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यातना - भाग 1

नया ही मूवी रिलीज हुआ था थिएटर में खूब धूम मचा रहा था और मूवी के स्टार कास्ट थे माधुरी दीक्षित और अनिल कपूर और उस समय उनकी जोड़ी हिट हो रही थी और माधुरी के एक के बाद एक सुपरहिट गाने लोगों को दीवाना बना रहे थे थिएटर में मूवी शुरू हो चुकी थी और बीच में ही गीत शुरू होता है धक धक करने लगा... और इस तरफ दिनेश नशे की हालत में गीत के शब्दों पर नहीं पर हीरोइन के बॉडी पर ही ध्यान केंद्रित करते हुए खड़े हो जाता है और नृत्य करती स्त्री को निहारता रहता है और उस पर उसी समय वासना का भूत सवार हो जाता है उसने उस दिन इतना नशा किया था कि वह ठीक से खड़े भी नहीं रह पाता था उसके कुछ दोस्तों ने उसे संभाल कर जैसे-तैसे घर पहुंचाया।

और इस तरफ दिनेश की घरवाली रंभा का दिल भी जोरों से धक धक कर रहा था... क्योंकि रंभा जानती थी कि आज महीने की पहेली तारीख थी और दिनेश को पगार मिली होगी और कुछ खास बक्शीश भी मिली होगी उसने और इसी बहाने दिनेश अपने दोस्तों के साथ मूवी देखने चला गया होगा
रंभा ऐसे ख्याल बना रही थी वह सोच रही थी कि अभी मूवी में कुछ ऐसा सीन आएगा और दिनेश पूरी पिक्चर भी देखेगा नहीं और बीच में ही मूवी छोड़ के घर आ जाएगा और फिर मेरा वह जो हाल करेगा यह सोचकर ही रंभा का दिल धक-धक करने लगा उसकी धड़कने तेज हो रही थी तभी दरवाजे पर उसकी दस्तक सुनाई दी वह डर के मारे कांपने लगी...

रंभा को दिनेश के लिए कभी दिल में प्यार की अनुभूति नहीं हुई क्योंकि दिनेश सुबह तो बहुत भला भला और ठीक-ठाक सा रहता था लेकिन रात होते ही वह जैसे एक वहशी दरिंदा बन जाता था वह रंभा को इतना तड़पाता था इतनी यातनाएं पहुंचाता था कि रंभा कभी-कभी तो जोर जोर से चिल्लाती थी , वह सोचती थी कि यह सब छोड़ कर कहीं और चली जाए पर किधर ? रंभा की मां इस दुनिया में नहीं थी अपनी नई मां के ताने सुन सुनकर पक गई थी इसीलिए जैसे तैसे करके वह दिनेश के ऑथ के नीचे ही रहने लगी ।
रात को रोज दिनेश एक वहशी दरिंदा बन जाता था वह जानवरों की तरह रंभा पर टूट पड़ता था जैसे शिकार के लिए शिकारी अपने शिकार पर टूट पड़ता था ठीक वैसे ही दिनेश भी रंभा पर टूट पड़ता था सिंह के चपेट में आने के बाद शिकार जिस तरह छत- पटाता था उससे छूटने के लिए वैसे ही रंभा भी उससे दूर होने के लिए तड़पती थी पर जब तक दिनेश की हवस पूरी ना हो जाती थी तब तक वह उसे नहीं छोड़ता था और जैसे ही उसकी हवस पूरी हो जाती थी उसे गहरी नींद आ जाती थी और रंभा अपने शरीर के घाव पर मरहम लगाती थी और वह अपने शरीर पर ही ‌ क्रोध महसूस करती थी उसे अपने शरीर से ही धृणा आने लगती थी कभी-कभी तो वह जागते हुए सोचती थी कि अच्छा हुआ मेरे ईश्वर ने मुझे रूप नहीं दिया अगर मुझे रुपवान या सौन्दर्यवान बनाया होता तो यह हैवान मुझे रोज नोच नोच के खाता जानवरों की तरह

रंभा सांवली थी और बिन मां की बेटी बचपन में ही उसकी शादी उसकी नहीं मां ने दिनेश के साथ कर दी थी और यहां भी उसके सास नहीं थी ससुर दियर और दिनेश इन सब के लिए उन्हें खाना पकाना फिर घर के आगे ही उनकी एक छोटी सी सोडा की दुकान थी जहां वह कुछ नाश्ता भी रखते थे उसे संभालना सारा दिन वो काम करना और दिनेश सेठ की गाड़ी चलाता था और कभी-कभी सेठ के काम के दौरान उन्हें बाहर भी जाना होता था इसी बीच वह बहुत ही खुश रहती थी वह ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि चलो दो-चार दिन तो मुझे खुशी के पल मिलेंगे कभी-कभी वह अपनी पड़ोस में रहती मान्या को यह सारी हकीकत है जो बता थी मान्या उसे कहती थी कि तुम क्यों नहीं छोड़ कर चली जाती उनको लेकिन रंभू कहती थी कि मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है मेरी मां भी नहीं है शायद मेरी मां होती तो मुझे संभाल लेती....
क्रमशः


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