अध्याय - 5
भारत के चमत्कारी संत
भारत भूमि हमेशा से ही दिव्य संतो और महापुरुषों की देवभूमि रहा है , यहाँ ऐसे चमत्कारों की कोई नहीं है हमारे इतिहास के ऐसे कई संत हुए है जिनके चमत्कारों की चर्चा पूरी दुनिया में होती है।
देवरहा बाबा
देवरहा बाबा जाने माने सिद्ध पुरुष और एक कर्मठ योगी थे। देवरहा बाबा की उम्र के बारे में लोगों की बीच ऐसी मान्यता थी कि बाबा करीब 500 सालों तक जिंदा थे। हालांकि यह स्पष्ट रूप से यह कोई भी नहीं जानता था कि बाबा का जन्म कब हुआ। देवरहा बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में माना जाता है। साधारण रहन-सहन और सरल जीवन जीने वाले बाबा लोगों के मन की बातें बिना बताए ही जान लेते थे। सरल, सहज और बेहद शांत स्वभाव वाले देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने के लिए आमजन से लेकर नेता, उघोगपति, फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े अधिकारी उनके पास आते थे। भक्तों का मनाना था कि बाबा पानी पर बहुत ही आसानी से चल लेते थे। वह आधा घंटा तक तक पानी में, बिना सांस लिए रह लेते थे। देवरहा बाबा ने अपनी उम्र, तप और सिद्धियों के बारे में कभी कोई दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की ऐसी भी भीड़ रही, जो उनमें चमत्कार तलाशती थी।
देवरहा बाबा न सिर्फ मनुष्यों के मन की बात जान जाया करते थे बल्कि वे जानवरों की भाषा और बोली को भी समझ जाते थे। वे जंगली जानवरों को अपने वश में कर लेते थे।
इसके आलावा बाबा निर्जीव चीजों को भी अपने वश में कर लेते थे। वे कैमरे से फोटो खीचने को बोलते, लेकिन कैमरे में उनकी फोटो नहीं बन पाती थी। उनकी याद्दाश्त बहुत तेज
हुआ करती थी, वे एक बार किसी से मिल लेते तो वर्षो बाद भी उसके खानदान के बारे में बता देते थे।
देश में आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं। तब इंदिरा गांधी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। बाबा ने उन्हें हाथ उठाकर पंजे से आशीर्वाद दिया। वहां से लौटने के बाद इंदिरा जी ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा ही तय किया। इसी चिह्न पर 1980 में इंदिरा जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वे देश की प्रधानमंत्री बनीं।
स्वामी विवेकानंद
असाधारण शक्तियां हर मनुष्य के मन में हैं। वह कहते हैं, 'आपने देखा होगा कि एक जगह बैठा इंसान जो सोचता है, वह विचार ठीक उसी रूप में दूसरी जगह बैठे मनुष्य के मन में पैदा हो जाता है।
स्वामी जी की वाणी में अद्भुत मधुरता और आकर्षण शक्ति थी । श्रोताओं पर उनके उपदेश का बिजली की तरह असर होता था। अपने उपदेश में वे किसी की बुराई करना तो जानते ही न थे फिर भी हिन्दू धर्म की ख़ूबी का सिक्का लोगों के हृदय में जमा देते थे। लोग मंत्रमुग्ध की भाँति उनके व्याख्यानों को सुनते थे। अंग्रेज़ी और संस्कृत पर उनका असाधारण अधिकार था। स्वामी जी का मत था, “उदार चरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम्।” मनुष्य जाति को वे समान दृष्टि से देखते थे। हिंदू संस्कृति पर उन्हें अभिमान था, उसका प्रचार और अध्यात्म ज्ञान का प्रचार उनके जीवन का लक्ष्य था । ब्रह्मचर्य की वे साक्षात् मूर्ति थे। देश सेवा, परोपकार, शिक्षा प्रसार उनके कार्यों के मुख्य अङ्ग थे। उनका जीवन संसार के लिए आदर्श था। कोई भी मनुष्य स्वामी विवेकानंद के उपदेशों के अनुसार चलकर अपना जीवन सफल बना सकता है।
रामकृष्ण परमहंस
जब माँ काली रामकृष्ण परमहंस के भीतर प्रबल होतीं, तो वह आनंदविभोर हो जाते और नाचना-गाना शुरू कर देते। जब वह थोड़े मंद होते और काली से उनका संपर्क टूट जाता, तो वह किसी शिशु की तरह रोना शुरू कर देते। रामकृष्ण की चेतना इतनी ठोस थी कि वह जिस रूप की इच्छा करते थे, वह उनके लिए एक हकीकत बन जाती थी।
रामकृष्ण परमहंस ज्ञान, योग, वेदान्त शास्त्र अथवा अद्वैत मीमांसा का निरूपण किया करते थे। उनका कहना था, “ब्रह्म, काल-देश-निमित्त आदि से कभी मर्यादित नहीं हुआ, न हो सकता है। फिर भला मुख के शब्द द्वारा ही उसका यथार्थ वर्णन कैसे हो सकता है? ब्रह्म तो एक अगाध समुद्र के समान है, वह निरुपाधित, विकारहीन और मर्यादातीत है। तुमसे यदि कोई कहे कि महासागर का यथार्थ वर्णन करो, तो तुम बड़ी गड़बड़ी में पड़ कर यही कहोगे-अरे, इस विस्तार का कहीं अन्त है ? असंख्य लहरें उठ रही हैं, कैसा गर्जन हो रहा है इत्यादि । इसी तरह ब्रह्म को समझो।"
नीम करोली बाबा
एक बार नीम करोली बाबा बिना टिकट के ट्रेन से यात्रा कर रहे थे. टिकट न होने पर टिकट क्लेकटर ने ट्रेन रूकवाकर उन्हें ट्रेन से उतरवा दिया. लेकिन बाबा के उतरने के बाद ट्रेन चालू ही नहीं हुई. सभी तरह से ट्रेन का निरीक्षण करने के बाद भी ट्रेन एक इंच नहीं हिली. ट्रेन कलेक्टर को ध्यान में आया कि बाबा को उतारने के बाद ट्रेन नहीं चल रही. इसके बाद क्लेक्टर समेत सभी लोगों ने बाबा से वापस ट्रेन चलवाने की विनती की.
लेकिन बाबा ने शर्त रखी कि रेलवे साधुओं का सम्मान करें और जिस जगह उन्हें उतारा गया है, वहां एक रेलवे स्टेशन भी बनवाया जाए. जिससे कि यात्रियों को स्टेशन के लिए बहुत दूर तक चलना न पड़े. इसके बाद जब बाबा ट्रेन में चढ़े तो ट्रेन तुरंत चालू हो गई. इसी जगह पर रेलवे ने नीम करोली बाबा के नाम पर स्टेशन बनवाया है.|
इसी प्रकार अनेको संतो और सिद्ध पुरुषो ने अनेको चमत्कार किये है जिनका इतिहास में उल्लेख मिलता है इनकी सच्चाई पर कोई संदेह नहीं कर सकता है|
श्रीनिवास रामानुजन
रामानुजन बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने केवल 12 साल की उम्र से ही गणित के सूत्रों की खोज करना शुरू कर दिया था. कहा जाता है कि रामानुजन समय से बहुत आगे की सोचते थे. उनके रिसर्च पेपर किसी पत्रिका या जर्नल्स में नहीं छापे जाते थे, क्योंकि उनके सिद्धांतों को समझ पाना संपादकों के वश की बात नहीं थी.
गणित में ही नहीं, बल्कि मेडिकल साइंस में भी, कैंसर (Cancer) को समझने के लिए रामानुजन के इसी फार्मूले का इस्तेमाल किया जाता है. इसी फार्मूले की सहायता से यह तय किया जाता है कैंसर के किसी मरीज को कब और कितनी दवाई दी जानी चाहिए. इन सबसे पता चलता है कि रामानुजन अपने समय से कितना आगे चलते थे.
रामानुजन के नाम के साथ उनकी कुलदेवी का नाम जरूर लिया जाता है. रामानुजन बहुत धार्मिक और अध्यात्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे.
एक बार जब प्रो. हार्डी ने रामानुजन से पूछा कि 'आखिर तुम मैथ्स की प्रॉब्लम्स को देखते ही कैसे सॉल्व कर लेते हो और मैथ्स की नई-नई इतनी थ्योरम्स बनाते कैसे हो?' तब रामानुजन ने कहा कि “ये सभी फार्मूले मुझे मेरी नामगिरी देवी (देवी महालक्ष्मी जी) की कृपा से प्राप्त हुए हैं. वो बार-बार मेरे सपने में आकर मुझे गणित से जुड़े कई गूढ़ रहस्य और सूत्र बताती हैं. इसीलिए मैं जैसे ही किसी सवाल को देखता हूं, मुझे अपने आप ही उसका हल आ जाता है".
रामानुजन का धर्म और अध्यात्म में इतना गहरा विश्वास था कि वह गणित में किए गए अपने सभी कार्यों को अध्यात्म का ही हिस्सा मानते थे. वह धर्म और अध्यात्म को तर्क के साथ पेश भी करते थे. खुद रामानुजन का कहना था कि, "मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं, जिससे मुझे अध्यात्मिक विचार न मिलें."
शकुंतला देवी
‘गणित की जादूगरनी' कही जाने वाली भारतीय महिला शकुंतला देवी अपनी अद्वितीय मानसिक शक्ति के कारण विश्वभर में जानी जाती है। वे जितनी तेजी से गणित की गुत्थियों का हल निकालती हैं, उस शीघ्रता से कम्प्यूटर भी काम नहीं कर पाता। अपनी मनःशक्ति के बारे में उनकी मान्यता है कि यह केन्द्रित मन की मात्र छोटी सी शक्ति का नमूना भर है। यदि समग्र मनः सामर्थ्य को सुनियोजन किया जा सके तो इससे भी विलक्षण उपलब्धियां प्राप्त हो सकती हैं।
विदेशो में भी ऐसे चमत्कार होने का दावा मिलता और इसके प्रमाण भिभिन पुष्तकों में वर्णित किया गया है
'बिटवीन टू वर्ल्डस्' पुस्तक में डॉ० नैन्डोर ने ऐसे शक्ति संपन्न कितने ही व्यक्तियों का उल्लेख किया है। डॉ० बैन्जनोई भी उन्हीं में से एक हैं। बिना स्पर्श किए वे वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर खिसका देते हैं। उनकी इस विलक्षण सामर्थ्य की परीक्षा वैज्ञानिकों एवं पत्रकारों द्वारा ली जा चुकी है। डॉ० फोडोर ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि एक बार प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जुंग अपने मित्र मनोविज्ञानी डॉ० फ्रायड से मिलने गए। चर्चा संकल्प बल पर चल पड़ी। फ्रायड ने जुंग की इस बात को मानने से इन्कार कर दिया कि इच्छा शक्ति द्वारा जड़ वस्तुओं को भी प्रभावित किया जा सकता है। जुंग एक स्थान पर बैठ गए तथा उन्होंने अपनी प्रचंड संकल्प शक्ति का प्रयोग किया। ऐसा लगा कि कमरे की सभी वस्तुएं कांपने लगी हों, मेज पर रखी पुस्तकें कमरे की छत पर उछल कर जा चिपकी। फ्रायड को अपना मत बदलना पड़ा। इसे उन्होंने न केवल स्वीकार किया वरन् इसका अपने ग्रंथों में उल्लेख भी किया।
· अमेरिका का यूरी गैलर नामक व्यक्ति अपनी विलक्षण शक्ति के लिए काफी दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा। इच्छा शक्ति द्वारा वह दूर रखे चम्मच्, लोहे की छड़ों को तोड़-मरोड़ देने का प्रदर्शन विशाल जन समूह के समक्ष अनेक बार कर चुका है।
· ब्रिटिश काल में सर जॉन बुडरफ कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ मजिस्ट्रेट थे। एक संस्मरण में उन्होंने लिखा है कि एक बार वे ताजमहल के संगमरमर के फर्श पर बैठे थे। साथ में उनके एक भारतीय मित्र भी थे। बातचीत के प्रसंग में संकल्प शक्ति की चर्चा चल पड़ी। बुडरफ को इस पर विश्वास न था, मित्र से उन्होंने संकल्प शक्ति का प्रमाण देने को कहा। उनके भारतीय मित्र ने कहा कि एक छोटा प्रमाण तो मैं भी दे सकता हूं। सामने जो लोग बैठे हैं उनमें से आप जिसे कहें, उसे उठा दूं और वापस जहां कहें वहां बिठा दूं। बुडरफ ने उन व्यक्तियों में से एक को चुना और यह भी बता दिया कि उसे किस स्थान पर बैठाना है। मित्र ने अपनी शक्ति का प्रयोग किया। फलस्वरूप वह व्यक्ति अकारण उठा और बुडरफ द्वारा बताए गए स्थान पर जा बैठा। इस घटना का उल्लेख बुडरफ ने अपनी एक पुस्तक में विस्तृत रूप से किया है।
· कैपटाउन में एक इंजीनियर वानवांडे निवास करते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि समय उनकी इच्छा के अनुसार चलता है। उनका दिमाग उन्हीं निर्देशों का पालन करता है जो वे स्वयं को देते हैं। वे सोने जा रहे हों और आप कहें "महोदय ! अभी आठ बजे हैं, आप ठीक बारह बजकर सात मिनट उनसठ सैकिंड पर उठें।” एक सैकिंड का भी अंतर किए बिना वे उसी समय जग जाते हैं। इसका रहस्य बताते हुए वे कहते हैं—“मैंने अपने मस्तिष्क को इस प्रकार साधा है कि अचेतन-चेतन दोनों की स्थिति में मैं अपने क्रिया-कलाप नियंत्रित कर सकता हूं।”