कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३१) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३१)

अचलराज के प्रश्न पूछने पर व्योमकेश बोले...
"पुत्र! ना जाने नगर में कैसा कोलाहल मचा है तुम तनिक जाकर वहाँ देखो कि क्या बात है"?
"जी!पिताश्री!आप तनिक समय यहाँ प्रतीक्षा करें मैं अभी देखकर आता हूँ कि क्या बात है"?
और ऐसा कहकर अचलराज अपने बिछौने से उठा और नगर की ओर चला गया एवं कुछ समय पश्चात वो लौटकर वापस आया तो व्योमकेश ने पूछा...
"पुत्र!कुछ ज्ञात हुआ कि क्या बात है?"
तब अचलराज बोला....
"पिताश्री!किसी की हत्या हो गई है और हत्यारे ने मृत प्राणी की दशा अत्यधिक बिगाड़ दी है,उसका रक्त चूस लिया एवं उसके शरीर में उसका हृदय ही नहीं है"...
"क्या कह रहे हो पुत्र?इस नगर में भला ऐसा पाप कौन कर सकता है?",व्योमकेश ने पूछा...
"ये तो कुछ ज्ञात नहीं हुआ पिताश्री कि वो हत्यारा कौन है",किन्तु वहाँ उपस्थित लोगो ने बताया कि इसके दो दिन पूर्व भी किसी मृत प्राणी का शरीर मिला था और उसकी दशा भी वैसी ही थी",अचलराज बोला....
"हे!ईश्वर!इस नगर में पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ,परन्तु अब ऐसा क्यों हो रहा है",व्योमकेश बोले...
"ना जाने पिताश्री!कौन है वो?किन्तु नगर के महामंत्री ने गुप्तचरों को आदेश दिया है कि शीघ्रता से उस हत्यारे का पता करें",अचलराज बोला...
"मुझे तो ये सुनकर ना जाने कैसा लग रहा है,क्या ये नगर हमारे लिए सुरक्षित नहीं है",व्योमकेश बोलें...
"नहीं!पिताश्री !आप ऐसा ना सोचें,क्या पता वें कदाचित उस हत्यारे के शत्रु रहे हों,इसलिए हत्यारे ने उन्हें मार दिया हो",अचलराज बोला....
"हाँ! ये भी हो सकता है",व्योमकेश बोलें....
"मैं भीतर जाकर उन सभी को ये सूचना दे कर आता हूँ",अचलराज बोला....
"ना!पुत्र!उन सभी से कुछ ना कहना,वैसे भी ये इस राज्य के नहीं है एवं अभी हमारी शरण में हैं,ये सूचना सुनकर कहीं वें असुरक्षा का अनुभव ना करने लगें",व्योमकेश बोले...
"जी!पिताश्री!ये तो मैनें सोचा ही नहीं,कदाचित आप सत्य कह रहे हैं"
और इतना कहकर अचलराज घर के भीतर पहुँचा,उस समय तक कर्बला और कुबेर अभी भी सो रहे थे किन्तु दुर्गा बनी भैरवी जाग चुकी थी और यूँ ही आलस्य के कारण अभी तक बिछौने पर ही लेटी थी,उसने तभी अचलराज को भीतर आते देखा तो उससे पूछा....
"इतनी भोर हुए कहाँ चले गए थे अचल?"
"कुछ नहीं!यूँ ही निंद्रा पूर्ण हो गई तो बाहर चला गया था",अचलराज बोला...
"मैनें सोचा कदाचित उस रात्रि की भाँति तुम कहीं किसी की याद में सम्पूर्ण रात्रि जागते तो नहीं रहे",,दुर्गा बोली...
"नहीं!ऐसा नहीं है,बात तो कुछ और ही है",अचलराज बोला...
"क्या बात है कहो ना!"दुर्गा बोली...
"किन्तु!पिताश्री ने बताने से मना किया है",अचलराज बोला...
"तो मत बताओ",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"तुमसे नहीं कहूँगा तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा",अचलराज बोला...
"तो कह दो",दुर्गा बोली...
"किन्तु पिताश्री"!,अचलराज ने दुखी होकर कहा...
"तो मत कहो",दुर्गा बोली...
"किन्तु! तुम्हें बताएं बिना मन नहीं मानेगा",अचलराज बोला...
"तो बता दो",दुर्गा बोली....
"नहीं बता सकता"अचलराज बोला....
अचलराज के ऐसे व्यवहार पर दुर्गा बनी भैरवी क्रोध से ज्वालामुखी की भाँति फूट पड़ी और बोली....
"ये तुमने इतनी देर से क्या नाट्यलीला लगा रखी है,क्या मैं तुम्हें मैं मानसिक रुप से विक्षिप्त दिखाई पड़ती हूँ जो तुम इतनी देर से बता दूँ या ना बताऊँ का स्वाँग रचा रहे हो,तुम्हें स्वयं में कुछ सोचने समझने की शक्ति है भी या नहीं,अब तुमने और निर्रथक नाट्यलीला की ना तो मैं तुम्हारा मस्तक फोड़ दूँगी,",
"तुम तो क्रोधित हो उठी दुर्गा!मेरा ऐसा कोई उद्देश्य नहीं था,"अचलराज बोला...
"तुम्हारा उद्देश्य क्या था और क्या नहीं,ये मुझे नहीं जानना,किन्तु तुम मेरा रक्त चूसना बंद करो",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"मैं कोई पिशाच हूँ क्या?जो तुम्हारा रक्त चूसूँगा"अचलराज बोला....
"तुम मेरे समक्ष मत खड़े रहो ,चले जाओ यहाँ से",दुर्गा क्रोध से बोली....
"मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि अब तुम अपने नाम के अनुरूप बन गई हो,"अचलराज बोला....
"हाँ!मैं अब किसी का वध करके ही शान्त हूँगी",
और ऐसा कहकर दुर्गा ने एक ताम्रपात्र उठाकर अचलराज की ओर फेका,अचलराज वहाँ से हटा और वो उस ताम्रपात्र से बच गया ,अचलराज ने तब हँसते हुए दुर्गा से कहा....
"इतना क्रोध अच्छा नहीं दुर्गा!कल को अपने स्वामी के साथ भी ऐसा व्यवहार करोगी क्या?"
"नहीं!मैं विवाह ही नहीं करूँगीं और यदि तुम जैसा मेरा स्वामी हुआ तो कदापि नहीं करूँगी,दुर्गा बोली....
"जैसी तुम्हारी इच्छा,किन्तु क्रोध मत करो ,मैं समय आने पर तुम्हें उस बात से अवगत करवा दूँगा"अचलराज बोला...
"तो ये बात तुम पहले भी तो कह सकते थे",दुर्गा बोली....
"यदि मैं ऐसा पहले कह देता तो तुम्हारे इस रौद्र रूप से वंचित रह जाता ना!",अचलराज बोला....
"तुम्हें मेरे संग ऐसा व्यवहार करके अत्यधिक आनन्द आता है ना!,"दुर्गा बोली...
"और क्या?आनन्द ही आनन्द आता है"अचलराज बोला....
दोनों की लड़ाई सुनकर अब तक कर्बला और कुबेर भी जाग उठे तो कुबेर ने पूछा....
"क्या हुआ?तुम दोनों मेरी निंद्रा भंग करने पर क्यों तुले हुए हो?"
"कब तक सोओगे,देखो तो कब की भोर हो चुकी है",अचलराज बोला...
"वो सब तो ठीक है किन्तु तुम दोनों झगड़ क्यों रहे थे"?,कुबेर ने पूछा...
"ऐसे ही दुर्गा का मन हुआ कि वो अपने रौद्र रूप को धारण करे तो उसने रौद्र रूप धारण करके मेरे ऊपर आक्रमण किया किन्तु मैं बच गया",अचलराज बोला...
"झूठ मत बोलो,बात तुमने बढ़ाई थी",दुर्गा बोली...
"अच्छा!दुर्गा देवी! मुझे क्षमा करें एवं अब भोजन का प्रबन्ध कीजिए क्योंकि हम सभी को अश्वशाला जाना है वहाँ कार्य करने हेतु",अचलराज बोला...
"हाँ...हाँ....मुझे ज्ञात है कि मुझे भोजन का प्रबन्ध करना है,मुझे तुम ये मत ध्यान दिलाओ",दुर्गा बोला...
"मैनें सोचा कदाचित मेरा वध करते करते ये बात तुम भूल गई हो",अचलराज बोला....
"मुझसे बात मत करो",और ऐसा कहकर दुर्गा क्रोध से चली गई....
कुछ समय पश्चात सभी कार्य हेतु अश्वशाला पहुँचे एवं वहाँ जाकर सभी को ज्ञात हुआ कि रात्रि को नगर में किसी की हत्या हो गई और मृत शरीर का हृदय भी नहीं था,ऐसा प्रतीत होता था कि किसी ने रक्त चूस लिया है,ये सूचना सुनकर कुबेर और कर्बला के मुख पर शून्यता छा गई और एक क्षण को दोनों विकल हो उठे, तभी दुर्गा ने अश्वशाला के एक कर्मी से पूछा...
"कुछ ज्ञात हुआ कि ये किसने किया,"?
"नहीं!कुछ ज्ञात नहीं हुआ और दो दिन पहले भी ऐसी और एक घटना हो चुकी है",कर्मी बोला...
"किसी पर कोई संदेह तो होगा",दुर्गा ने पूछा...
"नहीं!किसी पर भी कोई संदेह नहीं है",कर्मी बोला...
"हो सकता है ये किसी वन्यजीव का कार्य हो",दुर्गा बोली...
"नहीं!ऐसा भी प्रतीत नहीं हो रहा था",कर्मी बोला...
"ये तो अद्भुत प्रहेलिका हो गई जिसे सुलझाना कठिन है",दुर्गा बोली...
"मुझे भी ऐसा ही प्रतीत होता है",कर्मी बोला....
तब अचलराज दुर्गा से बोला...
"यही बात थी जो मैं तुमसे कहना चाहता था"
"तो कही क्यों नहीं",दुर्गा बोली...
"पिताश्री नहीं चाहते थे कि तुम सभी को ये बात ज्ञात हो और तुम सब भयभीत हो जाओ",अचलराज बोला....
"वैसे बात तो भयभीत होने वाली ही है",दुर्गा बोली...
"इसलिए तो पिताश्री नहीं चाहते थे कि तुम सभी को ये बात ज्ञात हो",अचलराज बोला....
"हम भयभीत तो नहीं है किन्तु चिन्तित अवश्य हैं",कर्बला बोली...
"हाँ...चिन्ता के भाव तो तुम्हारे मुख पर ठीक प्रकार से दिख रहे हैं",अचलराज बोला....
अचलराज की बात सुनकर कर्बला कुछ विचलित सी हो गई....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....