई करती रहती,जब सरगम कमलकान्त को अनदेखा करती तो कमल को ये अच्छा ना लगता,सरगम तो इसलिए बाहर ना आती थी कि उसे पता था कि भानुप्रिया कमलकान्त को पसंद करती है,वो सोचती कि भानू ही ज्यादा समय कमलकान्त के साथ बिताएं तो ही अच्छा,लेकिन कमलकान्त को सरगम का ये रूखा व्यवहार अच्छा ना लगता था और एक दिन जब सरगम चाय और नाश्ता देने डाइनिंग हाँल में आई तो कमलकान्त ने उससे पूछ ही लिया....
"सरगम जी!मुझसे कोई नाराज़गी है क्या आपको?"
"जी!नहीं!ऐसा तो कुछ भी नहीं है",सरगम बोली....
"तो फिर आप हम सबके साथ यहाँ बैठकर बातें क्यों नहीं किया करतीं"?कमल बोला...
"जी!मेरा स्वाभाव ही ऐसा है,मैं लोगों से कम ही मिलती जुलती हूँ",सरगम बोली....
"लेकिन मुझे लगता है कि आपको लोगों से मिलना जुलना चाहिए,उनसे जान पहचान बढ़ानी चाहिए",कमल बोला....
"जी!मैं ऐसी ही हूँ और मैं बचपन से ऐसे ही रहती आई हूँ इसलिए अकेले रहना मुझे ज्यादा पसंद है",सरगम बोली...
"जी!जैसी आपकी मर्जी",कमल बोला..
और फिर सरगम वहाँ से चली गई,सरगम के जाने के बाद भानू कमल से बोली....
"जब दीदी को पसंद नहीं है तो उनसे ऐसे सवाल मत किया करो"
"हाँ!भाई!तुम्हारी दीदी स्पेशल जो ठहरी,दुनिया की पहली अनोखी लड़की है वो जिसे किसी से बात करना पसंद नहीं है",कमल बोला...
"मेरी दीदी बहुत अच्छी है,उनके बारें में मैं कुछ भी उल्टा सीधा नहीं सुन सकती, समझे मिस्टर!",भानू बोली...
"मेरी इतनी हिम्मत कहाँ है देवी जी! कि मैं तुम्हारी दीदी के बारें में कुछ भी उल्टा सीधा कहूँ",कमलकान्त बोला....
फिर भानू और कमल के बीच ऐसी ही तकरार होती रही,भानू की माँ शीतला ने जब दोनों को शान्त करवाया,तब कहीं जाकर दोनों चुप हुए,कुछ दिन ऐसे ही गुजरे और एक दिन विदेश से आदेश का ख़त आया जिसमें लिखा था कि वो अब अपनी पढ़ाई पूरी करके घर वापस आ रहा है,उसने अपने आने का दिन और तारीख भी बता दी थी,ये खबर सुनकर पूरे घर में खुशी का माहौल छा गया,आदेश की माँ शीतला तो खुशी के मारे फूली ना समा रहीं थीं और वो दिन भी आ पहुँचा जिस दिन आदेश का हवाईजहाज दिल्ली के इण्टरनेशनल हवाईअड्डे पर उतरने वाला था,आदेश के पिता सदानन्द जी और कमलकान्त उसे लेने हवाईअड्डे पहुँचे और कुछ देर में आदेश घर भी आ पहुँचा.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....