कालवाची के मुँख के भावों को देखकर दुर्गा बनी भैरवी ने पूछा...
"क्या हुआ सखी! तुम इस समाचार को सुनकर भयभीत हो उठी क्या ?"
"नहीं!मैं भयभीत नहीं हूँ",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"किन्तु तुम्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तुम इस घटना से अत्यधिक चिन्तित हो उठी हो", दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"नहीं!सखी!मैं तो कुछ और ही सोचकर विकल हो उठी थी",कर्बला बनी कालवाची बोली....
"मुझे अपने हृदय की बात नहीं बताओगी,क्या मैं तुम्हारी कोई नहीं लगती?",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
तब बात को सम्भालते हुए कौत्रेय बना कुबेर बोला....
" वस्तुतः बात ये है दुर्गा! कि वर्षों पूर्व हमारे माता-पिता की हत्या भी इसी प्रकार हुई थीं,उस समय हम दोनों ने उनके मृत शरीर देखें थे इसलिए उस क्षण को हम कभी अपने मस्तिष्क से विस्मृत नहीं कर पाए,मुझे ऐसा प्रतीत होता है कदाचित कर्बला को वो क्षण स्मरण हो आया होगा ,तभी वो इतनी विचलित सी हो गई है",कुबेर बने कौत्रेय ने झूठ बोलते हुए कहा...
"ओह...तो ये बात है,मुझे ज्ञात नहीं था सखी कर्बला! कि तुम्हारे मन में ऐसी पीड़ा छुपी है,ऐसे क्षण को विस्मृत करना तो किसी वीर योद्धा के भी वश की बात नहीं और तुम तो एक स्त्री हो,स्त्रियांँ तो वैसे भी भावुक होतीं हैं,उनके लिए दुःख के किसी भी समय को भूल पाना बड़ा ही कठिन होता है और यदि माता पिता की मृत्यु का क्षण हो तो वो दुःख तो सदैव के लिए हृदय में समा जाता है",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"मुझे ये जानकर अच्छा लगा कि तुम मेरे भावों को समझकर ,मुझसे सहानुभूति दिखा रही हो",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"मैं तुम्हारे मन के भावों को भलीभाँति समझ सकती हूँ सखी!क्योंकि मैनें भी अपने पिता को खोया है",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"अच्छा!अब तुम दोनों अपने दुःख के क्षणों को मत याद करो,नहीं तो और अधिक पीड़ा होगी",अचलराज बोला....
"हाँ!कदाचित!तुम सत्य कहते हो"कर्बला बनी कालवाची बोली....
"किन्तु वो हत्यारा है कौन जो इस प्रकार लोगों की हत्या कर रहा है"?अचलराज बोला....
"बात तो चिन्ताजनक है",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"किन्तु!हम कुछ कर भी तो नहीं सकते,यदि कुछ करने का प्रयास किया भी तो पिताश्री को आपत्ति होगी",अचलराज बोला....
और इसी प्रकार सबके मध्य वार्तालाप चलता रहा,सायंकाल होने पर सभी अश्वशाला से घर पहुँचे तो तब भी इसी विषय पर वार्तालाप होता रहा,भोजन करने के पश्चात व्योमकेश जी बोलें....
"अब जब तुम सभी को इस घटना के विषय में ज्ञात हो ही चुका है तो सभी ध्यानपूर्वक सुन लो,दिया बुझने के पश्चात कोई भी घर के बाहर पग नहीं रखेगा,क्योंकि कब ,कहाँ,किस पर संकट आ जाए,ये कहा नहीं जा सकता,कोई भी भोर होने तक घर के बाहर नहीं जाएगा,मैं इस घर में तुम सभी से आयु में सबसे बड़ा हूँ तो मेरी बात मानना तुम सभी का कर्तव्य होना चाहिए"
"जी!मैं आपसे पूर्णतः सहमत हूँ",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"और मैं भी",अचलराज बोला....
"और हम दोनों भी",कौत्रेय बना कुबेर बोला...
"तुमने बिलम्ब से उत्तर क्यों दिया"?दुर्गा बनी भैरवी ने पूछा....
"मैं मंदबुद्धि हूँ ना!तो मेरा मस्तिष्क बिलम्ब से कार्य करता है",कौत्रेय बना कुबेर बोला....
और सभी कुबेर की बात सुनकर हँस पड़े ,अन्ततः सभी ने भोजन किया और कुछ समय तक वार्तालाप करने के पश्चात सभी अपने अपने बिछौनों पर जाकर लेट गए,सभी तो सो गए किन्तु कालवाची को चिन्ता के कारण निंद्रा नहीं आ रही थी,वो सोच रही थी कि अब उसके लिए अपना भोजन प्राप्त करना कठिन हो जाएगा,यदि उसे किसी ने किसी की हत्या करते देख लिया तो पुनः उसका वही परिणाम ना हो जो परिणाम वैतालिक राज्य में हुआ था,उस समय तो कौत्रेय ने उसकी सहायता करके उसे विशाल वृक्ष के तने से मुक्त करवा दिया,किन्तु यदि वो इस नगर में किसी की हत्या करते पकड़ी गई तो तब उसका क्या होगा?और यही दशा कौत्रेय की भी थी वो भी यही सोच रहा था कि यदि कालवाची को उसका भोजन ना मिला तो वो तो शरीर से क्षीण एवं वृद्ध होती चली जाएगी,उस समय तो मैनें उसे मुक्त करवा लिया था किन्तु यदि इस बार मैं भी कालवाची के संग पकड़ा गया तो तब क्या होगा?यही सोचते सोचते कौत्रेय को कब निंद्रा आ गई उसे पता ही नहीं चला...
प्रातःकाल हुई और सभी जागे,किन्तु आज प्रतिदिन की भाँति कुबेर और कर्बला प्रसन्न नहीं थे,रात्रि भर चिन्ता के कारण दोनों सो नहीं सके थे,सबसे अधिक चिन्ता कर्बला को अपने भोजन की थी क्योंकि यदि उसे समय पर उसका भोजन ना मिला तो उसकी त्वचा शुष्क होती चली जाएगी,उसके केश श्वेत होते चले जाऐगें और यदि ऐसा हुआ तो सबके समक्ष उसका भेद खुल जाएगा और यदि उसका भेद खुल गया तो ना जाने उसे कौन सा दण्ड मिले?
इसी प्रकार दो दिन और बीत गए किन्तु कालवाची को उसका भोजन नहीं मिला,वो अब चिन्तित हो उठी थी ऐसे ही एक रात्रि जब सब भोजन के प्रबन्ध में लगे थे तो उसके शरीर में एकाएक परिवर्तन होने लगें,अभी केवल उसके केश ही श्वेत हुए थे ,अभी उसका शरीर क्षीण होना प्रारम्भ नहीं हुआ था,किसी को कुछ ज्ञात ना हो इसलिए वो सबसे पहले आकर अपने बिछौने पर दुशाला ओढ़कर लेट गई और उसने कौत्रेय को अपनी दशा के विषय में संकेत कर दिया कि कोई कुछ पूछे तो तुम सम्भाल लेना,इसलिए सबके पूछने पर कौत्रेय ने सबसे कह दिया कि आज वो अत्यधिक थक गई है इसलिए सबसे पहले विश्राम करने हेतु चली गई,जब सभी सो गए तो कालवाची धीरे से अपने बिछौने से उठी और एक नन्हीं सी चिड़िया बनके वातायन से बाहर निकल गई,इसके पश्चात उसने अपना बीभत्स रूप लिया और काली अँधियारी रात में आसमान में उड़ गई,इसके पश्चात उसने अपने लिए भोजन खोजना प्रारम्भ कर दिया,
किन्तु अत्यधिक खोजने पर उसे उसका भोजन प्राप्त ना हो सका,क्योंकि नगरवासी नगर में हत्याएंँ होने के कारण अत्यधिक भयभीत थे इसलिए उस रात्रि कोई भी घर से बाहर ना निकला था इस कारण कालवाची को अपना भोजन प्राप्त ना हो सका था,कालवाची को अपना भोजन खोजते खोजते अब प्रातःकाल हो चुकी थी,किन्तु उसे अभी तक भोजन प्राप्त ना हुआ था,वो अब ऐसी दशा में घर भी नहीं लौटना चाहती थी ,इसलिए वो नगर से दूर एक पर्वत की कन्दरा में जाकर छुप गई,उसने सोचा जब उसे भोजन प्राप्त हो जाएगा तो उसकी दशा सुधर जाएगी ,तब वो सबके पास घर लौट जाएगी और इधर जब कर्बला को किसी ने घर में ना पाया तो सभी चिन्तित हो उठे और उसकी खोज प्रारम्भ कर दी,अब तो कौत्रेय भी चिन्तित था क्योंकि उसे भी कालवाची के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं था, अचलराज ने सम्पूर्ण नगर खोज लिया किन्तु उसे कर्बला नहीं मिली,इधर दुर्गा भी चिन्तित थी और वो भी उसे सभी स्थानों में खोज रही थी,व्योमकेश जी तो अत्यधिक चिन्तित थे क्योंकि उन्हें ऐसा प्रतीत होता था कि कहीं उस हत्यारे ने तो नहीं कर्बला को कुछ कर दिया हो,अश्वशाला तक ये सूचना पहुँची तो वहाँ के लोंग भी उसे खोजने लगे, सभी ने अत्यधिक खोजा किन्तु कर्बला उन्हें नहीं मिली.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....