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हम कमरे के बाहर निकल चुके थे | वैसे घर से निकले हुए मुझे दो घंटे तो हो ही गए होंगे लेकिन अभी तक उसका कोई ऐसा प्रभाव मुझ पर नहीं पड़ सका था कि मैं उसकी ओर आकर्षित होती | वैसे उसके व्यक्तित्व से तो मैं पहले से ही प्रभावित थी | धीरे-धीरे मुझे पता लगने लगा था कि इस बंदे का ‘लिविंग स्टाइल’ ज़रा ज़्यादा ही मॉर्डन है | हमारे घर के डिनर से शायद उसने अंदाज़ा लगाया था कि हम बड़े हाई-फ़ाई लोग हैं लेकिन वह यह नहीं समझ पाया था कि हम काफ़ी समृद्ध व मॉर्डन होते हुए भी जमीन से जुड़े लोग हैं |
श्रेष्ठ का मूड खराब हो चुका था लेकिन वह मुझसे कुछ नहीं कह सकता था | वह-आगे आगे चलता हुआ बड़े से शाही डाइनिंग-हॉल की ओर चल रहा था | इस बार उसने मेरा हाथ भी नहीं पकड़ा | मैं उसके पीछे चलती रही और कुछ देर में हम डाइनिंग-हॉल के दरवाज़े पर थे जहाँ गार्ड ने झुककर उसको सलाम ठोका और दरवाज़ा खोल दिया |
अब श्रेष्ठ ने मुझे मुड़कर देखा और हाथ से आगे आने का इशारा किया | मैं बढ़ गई, उसने मेरे पीछे से वहाँ प्रवेश किया | ऐसा लगता था मानो सारा स्टाफ़ ही उससे परिचित हो |
‘यह मुझ पर रौब मारने के लिए मुझे यहाँ लेकर आया है क्या?’न जाने कितनी बार मेरे मन ने मुझसे ही यह प्रश्न किया | डाइनिंग में काफ़ी दूरी पर कई प्राइवेट केबिन्स बने हुए थे जिनमें से एक कोने के केबिन में वहाँ का आदमी हमें ले गया और केबिन के बाहर खड़ा होकर खाने का ‘ऑर्डर’ लेने के लिए शालीनता से खड़ा था |
अब हम आमने सामने थे और श्रेष्ठ मुझसे बात करने में कुछ हिचक सा रहा था | खाने का ऑर्डर लेने के लिए बंदा प्रतीक्षा कर रहा था और मुझमें बुरी तरह बेचैनी भर गई थी | जल्दी खाएँ और निकलें यहाँ से | न जाने क्यों मुझे ऐसा क्यों महसूस हो रहा था कि वहाँ की सारी आँखें मुझे घूर रही थीं | भूख के मारे हालत खराब हो रही थी | मैंने ब्रोकले ऑलमंड सूप का ऑर्डर दे दिया |
“सेम फ़ॉर यू सर ?” लड़के ने शालीनता से पूछा |
“व्हाट---?” श्रेष्ठ ने चौंककर पूछा |
“मैंने सूप मँगवाया है, आप भी लेंगे ?” मैं उसे उस स्थिति से निकालना चाहती थी जिसमें वह असमंजस में पड़ गया था |
“ओह!यस---विल डू----”उसने बेमन से कहा शायद उसे पता भी नहीं था कि मैंने किस सूप का ऑर्डर दिया था |
मुझे लगा था शायद वह ड्रिंक के बाद सूप न लेना चाहे किन्तु उसने खाने में कुछ रुचि नहीं दिखाई जैसे उसकी भूख उड़ ही गई हो, वैसे भी उसके पेट में कई पैग उतर चुके थे, नहीं होगा खाने का मन | मेरे पेट में तो भयंकर उपद्रव मचा हुआ था | न खाए, मुझे तो खाना था—
सूप आने पर वह थोड़ा सा नॉर्मल लगा और बिना कुछ कहे गर्म सूप पीने लगा | उसका उत्साह फीका पड़ गया था और चेहरे का रंग बदलने लगा था | मैंने उसकी ओर कुछ अधिक ध्यान नहीं दिया और मेनू अपनी ओर सरका लिया जिससे जब तक सूप आ जाए, मेरा ऑर्डर भी आ जाए |
“क्या लोगी ?”उसने नॉर्मल होने की कोशिश की |
“मैं बेक डिश ऑर्डर कर रही हूँ, आप ?”
“और---?” उसने पूछा |
“डोन्ट लाइक सिज़लर्स---?”उसकी आवाज़ ऐसी लग रही थी मानो गले में कुछ फँस गया हो |
“ओ के --” मैंने उसका मन रखने के लिए कह दिया |
सूप खत्म हुआ ही था कि गर्मागर्म बेकडिश सामने थी | लड़के ने दो प्लेटस में सर्व कर दिया था और मैंने ऐसे झपटकर फ़ोक और नाइफ़ उठाया जैसे कहीं मेरे सामने से कोई प्लेट उठा ले जाएगा | मैंने खाना शुरू कर दिया था, वैसे भी मेरी फ़ेवरेट डिश थी, सिज़लर्स तो मैंने उसका मन रखने के लिए कह दिया था |
“अमी !हम कहाँ खड़े हैं?क्या हम किसी डिसीजन पर पहुँच सकेंगे–?”उसने फ़ोक से छोटा सा बाइट लिया | मैं अब तक खाने में मशगूल हो चुकी थी | दरअसल सोच रही थी कि क्या कह सकूँगी मैं इससे?ऐसे डिसीजन कैसे ले सकती हूँ !
वह फिर अपने सिंगापुर की बात पर आ गया कि वहाँ एक मॉल बनाना चाहता है और उसमें जितने आधुनिक साधन, संसाधन हैं उन्हें उस मॉल का हिस्सा बनाना चाहता है | उसने बताया कि वह उसका ड्रीम-प्रोजेक्ट था | वैसे वह कई बार अलग-अलग ढंग से इसी बात की चर्चा कभी अम्मा-पापा के सामने, कभी उत्पल और मेरे सामने कर चुका था | यह भी पूछ चुका था कि मैं उसके साथ सिंगापुर चल सकूँगी न?अब बार-बार ये सब बातें मुझे बोर कर रही थीं और मैं उसके चरित्र का मूल्यांकन करते हुए खाने में व्यस्त थी | उसका हाथ बहुत धीरे –धीरे चल रहा था और शायद दिमाग तेज़ !
धुआँ उड़ाता सिज़लर्स आ चुका था, लड़के ने हमारे सामने से पहली प्लेटस उठाकर फ़्रेश प्लेटस लगा दीं थीं और सर्व करके चल गया था |
“तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया---?”श्रेष्ठ ने अपनी प्लेट पास में सरकाई |
“अभी मैं कुछ सोच नहीं प रही हूँ, प्लीज़ गिव सम टाइम—” मैंने एक बाइट लेकर कहा |
“आर यू सो शाई?”उसने मेरे मुँह में जैसे ऊँगली देकर मुझसे कुछ उगलवाने की कोशिश की |
अब उसकी इस बात का जवाब मैं क्या दे सकती थी?मेरे चेहरे पर साफ़ कुछ तो झलक रहा होगा |
“मिन्स---हम कोर्टशिप पर हैं---तुमने----” वह अटक गया | मैं जानती थी वह क्या कहना चाहता था | यही कि मैंने उसे को-ऑपरेट नहीं किया | मैं चुपचाप खाती रही और वह हाथ में छुरी पकड़े मेरे चेहरे पर अपनी दृष्टि फिसलाता रहा | हम दोनों की आँखें नहीं मिलीं और खान खत्म हो गया | उसका उत्साह ठंडा पड़ चुका था |
हम सामने आए गुनगुने पानी में अपनी उँगलियाँ डुबोकर बैठे रहे लेकिन कितनी देर तक यह स्थिति रहने वाली थी | आखिर हमें उठना तो था ही |
बिना कुछ बोले हम बाहर आ चुके थे, गाड़ी आ रही थी | पहले मुझे थोड़ा डर स था कि उसने कई पैग लिए थे, वह ड्राइव कर पाएगा या नहीं?लेकिन अब वह बिलकुल नॉर्मल था, उस पर कोई नशा या खुमारी नहीं थी, एक उदासी की परत उसके चेहरे पर चिपक गई थी जैसे ---