कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२९) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२९)

ज्यों ही अचलराज ने दुर्गा बनी भैरवी का हाथ पकड़ा तो भैरवी बोली....
"मेरा हाथ छोड़ो,कोई देख लेगा तो क्या समझेगा?"
"क्या समझेगा भला? यही कि कहीं तुम मेरी प्रेयसी तो नहीं",अचलराज बोला...
"ए!अपनी सीमा में रहो",भैरवी क्रोधित होकर बोली...
"सीमा में तो हूँ ही देवी जी! और तुम जैसी लड़की भला किसी की प्रेयसी बनने योग्य है,मैं तो कभी भी तुम्हें अपनी प्रेयसी ना बनाऊँ",अचलराज बोला...
"तुम्हारी प्रेयसी बनने में रुचि है भला किसे",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"ओहो....तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि ना जाने कितनी ही सुन्दरियाँ मुझसे विवाह करने हेतु मरी जा रहीं है," अचलराज बोला...
"ओहो....तो फिर वें सभी सुन्दरियाँ दृष्टिहीन होगीं,क्योंकि मुझे तो तुम में ऐसा कुछ दिखाई नहीं पड़ता कि तुमसे विवाह हेतु कोई मरा जा रहा हो",भैरवी बोली...
"तुमने कभी स्वयं को देखा है कि तुम कैसी हो?,ना ही बुद्धि है,ना ही रूप और ना ही गुण",अचलराज बोला...
"मैं कुरूप और मूर्ख हूँ तो क्यों मुझसे इतनी देर से वार्तालाप कर रहे हो",दुर्गा बनी भैरवी चिढ़ते हुए बोली....
"समय काटने के लिए कोई तो चाहिए ना!",अचलराज बोला....
"अच्छा तो मैं तुम्हारे समय काटने का साधन हूँ और इसके सिवाय कुछ भी नहीं",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"अब तुम ठीक समझी,कितनी ज्ञानवान हो तुम",अचलराज बोला...
"अब भी कुछ बचा हो तो वो भी कह दो,मूर्ख,अज्ञानी और कुरूप तो मैं हूँ ही",भैरवी बोली....
"दुर्गा!तुम तो सच में मेरी बातों को हृदय से लगा बैठी,मैं तो परिहास कर रहा था",अचलराज बोला...
"मुझे निंद्रा आ रही है ,मैं सोने जा रही हूँ",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"अरे!तुम तो सच में रूठ गई,चलो कुछ देर और बातें करते हैं",अचलराज बोला...
"नहीं!मेरे पास अब तुम्हारी बातें सुनने का सामर्थ्य नहीं है",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"दुर्गा...!ऐसे मत रूठो,वो भी मुझसे रूठकर ना जाने कहाँ चली गई और अब तुम भी मुझसे रूठ जाओगी तो मैं कैसें जी पाऊँगा,आज तुमसे अपने हृदय की बातें कहकर अच्छा लग रहा है,ऐसा लग रहा कि जैसे मन से कोई भार उतर गया हो,तुम्हें ज्ञात है मैनें तुमसे सब क्यों कह दिया क्योंकि मुझे तुम में भैरवी का प्रतिरूप दिखाई देता है,"अचलराज बोला...
अचलराज की बातें सुनकर भैरवी का मन द्रवित हो उठा,वो अचलराज से कहना चाहती थी कि मैं ही वो भैरवी हूँ जिसे तुम अब तक नहीं भूले और तुमने मेरी स्मृतियों को अब तक सहेजकर रखा है,अचलराज ये मित्रता नहीं,प्रेम है भैरवी के प्रति,किन्तु उसने ये सब ना कहकर उसने अचलराज से पूछा....
"क्या तुम सच कह रहे हो?",
"हाँ!एकदम सच,झूठ कहूँ तो अभी मेरे प्राण चले जाएं",अचलराज बोला...
"ऐसा मत बोलो,प्राण जाए तुम्हारे शत्रुओं के",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"तो अब तो तुम मुझसे क्रोधित नहीं हो"अचलराज ने पूछा....
"नही!और कभी भविष्य में भी क्रोधित नहीं हूँगीं तुमसे",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"सच कहती हो,वचन दो कि कभी मुझ पर क्रोध नहीं करोगी",अचलराज बोला....
"हाँ!नहीं करूँगीं क्रोध,वचन देती हूँ",दुर्गा बनी भैरवी बोली..
और इस प्रकार दोनों के मध्य वार्तालाप चलता रहा ,इसके कुछ समय पश्चात दोनों वार्तालाप करके अपने अपने बिछौने पर सोने चले गए...
दिन इसी प्रकार व्यतीत हो रहे थे,अचलराज एवं दुर्गा बनी भैरवी के मध्य सम्बन्ध मधुर हो रहे थे,भैरवी को कभी कभी ऐसा प्रतीत होता कि वो कहीं अचलराज के संग कपट तो नहीं कर रही है अपनी सच्चाई ना बताकर,किन्तु उसका साहस ना होता अचलराज से सच कहने का,जो कुछ भी हो अचलराज को दुर्गा का संग अत्यधिक भाने लगा था और ये बात दुर्गा को भी भाती थी,दुर्गा बनी भैरवी को विश्वास था कि अचलराज अब तक भैरवी को विस्मृत नहीं कर पाया है तभी तो वो दुर्गा में भैरवी का प्रतिरूप देखता है और इधर कौत्रेय नहीं चाहता था कि कर्बला बनी कालवाची अत्यधिक समय तक मानवों के संग रहें इसलिए उसने कालवाची को भैरवी और अचलराज से दूर करने की योजना बनाई,उसने कालवाची को ये विश्वास दिलाना प्रारम्भ कर दिया कि अचलराज उसे यदा-कदा प्रेमभरी दृष्टि से देखता है,कहीं ऐसा तो नहीं कि अचलराज को तुम भा गई हो,कौत्रेय की बात सुनकर कर्बला बनी कालवाची बोली...
"कौत्रेय!क्या तुम सच कह रहे हो"?
"हाँ!मैं भला तुमसे झूठ क्यों कहूँगा",कौत्रेय बोला...
"ऐसा नहीं हो सकता कौत्रेय!मैं पुनः इस भ्रमजाल में नहीं फँस सकती,क्योंकि एक बार पहले मैं किसी से प्रेम करने का परिणाम भुगत चुकी हूँ,यदि इस बार मेरे हृदय पर आघात हुआ तो मैं सहन नहीं कर पाऊँगीं",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"कालवाची!तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि तुम कितनी सुन्दर हो और उससे भी अधिक तुम्हारा हृदय सुन्दर है,कदाचित तुम्हारे इन्हीं गुणों के कारण अचलराज तुम में रूचि लेने लगा हो",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"किन्तु अचलराज तो भैरवी के बचपन का मित्र है",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"कदाचित तुम भूल रही हो,वो तो केवल भैरवी बचपन का मित्र है,प्रेमी नहींं",कुबेर बना कौत्रेय बोल...
"ये सब तुम्हारे मन का भ्रम भी तो हो सकता है",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"भ्रम नहीं है ये मेरा ,यही सत्य है ",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"मुझे तो विश्वास ही नहीं होता",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"तो मत करो मेरी बात पर विश्वास",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"जब मैं ये सब स्वयं अनुभव करूँगी,तभी मुझे विश्वास होगा",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"मुझे कोई आपत्ति नहीं,मैं भी देखना चाहता हूँ कि तुम्हारा अनुभव क्या कहता है",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
उस समय कालवाची ने कौत्रेय की बात पर विश्वास तो नहीं किया किन्तु उसके मन में कौत्रेय ने भ्रम को तो स्थापित कर ही दिया था,कौत्रेय कालवाची को अपनी सच्ची मित्र समझता था तथा सदैव उसके हित के विषय में ही सोचता था,एक बार कालवाची कुशाग्रसेन के हाथों छली गई थी इसलिए कौत्रेय नहीं चाहता था कि कालवाची मनुष्यों के मध्य रहें और एक बार पुनः छली जाए,कौत्रेय को लगता था कि कालवाची को भैरवी की सहायता नहीं करनी चाहिए क्योंकि उसके पिता कुशाग्रसेन ने ही कालवाची के संग विश्वासघात किया था,इसी कारण कालवाची को इतने वर्ष तक एक विशाल वृक्ष के तने में बिताने पड़े,वो कालवाची को समझाना चाहता था कि ये मनुष्य जाति मित्रता के योग्य नहीं,ये केवल अपने लाभ देखती है किसी का करुणाभरा हृदय नहीं देखती एवं कालवाची का हृदय मलिन नहीं था ,वो तो केवल मनुष्यों की हत्या अपने भोजन हेतु करती थी एवं उस बात को ये मनुष्य जाति कभी नहीं समझेगी और ना ही कालवाची का दया भरा हृदय देख सकेगी,यदि कुबेर बना कौत्रेय सीधे सरल शब्दों में अपनी बात कर्बला बनी कालवाची को समझाना चाहता तो वो कभी भी इस बात को नहीं समझ सकेगी,इसलिए कुबेर बने कौत्रेय ने ऐसा मार्ग चुना था.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....