कौत्रेय का ऐसा कथन सुनकर कालवाची बोली....
"ये क्या कह रहे हो कौत्रेय"?
"ठीक ही तो कह रहा हूँ तुम ही क्यों नहीं अचलराज के लिए भैरवी बन जाती",कौत्रेय बोला...
"ये तो अचलराज के संग विश्वासघात होगा",कालवाची बोली...
"कैसा विश्वासघात कालवाची? जो महाराज कुशाग्रसेन ने तुम्हारे संग किया था क्या वो विश्वासघात नहीं था, तुम उन्हें प्रेम करती थी और उन्होंने तुम्हारे संग क्या किया था वो तो स्मरण होगा ना तुम्हें कि भूल गई", कौत्रेय बोला....
"कुछ नहीं भूली कौत्रेय...! कुछ नहीं भूली किन्तु जो भूल महाराज कुशाग्रसेन ने की ,वही भूल मैं अचलराज के संग नहीं करना चाहती",कालवाची बोली...
"ये तुम अचलराज के लिए नहीं अपितु अपने शत्रु की पुत्री के संग कर रही हो",कौत्रेय बोला...
"मैं महाराज कुशाग्रसेन को अपना शत्रु नहीं मानती",कालवाची बोली...
"तो बैठी रहो ,यूँ ही सदैव अचलराज की प्रतीक्षा में ,वो भैरवी से विवाह कर लेगा और तुम पुनः अपना प्रेम खो दोगी",कौत्रेय बोला...
"नहीं!मैं यह पुनः नहीं होने दूँगी",कालवाची गरजी...
"तो क्या करोगी? क्योंकि तुम्हारे संग पुनः यही होने वाला है और अच्छा यही रहेगा कि तुम इसके लिए तत्पर हो जाओ",कौत्रेय बोला...
"कौत्रेय! नहीं मैं ऐसा कदापि नहीं होने दूँगीं",कालवाची बोली...
"तो वही करो जो मैं कह रहा हूँ",कौत्रेय बोला....
"किन्तु! ये कैसे सम्भव होगा"?कालवाची ने पूछा...
"यदि तुम चाह लोगी तो सब सम्भव हो जाएगा",कौत्रेय बोला...
"किन्तु!भैरवी मेरी मित्र है और मैं उसके संग ऐसा विश्वासघात नहीं कर सकती",कालवाची बोली...
"यदि तुम ये सब सोच रही हो तो तुम इस प्रकार अचलराज को कदापि प्राप्त नहीं कर सकती", कौत्रेय बोला...
"नहीं!कौत्रेय! ऐसा नहीं होना चाहिए",कालवाची बोली...
"इसलिए तो कहता हूँ कि दया दिखाना त्याग दो कालवाची! जिनको तुम दया का पात्र समझ रही हो वें तुम्हारी दया के योग्य ही नहीं है",कौत्रेय बोला...
"मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूँ कौत्रेय कि मैं क्या करूँ"?,कालवाची बोली...
"तुम केवल वही करो जो मैं कह रहा हूँ",कौत्रेय बोला...
"तो ठीक है अब मैं वही करूँगी जो तुम कहोगे,क्योंकि मुझे ज्ञात है कि तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो और मेरा संग विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं छोड़ोगे",कालवाची बोली...
"हाँ!मेरी प्रिए सखी!मैं तो केवल तुम्हारी भलाई चाहता हूँ",कौत्रेय बोला...
"मुझे तुम पर और तुम्हारे सुझाव पर पूर्ण विश्वास है",कालवाची बोली....
"तो तुम आज से ही इस कार्य को परिणाम तक पहुँचाने का प्रयास करो",कौत्रेय बोला...
"यदि किसी को संदेह हुआ तो",कालवाची ने पूछा....
"नहीं होगा संदेह,मैं हूँ ना! मेरे होते हुए भला तुम्हें किस बात की चिन्ता",कौत्रेय बोला...
"ठीक है तो मैं तत्पर हूँ,मुझे किसी भी दशा और किसी भी परिस्थिति में अचलराज चाहिए",कालवाची बोली...
"ये हुई ना वीरता वाली बात",कौत्रेय बोला...
"मैं तुम्हारा कहा ही सुनूँगी अब से",कालवाची बोली...
"इसी प्रकार मेरी बात मानोगी तो सदैव तुम्हारे संग भला ही होगा",कौत्रेय बोला...
"वो सब तो ठीक है किन्तु आज रात्रि तो मुझे भोजन ग्रहण करने जाना होगा और इस बात को लेकर मुझे अत्यधिक चिन्ता हो रही है"कालवाची बोली...
" कालवाची! यदि तुम भोजन ग्रहण करने जाना तो ये ध्यान रहें कि तुम्हें इस नगर से दूर जाकर अपना भोजन प्राप्त करना है,नहीं तो यदि राज्य में पुनः किसी की हत्या के संकेत मिले तो तुम पर और मुझ पर ,हम दोनों पर ही संकट आ सकता है", कौत्रेय बोला...
"हाँ!मैं ध्यान रखूँगी",कालवाची बोली...
"ठीक है अब तुम घर जाओ और अपनी इस योजना पर कार्य करना प्रारम्भ कर दो",कौत्रेय बोला....
"किन्तु मैं भैरवी बनूँगी कब? क्योंकि अधिकांशतः समय तो वो हम सभी के संग ही रहती है और यदि मैं भैरवी बन भी गई तो अचलराज ने कर्बला के विषय में पूछा तो क्या उत्तर दूँगीं मैं उसे", कालवाची ने पूछा...
"तुम कितनी नासमझ हो कालवाची!",कौत्रेय बोला...
"वो क्यों भला?",कालवाची ने पूछा...
"तुम अपने रूप के संग संग किसी और प्राणी के रूप को भी तो बदल सकती हो,तुम्हें याद नहीं कि तुमने मुझे कठफोड़वे से मानव बनाया है",कौत्रेय बोला...
"तुम्हारे कहने का आशय नहीं समझी मैं,",कालवाची बोली...
"मेरे कहने का आशय ये है कि जब तुम भैरवी बनना तो मुझे कर्बला बना देना,अपनी शक्तियों द्वारा इतना तो तुम कर ही सकती हो",कौत्रेय बोला...
"बड़े बुद्धिमान हो तुम कौत्रेय!",कालवाची बोली...
"और क्या? मैं तो हूँ ही बुद्धिमान",कौत्रेय बोला....
ऐसे ही दोनों के मध्य वार्तालाप चलता रहा,सायंकाल बीत जाने पर भैरवी और अचलराज घर पहुँचे और अचलराज ने अपने पिता व्योमकेश जी से कहा....
"पिताश्री! आपसे कुछ कहना था"
"तो कहो ,किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हो" व्योमकेश जी बोले...
"पिताश्री!ये दुर्गा नहीं भैरवी है",अचलराज बोला...
"क्या कहा तुमने?,पुनः कहो कि ये ही भैरवी है",व्योमकेश जी प्रसन्नतापूर्वक बोले...
"हाँ!पिताश्री! मुझे भी जब ये बात ज्ञात हुई थी तो विश्वास नहीं हुआ था",अचलराज बोला...
तब व्योमकेश जी बोले...
"दुर्गा ! इतनी दूर क्यों खड़ी हो पुत्री? अपने काकाश्री के हृदय से लग जाओ!"
और दुर्गा शीघ्रता से व्योमकेश जी के समीप आकर उनके हृदय से लगते हुए बोली...
"मुझे क्षमा करें काकाश्री!मैनें आपसे अपनी पहचान छुपाई",
"कोई बात नहीं पुत्री!अब तुम मिल गई हो तो मुझमें आशा की नई किरण जाग उठी है और महारानी कैसीं हैं",?, व्योमकेश जी ने पूछा...
"वें भी ठीक है किन्तु दृष्टिहीन हो चुकीं हैं",भैरवी बोली...
"कोई बात नहीं!अब सब ठीक हो जाएगा और हम सभी शीघ्र ही राज्य को प्राप्त करने की योजना बनाऐगें", व्योमकेश जी बोले...
"सच!काकाश्री!,भैरवी ने पूछा...
"और क्या?अब हमें वैतालिक राज्य की उत्तराधिकारी जो मिल गई है",व्योमकेश जी बोलें....
एवं उस रात्रि भोजन के पश्चात भी यूँ ही अत्यधिक समय तक सभी के मध्य वार्तालाप चलता रहा,जब सभी सो गए तो,अर्द्धरात्रि के पश्चात कालवाची अपने भोजन की खोज में निकली एवं भोर के पूर्व ही वो अपना भोजन ग्रहण करके लौट भी आई,इस बार वो नगर से दूर अपना भोजन ग्रहण करने गई थी और दूसरे दिन ही उसने अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया,उसे जब भी अवसर मिलता तो वो भैरवी का रूप धरकर अचलराज के संग वार्तालाप में लग जाती,किन्तु अचलराज जब असली भैरवी से मिलता तो उसे उस भैरवी और उसके वार्तालाप में अन्तर दिखाई पड़ता,ये सब देखकर अचलराज भी भ्रमित सा हो जाता,क्योंकि कालवाची वैसा अभिनय नहीं कर पाती जैसी कि भैरवी है,क्योंकि प्राणी किसी के जैसा बनने का कितना भी प्रयत्न कर ले वो वैसा बन ही नहीं सकता और एक दिवस कालवाची ने कुछ ऐसा किया जो उसके लिए ऐसा करना उचित नहीं था,वो अचलराज को घर से दूर भैरवी बनकर वन में कहीं ले गई और उसके संग प्रेम भरी बातें करने लगी,इसके पश्चात कालवाची ने अपनी सीमाएं लाँघ दी और अचलराज से बोली...
"हम दोनों विवाह कब करेगें,अचलराज"?
"ऐसी भी क्या शीघ्रता भैरवी?,अभी तो हमें वैतालिक राज्य को पुनः प्राप्त करना है",अचलराज बोला...
"तब तक प्रतीक्षा करनी होगी मुझे",भैरवी बनी कालवाची बोली...
"हाँ!भैरवी! इसके सिवाय और कोई मार्ग भी तो नहीं है",अचलराज बोला....
ये सुनकर कालवाची मन ही मन क्रोधित होकर बोली...
"जब देखो तब भैरवी और उस की भलाई के विषय में ही सोचता है"
"क्या हुआ भैरवी?मेरी बात सुनकर तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या"?,अचलराज ने पूछा....
तब कालवाची ने अचलराज से पूछा...
"तुम्हें कर्बला कैसी लगती है अचलराज"?
"ये कैसा प्रश्न है भैरवी?",अचलराज बोला....
"तुम्हें मेरे प्रश्न का उत्तर देन ही होगा",भैरवी बनी कालवाची ने पूछा....
"नहीं!मैं कोई उत्तर नहीं देना चाहता",अचलराज बोला...
"ठीक है तो मैं चली"
और ऐसा कहकर रुठते हुए कालवाची वापस आने लगी तो अचलराज ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपने अंकपाश में ले लिया.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....