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दो कप चाय

 

उठ जा सुबह हो गयी कितना सोएगा ? उमा ने तीसरी आवाज़ लगाते हुए कहा।
शुभ अनमना सा मन लिए बिस्तर पर उठ कर बैठ गया । उमा उसके पास आई और सर पर हाथ फेरते हुए बोली " मुँह क्यो फुला रहा है, अगले महीने शादी है तेरी पर देख ज़रा भी बड़ा नही हुआ तू, चल अब ऑफिस नहीं जाना क्या 9 बजने को हैं ।"
शुभ ने दुलार दिखाते हुए माँ को गले लगाया और नहाने चल दिया।
उमा के पति आर्मी में थे जो कुछ वर्ष पहले वीरगति को प्राप्त हुए थे, बेटे की परवरिश में उमा ने कोई कमी नहीं छोड़ी थी आज शुभ एक अच्छी कम्पनी में अच्छी सैलरी के साथ इंजीनियर के पद पर कार्य कर रहा था और एक महीने में उसकी शादी हो रही थी । उमा अपने बेटे को ऑफिस के लिए जाते हुए देख रही थी और सोच रही थी कुछ भी तो नहीं बदला , कल स्कूल जाता था, आज ऑफिस जा रहा है, कल भी नखरे करता था आज भी करता है, पता नहीं इसका क्या होगा।
उमा शुभ के नाश्ते के बर्तनों को मेज से उठा कर ले जा रही थी और उसे अपना बेटा आज भी 5 साल का ही दिख रहा था।

गेंदे, गुलाब और न जाने कितने ही फूलों से घर महक रहा था।चौखट से लेकर कमरों तक मे फूलों की सजावट थी।
अरे दीदी किधर हो ? शुभ की शेरवानी नहीं मिल रही !! उमा की बहन शोभा ने आवाज़ लगाई ।
अरे भाभी ! सुनो, इधर भी आ जाना कोई आया है शायद शुभ के ऑफिस से है तुम्हें पूछ रहे हैं", "आती हूँ नेहा", शुभ की बुआ भी आई थी, आज सारे रिश्तेदार, शुभ की बारात के लिये तैयार बैठे थे, बस शुभ को तैयार होने में समय लग रहा था।
हंसी खुशी का माहौल था, घर के मुख्य दरवाजे से अंदर आने के रास्ते मे आल्ते से छपे पैरों के निशान बने थे, दरवाज़े पर हाथ के छापे लगे थे, उमा की बहू घर आ गयी थी, घर मे सब नाच- गा रहे थे।
सर्दी की सुबह में 7 कब बज गए पता ही नहीं चला, उमा ने धीरे से शोभा को जगाया " उठ ज़रा , कुछ देर में शुभ के कमरे में किसी को भेज के पूछ तो, चाय नाश्ता भिजवा दूं उसके लिए, रात में भी कुछ नही खाया था उसने , मुझे फिकर हो रही है, " शोभा जो ध्यान से अपनी बहन के चेहरे पर आई चिंता की लकीरों को देख रही थी कुछ रुक कर बोली, " दीदी अब उसकी चिंता करना छोड़ दो वो बड़ा हो गया है, जागेगा तो ख़ुद आ जाएगा, बहू आ गई है अब वो पहले वाला शुभ नहीं रहेगा ।"
"पर शोभा वो तो 9 बजे भी कई आवाज़ें लगाने के बाद ही उठता है और बिना मेरी चाय के उसकी सुबह नहीं होती" अपने बेटे के बारे में सोच कर ही उमा ख़ुश होकर मुस्कुराने लगी, तभी शोभा ने कहा" अच्छा ठीक है तुम आराम करो इतने दिन से सब काम कर के थक गयी हो वैसे भी शुभ आज ऑफिस नहीं जाएगा, शालू आएगी अभी खाना बनाने तब बोल दूंगी तुम सो जाओ थोड़ी देर।
(शालू को उमा ने शादी के कुछ दिन पहले से ही खाना बनाने को काम पर रखा था पिछले 15 दिन से वो घर के काम भी कर दे रही थी)
बर्तनों की आवाज़ सुन कर उमा ने कहा रुक मैं अभी आयी, शालू आ गयी है शायद ! उसको बता दूं नाश्ते का भी ।
"शुभ तुम इस वक्त रसोई में ? उमा भौचक्की होकर शुभ को चाय और बिस्किट और नमकीन सजाते हुए देख रही थी ।
अरे माँ ! आपकी बहू सुबह जल्दी उठती है, कल उसने ठीक से कुछ खाया भी नहीं था तो भूख लग गयी । उसने बोला कि आपको परेशान न करूं और अपने हाथ से चाय बना लूं , शुभ मुस्कुराते हुए बोल रहा था।
आप क्यो जग गयी माँ ? जाओ आराम करो । मुझे पता होता आप जाग रही हो तो आपके लिए भी चाय बना लेता
"नहीं रहने दे! तू जा अपने कमरे में , मैं भी थोड़ा और सो लेती हूं ।"
उमा दूर तक ट्रे में रखे दो कप चाय के प्यालों को निहारती है।

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