वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 11 Arun Singla द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 11

प्रश्न : अथर्ववेद क्या है ?

गुरु : अथर्ववेद में देवताओं की स्तुति के साथ, अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन है. अथर्ववेद से आयुर्वेद चिकित्सा विधी का ज्ञान, जगत को पता चला व् आयुर्वेद चिकत्सा पद्धति से रोगों के उपचार से हजारों लोग को जीवनदान मिला. आयुर्वेद की दृष्टि से अथर्ववेद का महत्व सबसे ज्यादा है. इसमें आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग होने वाली असंख्य जड़ी-बूटियाँ द्वारा गंभीर से गंभीर रोगों का निदान, शल्यचिकित्सा, कृमियों से उत्पन्न होने वाले रोगों का निदान, प्रजनन-विज्ञान के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसमें ओषधियों, जादू, तंत्र आदि से सम्बंधित ज्ञान का भी वर्णन किया गया है.

महर्षि अंगिरा ने, वेदों के अभिचार और अनुष्ठान वाले कुछ मंत्रों को अलग करके चतुर्थ वेद यानी अथर्ववेद की रचना की थी. महर्षि अंगिरा ने धर्म और राज्य व्यवस्था पर बहुत काम किया था. अथर्ववेद में देवताओं की स्तुति के साथ, रोगनिवारक चिकित्सा, विज्ञान, दर्शन, सामाजिक और राजनैतिक विषय के बारे में मन्त्र रूप में विस्तार से वर्णन है.

अर्थववेद के बारे में भ्रम फेलाया जाता रहा है की, यह रहस्यमई विद्याओं, चमत्कार, जादू टोना टोटका के बारे में संकलित वेद है. भ्रम फेलाया गया की, इसमें तंत्र मंत्र, राक्षस पिशाच, दुश्मन को वश में करने के लिए टोने टोटके का वर्णन है. मूढ़ तांत्रिक, वेद्य, इसे आधार बना कर मुर्ख, लोभी लोगों को ताबीज गंडे देते है, की “इसे बाजू पर बाँध कर, इतने दिनों तक मन्त्र का जाप करो, मनोकामना पूर्ण होने की गारंटी हैं”.

अर्थवेद में अभीचार शब्द बार बार आता है, अभीचार का मतलब है किसी शत्रु को पीड़ा पहुंचाने के लिए उसको ख़त्म करने के लिए तंत्र मन्त्र का प्रयोग करना, परन्तु यहाँ शत्रु- रोग, व्याधि को बताया गया है व् इसको ही वश में करने यानी खत्म करने की विधी का वर्णन है.

एक छोटी सी कहानी है, एक डॉक्टर एक आदिवासी इलाके में, जल्दी में इलाज करने किसी रोगी के घर गया था, वहां पर कोई पेपर ना मिलने के कारण उसने दवा का नाम कोयले से एक छोटे पत्थर पर लिख दिया, और कहा दवा सुबह शाम दूध के साथ ले लेना. अगले दिन रोगी डॉक्टर के पास पहुंचा तो डॉक्टर ने हाल पूछा, उसने जवाब दिया “डॉक्टर साहिब दर्द तो ज्यादा कम नहीं हुआ, पर आपकी वो मंत्र लिखी दवा, मेने खा ली थी, अब और दवा दे दो “ उस रोगी ने उस पत्थर को दवा व् उसपर लिखे दवा के नाम को मन्त्र समझा और पत्थर को ही उदरस्थ कर लिया, यानी खा लिया .

अब बताएं, डॉक्टर क्या करे, या अर्थववेद क्या करे, अगर मन्त्र पर अमल ना करके उसको बस तोते की तरह रटते रहोगे, तो वेदों का क्या कसूर है.

इस तरह समय बीतने पर और तत्कालीन समय की जरूरतों के अनुसार वेदों का विस्तार होता चला गया, व उस समय की समस्याओं व् उनके सुधार, उपाय वेदों में संकलित होते चले गए. यही हिंदू धर्म की सबसे बड़ी खूबी रही, जबकि कई अन्य धर्मों की पुस्तकों की रचना जो एक बार कर दी गई, तो उनमें रति भर भी परिवर्तन नहीं किया गया, ना ही उन में परिवर्तन करने की इजाजत दी गई, तो वह एक खड़े हुए पानी की तरह हो गई, जबकि वेदों का ज्ञान एक निरंतर बहती हुई जलधारा बन गया. जिसमें समय समय के अनुसार परिवर्तन होते रहे व् वेद विकसित होते रहे.

यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, जब तक की कुछ धर्म के धंधेबाजों ने इसे अपनी जीविका कमाने का एक हथियार ना बना लिया, उनकी सिमित सोच यही रही की उनका काम चलना चाहिए, और अपने इसी क्षणिक लाभ के लिए वे इतिहास और भविष्य के साथ कितना बड़ा अन्याय करते रहे, ना उन्हें मालूम था न मालूम है.

मानव जीवन व् किसी भी सभ्यता के जीवित रहने के लिए निरंतर परिवर्तन व् निरंतर विकास जरूरी है, और यह विकास हमेशा जरूरतों के अनुसार ही होता है, जब जरुरत यानी मांग पैदा होती है तो पूर्ति का पैदा होना अवश्यंभावी है.

वेद पुरानों में हमेशा उस समय की जरूरतों, समस्याओं के उपाय भी संकलित होते रहे, और ये विकसित होते रहे. यही विज्ञान भी कहता है, आपको याद है ना, डार्विन का सिद्धांत, डार्विन ने क्या कहा था, डार्विन का भी मानना था, कि इंसान आज जिस रूप में है, वह निरंतर विकास का ही परिणाम है. अब आप जोर दे रहें हैं तो डार्विन पर भी चर्चा कर लेते है.

प्रश्न : डार्विन का सिद्धांत क्या है ?
आगे कल भाग ….12