बागेश्वर धाम की दिव्य शक्तियों का रहस्य - 5 Mohit Rajak द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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बागेश्वर धाम की दिव्य शक्तियों का रहस्य - 5

अध्याय - 7

 

चमत्कार के पीछे विज्ञान या भगवान 

 

तो दोस्तों हम जानते है की आखिर चमत्कार कैसे होते है , क्या इनके पीछे कोई विज्ञान है या फिर भगवान की कृपा ?

चमत्कार एक अद्भुत या अनोखी घटना होती है जिसे हम वैज्ञानिक या लौकिक तरीके से समझाने में समस्या हो सकती है। हम चमत्कार को अक्सर ऐसी घटनाओं से जोड़ते हैं जिनका कारण या व्याख्यान हमारे विज्ञानिक ज्ञान से परे हो सकता है।

हालांकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, चमत्कारों के पीछे अक्सर कोई वैज्ञानिक कारण होता है जिसे हम अभी तक समझने में सक्षम नहीं हैं। जब हम एक घटना को विज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने में असमर्थ होते हैं, तो हम उसे चमत्कार के रूप में लेबल करते हैं। यह आमतौर पर विज्ञान के अवशेषानुसार होने वाली घटनाओं को आधार बनाकर सिद्धांतों के संग्रह के प्रतिफल के रूप में दिया जा सकता है।

मनुष्य देखने में एक साधारण प्राणी प्रतीत होता है। उसका काय- कलेवर बन्दर से मिलता जुलता है। बोलने, सोचने और खोजने की विशेषताओं ने ही उसे प्रगति के उस स्तर तक पहुँचाया है, जिस पर कि आज वह है ।

देखने में इन साधारण विशेषताओं से युक्त असंख्य मानव प्राणी पाये जाते हैं। वे अपनी विकसित शरीर संरचना और मानसिक विकास की असीम संभावनाओं के कारण अपनी विभिन्न विलक्षणताओं के प्रमाण प्रस्तुत करते रहते हैं।

किन्तु गहराई से खोजा जाय तो प्रतीत होता है कि उनकी विदित क्षमताओं की तुलना में अविज्ञात सामर्थ्यां भंडार और भी बड़ा है। सूक्ष्म शरीर की अलौकिकता को प्रत्यक्ष न होने के कारण झुठलाया भी जा सकता है। पर प्रत्यक्ष शरीर का विश्लेषण तो ऐसा है जिसे देखते हुए उसकी रहस्यमय संरचना से इनकार नहीं किया जा सकता।

  

अरबों, खरबों की संख्या में ज्ञानतन्तु शरीर के प्रत्येक क्षेत्र में, विशेषतया मस्तिष्क में भरे पड़े हैं। इनमें जो विद्युत प्रवाह बहता है, उसकी प्रत्यक्ष प्रतीति इसलिए नहीं हो पाती कि वह विकेन्द्रित रहता है। यदि उसे समेटकर एक केन्द्र पर केन्द्रीभूत किया जा सके तो उससे इतनी विजली बन सकती है जिससे एक बड़ा मिल चलाया जा सके। मस्तिष्कीय चिन्तन के आधार पर अनेक योजनायें बनतीं और कार्यान्वित होती हैं, तो भी प्रबुद्धों में पाई जाने वाली शक्ति समस्त क्षमता का एक बहुत छोटा अंश होती है। यदि उस सब को एकत्रित किया जा सके तो उससे कोई व्यक्ति देव दानव स्तर का बन सकता है। अपने शरीर की अपने संसार की और समस्त ब्रह्माण्ड की स्थिति के सम्बन्ध में ऐसी जानकारियाँ प्राप्त कर सकता है जिन्हें अलौकिक एवं अद्भुत कहा जा सके। ऋद्धि-सिद्धियों का वर्णन कपोल कल्पना नहीं है। उन्हें किसी अन्य का दिया हुआ अनुदान - वरदान भी नहीं कहा जा सकता। वे भीतर से ही उगती और प्रस्फुटित होती हैं। इसके लिए मूलभूत सामग्री उसे जन्मजात रूप में  उपलब्ध है। प्रश्न केवल उन्हें जागृत करने भर का है। यह जागरण साधनाओं द्वार संभव हो सकताहै।

स्थूल शरीर की क्षमतायें प्रत्यक्ष हैं। उन्हें खेल प्रतियोगिताओं में, सर्कस में बढ़े - चढ़े रूप में देखा ज सकता है। पर सूक्ष्म शरीर की सामर्थ्य के बारे में उतर्न सघन घटनायें प्रत्यक्ष देखने में नहीं आतीं । वे चिरस्थार्य नहीं होतीं जिससे उनके अस्तित्व एवं प्रभाव का पर्यवेक्षण गंभीरतापूर्वक किया जा सके।

तिब्बत में सूक्ष्म शरीर को मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिकायें निभा सकने सम्बन्धी काफी प्रयत्न हुए हैं इनका वर्णन 'टिबेटन बुक ऑफ दी डेड' एवं 'सीक्रेट योग्‍ ऑफ टिबेट' पुस्तक में विस्तारपूर्वक दिया गया है। एव रूसी ग्रन्थ "हार्ट ऑफ एशिया" में तिब्बत तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में विद्यमान सूक्ष्म शरीरधारी शक्तियों के क्रिया-कलापों का महत्वपूर्ण विवरण है।

दृश्यमान स्थूल शरीर के आगे की सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर की शक्तियों एवं विभूतियों का वर्णन "र्द प्रोजेक्शन ऑफ दी ऐस्ट्रल बाडी" में इस प्रकार किया गय है कि वैज्ञानिक एवं प्रत्यक्षवादी लोग भी इनके सम्बन्ध में सारगर्भित जानकारी प्राप्त कर सकें। इस संदर्भ मे विधिवत् शोध कार्य फ्लोरिडा की "वर्ल्ड पैरासाइका लिजिकल रिसर्च फाउन्डेशन" कर रही है

 

 

“मनोहि जगतां कर्तृमनोहि पुरुषः स्मृतः ।”

 

 

साधारण लोग शरीर की शक्ति को ही सर्वोपरि मानते हैं उनकी समझ में जो आदमी जितना हट्टा कट्टा पोस्ट और मजबूत शरीर वाला होता है वह उतना ही शक्तिशाली होता है जो मनुष्य 40-50 किलो भजन आसानी से एक जगह से उठाकर दूसरी जगह रख सकता है जो मोटरसाइकिल को पकड़कर रोक सकता है लोहे की मोटी क्षण को मोड़ सकता है उसे बहुत बलवान माना जाता है किंतु एक ऐसा मनुष्य जो 20 किलो वजन भी नहीं उठा सकता वह ऐसे शक्तिशाली व्यक्ति को ललकार देता है और उसे अपनी इच्छा के अनुसार चलने को मजबूर कर देता है जो 60 से 80 किलो वजन सकने  और शरीर में पहलवान व्यक्ति को भी अपनी इच्छा के अनुसार चलने को मजबूर कर  देता   है तब हमको अनुभव होता है की संसार में शारीरिक शक्ति से बढ़कर कोई अन्य शक्ति काम कर रही है और वही वास्तव में  समस्त कार्यों का मूल कारण है।

विचार किया जाए तो संसार का आदि स्वरूप सूक्ष्म ही है और उसी के क्रम से स्थूल का विकास हुआ है इस प्रकार हम सूक्ष्म को स्थूल (जो भौतिक रूप से दिखाई देता है) का कारण कह सकते हैं और कारण को जान लेने तथा इसका अनुभव कर लेने पर कार्य को सफल बना सकना कुछ भी कठिन नहीं रहता।

 

 

 

एक समय था जब मनुष्य केवल अपने हाथ पैरों या हाथी घोड़े बैल की शक्ति को ही प्रधान मानता था और उसी से बड़े-बड़े कार्य सिद्ध करता था उस समय अगर कोई शो 200 किलो की वस्तु अपने स्थान से हटाने पड़ती तो 100 आदमी लग जाते एवं अनेक हाथी बैलों को एक साथ लगाकर इस कार्य को पूरा कराया जाता था पर कुछ समय बाद जब मनुष्य को भाप ( स्टीम)  जैसी सूचना वस्तु का ज्ञान हुआ तो उसकी सहायता से अकेला मनुष्य ही हजार हजार टन वजन की वस्तुओं को हटाने में समर्थ हो गया । इससे आगे चलकर मनुष्य को बिजली की शक्ति का ज्ञान हुआ जो भाग की शक्ति से भी सूचना थी इससे मनुष्य को ऐसी शक्ति प्राप्त हुई कि वह सैकड़ों किलोमीटर दूर बैठकर ऐसे ऐसे कार्यों को पूरा करने लगा जैसे पहले हजार आदमी भी कठिनाई से कर सकते थे अब वर्तमान में मनुष्य परमाण्विक शक्ति को उपयोग कर रहा है जो बिजली से भी अत्यंत सूचना है इसकी सहायता से आशा की जा रही है कि बड़े-बड़े पर्वतों और सागरों की भी कायापलट कर सकेगा और आकाश में स्थित ग्रहों पर भी अधिकार कर सकेगा।

  

इतना होने पर भी यह सब भौतिक शक्तियां है इनका उद्गम तो भौतिक पदार्थों से होता है और उनका प्रभाव भी भौतिक जगत तक ही सीमित रहता है हमारा मन इन भौतिक पदार्थों की अपेक्षा कहीं अधिक सूक्ष्म है, इसलिए स्वभाव बस वह इन सब की अपेक्षा अधिक शक्ति का भंडार है यह सच है कि लोगों को ना तो मन की शक्ति का ज्ञान है और ना ही बे उस से काम लेने की विधि जानते हैं पर यदि हम इस विषय पर बात करें तुम मन की शक्ति से ऐसे ऐसे कार्य किए जा सकते हैं जो मनुष्य की भौतिक शक्तियों से असंभव है आजकल लोग जो हिप्नोटिज्म मेसमेरिज्म विचार संक्रमण थॉट ट्रांसफरेंस आदि के चमत्कार दिखाते हैं उनकी शक्तियों के साधारण कार्य हैं पर इन्हीं के द्वारा कैसे-कैसे असंभव जानी वाली बातें कर दिखाई जाती है जिसका वर्णन स्वामी विवेकानंद ने अपनी पुस्तक राजयोग में किया है

 

 

मनुष्य इस प्रकार मन की शक्तियों को कहां तक पढ़ा सकता है इसका कोई अंतर नहीं है इस प्रकार जब हम अपने मन की बड़ी शक्तियों को किसी एक विषय पर लगा देते हैं तो उसमें आश्चर्यजनक उन्नति प्राप्त की जा सकती है भारतवर्ष के ऋषि महा ऋषि यों ने बिना कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की शिक्षा प्राप्त किए हुए जो अद्भुत आविष्कार किए थे और वैज्ञानिक सिद्धांतों को खोजा था उसका मूल्य इसी प्रकार की मानसिक शक्ति में था।

गणित ज्योतिष चिकित्सा रसायन शास्त्र भौतिक विज्ञान आदि अनेक महत्वपूर्ण शास्त्रों की रचना उन लोगों ने मन की शक्ति का उपयोग करके की थी इतना ही नहीं उनमें से प्रत्येक ने साधारण धातु को सोने के रूप में बदलने अपने पंच भौतिक शरीर को लगभग अमर बनाने बिना किसी यंत्र के आकाश में उड़ने आदि जैसे असंभव माने जाने वाले कार्यों को भी पूरा करके दिखाया था पर जो कि इस प्रकार के कार्यों में उनकी मानसिक शक्ति ही प्रधान थी वर्तमान समय के अनुसार यांत्रिक साधनों का उनमें विशेष संपर्क ना था यही कारण है कि उस समय ध्यान और विधियों का वैसा सार्वजनिक रूप से प्रचार-प्रसार ना हो सका जैसा कि हम आजकल देखते हैं पर इससे यह नहीं कहा जा सकता कि वर्तमान युग विज्ञान की दृष्टि से विशेष उन्नति का है l

 इस समय वैज्ञानिक आविष्कारों की सार्वजनिकता का परिणाम यह है कि उनमें से अधिकांश का दुरुपयोग हो रहा है और प्रत्येक अविष्कार रुपया कमाने का स्वार्थ साधन का जरिया बन गया है अंत में बढ़ते बढ़ते यहां तक नौबत आ गई की स्वार्थी और गैर जिम्मेदार व्यक्ति परमाणु बम और हाइड्रोजन बम जैसे विनाशकारी साधनों के अधिकारी बन गए हैं और संसार के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं यही कारण था कि भारत के प्राचीन विद्वान और वैज्ञानिक शक्ति संपन्न व्यक्ति ऐसे रसों को केवल अधिकारी व्यक्तियों को बतलाते थे और बस लाने के पहले उनकी हर प्रकार से परीक्षा लेते थे।

इसमें संदेह नहीं कि मन की सामर्थ शक्ति अपार है और यदि हम वास्तव में मन की शक्ति बढ़ाकर अपनी और दूसरों की उन्नति के लिए इसका प्रयोग करें तो संसार का बड़ा कल्याण हो सकता है।

 

शरीर की स्थूल इंद्रियों की तुलना में मन की सामर्थ्य कई गुनी अधिक है । मनःशक्ति की तुलना सौर ऊर्जा से की जा सकती है। जिस प्रकार फैले होने व सतत् नष्ट होते रहने के कारण सूर्य शक्ति से विशेष लाभ उठाते नहीं बनता। गर्मी, ताप जैसे सामान्य प्रयोजन ही पूरे हो पाते हैं। उसी तरह मन से निस्सृत होने वाली इच्छाएं, आकांक्षाएं दैनिक जीवन की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति मात्र कर पाती हैं। मन की चंचलता के कारण से मनःशक्तियां कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा पातीं। अन्यथा उनमें वह सामर्थ्य है कि एक दिशा, लक्ष्य विशेष पर उनके बिखराव को रोककर केन्द्रित किया जा सके तो चमत्कारी परिणाम प्रस्तुत हो सकते हैं। मनोबल, संकल्प बल की चर्चा की जाती है। यह और कुछ नहीं निग्रहीत मन की ही शक्ति है जो सामान्य से लेकर असामान्य प्रयोजन संपन्न कर सकने में सक्षम है। संकल्प बल द्वारा जड़ एवं चेतन को न केवल प्रभावित किया जा सकता है वरन् उनमें आवश्यक हेर-फेर भी किया जा सकता है।

हारे-थके, टूटे, निराश मनःस्थिति वाले अधिकांश व्यक्ति मनोबल, संकल्पबल की दृष्टि से कमजोर होते हैं। शारीरिक एवं मानसिक आधि-व्याधियों से भी ऐसे ही व्यक्ति अधिकतर घिरे रहते हैं। छोटी-मोटी बीमारियों में भी वे अधिक पीड़ा कष्ट की अनुभूति करते हैं जबकि इच्छा शक्ति के धनी कठिन और असाध्य रोगों में भी हंसते-मुस्कराते रहते हैं और दृढ़ मनोबल के सहारे शीघ्र ही अच्छे होते देखे जाते हैं। इच्छा शक्ति दृढ़ हो तो दीर्घ, स्वस्थ जीवन ही नहीं, चिर यौवन का लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है तथा कुछ समय के लिए तो अधिक आयु के साथ प्रकट होने वाले प्रौढ़ता के चिह्नों को भी एक किनारे छोड़ा जा सकता है। प्रस्तुत है ये घटनाएं जो यह बताती हैं कि संकल्प बल के सहारे रोग निवारण ही नहीं आयु को भी आगे धकेना संभव है।

डॉo वैनेट द्वारा लिखित 'ओल्ड एज, इट्स काज एण्ड प्रीवेन्शन' में एक घटना का उल्लेख इस प्रकार है। 19 वर्षीया एक फ्रांसीसी युवती का एक अमेरिकन युवक से विवाह होना निश्चित हुआ। युवक निर्धन था। इसलिए उसने यह तय किया कि पहले अमेरिका जाकर धनोपार्जन करेगा और फिर लौटकर शादी करेगा। तीन वर्ष तक वह परिश्रम करता रहा, पर दुर्भाग्यवश एक मुकदमे में उसे पंद्रह वर्ष की सजा हो गई। पंद्रह वर्ष बाद वह फ्रांस वापस लौटा तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि उसकी मंगेतर का स्वास्थ्य और सौंदर्य पूर्ववत् था। 34 वर्ष की आयु में भी वह 19 वर्ष की युवती लगती थी। विवाहोपरांत उसने एक दिन पत्नी से उसके सौंदर्य का राज पूछा। युवती ने बताया कि वह नित्य प्रातः एक बड़े शीशे के सामने खड़ी होकर अपने चेहरे को देखकर मन ही मन यह अनुभव करती थी कि आज बिल्कुल वैसी ही हूं जैसी कि कल थी । प्रचंड इच्छा शक्ति के कारण ही वह अपने यौवन को 34 वर्ष की आयु में भी अक्षुण्ण बनाए रखने में सक्षम हुई।

फिनलैंड की एक युवती के गर्भाशय में कैंसर हो गया। डॉक्टरों ने रोग को असाध्य घोषित करते हुए उसे कुछ दिनों का मेहमान बताया। इस युवती से पड़ोसी युवक गौनर मेंटन को गहरी सहानुभूति थी। उसने युवती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। निराशा के घोर अंधकार में भटकती युवती को जैसे जीने के लिए प्रकाश रूपी संबल मिल गया। विवाह संपन्न हुआ। अनुकूल सहचर पाकर जैसे वह अपना रोग ही भूल गई । जो सदा बिस्तर पर लेटी रहती थी, अब सदा चलती-फिरती, हंसती-हंसाती नजर आती थी। एक वर्ष बाद उसे एक पुत्र हुआ। डॉक्टरों ने परीक्षा करने पर पाया कि युवती में कैंसर रोग का नामोनिशान नहीं था। बच्चा भी पूर्ण स्वस्थ और निरोग था। चिकित्सकों ने इस घटना को मनोबल का चमत्कार माना।

मनःशक्ति का एक पक्ष एकाग्रता का है। इसका अभ्यास बन जाने पर असंभव समझे जाने वाले काम भी संभव हो सकते हैं। थोड़ी देर के लिए किसी विषय विशेष पर ध्यान को केंद्रित कर अपने शारीरिक कष्टों को भी भुलाया जा सकता है। लोकमान्य तिलक के जीवन की एक बहुचर्चित घटना इसी तथ्य का बोध कराती है। मवाद भर जाने के कारण लोकमान्य तिलक के अंगूठे का आपरेशन होना था। डॉक्टर क्लोरोफार्म लेकर पहुंचे ताकि उसे सुंघाकर आपरेशन किया जा सके। तिलक ने कहा- "बेहोश करने की आवश्यकता नहीं है। मुझे एक प्रति 'गीता' की लाकर दे दो ।" जितनी देर आपरेशन चलता रहा तिलक गीता पढ़ने में तल्लीन रहे। उन्हें कष्ट की थोड़ी भी अनुभूति नहीं हुई। इसका कारण स्पष्ट करते हुए उन्होंने चिकित्सकों को बताया कि कष्टों की अनुभूति शरीर को नहीं मन को होती है। मन यदि किसी अन्य विषय पर केन्द्रित हो तो शरीर के कष्टों को पूर्णतया भुलाया जा सकता है।

                             

 

 

                                       अध्याय - 8

मानव मन की अनंत क्षमताये

तू इस मन का दास ना बन

इस मन को अपना दास बना ले

 

देखो मन के खेल निराले नित्य नित्य नवा डेरा डाले

नव अश्व के जैसा चंचल किसी के सामने ना आए संभाले

इंद्रियों के विषयों में फस कर

जीवन तूने व्यर्थ गवारे

तो ऐसे मन का दास ना बन इस मन को अपना दास बना ले…………

 

मन ही गिराए मन ही उठाएं

मन ही अमीर फकीर बनाए

मन से बड़ा शत्रु नहीं कोई

मन ही परम मित्र कहलाए

अभ्यास और वैराग्य के बल से

दृढ़ता से मन पर तू काबू पा ले

तू ऐसा मन का दास ना बन इस मन को अपना दास बना ले…………….

 

कर्म से देखो निमित्य  है बनते

निमित्य से जीवन में सुख दुख आते

निष्काम कर्म करे जो जोगी

भवसागर से वह तर जाते

कर्मों के फल को त्याग दे बंदे

जीवन मरण से मुक्ति पा ले

तू इस मन का दास ना बन इस मन को अपना दास बना ले…………………

 

झूठी माया झूठी काया

झूठा यह संसार बनाया

झूठे अपने झूठे सपने

माया ने देखो यह खेल रचाया

तू इस सत्य को जाने ले बंदे

भवसागर से मुक्ति पा ले

तू इस मन का दास ना बन इस मन को अपना दास बना ले……………………

 

लाख चौरासी घूम के आया

तब जाके मानव जीवन पाया

माया मोह के धागों में फस कर

तूने जीवन व्यर्थ गवाया

मुक्ति के मार्ग पर आने खड़ा है

मानव तन को मुक्ति का द्वार को बताया

सब कुछ अपना समर्पित करके

ईश्वर में तू ध्यान लगा ले

तू ऐसे मन का दास ना बन

इस मन को अपना दास बना ले।……………………………………..

 

निग्रहीत मन की सामर्थ्य और चमत्कारों की घटनाओं से तो भारतीय धर्मग्रंथों के पुराण एवं इतिहास भरे पड़े हैं। इसे एक सूत्र में इस रूप में योग वाशिष्ठ में कहा गया है—

“मनोहि जगतां कर्तृमनोहि पुरुषः स्मृतः ।”

 

अर्थात्, ‘मन ही जगत का कारण और स्मृतियों में वर्णित पुरुष है।'

‘एलेक्जेंडर राल्फ' ने ‘द पावर आफ माइण्ड' नामक पुस्तक में विभिन्न प्रमाण देते हुए लिखा है कि एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मानव मन शरीर के बाहर स्थिर सजीव एवं निर्जीव पदार्थों पर भी इच्छानुकूल प्रभाव डाल सकता है। उनका कहना है कि यह एक निर्विवाद तथ्य है कि दृढ़ इच्छा शक्ति द्वारा स्थूल जगत पर नियंत्रण संभव है।

E = mc²

पदार्थ शक्ति कितनी सामर्थ्यवान हो सकती है इसे आइन्स्टीन के ऊर्जा समीकरण द्वारा समझा जा सकता है। ऊर्जा समीकरण के अनुसार एक ग्राम पदार्थ को यदि पूर्णतया शक्ति में बदला जा सके तो उससे प्रकाश की गति प्रकाश की गति (अर्थात 30 अरब × 30 अरब) अर्ग ऊर्जा उत्पन्न होगी जो लगभग 214 खरब 30 अरब कैलोरी ऊष्मा के समतुल्य होगी। एक कैलोरी ऊष्मा का तात्पर्य है एक ग्राम पानी का ताप एक डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ाने में प्रयुक्त ऊष्मा की मात्रा। उपर्युक्त ऊष्मा का अर्थ हुआ कि एक ग्राम के भौतिक द्रव्य में ही इतनी ऊर्जा सन्निहित है कि उससे 2 लाख 14 हजार 3 सौ टन शून्य डिग्री सेंटीग्रेड वाले पानी को सौ डिग्री सेंटीग्रेड तक खौलाया जा सकता है। एक पौंड पदार्थ की शक्ति उतनी ही होगी जितनी 14 लाख टन कोयला जलाने से उत्पन्न होगी। अभी तक वैज्ञानिक इस तरह की कोई तकनीक विकसित नहीं कर सके हैं जिससे पदार्थ को पूर्णतः शक्ति में बदला जाय और उस शक्ति का पूरा-पूरा उपयोग किया जा सके। भौतिक विज्ञानियों के अनुसार एक पौंड पदार्थ को पूर्णतया ऊर्जा में बदल कर उपयोग करना संभव हो सके, तो मात्र उतने से पूरे अमेरिका को एक माह तक विद्युत सप्लाई की जा सकती है।

यह तो पदार्थ की सामर्थ्य हुई। उसका नगण्य घटक परमाणु की शक्ति तो और भी प्रचंड है जिसकी चर्चा इन दिनों सर्वत्र है। जड़ परमाणुओं की तुलना में मन की सामर्थ्य कई गुनी अधिक है। उसके लिए भी यदि परमाणु की शक्ति को उभारने जैसी प्रक्रिया अपनाई जा सके तो वह चमत्कारी परिणाम प्रस्तुत कर सकता है। इसके लिए साधना का अवलंबन लेना पड़ता है। मनोनिग्रह एवं एकाग्रता का दुहरा अभ्यास इच्छा शक्ति, संकल्प शक्ति को दृढ़ बनाने के लिए करना पड़ता है। ध्यान के विभिन्न साधना उपचार इसी प्रयोजन की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। अलग-अलग मनःस्थिति के व्यक्तियों के लिए अलग-अलग ध्यान उपचार बताए जाते हैं। इस प्रक्रिया को अपनाकर कोई भी अपने मन को इतना समर्थ और सशक्त बना सकता है ताकि उससे सामान्य से लेकर असामान्य प्रयोजन पूरा कर सके।.

कुछ वर्षों पूर्व बंबई के एक विद्वान श्री बी0जे0 रेले ने एक पुस्तक लिखी थी— दी वैदिक गॉड्स एज फिगर्स ऑफ बायोलॉजी । इस पुस्तक में उन्होंने सिद्ध किया था कि वेदों में वर्णित आदित्य, वरुण, अग्नि, मरुत, मित्र, अग्नि आदि मस्तिष्क के स्थान विशेष में सन्निहित दिव्य शक्तियां हैं, जिन्हें जागृत करके अद्वितीय क्षमता संपन्न एवं विशिष्ट बना जा सकता है। डा० नाडगिर एवं एडगर जे० टामस ने संयुक्त रूप से पुस्तक की भूमिका लिखते हुए कहा है कि वैदिक ऋषियों के इस शरीर शास्त्र संबंधी गहन ज्ञान पर आश्चर्य होता है। उस साधनहीन समय में कैसे उन्होंने इतनी जानकारियां प्राप्त की होंगी, यह शोध का विषय है।

मस्तिष्कीय संरचना पर दृष्टिपात करने से प्रतीत होता है कि यह एक मांस पिंड नहीं है वरन् जीवंत विद्युत भंडार है। उसमें चल रही हलचलें ठीक वैसी ही हैं जैसी किसी शक्तिशाली बिजलीघर की होती हैं। जितने हमारी आकाशगंगा में तारे हैं, करीब उतने ही (एक खरब से अधिक) न्यूरान्स (स्नायुकोष) मस्तिष्क में हैं। इन तंत्रिकाओं को आपस में जोड़ने वाले तंतु और उनके इन्सुलेशन खोपड़ी में खचाखच भरे हैं। एक तंत्रिका कोशिका का व्यास एक सेंटीमीटर के हजारवें भाग से भी कम है और उसका वजन एक औंस के साठ अरबवें भाग से अधिक नहीं है। तंत्रिका तंतुओं से होकर बिजली के जो इम्पल्स दौड़ते हैं वही ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से आवश्यक सूचनाएं उस केन्द्र तक पहुंचाते हैं । इन्द्रियों द्वारा उपलब्ध सूचनाओं और विचारों की हलचलें हर क्षण सोते-जागते मस्तिष्क को इतना अधिक व्यस्त रखती हैं कि इन्हें इलेक्ट्रो एनसेफेलोग्राम (ई०ए०जी०) द्वारा विद्युतीय तूफान की तरह देखा जा सकता है।

मानव निर्मित सर्वोत्तम कंप्यूटर में अधिक से अधिक दस लाख इकाइयां होती हैं और प्रत्येक इकाई के पांच-छः से अधिक संपर्क सूत्र नहीं होते। किन्तु मस्तिष्क की अरबों कोशिकाएं और उनमें से प्रत्येक के लाखों संपर्क सूत्र और उनके भीतर प्रवाहित न्यूरोट्रांसमीटर्स की भिन्नता वैज्ञानिकों को इसी निष्कर्ष पर पहुंचाती है कि इन अद्भुत शक्तियों को समाहित करने वाला कम्प्यूटर को बनाने लायक सामर्थ्य मानव में नहीं है। यदि सैद्धांतिक स्तर पर एक ढांचा भी ऐसा खड़ा करने का प्रयास किया जाय तो वह इतना बड़ा होगा कि उसके लिए यह पृथ्वी भी छोटी पड़ेगी।

मस्तिष्क रूपी इस चेतन शक्ति भंडार के न्यूरान समूहों में से यदि एक को भी किसी प्रविधि द्वारा सजग-सचेत किया जा सके तो दस अरब न्यूरान्स, दस अरब डायनोमों का काम कर सकते हैं। उस गर्मी- प्रकाश एवं विद्युत क्षमता का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। इसी कारण वैज्ञानिक कहते हैं कि अभी वे मस्तिष्क के कुल सत्रह प्रतिशत भाग को जान पाए हैं एवं शेष 83 प्रतिशत के बारे में उन्हें कुछ जानकारी नहीं है। इस सत्रह प्रतिशत में से भी दैनंदिन जीवन में मात्र सात प्रतिशत विद्युत क्षमता उपयोग में आ पाती है, शेष का या तो प्रयोग ही नहीं हो पाता या प्रयासों के अभाव में वह व्यर्थ ही नष्ट हो जाती है।

जिस मस्तिष्क रूपी संसार में इस पृथ्वी पर बसे मनुष्यों से भी कई गुनी अधिक स्नायुकोषों की आबादी बसी हुई है, उसकी सामर्थ्य कितनी विलक्षण है, इसका अनुमान इन व्यक्तियों की उपलब्धियों को देखकर लगाया जा सकता है जिन्होंने अपने प्रतिभा के बलबूते वैज्ञानिकों को भी आश्चर्यचकित किया है।

मन की शक्तियाँ बिखरी हुई प्रकाश की किरणों के समान हैं; जब वे केंद्रित होते हैं, तो वे प्रकाशित होते हैं। यह हमारे ज्ञान का एकमात्र साधन है।

जिस व्यक्ति ने स्वयं पर नियंत्रण का अभ्यास कर लिया है, उस पर बाहर की कोई भी वस्तु कार्य नहीं कर सकती; उसके लिए और कोई गुलामी नहीं है। उसका मन मुक्त हो गया है। ऐसा ही मनुष्य संसार में भली-भाँति रहने के योग्य है।

अनियंत्रित और अनियंत्रित मन हमें हमेशा के लिए नीचे, नीचे खींच लेगा - हमें फाड़ दो, हमें मार डालो; और नियंत्रित और निर्देशित मन हमें बचाएगा, हमें मुक्त करेगा।

हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है; इसलिए आप जो सोचते हैं उसका ख्याल रखें। शब्द गौण हैं। विचार जीते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं। प्रत्येक विचार जो हम सोचते हैं वह हमारे अपने चरित्र से आच्छादित है, ताकि शुद्ध और पवित्र व्यक्ति के लिए, यहां तक ​​कि उसके मजाक या गाली में भी उसके अपने प्रेम और पवित्रता का मोड़ होगा और अच्छा करेगा।

 

आप जो भी करें, अपना पूरा दिमाग, दिल और आत्मा उसमें लगा दें। मैं एक बार एक महान संन्यासी से मिला, जिसने अपने पीतल के खाना पकाने के बर्तनों को साफ किया, उन्हें सोने की तरह चमकाते हुए, उतनी ही देखभाल और ध्यान के साथ जितना उन्होंने अपनी पूजा और ध्यान पर दिया।

दुनिया को अब तक जो भी ज्ञान मिला है वह मन से आता है; ब्रह्मांड का अनंत पुस्तकालय आपके अपने मन में है। बाहरी दुनिया केवल सुझाव है, अवसर है, जो आपको अपने मन का अध्ययन करने के लिए तैयार करता है, लेकिन आपके अध्ययन का उद्देश्य हमेशा आपका अपना मन होता है। एक सेब के गिरने से न्यूटन को सुझाव मिला, और उन्होंने अपने मन का अध्ययन किया; उसने अपने दिमाग में विचार की सभी पिछली कड़ियों को फिर से व्यवस्थित किया और उनके बीच एक नई कड़ी की खोज की, जिसे हम गुरुत्वाकर्षण का नियम कहते हैं। यह सेब में नहीं था और न ही पृथ्वी के केंद्र में किसी चीज में।

अच्छे और बुरे विचार प्रत्येक एक शक्तिशाली शक्ति हैं, और वे ब्रह्मांड को भरते हैं। जैसे-जैसे कंपन जारी रहता है, वैसे-वैसे विचार तब तक विचार के रूप में बना रहता है जब तक कि वह क्रिया में परिवर्तित न हो जाए। उदाहरण के लिए, बल मनुष्य के हाथ में तब तक छिपा रहता है जब तक कि वह कोई प्रहार नहीं करता है, जब वह उसे कार्यरूप में परिणित करता है। हम अच्छे और बुरे विचारों के उत्तराधिकारी हैं। यदि हम स्वयं को पवित्र और सद्विचारों का साधन बना लें, तो ये हमारे भीतर प्रवेश कर जाएंगे। अच्छी आत्मा बुरे विचारों के प्रति ग्रहणशील नहीं होगी।

जिस प्रकार वायुरहित स्थान में रखा हुआ दीपक नहीं टिमटिमाता, ऐसी स्थिति योगी की होती है, जिसका मन वश में होता है और जो आत्मचिंतन में लगा रहता है।

मन की शक्तियों की एकाग्रता ही ईश्वर को देखने में हमारी सहायता करने का एकमात्र साधन है। यदि आप एक आत्मा (अपने स्वयं के) को जानते हैं, तो आप भूत, वर्तमान और आने वाली सभी आत्माओं को जानते हैं। इच्छाशक्ति मन को एकाग्र करती है, कुछ चीजें इस इच्छा को उत्तेजित और नियंत्रित करती हैं, जैसे कारण, प्रेम, भक्ति, श्वास। एकाग्र मन एक दीपक है जो हमें आत्मा के हर कोने को दिखाता है।

 

यह विचार ही है जो हममें प्रेरक शक्ति है। मन को उच्चतम विचारों से भरें, उन्हें दिन-ब-दिन सुनें, महीने-दर-महीने सोचें। असफलताओं पर ध्यान न दें; वे काफी स्वाभाविक हैं, वे जीवन की सुंदरता हैं, ये असफलताएं हैं। उनके बिना जीवन क्या होगा? यदि यह संघर्षों के लिए नहीं होता तो यह लायक नहीं होता। जीवन की कविता कहाँ होगी? संघर्षों, गलतियों पर कभी ध्यान न दें।

जिस व्यक्ति ने अपने मन पर नियंत्रण कर लिया है, निश्चित रूप से वह हर दूसरे मन पर नियंत्रण कर लेगा। इसलिए पवित्रता और सदाचार सदा से ही धर्म के विषय रहे हैं; एक शुद्ध, नैतिक व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण होता है। वह जो अपने मन को जानता और नियंत्रित करता है, वह हर मन के रहस्य को जानता है और हर मन पर उसका अधिकार है। सामान्य मानव द्वारा नब्बे प्रतिशत विचार-शक्ति का अपव्यय होता है, और इसलिए वह लगातार गलतियाँ कर रहा है, प्रशिक्षित व्यक्ति या मन कभी गलती नहीं करता है।

मन को नियंत्रित करने के लिए आपको अवचेतन मन में गहराई तक जाना होगा, वहां जमा सभी विभिन्न छापों, विचारों आदि को वर्गीकृत और व्यवस्थित करना होगा और उन्हें नियंत्रित करना होगा। यह पहला चरण हैं। अवचेतन मन के नियंत्रण से आप चेतन पर नियंत्रण प्राप्त करते हैं। यदि मन नियंत्रण में नहीं है, तो गुफा में रहने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि वही मन वहां सभी गड़बड़ी लाएगा। यदि मन नियंत्रण में है, तो हम कहीं भी, जहां भी हों, गुफा बना सकते हैं।

 

 

 

                          

                                          अध्याय – 9

खुद में दिव्यता का प्रसार करे

 

 

दोस्तों आपने कोई ऐसे व्यक्ति के बारे में सुना है, जो सभी चीजों में माहिर हो जिसे सब काम बहुत अच्छे से करना आता हो। शायद ही ऐसे व्यक्ति के बारे में आप नहीं सुना हो ,यदि मैं आपसे कहूं कि मैं आपको एक असाधारण इंसान बना सकता हूं। तो क्या आप इस बात पर विश्वास कर सकेंगे ?

 

मित्रों मैं आपको एक ऐसा रहस्यय बताने जा रहा हूं जिसे जानकर आप एक साधारण मानव से एक महान व्यक्ति बन सकते हैं यह कोई जादुई शक्ति नहीं ,यह एक कर्म शक्ति है। जिससे सब  कुछ किया जा सकता है, इस शक्ति को जान लेने के बाद मनुष्य अपनी परम ऊंचाइयों को पा सकता है और मनुष्य श्रेणी उठ कर उसमे  दिव्यता का प्रसार हो सकता है

 

 ऐसा मनुष्य जहां भी जाता है वही सम्मान पाता है सभी लोग उसके चेहरे को देखकर ही मोहित हो जाते हैं उसका तेज इतना होता है कि सब कोई उससे बात करना चाहता है। ऐसा दिव्य मनुष्य अपने कर्मों को ही अपना धर्म मानता है और अपने सभी कार्य प्रगति और प्रकृति के लिए करता है ।

ऐसा दिव्य मनुष्य अपनी शक्ति और शरीर के सभी आयाम से परिचित होता है और अपने मन द्वारा ही समस्त मानव जाति के लिए सर्वहित में कार्य को करता है । उसके सभी कार्य सर्वहित के लिए होते हैं ऐसे मनुष्य लाखों करोड़ों में कोई एक ही होता है।

 

 

 

मित्रों आपने स्वामी विवेकानंद भगवान गौतम बुद्ध और शंकराचार्य जी के बारे में जरूर सुना होगा यह सभी परम हित के कार्य करने वाले दिव्य मनुष्य ऐसे मनुष्य सदैव अपनी दिव्यता से जन कल्याण हेतु अपने कार्य को करते हैं इनमें इनका स्वयं का स्वार्थ बिल्कुल नहीं होता ऐसे मनुष्य देवता के समान होते हैं।

 

 

मित्रों इस संसार में जो भी मनुष्य ने खुद को जानने और समझने की कोशिश की है वास्तविकता में वही वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर पाया है। जो मनुष्य संसार को जानने, दुनिया को जीतने के लिए अपने आप को महान बताते हैं ,वह वास्तविकता में पाखंडी ढोंगी होते हैं ,ऐसे मनुष्य सदा ही विचलित और घमंडी होते हैं। वास्तविक दिव्यता तो बिना कुछ बोले ही प्रकट हो जाती है इसकी उर्जा इतनी होती है कि इसके प्रभाव से सब काम स्वता ही सिद्ध होने लगते हैं ।

 

 

तो मित्रों यहां कुछ ऐसी रहस्य बताए जा रहे हैं जिसे आप करके दिव्यता प्राप्त कर सकते हैं परंतु सबसे पहले आपको खुद से संकल्प करना होगा तो ही आप इस दिव्यता को प्राप्त कर सकते हैं। मित्रों मैं पहले ही बता चुका हूं कि यह कोई गुप्त विद्या या जादुई शक्ति नहीं यह तो बस कर्म शक्ति से होता है

 

 

यहां पर आपको खुद से एक संकल्प लेना होगा-

 

“एक आत्मा हूं यह समस्त चर अचर प्रगति जीव जंतु अनंत कोटि ब्रह्मांड मुझ में ही समाहित है और मैं इन सभी में विद्यमान हूं मुझ पर किसी भी चीज का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है चाहे वह शुभ हो या अशुभ अच्छी हो या बुरी मैं सभी चीजों से मुक्त हूं मैं निराकार हूं मेरा कोई आकार नहीं मेरा जन्म जन कल्याण के लिए हुआ है और मेरे समस्त कर्म देशहित और सब हित के लिए होते हैं मेरे अंदर अनंत ब्रह्मांड में की समस्त शक्तियां विद्यमान है और मुझ में अनंत ऊर्जा निहित है मैं परमेश्वर का अंश हूं”

 

 

दोस्तों संकल्प दिया गया है उस संकल्प को पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ करें और इसे स्वीकार करने के लिए तैयार रहें की जो भी मेरे द्वारा कर्म किए जा रहे वह सभी दिव्य और जन कल्याण हेतु है, दोस्तों अब आप स्वयं पर ध्यान देना शुरू कर दें और खुद को पहचानने की कोशिश करें।

 

दोस्तों जब भी आप आप अकेले हो तो यह चिंतन करें की

मैं कौन हूं ?

मेरा अस्तित्व क्या है?

मेरा जन्म किस लिए हुआ है?

 

दोस्तों ऐसा करने से आपका मन उस दिशा में सोचने लगेगा और यह आपकी दिव्यता का पहला कदम होगा।

 

जब आपको इन प्रश्नों के उत्तर मिल जाए तब आप उन बातों पर विश्वास करके उनको अपना उद्देश्य बना ले परंतु याद रखें जब आप खुद से प्रश्न पूछ रहे हो तो उस समय आपका मन पूर्णता शांत हो और आपके अंदर से प्रसन्नता का अनुभव हो रहा हो और आप खुद के अंदर ही दिव्यता का अनुभव कर सकते है।

 

 

 

मित्रों ऊपर जो प्रश्न दिए हैं उनके उत्तर जान लेने के बाद आप कुछ अच्छी आदतों को अपने अंदर डाल सकते हैं

सुबह जल्दी उठने की आदत

 

मित्रों आपको सुबह जल्दी उठने की आदत डालनी होगी और उठकर सबसे पहले आपको ध्यान लगाने की अच्छी आदत है को अपनाना होगा और हर सुबह ध्यान करने के बाद खुद से यह संकल्प को बोलिए जो संकल्प पहले लिया था वही संकल्प को हर सुबह खुश से कहना है।

 

 

कई महीने तक आप इसका अभ्यास करें और याद रहेगी आप इसे बीच में छोड़ते हैं तो आप कभी भी दिव्यता प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि कोई भी कार्य तभी सफल हो सकता है जब वह लगातार किया जाए इसके साथ ही मित्रों आपको ब्रम्हचर्य का भी पालन करना होगा आज के समय ब्रह्मचर्य का पालन करना कठिन हो सकता है क्योंकि यहां ऐसे साधन हैं जो आपको यह करने से रोकेंगे परंतु आप दृढ़ संकल्प होकर ब्रह्मचर्य का पालन करें क्योंकि आप अब यह जान चुके हैं कि आप कौन हैं और आपका उद्देश्य क्या है इसलिए कोई भी वस्तु आपको भटका नहीं सकती ब्रह्मचर्य का पालन मित्रों लगातार करना होगा मैं मानता हूं कि आप का संकल्प कई बार टूटेगा परंतु आप को फिर से शुरू करके ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा यदि आपने इसका पालन कुछ महीनों तक लगातार कर लिया और ध्यान को रोज करते रहे तो मित्रों आप अपने अंदर ऐसे दिव्यता का अनुभव कर पाएंगे जिसका वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता क्योंकि उस अनुभव को केवल महसूस किया जा सकता है बताया नहीं जा सकता।

 

 

आपको खुद पर विश्वास करना होगा कि इस दुनिया का कोई भी कार्य मेरे लिए असंभव नहीं जो आप चाहते हैं वह आप कर सकते हैं जैसा आप खुद को बनाना चाहे वह आप बन सकते हैं।

 

 

मित्रों यदि आपने सब भली भांति पूरे संकल्प के साथ यह कर रहे हैं तो अब आपके अंदर इतनी उर्जा आ चुकी है कि आप मनुष्य श्रेणी से ऊपर उठ रहे हैं आपकी बुद्धि से दिव्यता का प्रसार हो रहा है आप अब किसी भी आम मनुष्य से 10 गुना तेजी से सोच सकते हैं और कार्य कर सकते हैं क्योंकि ब्रह्मचर्य के पालन से आपकी शारीरिक शक्ति भी बढ़ रही है।

 

 

दोस्तों आप अपनी प्रबल बुद्धि और दिव्य ऊर्जा से अब जो भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता अवश्य प्राप्त होगी परंतु मित्रों यह याद रखें कि आपके कार्य सदैव सर्वहित देशहित और जनकल्याण के लिए ही हो स्वयं के स्वार्थ के लिए नहीं मित्रों जो मनुष्य देवत्व प्राप्त कर लेता है। वह देवता के समान हो जाता है ,मनुष्य जाति सदा उसका अनुसरण करती है और ऐसे दिव्य पुरुष वास्तविकता में जन कल्याण के लिए ही धरती पर आते हैं ।हर वह व्यक्ति जो खुद को जान लेता है वही देवत्व को प्राप्त कर पाता है। इसलिए मित्रों मैं आपसे कहना चाहूंगा कि पहले खुद को पहचान लो क्योंकि इस संसार में खुद को जान लेने के बाद कुछ और जानना शेष नहीं रहता।

                            

        

अध्याय – 10

ॐ तत्त्वमसि, 'वह ब्रह्म तुम्हीं हो।

 

 

 

 

 

 

 

 एक शिष्य ने स्वामी विवेकानन्द से प्रश्न किया - यदि एक ही ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है, तो संसार में यह सब भेद क्यों है? इस पर स्वामी विवेकानंद ने उत्तर दिया- क्या आप इस प्रश्न को अलौकिक अस्तित्व की दृष्टि से नहीं देख रहे हैं? अस्तित्व के अभूतपूर्व पक्ष से देखने पर, कोई तर्क और विवेक के माध्यम से धीरे-धीरे एकता की जड़ तक पहुँच सकता है।

एकता का यह मूल हमारा अपना स्व है। स्वामी विवेकानंद स्पष्ट शब्दों में कहते हैं - अद्वैतवादी क्या उपदेश देते हैं? वह उन सभी देवताओं को हटा देता है जो कभी अस्तित्व में थे, या कभी भी ब्रह्मांड में मौजूद होंगे और उस सिंहासन पर मनुष्य की आत्मा, सूर्य और चंद्रमा से ऊंचा, स्वर्ग से ऊंचा, इस महान ब्रह्मांड से भी बड़ा होगा। उनके अनुसार, स्वयं सबसे महिमामयी ईश्वर है जो कभी था, एकमात्र ईश्वर जो कभी अस्तित्व में था, मौजूद है, और हमेशा अस्तित्व में रहेगा।

स्वामी विवेकानन्द का कहना है कि सभी प्रकार की दुर्बलताएँ आत्मा की इस महिमा के अज्ञान का परिणाम हैं। अपने से बाहर विभिन्न देवताओं में दिव्यता की खोज के असफल प्रयास के बाद, एक व्यक्ति मानव आत्मा में वापस आ जाता है, जहां से वह शुरू हुआ था। और वहां उसे वह परमात्मा मिल जाता है जिसकी उसे तलाश थी।

ऐसी शिक्षा का व्यावहारिक निहितार्थ क्या है? जो अपने भीतर देवत्व को खोज लेता है वह पूर्ण विश्वास कहता है - मैं सर्वव्यापी हूँ, सनातन हूँ। हम कहां जा सकते हैं? मैं पहले से कहाँ नहीं हूँ? कुदरत की ये किताब पढ़ रहा हूँ... मैं मदद के लिए किसके पास जाऊं? मेरी मदद कौन कर सकता है, ब्रह्मांड का अनंत प्राणी? ये मूर्खतापूर्ण सपने हैं, मतिभ्रम हैं; किसने कभी किसी की मदद की? कोई नहीं। ... मैं वह हूं, और वह मैं हूं। और कोई नहीं, मैं परमेश्वर था, और यह छोटा सा मैं कभी अस्तित्व में नहीं था।

स्वामी विवेकानन्द वेदान्तिक शास्त्रों की सहमति से द्वैतवादी विचारों के परिणामस्वरूप होने वाली हर प्रकार की दुर्बलता की निन्दा करते हैं। यह एक कमजोर आदमी है, एक द्वैतवादी, रोता-पीटता है, जो नहीं जानता कि आकाश भी उसमें है। वह आसमान से मदद चाहता है और मदद आती है। हम देखते हैं कि यह आता है; लेकिन यह अपने भीतर से आता है और वह भूल करता है कि यह बाहर से आ रहा है।

जो कुछ भी चमत्कार है सब हमारे विश्वास में कारण होते है , यदि हमें इस पर विश्वास हो जाये इस ईश्वर सदैव हमें साथ है और वो हमारे अंतर्मन में निवास करते है तो हमारे साथ हर दिन चमत्कार होंगे |

 

‘ राम – राम ‘

 

 

खुद में खुद के खुदा की खोज कीजिये

स्वयं में स्वयं के ईश्वर की खोज कीजिये….

 

पंडित, मौलबी, फादर चर्च के

होते है मैनेजर अपने-अपने धर्म के

खुद के और खुदा के बीच किसी को न आने दीजिये

खुद के खुद के खुदा की खोज कीजिये

स्वयं में स्वयं के ईश्वर की खोज कीजिये………………

 

                        अनेको नाम है उसके , सच्चे दिल से पुकार कीजिए

पूरी होगी हर मन्नत , सच्चे मन के फरियाद कीजिये

वैर के अपने मन में किसी के प्रति आने दीजिये

खुद में खुद के खुदा के खोज कीजिये

स्वयं में स्वयं के ईश्वर की खोज कीजिये………………

 

विश्वास है खुद पर, तो खुदा मिलेंगे

विश्वास है रब पर तो, वो तेरे साथ चलेंगे

बाहर कही नहीं है स्वामी ब्रमांड का

अपने अंदर ही अपने, भगवान खोज कीजिये

खुद में खुद के खुदा की खोज कीजिये

स्वयं में स्वयं के ईश्वर की खोज कीजिये………………

नजरिया बदल लो तो नज़ारे बदल जाते है

श्रद्धा अगर सच्ची हो तो , हर जगह ईश्वर नजर आते है

बेसहारो का सहारा बनिए , अपने माँ बाप की सेवा कीजिये

न भटकिये इस दुनिया में , बस अच्छे कर्म कीजिये

खुद में खुद के खुदा की खोज कीजिये

स्वयं में स्वयं के ईश्वर की खोज कीजिये………………

 

 

                                     “ जय श्री राम “