शिष्य: सर्वसार उपनिषद क्या है ?
गुरु : वेदों का सार है, उपनिषद और, उपनिषदों का भी सार है- सर्वसार उपनिषद, अर्थात आसार से सार, और सार का भी सार है, यानी जिसमे से रत्ती भर भी नहीं छोड़ा जा सकता. इस रहस्यों की कुंजी कहना उचित है. पहले तो व्यर्थ से सार्थक खोजना बहुत कठिन है, और सार्थक में से भी और सार्थक खोजना लगभग असंभव है. मानव जाती का जो भी उपनिषद रचने तक जाना गया, खोजा गया ज्ञान है, वह इस सर्वसार उपनिषद में संकलित कर दिया गया है.
परंतु सार का भी सार करने में भी एक खतरा वेद ऋषियों को नजर आया, सार कहने में बात जब बहुत सूक्ष्म हो जाती है, तो साधारण लोगों की पकड़ से बाहर हो जाती है, परन्तु इसका कोई हल ना था, और सोचा गया, अगर अमृत पाना है, तो सागर मंथन तो करना ही पडेगा.
उपनिषद में ऋषी, जिज्ञासु शिष्य को कहता है, सीखने, जानने का पहला मन्त्र है, “प्राथना”, अगर जानना है, तो प्राथना करके जानो.
शिष्य गुरु से सवाल करता है: “यह प्राथना करके शिष्य पूछने का क्या महत्व है?”.
ऋषी बतलाता है: प्राथना करके शिष्य पूछने का अर्थ है, शिष्य अनुग्रहित हो कर, समपर्ण भावना से, शिष्य करके अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहता है, जगत के बारे में जानना चाहता है, और सुनने को तैयार है, बिना प्रार्थना किये प्रश्न पूछना तो, बस शंका मिटाने हेतू गुरु पाना मात्र है.
शिष्य : प्राथना क्यों जरुरी है?,
ऋषी : इसलिए जरुरी है, इसे ऐसा समझें, अब एक आदमी अंधेरे कमरे में बैठा है, उसने प्रकाश के बारे में सूना है, और वह प्रकाश के बारे में जानना चाहता है, कि प्रकाश क्या है, और वास्तव में होता भी है भी या नहीं?, पर वह बिना प्राथना, बिना अनुग्रह के, वह शिष्य कर रहा है, वह मात्र अपनी शंका मिटाना चाहता है कि, प्रकाश है या नहीं, अन्धकार दूर करने में उसकी कोई रुची नहीं है. वह प्रकाश जानने की प्रणाली के अनुसार घर की खिड़की दरवाजा, खोलने को तैयार नहीं, प्रकाश अंदर आने को तैयार है, परन्तु वो दरवाजा, खिड़की खोलने को तेयार नहीं. अब प्रकाश घर में केसे प्रवेश करे, तो अब वह धारणा बना लेता है, प्रकाश है ही नहीं, प्रकाश हो ही नहीं सकता, प्रकाश वेगेरा बेकार की बातें हैं. अब इस आदमी को प्रकाश के बारे में बताने का कोई भी साधन नहीं है. तो सर्वसार उपनिषद प्राथना से शुरू होता है. प्राथना व् अनुग्रह के साथ अगर शिष्य शंका का समाधान भी चाहता है, तो यह अहंकार ना हो कर उसकी जीवन जानने की जिज्ञासा मात्र है. हर स्कूल, मंदिर मस्जिद चर्च में प्राथना का अर्थ केवल अनुग्रहित होना ही है.
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सन्दर्भ
हम बचपन से ही ये सुनते आये हैं, की हमारे वेद पुराण अंग्रेज चुरा कर ले गये और उन्होंने हमारे वेद पुराण पड कर, नये- नये आविष्कार किए, अब कुछ लोग पूछते हैं, भाई उन्होंने किये तो हमने क्यों नहीं किये,उसका जवाब यह है, हमने भी किये तभी तो भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, परन्तु बाद में हजारों वर्षों की गुलामी में हमे ये अवसर नहीं मिला, फिर ये सवाल अक्सर उठता है, कि वेद पुराण वास्तव में चमत्कारी हैं, या ये केवल कल्पना है ?
मेरा मत है, वैद पुराण ना केवल चमत्कारी व् विज्ञानिक दृष्टिकोण से एकदम प्रमाणित हैं, बल्कि ये मानवता की शुरुआत व् विकास की कहानी है, जिसकी मैंने जन साधारण और सरल भाषा में आप तक पहुचाने की कौशिश की है.
तो आइये पहले ये तो जान लें की आखिर वेद, पुराण श्रुति, शास्त्र, मन्त्र, उपनिषद हैं क्यां. ये जानकारी आप पहुंचाने के लिए गुरु शिष्य परम्परा का सहारा लिया गया है, जहां शिष्य यानी जिज्ञासु जो अज्ञात को जानना चाहता है,सवाल करता है व् गुरु जिज्ञासा शांत करता है, तो शुरू करते हैं: