कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३७) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३७)

अचलराज के अंकपाश में जाते ही कालवाची अपना सुध-बुध खो बैठी और उसे स्वयं पर नियन्त्रण ना रहा,भैरवी का ऐसा अनुचित व्यवहार देखकर अचलराज ने भैरवी बनी कालवाची को स्वयं से विलग करते हुए कहा...
"भैरवी! ये क्या हो गया है तुम्हे,तुम आज ऐसा अनुचित सा व्यवहार क्यों कर रही हो"?
"क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?",भैरवी बनी कालवाची ने पूछा...
"नहीं!मैं तुमसे ऐसी अपेक्षा नहीं रखता भैरवी!",अचलराज बोला...
"तुम तो मुझसे प्रेम करते हो ना! तो ये अनुचित कैसें हुआ",भैरवी बनी कालवाची बोली...
"ये प्रेम नहीं वासना है भैरवी!",अचलराज बोला...
"मेरे प्रेम को तुम वासना कह रहे हो अचलराज!",भैरवी बनी कालवाची बोली...
"प्रेम और वासना में अन्तर होता है भैरवी!",अचलराज बोला....
दोनों के मध्य यूँ ही वार्तालाप चल ही रहा था कि वहाँ अचलराज को खोजते हुए भैरवी आ पहुँची और उसने जैसी ही अपनी ही जैसी अनुरूप भैरवी को देखा तो आश्चर्यचकित होकर पूछा....
"कौन हो तुम",?
अब अचलराज के समक्ष दो दो भैरवी थीं जिन्हें देखकर वो भी अचम्भित हो गया और अब उसके लिए निर्णय कर पाना कठिन हो गया कि उसकी भैरवी कौन सी है? अब तो कालवाची भी सोच में पड़ गई कि वो क्या करें,क्या ना करे इसलिए उस समय वहाँ से भागने जाने के सिवाय उसके लिए अब कोई भी मार्ग शेष ना बचा था,इसलिए उसने मोरनी का रूप धरा और वहाँ से उड़ गई,अब ऐसा दृश्य देखकर भैरवी और अचलराज स्तब्ध रह गए, इसके पश्चात भैरवी ने अचलराज से पूछा...
"तुम ठीक तो हो ना अचलराज!"
"हाँ!भैरवी! ठीक हूँ मैं! मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि वो कोई मायाविनी थी और इसी वन में रहती है", अचलराज बोला...
"ना जाने कौन थी? परन्तु ईश्वर की कृपा से आज तुम बच गए",भैरवी बोली...
"वो तो तुम सही समय पर आ पहुँची इसलिए मैं बच गया, नहीं तो आज तो बस स्वर्ग के दर्शन होने ही वाले थे",अचलराज बोला...
"सच!बहुत बड़ा संकट टला है आज",भैरवी बोली...
" इसलिए वो मुझसे ऐसा व्यवहार कर रही थी",अचलराज बोला...
"कैसा व्यवहार कर रही थी"?भैरवी ने पूछा...
"कुछ नहीं!,ऐसे ही",अचलराज बोला...
"बोलो ना अचलराज कि वो कैसा व्यवहार कर रही थी",भैरवी ने पूछा...
"कुछ नहीं! मुझसे यूँ ही समीपता बढ़ा रही थी",अचलराज बोला....
"ओहो....और तुम उसकी समीपता का आनन्द उठा रहे थे",भैरवी बोली...
"नहीं!मुझे उसका व्यवहार कुछ अच्छा नहीं लगा इसलिए मैनें उसे टोका था",अचलराज बोला...
"किन्तु! वो थी कौन"?,भैरवी बोली...
"कदाचित! यही तो वो हत्यारिन नहीं थीं जिसने वो सब हत्याएँ की हों",अचलराज बोला...
"ये भी हो सकता है",भैरवी बोली...
"भैरवी! वार्तालाप बाद में करेगें,सबसे पहले हमें इस स्थान को त्यागना होगा,क्या पता वो पुनः आ जाएं", अचलराज बोला...
"हाँ!चलो यहाँ से शीघ्र ही चलते हैं",भैरवी बोली...
और वें दोनों घर पहुँचे और सभी से वो बात बताई कि उन्हें वन में कोई मायाविनी दिखी थी, जो अचलराज को अपने वश में करना चाहती,वो तो उचित समय पर भैरवी वहाँ पहुँच गई ,नहीं तो आज वो मायाविनी अचलराज के संग ना जाने कैसा व्यवहार करने वाली थी?
"थी कौन वो",व्योमकेश जी ने पूछा...
"यही तो ज्ञात नहीं है पिताश्री",अचलराज बोला...
"मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि ये वो ही मायाविनी है जो इस नगर में हो रही हत्याओं का कारण है,",भैरवी बोली...
"किन्तु वो अचलराज के समीप क्यों आई",व्योमकेश जी ने पूछा...
"यही सोचकर तो मुझे भय लग रहा है",भैरवी बोली...
अब कर्बला बनी कालवाची और कुबेर बने कौत्रेय को बात बिगड़ती प्रतीत हो रही थी,कालवाची ने पहले ही घर आकर सारा वृतान्त कौत्रेय को सुना दिया था,तब कौत्रेय ने कालवाची से कहा कि तुम चिन्ता मत करो मैं सब सम्भाल लूँगा,इसलिए कुबेर बना कौत्रेय झूठ बोलते हुए बोला....
"अचलराज! कहीं उसने मोरनी का रूप तो नहीं धर लिया था",
"हाँ...हाँ..मोरनी का रूप धरा था उसने",भैरवी बोली...
"किन्तु!तुम्हें ये सब कैसें ज्ञात है"?,अचलराज ने पूछा...
"क्योंकि उसने मेरे संग भी ऐसा ही किया था",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"तुमने अब तक हम सभी को ये बात बताई क्यों नहीं",व्योमकेश जी ने पूछा...
"क्योंकि भय लग रहा था मुझे",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"किस बात का भय कुबेर"?,अचलराज ने पूछा...
तब कुबेर बना कौत्रेय बोला....
"क्योंकि उस मायाविनी ने मुझे ये बात किसी से कहने से मना किया था ,उसने कहा था कि यदि तुमने ये बात किसी से कही तो ठीक नहीं होगा क्योंकि मैं तुम्हारे मित्रों को भी पहचानती हूँ और तुम्हारे निवास स्थान को भी,किन्तु मैनें ये बात कर्बला से बता दी थी,उसे ज्ञात था कि अचलराज और भैरवी भी मेरे मित्र हैं इसलिए कदाचित वो अचलराज के समीप प्रतिशोध लेने आई हो"
"किन्तु!वो तुम्हें कहाँ मिली थी",अचलराज ने पूछा...
तब कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"उसी वन में मिली थी,एक सुन्दर युवती के रूप में और मैं उस पर मोहित हो बैठा,तब मुझे ज्ञात नहीं था कि वो एक मायाविनी है और मैं उससे मिलने उसके पास जाने लगा और एक दिन जब मैं उससे मिलने गया तो मैनें उसे एक वन्यप्राणी को ग्रहण करते देख लिया और उसने मुझे देख लिया,मैं वहाँ से भागा और उसने मोरनी का रूप धरकर मेरा पीछा किया,वो मुझे मारने ही वाली थी कि तभी मैनें उससे विनती की कि मुझे जाने दे, तब उसने मुझसे वचन लिया कि मैं ये सब किसी से ना कहू्ँ तो वो मुझे छोड़ देगी यदि मैनें किसी से कुछ भी कहा तो मैं तुम्हारे मित्रों एवं निवासस्थान को पहचानती हूँ, मैं किसी को भी जीवित नहीं छोड़ूँगी, परन्तु मैनें ये सब कर्बला से कह दिया और कदाचित उसे ज्ञात हो गया होगा तभी वो अचलराज के पीछे पड़ गई",
"ओह...अब क्या होगा"?भैरवी बोली...
"भलाई इसी में है कि अब हमें ये स्थान त्याग देना चाहिए",कुबेर बोला...
"परन्तु! जाऐगें कहाँ"?,अचलराज ने पूछा...
"वहीं...जहाँ जाने के लिए हम सभी तुम्हें खोजते हुए यहाँ आ पहुँचे हैं",कुबेर बोला...
"तुम्हारा तात्पर्य है कि अब हमें वैतालिक राज्य की ओर प्रस्थान करना चाहिए",अचलराज बोला...
"हाँ! हमें भैरवी का राज्य भी तो उसे दिलवाना है",कुबेर बोला...
"इस नगर में हम सभी पर कभी भी संकट आ सकता है",कर्बला बोली...
"कदाचित! कौत्रेय ठीक कह रहा है,हम सभी को उसकी बात पर अवश्य विचार करना चाहिए",व्योमकेश जी बोले...
"मैं भी कुबेर के विचार से सहमत हूँ",भैरवी बोली...
"हाँ!मैं भी सहमत हूँ",अचलराज बोला....
और सभी की सहमति से सभी ने उस नगर को त्यागने का विचार बना लिया था,कौत्रेय ने कितनी सरलता से सभी को अपने विचार से सहमत करा लिया था,कौत्रेय सभी से झूठ पर झूठ बोल रहा था,उसने कालवाची से भी झूठ बोला और अब वो उन सभी से झूठ बोलकर कालवाची की सच्चाई को सभी से छुपाने का प्रयास कर रहा था,उसके मस्तिष्क में क्या चल रहा था ये तो कालवाची भी ज्ञात नहीं कर पाई थी,वो अब कौन सा षणयन्त्र रच रहा था ये किसी को ज्ञात नहीं था,वो बस ये चाहता था कि कालवाची केवल अपना प्रतिशोध ले...

क्रमशः...
सरोज वर्मा....