प्रेम गली अति साँकरी - 66 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 66

66

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मैंने नहीं पूछा, हम कहाँ जा रहे थे | जहाँ भी जाएं क्या फ़र्क पड़ता है ? बातें करेंगे, खाएंगे-पीएंगे और थोड़ी सी शरारत भी ! कुछ क्वालिटी टाइम साथ में बिताएंगे | और हाँ, उसे कुछ शेयर करना है, वह भी सुन लूँगी, यही सब सोच रही थी मैं गाड़ी में बैठी | 

“आपने पूछा नहीं, हम कहाँ जा रहे हैं ? ”उत्पल ने अचानक शरारत से पूछा | उसने बहुत धीमी आवाज़ में मेंहदी हसन की गज़ल लगा रखी थी जो मुझे बहुत पसंद थी, शायद उसे भी | मैंने कितनी बार उसे उसके चैंबर में यही गज़ल सुनते हुए देखा था, वह आँखें बंद करके अपनी कुर्सी पर बैठा होता और धीमे सुरों में यह गज़ल वातावरण में खुशबू सी पसर रही होती | 

‘रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आजा के फिर से लौट के जाने के लिए आ !!’ यह गज़ल मुझे एक अजीब सी स्थिति में ले जाती थी और न जाने क्यों मेरी आँखों की कोरें आँसुओं से भर जाती थीं | उन आँसु भरी कोरों में कौन अचानक आ छिपता था ? किसको याद करके सुनती थी मैं वह गज़ल, मुझे यह क्लीयर नहीं था लेकिन सुनती थी | हो सकता है वह भी क्लीयर न हो और बस अपने मन की तसल्ली के लिए इसे सुनता हो | संगीत जब आत्मा तक पहुँच जाता है तब वह आत्मा का ही भाग बन जाता है, लगता है कि हमारी आत्मा का सुकून वही है जो हम सुनना चाहते हैं, उसमें भीग जाना चाहते हैं, उसका भाग बन जाना चाहते हैं | मन की संवेदना को तोला नहीं जा सकता, वह तल तक पहुँच ही जाती है | 

उत्पल के चेहरे की मुस्कुराहट लगातार बनी हुई थी | ड्राइव कर रहा था तो आँखें मूँद तो नहीं सकता था | वह गज़ल के साथ गुनगुनाता रहा था | मैं ज़रूर बीच-बीच में आँखें खोलकर उसके चेहरे पर नज़र डाल लेती | आज कोई नई बात नहीं थी, मेरे साथ होने से हमेशा ही उसका मन-मयूर सा खिल जाता था जैसे बादल देखकर मोर नाच उठता हो | मैंने उससे नहीं पूछा कि हम कहाँ जा रहे थे लेकिन रास्तों को पहचानते हुए मुझे ख्याल आ गया कि हम वहीं जा रहे थे जहाँ इससे पहली बार गए थे | वह स्थान दूर था और वहाँ इधर के लोगों के पहुँचने की संभावना कुछ कम ही रहती थी, वह भी ‘वर्किंग डेज़’ में | 

“हम्म, नाम तो याद नहीं आ रहा लेकिन रास्ते से पता चल गया है कि हम वहीं जा रहे हैं जहाँ पहली बार गए थे | ” मैंने उत्पल की ओर मुस्कुराते हुए कहा | 

“वाह---आपकी ज्योग्रेफिलकल मेमोरी तो ज़बरदस्त है---”वह मुझे देखकर तसल्ली से मुस्कुराया | 

“नहीं, नहीं बहुत-बहुत पूअर है | ड्राइवर के साथ गई हूँ हमेशा, गाड़ी तो बहुत कम ड्राइव की है सो रास्तों के बारे में बस ‘ऐवें’ ही है | ”यह सच था, रास्तों के मामले में मैं बहुत ही कमज़ोर थी | 

मेरी बात का उसने कोई उत्तर नहीं दिया और मस्ती में गाड़ी ड्राइव करता रहा | 

“आज फिर बहुत देर हो जाएगी, उस दिन की तरह ----”गज़ल खत्म हो चुकी थी और हम धीरे-धीरे छुट पुट बातों पर उतार आए थे | 

“तो क्या हुआ, देर में पहुंचेंगे तो, अम्मा को तो बता ही दिया है आपने! डिनर करके ही आएंगे ---” बड़े गज़ब का कॉन्फिडेंस था उसका!

लंबा रास्ता था, अब करीब आ गए थे हम उसके | वहाँ से लगभग पंद्रह मिनट और लगे होंगे | गाड़ी उस बड़ी सी दीवार के साथ फिसलती जा रही थी जिसके अंदर हमें जाना था और ‘क्वालिटी टाइम स्पैन्ड़’करना था | उसने गाड़ी साइड में लगा थी | आज काफ़ी पार्किंग खाली थी | गाड़ी लगाने में उस दिन जो दिक्कत हुई थी, वह आज नहीं हुई | दसेक मिनट में हम उस बाग कम पिकनिक स्पॉट के भीतर पहुँच चुके थे | अंदर का वातावरण सुहावना था पहले की तरह !ऐसा नहीं था कि वहाँ बिलकुल सुनसान था लेकिन दूर-दूर पर लोग जोड़ों में बैठे हुए थे | आज परिवार नहीं दिखाई दे रहे थे इसीलिए बच्चे भी नहीं थे | 

हम आगे की ओर बढ़े जहाँ स्लोप वाली हट के आकार का रिफ्रेशमेंट-प्लेस था | जिसमें हम पहले भी गए थे | आज सबसे पहले हम उसकी ओर ही बढ़े | यहाँ तक पहुंचते काफ़ी लंबी ड्राइव हो जाती थी और हमें कॉफ़ी की ज़रूरत महसूस होने लगती थी | 

उस हट जैसे कॉफ़ी स्थल पर कोने में बस एक युवा जोड़ा बैठा कॉफ़ी का और बातों का आनंद ले रहा था | कॉफ़ी प्लेटफ़ॉर्म पर परकुलेटर में रखी थी | अभी वहाँ कोई सर्विस देने वाला नहीं था संभवत:डिनर की तैयारी के लिए सब लोग रेस्टोरेंट में व्यस्त थे | आम दिनों में वहाँ स्टाफ़ भी कम रहता था जबकि वीकेंड्स में स्टाफ़ अधिक काम के कारण बढ़ जाता था | 

“आप बैठिए, मैं कॉफ़ी लेकर आता हूँ----”उत्पल ने एक टेबल की ओर इशारा किया और मैं उस ओर बढ़ गई | 

वहाँ शांति थी, रोमांटिक वातावरण की फुहार सी पसरी हुई थी | मैं मेज पर जाकर बैठ गई थी | मेरी कुर्सी से सटी हुई खिड़की थी जिस पर बाहर की वह छोटी सी, प्यारी सी साफ़ पानी की झील दिखाई दे रही थी जिसके बीच में कुछ सफ़ेद प्यारी प्यारी बत्तखें आराम से चलकदमी कर रही थीं | उनका घर जो था वह ! मैं मुस्कुराते हुए उन्हें निहार रही थी और मुझे पहली बार की कुछ बातें याद आने लगी थीं | सच में खूबसूरत वातावरण था, ऐसा जिससे उदास  मन में बदलाव आना स्वाभाविक था | 

“ये लीजिए, आपकी कैपेचीनो----” उत्पल ने मेज पर दो मग रखे और सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया | 

“अच्छी जगह है न ? ”

“हम्म, जगह तो वाकई अच्छी है लेकिन घर से दूर पड़ जाती है---”मैंने कॉफ़ी-मग हाथ में लेकर सिप लेते हुए कहा | 

“अरे आप भी, लोग तो मूड बदलने के लिए जाने कहाँ-कहाँ जाते हैं और आपको यह जगह ज़्यादा दूर लग रही है | 

“अच्छा, बताइए, उस दिन की आपकी डेट कैसी रही? ” उत्पल ने अचानक मुझसे ऐसी बात पूछ ली जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी | 

“क्या उत्पल----तुम भी, तुम मुझसे कोई बात शेयर करने आए थे, मेरे बारे में बात करने नहीं | ”मेरा मूड ऑफ़ हो गया | अभी तो मैं उस दिन की बात किसी से शेयर कर ही नहीं पाई थी | जो लोग मेरे बारे में चिंतित थे, वे भी अभी तक नहीं पूछ पाए थे | यह लड़का----

“मैं इतना गैस तो कर ही सकता हूँ कि-----”वह चुप हो गया | न जाने क्यों श्रेष्ठ के साथ बीते उस दिन को फिर से याद करके मेरे चेहरे का रंग उड़ गया | 

“तुम बताओ, क्या बताना था----”अपने मन को श्रेष्ठ से हटाने के लिए मैंने कॉफ़ी की एक लंबी सिप ली | 

“आप हँसेंगी----” एक बच्चे की सी मासूमियत से उसने कहा | 

“अच्छा ! हँसने की बात होगी तो हँसना ही होगा न---!”

उसने अचानक मेरे हाथ अपने हाथों में ले लिए | 

“अमी ! मैं कई दिनों से एक स्वप्न देख रहा हूँ---”उसके हाथों की गर्माहट मेरे शरीर में प्रवेश करने लगी | वह मेरे आगे-पीछे घूमता रहता था, मुझे देखता रहता था लेकिन ऐसा कभी नहीं किया था उसने | 

“अच्छा ! क्या सपना देखा तुमने ? ” मैंने धीरे से उसकी हथेलियों से अपने हाथ निकाल लिए और पूछा | 

उसकी छुअन मुझे खराब क्यों नहीं लगी थी? शायद श्रेष्ठ होता तो मैं भड़क जाती लेकिन यह मुझसे इतना छोटा लड़का मेरे भीतर क्या जगाने की कोशिश कर रहा था? लेकिन हाँ, वह फ़्लर्ट नहीं कर रहा था।इस समय उसके  मुस्कुराते चेहरे पर गंभीरता थी | 

“मैंने देखा, मैं न जाने कहाँ रह रहा हूँ और तुम मेरे पड़ौस के फ़्लैट में रह रही हो | मैं अभी तक तुम्हें जानता भी नहीं हूँ | वहीं हमारी दोस्ती शुरू हुई और तुम्हारा दुपट्टा उड़कर मेरी बॉलकनी में आ गया | तुम्हें पता नहीं चला  लेकिन मैंने उसे संभालकर अपने बैग में चुपके से रख लिया है | ”

उत्पल अभी तक मुझे आप कहता था | यह पहली बार था जब मैंने उसके मुँह से अपने लिए तुम सुना था | 

“मुझे इस सपने में कोई सैन्स नज़र नहीं आ रहा---” कोई सैन्स था भी नहीं लेकिन उसने जो कहा था, वह मेरी धड़कनें बढ़ाने के लिए काफ़ी था | 

“क्या पागलों जैसी बात कर रहे हो ---? ”मैंने कह तो दिया लेकिन मेरे मन में उस सपने का एक चित्र बनने लगा था। क्यों?