कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३०) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(३०)

कौत्रेय के कहने पर कालवाची ने अचलराज पर ध्यान देना प्रारम्भ किया तो कर्बला बनी कालवाची ने पाया कि अचलराज अत्यधिक सुन्दर है एवं उसका हृदय भी करूणा से भरा था,उसकी मृदु वाणी एवं सौम्य व्यवहार ने अश्वशाला के सभी जनों को अपनी ओर आकर्षित कर रखा था,कालवाची ने ये भी देखा कि अचलराज वीर एवं साहसी भी है,वें सभी गुण अचलराज में उपस्थित थे जो उसने कभी महाराज कुशाग्रसेन में देखे थे,किन्तु कालवाची किसी से प्रेम करके पुनः वही भूल नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने इस विचार को मन से त्याग दिया,
कुछ दिवस यूँ ही बीते कि एक रात्रि अचलराज के घर में रात्रि का भोजन करके सभी वार्तालाप कर रहे थे,उस समय सेनापति व्योमकेश सो चुके थे,तभी बातों बातों में कुबेर बना कौत्रेय अचलराज से बोला....
"अचलराज!मैनें सुना है कि तुम्हारे पिताश्री चाहते हैं कि तुम विवाह कर लो"
"किन्तु!मित्र!कोई योग्य कन्या तो मिले,तभी तो विवाह करूँ",अचलराज बोला...
तब कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"मित्र!तुम्हें भला कन्याओं की क्या कमी?तुम इतने बलिष्ठ एवं सुन्दर हो कि कोई भी कन्या तुम पर अपना हृदय हार सकती है",
"मित्र!परिहास मत करो",अचलराज बोला...
"मित्र !ये परिहास नहीं है,सच सच बताओ कोई तो कभी पसंद आई होगी, जिसने कदाचित तुम्हारी रात्रियों की निंद्रा को भंग कर दिया हो, जिसे देखकर तुम्हारे हदय से मधुर संगीत फूट पड़ा हो,जिसे देखकर तुम सुन्दर सुन्दर स्वप्न सजाने लगे हो,जिसे देखकर ये प्रतीत हुआ हो कि यदि ये मेरे जीवन में प्रवेश कर जाएं तो मेरा जीवन की सभी अभिलाषाएं पूर्ण हो जाएं,",कौत्रेय ने पूछा....
तब कुबेर बने कौत्रेय की बात सुनकर अचलराज पहले तो हँसा ,इसके पश्चात बोला....
"अभी तो ऐसी कोई सुन्दरी नहीं आई है मेरे जीवन में,परन्तु हो सकता है कि भविष्य में आ जाएं"
"इसका तात्पर्य है कि वो तुम्हारे समीप तो है,बस उसका तुम्हारे जीवन में प्रवेश करना ही शेष रह गया है",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"मैं ये विश्वास के साथ नहीं कह सकता कि वो मेरे समीप है या नहीं,किन्तु मैं उसके समीप अवश्य हूँ",अचलराज बोला...
ये बात अचलराज ने भैरवी के लिए कही थी ,क्योंकि भैरवी उसके समीप नहीं थी किन्तु वो कभी भी भैरवी को अपने हृदय और मस्तिष्क से विस्मृत नहीं कर पाया था,इसलिए वो सदैव स्वयं को भैरवी के समीप पाता था और अब कुबेर बने कौत्रेय को अच्छा अवसर मिल गया था इस बात को कालवाची से दूसरे अर्थ में समझाने का,उस समय कालवाची और भैरवी भी वहीं उपस्थित थे और दोनों ही अचलराज की बात पर मंद मंद मुस्कुरा दी,कालवाची ने समझा कि अचलराज उसके विषय में कह रहा है और भैरवी समझी कि अचलराज उसके विषय में कह रहा है,परन्तु दोनों ही अपने अपने स्थान पर ठीक थीं,कालवाची के मन में कौत्रेय ने अचलराज के प्रति प्रेम का बीज बो दिया था और भैरवी तो जानती ही थी कि अचलराज उसके विषय में ही बात कर रहा है,क्योंकि वो दुर्गा नहीं भैरवी थी,यदि वो अचलराज को ये बता दें कि वो ही भैरवी है तो अचलराज उसे सहर्ष स्वीकार करके अपने जीवन में स्थान दे देगा,किन्तु ये सच्चाई बताने के लिए दुर्गा अभी विवश थी...
"ओह...तो तुमने कन्या देख रखी है",कौत्रेय ने अचलराज से पूछा...
"ऐसा कुछ भी नहीं है",अचलराज बोला...
"छुपा लो हम सभी से मन की बात,किन्तु याद रखना ये बात हम सभी से ज्यादा दिनों तक छुपा नहीं पाओगे",कौत्रेय बोला...
"चलो!अच्छा अब विश्राम करते हैं,अत्यधिक रात्रि बीत चुकी है",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"हाँ!कर्बला!विश्राम करते हैं,नहीं तो ये कुबेर यूँ ही कोई ना कोई प्रश्न पूछता ही रहेगा",अचलराज बोला...
"कितना आनन्द आ रहा था अचलराज को सताते हुए,किन्तु तुम और तुम्हारे विश्राम ने वार्तालाप में अवरोध डाल दिया",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"तुम तो यूँ ही रात्रिभर निर्रथक वार्तालाप करते रहोगे,तुम्हारे कारण क्या हम सभी विश्राम करना छोड़ दें,तुम तो वहाँ अश्वशाला में कोई परिश्रम करते नहीं हो,सारे कार्य तो हम सभी करते हैं इसलिए तुम्हें तो विश्राम करने की आवश्यकता नहीं पड़ती ,किन्तु हम तो अश्वशाला में कार्य भी करते हैं और परिश्रम भी करते हैं,इसलिए दया करके हम सभी को विश्राम करने दो",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"देखो दुर्गा !मुझ पर निर्रथक दोषारोपण मत करो,मैं भी वहाँ उतना ही परिश्रम करता हूँ जितना कि तुम सभी करते हो",कुबेर बना कौत्रेय क्रोधित होकर बोला....
"अब देखा ना! जब स्वयं पर परिहास होता है तो कैसा लगता है",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"मुझे ऐसा परिहास पसंद नहीं है",कुबेर बना कौत्रेय बोला....
"और जो तुम इतने समय से मुझसे परिहास कर रहे थे,उसका क्या?",अचलराज ने पूछा...
"वो तो मैं तुम्हारे मन की बातें ज्ञात करना चाहता था",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"अब तुम्हारा वार्तालाप समाप्त हो गया हो तो तनिक विश्राम भी कर लें",अचलराज बोला...
"मैनें तो किसी के विश्राम पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया",कुबेर बना कौत्रेय बोला....
"अब सभी कोलाहल मचाना बंद करो,कहीं काकाश्री ना जाग जाएं",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"मैं तो कुछ कह ही नहीं रहा,ये सब कोलाहल तो कुबेर ने मचा रखा है",अचलराज बोला....
"तो तुम ही शान्त क्यों नहीं हो जातें,तुम्हारे शान्त होने पर कुबेर स्वतः शान्त हो जाएगा",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"ये भला मेरे शान्त होने से शान्त होगा,स्वर्ग से देवता भी उतर आऐगें ना ! तो भी कुबेर को शान्त नहीं करवा पाऐगें",अचलराज बोला....
"मैं अब इतना भी वाचाल प्रवृत्ति का नहीं हूँ,जितना कि तुम कह रहे हो",कुबेर बोला....
"अब तुम दोनों शान्त हो जाओ, नहीं तो मैं काकाश्री को जगा दूँगीं",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"नहीं...नहीं...हम विश्राम कर रहे हैंं,पिताश्री को मत जगाना,"अचलराज बोला...
"तो दोनों शान्त होकर अपने अपने बिछौनों पर लेट जाओ",कर्बला बनी कालवाची बोली...
और इस वार्तालाप के पश्चात सभी अपने अपने बिछौनों पर विश्राम करने लगे,अर्द्धरात्रि बीत जाने के पश्चात कालवाची जागी,जब उसने सभी को निश्चिन्त होकर सोते पाया तो स्वयं का रूप बदलकर एक नन्हीं सी चिड़िया बन गई एवं कक्ष के वातायन से सरलता से बाहर निकल गई,इसके पश्चात बाहर आकर उसने अपना बीभत्स रूप धरा और वायु में तीव्र वेग से उड़ गई ,स्वयं के लिए भोजन की खोज में,अन्ततः सभी के जागने के पहले वो अपना भोजन ग्रहण करके वापस भी आ चुकी थी और शान्ति से आकर अपने बिछौने पर विश्राम करने लगी.....
भोर हो चुकी थी,वृक्षों पर खगों का कलरव मचा हुआ था और सूरज ने अभी चहूँ ओर अपनी लालिमा बिखेरनी प्रारम्भ नहीं की थी,सर्वप्रथम व्योमकेश जी जागें और घर के बाहर आकर वायु खाने निकल आएं, संग में प्रातःकाल के मनोरम दृश्य का आनन्द भी उठा रहे थें,इस वातावरण में उनके मन को बड़ी ही शान्ति का अनुभव हो रहा था,उन्होंने मन में सोचा क्यों ना आज सरिता में स्नान करके आऊँ ,यही सोचकर उन्होंने भीतर जाकर अपने वस्त्र उठाए और जैसे ही सरिता की ओर जाने को हुए तो उन्हें एकाएक लोगों का कोलाहल सुनाई दिया,उन्होंने मन में सोचा कुछ तो हुआ है नगर में, जो इतना कोलाहल मचा है,इसलिए अब उन्होंने सरिता जाने का विचार त्याग दिया और भीतर जाकर अचलराज को जगाकर कहा....
"पुत्र!अचल!जागो तो,तनिक बाहर जाकर देखो कि नगर में कैसा कोलाहल मचा है,ना जाने क्या बात है?
अपने पिता के पुकारने पर अचलराज जागा और अपने पिता से पूछा...
जी!पिताश्री!क्या हुआ?आप इतने चिन्तित क्यों हैं?

क्रमशः....
सरोज वर्मा....