वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 8 Arun Singla द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 8

प्रश्न: यजुर्वेद क्या है ?

 

गुरु : वेदों का मूल सिद्धांत है, जीवन जीने का ढंग है, हम जो सोचते हैं, विचार करते हैं, वही कर्म करते हैं, जो कर्म करते हैं उसी का फल मिलता हैं. जिसका पहला चरण है “हम जो सोचते हैं, विचार करते हैं”, और दुसरा चरण है “जो कर्म करते हैं”, और तीसरा चरण है”, उसी का फल मिलता हैं”. दुसरे चरण यानी कर्म को संपन्न कराने के बारे में यजुर्वेद में बताया गया है. 

 

यजुर्वेद श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा है, इसको पोरोहित्य प्राणाली में यज्ञ आदि कर्म सम्पन्न कराने के लिए संकलित किया गया था. इसलिए आज भी कर्म, यज्ञ, हवन आदि को यजुर्वेद के मन्त्रों से विधिवत व् नियमवध रूप से संपन्न कराने का विधान है. परन्तु क्योंकि ये मन्त्र संस्कृत में होते हैं व् संस्कृत भाषा का ज्ञान अब बहुत कम लोगों को है, तो ये मंत्र समान्यजन की समझ में नहीं आते, और इसी का फायदा उठाते हुए, धर्म के धंधेबाज सदियों से लोगों को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहें है.

 

कालान्तर  में यजुर्वेद की रचना की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई, क्योंकि समय बीतने के साथ ही लोग प्राकृतिक पूजा के प्रति उदासीन होने लगे थे, और कर्मकांड की और आकर्षित होने लगे थे.

 

इसलिए उस दौर में हर कार्य के लिये चाहे वह पुत्र प्राप्ति हो, धन प्राप्ति हो, राजतिलक हो, या फिर युद्ध सबसे पहले यज्ञ व हवन करवाये जाते थे. किसी भी महामारी, प्राक्रतिक प्रकोप को दूर करने के लिए भी यज्ञ करवाये जाते थे. शुभ महूर्त, जन्म, मरण, शादी, बच्चा पैदा होने पर भी यज्ञ व हवन करवाये जाते थे. इसलिए इनको विधिवत व नियमवध ढंग से कराने के लिए इस वेद की आवश्यकता महसूस की गई व इसे संकलित किया गया .

 

यह वेद मुख्यत: यज्ञ करने की सही प्रक्रिया व उसके महत्व के बारे में बताता है. इसी कारण इसे कर्मकांड प्रधान ग्रंथ भी कहते हैं.

 

आज भी हम चाहे हम कितना भी आधुनिकता का लिबास ओढ़ लें, हर धार्मिक कार्य सम्पन्न करने के लिये यज्ञ आदि करवाते हैं, विदेशों में रहने वाले भारतीय भी यज्ञ व हवन के परम्परा से जुड़े हुए हैं, चाहे यज्ञ ऑनलाइन ही करवाना पड़े .

 

यजुर्वेद में आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है व् उस समय की वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रम के बारे में भी इसमें वर्णन है.

 

वायुदेव ने यजुर्वेद का दर्शन दुनिया को दिया. ऋग्वेद के बाद ही युजुर्वेद की रचना की गई थी, इसलिए यजुर्वेद को चारों वेदों में ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है. हालांकि कुछ पौराणिक व प्राचीन ग्रंथों के अनुसार त्रेतायुग में केवल एक ही वेद था- यजुर्वेद, पर इससे क्या फर्क पड़ता है, यजुर्वेद पहले रचित हुआ या बाद में, इससे मन्त्र के अर्थ तो बदल नहीं जाते.

 

ऋग्वेद के 663 मन्त्र यथावत यजुर्वद में  लिए गए है, पर फिर भी यह ऋग्वेद से बहुत अलग है. और इसमें बहुत से मन्त्र भिन्न हैं. इस वेद में अधिकतर यज्ञ व कार्य सम्पन्न कराने के मंत्र हैं. इसमें कार्य व यज्ञ सम्पन्न की प्रक्रिया के लिये 1975 गद्यात्मक मन्त्र, और 40 अध्याय हैं. यज्ञ के अलावा इसमें तत्वज्ञान, और मोक्ष का वर्णन है. यजुर्वेद से ही मोक्षशास्त्र का जन्म हुआ. गायत्री एवं महामृत्युजंय मंत्र यजुर्वेद में भी मिलते हैं.

 

यह माना जाता है कि जहां, ऋग्वेद की रचना सप्त सिन्धु क्षेत्र में हुई, वहीं युजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र में हुई, और मान्यता है की इसकी रचना लगभग 3000 से 3400 वर्ष पहले हुई थी.

 

पहले बताया गया है कि, आरम्भ में एक ही वेद माना जाता था, बाद में आकारगत विशालता को देखते इस के चार भाग किये गए, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद. यह विभाजन मुख्यत पद्य, गद्य ओर गान साहित्यक विद्याओं पर आधारित है. ऋग्वेद पध्य में व् यजुर्वेद गध्य में लिखा गया.

 

इसकी खास बात यह है कि अन्य वेदों में मंत्र जहां पद्यात्मक हैं, वहीं यजुर्वेद के मंत्र गद्यात्मक शैली में है. ऋग वेद पद्यात्मक, यजुर्वेद गद्य में लिखा गया है.

 

प्रश्न : गद्य क्या है ?

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