खाओ और सो जाओ Sarita Rawat द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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खाओ और सो जाओ

सुनो, आगे वो पंसारी की दुकान पर गाड़ी रोकना घर के लिए कुछ सामान लेना है, मानसी ने रोहन से कहा। मानसी और रोहन की शादी को दो वर्ष बीत चुके हैं, आज रोहन मानसी को उसके मायके से लेने गया था। गाड़ी दुकान के बाहर रुकती है, मानसी सामान लेने चली जाती है, रोहन थोड़ा परेशान सा फोन पर बात करता रहता है, " चलो अब,  ले लिया सामान," मानसी के कहने पर रोहन कार स्टार्ट करता है और कार सड़क पर दौड़ने लगती है। मानसी म्यूजिक सेट करते हुए सोचती है, रोहन को डोसा पसन्द है डिनर में वही बनाती हूँ आज , एक हफ्ते से साथ मे टाइम नहीं बिताया कितनी बातें करनी है, फोन पर कहाँ ठीक से बात हो पाती है, वो मुस्कुरा रही है, हल्की सी हवा में उसके बाल उड़ रहें हैं, "तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी " गाने की मधुर धुन मानसी के मन पर बज रही थी।

अच्छा सुनो, वो कल तुमको एक पीडीएफ भेजा था प्रिंट करवाने को उसको चेक किया था ? कोई करेक्शन तो नहीं ना ? मानसी ने पूछा।

कौन सा पीडीएफ ? रोहन ने अनमना सा होकर जवाब दिया।

तुमने व्हाट्सएप पर देखा तो था, ब्लू टिक तो था मैसेज पर, मानसी बोलते बोलते सोच में पड़ गयी।

हां देखा होगा याद नहीं है, कुछ ज़रूरी था क्या, रोहन ने लहज़ा सामान्य रखते हुए कहा।

मानसी को थोड़ा अजीब लग रहा था , मानसी के हेल्थ चेकअप की रिपोर्ट आई थी उसके कुछ फॉर्म भर कर जमा करने ठे।

"चलो कोई बात नही घर पहुंच के पूछ लूंगी, ऐसा भी कुछ खास नहीं था। "

मानसी रोहन को परेशान नहीं करना चाहती थी, उसने बात खत्म करते हुए कहा।

"सुनो अपना फोन दो ज़रा, मां को बता दूं कि हम लोग पहुंच गए घर। " मानसी ने कहते हुए रोहन का फोन हाथ मे ले लिया। अभी दस मिनट में घर आने वाला है।

"अरे,  ये आरती का मिस्ड कॉल क्यो आया है " मानसी ने चौकते हुए रोहन को देखा ।

आरती, रोहन के साथ ऑफिस में काम करती है ।

रोहन ने मानसी के हाथ से तेजी से अपना फोन लेते हुए कहा, 'कुछ ज़रूरी होगा, आज मैं ने छुट्टी ली थी शायद कोई बात हो ।" रोहन ने कार ड्राइव करते- करते आरती को कॉल किया और बात करने लगा।

मानसी हतप्रभ सी सोच रही थी कल मैने भी तो मैसेज भेजा था, कॉल भी की थी, इन्होनें रिसीव नहीं की, कॉल बैक भी नहीं किया था। आरती क्या मुझसे भी ज़्यादा ज़रूरी है ? क्या मेरा कॉल ज़रूरी नहीं था ?

मैं ये सब क्यों सोचूँ ? रोहन ऐसे नहीं है ऑफिस का ज़रूरी काम रहा होगा..... मानसी ने अपनी सोच को बीच मे ही रोक लिया।

"अरे बस घर पहुंच के खा लूंगा, अभी मानसी को मायके से ला रहा हूँ, । रोहन खुशी खुशी बात कर रहा था ।

"अरे नहीं सब ठीक है , लेने जाना भी तो ज़रूरी था न , वरना ये वापस कैसे आती ? " हँसते हुए रोहन बोला।

" हाँ मानसी ठीक है , इनका क्या है , खाना बनाओ , खाओ और सो जाओ, इन लोगो की लाइफ तो बहुत आसान है, असल परेशानी तो तुम्हारी और हमारी है इनको भी संभालो और बाहर भी। " रोहन ने ठहाका लगाते हुए कहा ।

हँसते हुए रोहन शुरू से ही अच्छा लगता था, पर आज पता नहीं क्यो मानसी को ये हँसी अच्छी नहीं लग रही थी मानसी अपनी सोचो में गुम, रोहन को देखे जा रही थी।

मानसी की आंखों के कोनो पर धीरे- धीरे हल्की सी नमी आने लगी तो उसने खिड़की की ओर मुंह घुमा लिया। "

क्या अपना ऑफिस छोड़ कर मैने कोई गलती कर दी क्या ? पर रोहन भी तो यही चाहते थे कि मैं काम बंद कर दूं, फिर गलती कहाँ हुई ? मानसी गलत और सही में उलझती जा रही थी ।

कार में अब भी गाने बज रहे थे बस फर्क इतना था कि अब वो मधुर नहीं लग रहे थे ।