आई-सी-यू - भाग 1 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आई-सी-यू - भाग 1

अस्पताल के आई-सी-यू में जीवन और मौत के बीच संघर्ष करती नीलिमा इस वक़्त होश में नहीं थीं किंतु उनकी आँखों में जीवन का एक-एक पल सपना बन कर दृष्टिगोचर हो रहा था। आई-सी-यू के बाहर इस समय उनके चारों बच्चे खड़े थे लेकिन हफ्तों से इंतज़ार करती आँखें अब थक चुकी थीं। इस इंतज़ार ने शायद उन्हें अब तक तोड़ दिया था। उनकी आँखें अब खुलना ही नहीं चाह रही थीं। कुछ बेहोशी और कुछ होश के आलम में उनकी आँखों में इस समय सुख और दुख का मिला जुला संगम हो रहा था। कभी परिवार में उन्हें उनका महत्त्व दिखाई देता तो अगले ही पल होता हुआ तिरस्कार भी दिखाई देने लगता। आई-सी-यू के सन्नाटे में उन्हें अपने जीवन की हर घटना एक फ़िल्म बन कर दिखाई दे रही थी। उन्हें दिख रहा था कैसे वह नई-नई शादी करके ससुराल आई थीं। कैसे सब ने मिलकर उनका गृह प्रवेश करवाया था। किस तरह परिवार में वह सब को साथ लेकर चली थीं। पूरी तरह से अपने सारे कर्तव्य निभाते हुए उनके जीवन का सफ़र जारी था। सास-ससुर, जेठ-जेठानी सब के साथ कितने मधुर सम्बंध थे।

विवाह के एक वर्ष में ही उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया पराग। अभी पराग एक वर्ष का ही हुआ था कि नीलिमा फिर से प्रेगनेंट हो गईं और इस बार उन्हें जुड़वां बच्चे हुए। जिनका नाम सभी ने बहुत सोच समझ कर चिराग और अनुराग रखा जो पराग से मिलता जुलता था। उनके आने से घर में और भी रौनक हो गई। सब बहुत खुश थे लेकिन परिवार में सभी एक बेटी के लिए तरस रहे थे।

नीलिमा की जेठानी मालती निःसंतान थी, उन्हें भगवान ने औलाद के सुख से वंचित रखा था। नीलिमा के आने के बाद उनका खाली घर बच्चों की किलकारीयों से गुंजायमान हो गया था। 

एक दिन नीलिमा की सासू माँ ने अपनी एक इच्छा उसके सामने रखते हुए कहा, "नीलिमा मैं तुमसे कुछ मांगना चाहती हूँ, क्या तुम मानोगी?"

"हाँ कहो ना माँ।"

"हमारे तीन-तीन नाती हैं लेकिन बेटी के बिना घर कितना सूना लगता है। एक बेटी तो घर में होना ही चाहिए।"

उनके इशारे को समझते हुए नीलिमा ने कहा, "माँ यह तो भगवान की मर्जी है, उन्होंने हमें तीनों बेटे ही दे दिए। अब इसमें हम क्या कर सकते हैं?"

"नीलिमा बेटा, माता रानी अभी भी तो बेटी दे सकती हैं ना?"

अपनी सासू माँ की बात सुनकर नीलिमा ने सोचा, पूरा परिवार एक बेटी चाहता है। एक बार और कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है। उसे सब की इच्छा पूरी करने के लिए एक चांस ज़रूर लेना चाहिए। माना चार बच्चे हो जाएंगे लेकिन जीजी की भी कोई औलाद नहीं है। इतने सारे लोगों के बीच पता ही नहीं चलेगा और बच्चे बड़े हो जाएंगे।

भगवान ने भी उनकी विनती सुन ली और एक वर्ष के पश्चात उनके घर एक बिटिया भी आ गई। पूरे घर में सभी की इच्छा पूरी हो गई सब की खुशियाँ मानो उछालें मार रही थीं। उस बिटिया का नाम सब ने मिलकर शुभांगी रखा।

नीलिमा की जेठानी चारों बच्चों को बहुत प्यार करती थीं लेकिन अपनी ख़ुद की गोद सूनी रहने का दुख जाने अनजाने, चाहे बिन चाहे उनके अंदर इस तरह बसा था कि वह स्वयं को अधूरा समझने लगी थीं। अपने अंदर की इस घुटन को वह कभी किसी से कह भी नहीं पाती थीं। इसी कारण धीरे-धीरे वह बीमार रहने लगीं। जैसे तैसे पाँच वर्ष उन्होंने और निकाले और उसके बाद हृदय घात से उनकी मृत्यु हो गई। ऊपर जाने जैसी उम्र नहीं थी मालती की लेकिन जब इंसान चौबीस घंटे दुखी रहता है, अपने अंदर एक दर्द को पालता है तब कुढ़ते रहने के कारण वह दर्द नासूर बन जाता है फिर अंत होना तो पक्का ही हो जाता है। 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः