मैं पापन ऐसी जली--भाग(८) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मैं पापन ऐसी जली--भाग(८)

आदेश के घर पहुँचते ही उसकी माँ शीतला के पैर खुशी के मारे धरती पर नहीं पड़ रहे थे,आदेश जैसे ही द्वार पर पहुँचा तो शीतला आरती की थाली लेकर द्वार पर आ पहुँची,फिर वो अपने बेटे की नज़र उतारकर उसे भीतर ले गई और फौरन ही रसोई में जाकर सरगम से चाय नाश्ता लाने को कहा,उस समय भानू घर पर नहीं थी,उसका आज कोई जरूरी प्रैक्टिकल था काँलेज में इसलिए उसे मजबूरी में ना चाहते हुए भी काँलेज जाना पड़ा,भानू घर पर नहीं थी इसलिए सरगम को चाय और नाश्ता देने बाहर आना पड़ा.....
सरगम चाय और नाश्ते की ट्रे लेकर सबके सामने पहुँची तो शीतला ने कहा....
"सरगम!ये है हमारा बेटा आदेश और आदेश ये है सरगम,जिसके बारें में मैनें तुझसे टेलीफोन पर जिक्र किया था"
फिर सरगम ने आदेश की ओर देखा और आदेश ने सरगम की ओर देखा,लेकिन दोनों में से बोला कोई कुछ भी नहीं,फिर सरगम वापस रसोईघर में चली गई,इधर सब बैठकर बातें कर रहे थे और उधर सरगम दोपहर का खाना तैयार करने में लगी थी,शीतला जी का सख्त आदेश था कि आज सारा खाना आदेश की पसंद का ही बनना चाहिए,मेरा बेटा इतने दिनों बाद विदेश से लौटा है,फिर कुछ देर बाद सब खाना खाने बैठे और शीतला जी अपने बेटे आदेश को खाना परोसने में लग गईं,वें इतने दिनों के बिछोह की सारी कसर आज ही पूरी कर लेना चाहतीं थीं,आज ही सारा दुलार अपने बेटे पर उड़ेल देना चाहतीं थीं,तभी भानू भी काँलेज से लौटी और आदेश को देखकर बोली...
"भइया!आ गए आप!,मेरे लिए क्या क्या लाएं हैं?
"देखा आदेश!कितनी स्वार्थी है भानू,भाई इतने दिनों बाद घर वापस आया है और इसे अपने उपहारों की पड़ी है,ये नहीं कि भाई का हाल-चाल पूछ ले",कमलकान्त बोला....
"हम दोनों भाई-बहन का मामला है,आप हम दोनों के बीच में बोलने वाले कौन होते हैं",?भानू बोली...
तब आदेश बोला....
"सही कहा,लो अब हम नहीं बोलेगें तुम दोनों भाई-बहन के बीच में"कमलकान्त बोला...
"लाया हूँ बाबा!बहुत कुछ लाया हूँ तेरे लिए,आजा पहले हम सबके संग खाना तो खा ले,फिर सबके उपहार खोलकर दिखाऊँगा"
और फिर भानू भी हाथ -मुँह धोकर सबके संग खाना खाने बैठ गई,खाना खाने बाद सदानन्द जी बोलें...
"भाई!मज़ा आ गया आज तो भोजन करके,वाकई सरगम ने बड़ा ही जायकेदार खाना बनाया था"
"सच!अंकल!सरगम जी वाकई बड़ा ही लज़ीज़ खाना बनातीं हैं",कमलकान्त बोला....
"हाँ!सही कहा!,भानू तू भी कुछ सीख ले सरगम से",शीतला जी बोलीं...
"क्यों आदेश !तुझे खाना कैसा लगा?"कमलकान्त ने आदेश से पूछा...
"हाँ!ठीक था"आदेश बोला...
"मतलब ठीक था,अच्छा नहीं था"कमलकान्त बोला...
"मेरे कहने का मतलब है अच्छा था",आदेश बोला...
"अच्छा!अब बता कि तू हम सबके लिए क्या क्या लाया है?",कमलकान्त ने पूछा...
"मेरा बैग कहाँ है?सब उसी में है",आदेश बोला...
"मैनें उसे तेरे कमरें में रख दिया था,बस अभी उठाकर लाता हूँ" और इतना कहकर कमलकान्त बैग लेने चला गया...
कुछ देर में कमलकान्त बैग उठाकर ले आया तो आदेश ने बैग में से सबके उपहार निकालने शुरू किए,उसने पहले शीतला का उपहार दिया जो कि एक गर्म शाँल थी,सदानन्द जी के लिए वो एक खूबसूरत सा पेन लेकर आया था, भानू के लिए कीमती घड़ी,मोतियों के एयरिंग्स,ब्रेसलेट और एक सुन्दर सी ड्रेस भी थी और वो कमलकान्त के लिए एक जैकेट और सनग्लासेस लेकर आया था,सब अपने उपहार पाकर खुश थे तब भानू बोली...
"भइया!आप सरगम दीदी के लिए कुछ नहीं लाए"
"वो क्या है कि बिना जान-पहचान के उपहार लाना मुझे कुछ ठीक नहीं लगा",आदेश बोला...
"आपकी बात भी ठीक है",भानू बोली...
और फिर सभी यूँ ही बात करते रहे,कमलकान्त भी अपने घर नहीं गया और फिर सभी ने रात का खाना भी साथ ही खाया,रात को केवल खिचड़ी बनी क्योंकि दोपहर में सभी ने इतने व्यंजन खाएं थे इसलिए रात को कुछ हल्का ही खाना चाहते थे,इसलिए रात को सरगम ने सबके लिए खिचड़ी बनाई,खाना खाकर फिर सभी ने कुछ देर बातें की फिर कमलकान्त अपने घर चला गया और भी सभी अपने अपने कमरों में सोने चले गए,लेकिन सरगम अभी भी रसोई समेटने में लगी थी,तभी शीतला जी सरगम के पास आकर बोलीं....
"तू अभी तक रसोई में लगी हुई,ये काम सुबह नौकर कर देते ना!"
"लेकिन चाची जी!आपको नौकरों के हाथ का काम पसंद नहीं है इसलिए मैनें सोचा मैं ही कर देती हूँ" सरगम बोली..
"सुबह से तो काम कर रही है ,थक गई होगी,जा तू भी अब आराम कर ",शीतला जी बोलीं...
"ठीक है !बस जा ही रही थी आराम करने"सरगम बोली...
"अच्छा!सुन!आदेश के कमरें में पानी रखवा दिया था",शीतला जी बोलीं...
"नहीं!मैनें सोचा आपने नौकर के हाथ भिजवा दिया होगा",सरगम बोली....
"अब तक तो सभी नौकर भी सो चुके होगें,अपने अपने सरवेन्ट क्वार्टर में,ला मुझे दे पानी का जग,मैं ही आदेश को पानी पहुँचा आती हूँ",शीतला जी बोलीं....
"अब कहाँ आप ऊपर वाले कमरें में चढ़कर जाएगीं,आपके घुटनों में तो वैसे भी तकलीफ़ रहती है",सरगम बोली...
"ये बात भी है,अब इस उम्र में तो मुझसे सीढ़ियाँ चढ़ीं ही नहीं जातीं",शीतला जी बोलीं...
"कोई बात नहीं,मैं ही उनके कमरें में पानी का जग रख आती हूँ,आप जाकर आराम कीजिए",सरगम बोली...
"ठीक है तो तू ही पहुँचा आ आदेश के कमरें में पानी"
और इतना कहकर शीतला जी अपने कमरें में चलीं गईं,फिर सरगम पानी का जग और गिलास लेकर ऊपर आदेश के कमरें के पास पहुँची और उसने आदेश के कमरे के दरवाजे पर धीरे से दस्तक दी,आदेश ने दरवाजा खोला और बोला....
"सरगम!तुम!कुछ काम है क्या?"
"जी!चाची जी!ने आपके कमरें में पानी पहुँचाने को कहा था,इसलिए पानी लेकर आई थी",सरगम बोली....
"ओह...तो बाहर क्यों खड़ी हो अंदर आ जाओ",आदेश बोला...
फिर सरगम पानी से भरा जग लेकर कमरें के अंदर गई और जग को टेबल पर रखकर वापस आने लगी तो आदेश ने उससे पूछा...
"तुम्हें बुरा तो नहीं लगा"
"किस बात का",सरगम ने पूछा...
"यही कि मैं तुम्हारे लिए कोई उपहार नहीं लाया",आदेश बोला...
"इसमे बुरा मानने वाली कौन सी बात थी?",सरगम बोली...
"तब ठीक है,मुझे लगा तुम्हें बुरा लगा होगा",आदेश बोला...
"मैं ऐसी छोटी मोटी बातों का बुरा नहीं मानती",सरगम बोली...
"वैसे खाना बहुत अच्छा था",आदेश बोला...
"थैंक्यू",इतना कहकर सरगम कमरें से जाने लगी तो आदेश बोला...
"जा रही हो?थोड़ी देर बैठो ना!
"जी!अभी पढ़ाई करनी है,आज का पूरा दिन ऐसे ही निकल गया,कुछ भी नहीं पढ़ पाई",सरगम बोली...
"अच्छा!ठीक है तो जाओ",आदेश बोला...
"आप कहते हैं तो रूक जाती हूँ",सरगम सोफे पर बैठते हुए बोलीं...
"यहाँ मन लग गया तुम्हारा",आदेश ने पूछा...
"मन लगता कहाँ है,बस लगाना पड़ता है,घरवालों की चिन्ता लगी रहती है हमेशा",सरगम बोली...
"ये बात तो सही है,चाहे कितना भी आराम क्यों ना हो बाहर, लेकिन अपनो से दूर रहना बहुत ही मुश्किल है,मैं जबसे यहाँ लौटा हूँ तो एक अजब सा सुकून महसूस कर रहा हूँ",आदेश बोला...
"जी!अपना घर अपना ही होता है,बाहर हम चाहें महल में ही क्यों ना रह लें फिर भी एक अधूरापन सा लगता ही रहता है",सरगम बोली...
"सही कहा तुमने"आदेश बोला...
"तो मैं अब जाऊँ",सरगम बोली...
"हाँ..हाँ..क्यों नहीं,अच्छा लगा तुमसे बात करके",आदेश बोला...
"जी!गुडनाइट और फिर इतना कहकर सरगम आदेश के कमरें से चली आई....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....