शीतलता
"अरे नई प्रतियोगिता आई है कहानी पटल पर जिसमें लिखना हैं ,तू बता क्या लिखेगी?"
रूकमनी ने चिड़िया की तरह चहकते हुये सरोज से पूछा फोन पर
"अरे कुछ नही मन नही है मेरा कुछ लिखने को तू लिख लेना "
इतना कहकर सरोज ने फोन काट दिया और सोचा
"आई बड़ी मुझसे पूछ रही थी फिर मेरे मुंह से निकल जाता ,तो कुछ जोड़कर लिख देती और ईनाम ले जाती ,पाँच बार से जीत रही ,मैं पागल सब बता देती ,अबकी बार नही चलने दूँगी "
यह सोच ही रही थी कि उसका बारह साल का बेटा रोते हुए आया और बोला
"मम्मी आप मुझे वो गियर वाली साईकिल क्यों नहीं दिलाती ,वरूण अपनी साईकिल नही देता मुझे और चिढ़ाता है,आगे आगे नचाता है मुझे बहुत जलन होती है"
"कोई बात नही बेटा पापा को आने दे तब बात करेंगे कूल हो जा "
सरोज ने दिलासा देते हुए बेटे को कहा
शाम हो चुकी थी दफ्तर से पतिदेव आ चुके थे ,सरोज ने आते ही पानी पिलाया और हाथ से बैग लेकर रूम में चली गयी।
पतिदेव आँखे मूंदकर सोफे पर सौ योजन का शरीर फैला चुके थे।
सरोज ने आकर पूछा सब ठीक ठाक आज उदास से क्यूँ लग रहे हो?ऑफिस में कुछ हुआ क्या ?
"अरे कुछ नही बस ,प्राइवेट नौकरी में कब तलवार लटक जाये कह नही सकते ,सारे सगे संबंधी भर लिये हैं कंपनी ने काम कुछ करते नही दिन भर पॉलिटिक्स और आर्डर देते ,मैं तो गधा बन रखा इतना काम करता लेकिन जब सैलरी बढ़ाने की बात आती तो दूसरों की ज्यादा बढ़ती, हर कंपनी में यही राग है कहाँ जाये समझ नही आता ,रह सब देखकर और छाती पर साँप लोटते। खैर छोड़ो मेरी तुम बताओ सब ठीक ठाक आजकल कहानियाँ नही लिख रहीं। तुम"
"चलिये बाद में बात करते हैं,पहले खाना लगा दूं आपके लिये"सरोज ने बात काटते हुए कहा।
किचिन में जाकर सरोज सोचने लगी कि यहाँ तो मैं ही जल रही थी लेकिन यह दोनों भी साँपों का जखीरा लेके बैठे।
भगवान सब लोग सीधे सीधे क्यों नही चलते ,क्यूँ परेशान करते ?"
वो सोच ही रही थी कि सासु माँ वृंदावन की यात्रा से वापस आ गयीं।
शाम को सभी लोग खाना पीकर खाकर माताजी के कमरे में उनको घेर कर बैठ गये ,सभी लोगों का रूटीन था यह कि रोज एक घंटे सरोज ,उसका बच्चा और पति, माता जी के साथ उनके कमरे में चादर बिछाकर बातें करतीं थे नियमित जिसमें अपनी बातें ,माता जी का अनुभव बच्चों के परेशानी सब पर बात होती थी और हल भी ढूंढे जाते।
सब लोग कमरे में पहुंच चुके थे चादर बिछाकर सरोज ने पहले माता जी से पूछा
"यात्रा कैसी रही माँ जी"
"अरे बेटा बहुत आनंददायक बिहारी जी ,राधा बल्लभ जी के दर्शन पाकर मन धन्य हो गया ,ऐसा स्थान हैं वृंदावन जहाँ सिर्फ प्रेम ही नियम है,अगर आपके भाव सच्चे हैं तो वरना तो लोग भगवान में भी कमी निकालते अहंकार के आधीन होकर
, खैर तुम लोग बताओ सब कैसा रहा दो महीने ऐसे बीते मालूम ही नही पड़ा।"
फिर सरोज ने एक साँस में सबके कलेजे पर साँप लोटने की कहानी सुनाई।
और पूछा माँ जी कैसे बचें इस स्थिति से
यह सुनकर माता जी मुसकराई और कहा
"अरे तुम लोग साँप नही अजगर लेके बैठे ,यह सब मानसिक तनाव देते कुछ नही तुम लोग जिन लोगों की बातों से परेशान हो उन्हें कुछ फर्क नही है यहाँ तुम लोग खून जला रहे,देखो सारी सृष्टि बनायी भगवान ने उन्ही के सब अंश है ,तुम दूसरा देखते तभी ईर्ष्या होती ,ईर्ष्या नही प्रेरणा की ओर सदैव देखो,देखो मंदिर में कितने विभिन्न देवी देवता हैं ,सब के कार्य क्षेत्र अलग अलग हैं ,सबमें ईश्वर को देखो और उनको कोई प्रति उत्तर ना दो ,ईश्वर से कह दो आपके ही माया है आप ही संभालो ,और उनके लिये प्रार्थना करो की भगवान कृपा करें देखना मन कितना शीतल हो जायेगा।
और हाँ ना अपनी छाती पर साँप लोटने दो ना दूसरे से ऐसा व्यहवार करो ,जो व्यवहार हमें खुद के लिए पसंद नही वो दूसरे के साथ नही करें विवेक से कार्य करो बस ,और सब प्रभू को अर्पित करते हुए चलो कभी द्वेष भाव नही आयेगा,अरे दूसरे की तरक्की अपनी तरक्की समझो मुस्कराकर बात करो बस "
अब तीनों की समझ में आने लगा था ।
अगले दिन सरोज ने पल्लवी चओ फोन किया और कहा
"बहन तुझे मस्त आइडिया देती हूँ ,कहानी के लिये और मैं लिखना बंद कर रही हूँ तुझे कोई भी हेल्प चाहिए मैं करूंगी और हाँ तेरा बुक निकालने का सपना पूरा करूंगी"
यह सब सुनकर पल्लवी को काटो तो खून नही वो रोकर बोली
"मुझे माफ कर दे सरोज तेरा दिल बहुत बड़ा है मैं कपटी थी मन मैं चोर था ,तेरी कहानी चुराती थी ,अब से मैं जब तक कहानी नही लिखूंगी जब तक मेरे अंदर से नही आयेगा,हर दिन पांच छह कहानी इधर ऊधर से चुराकर लिखती थी,और तुझे मेरी कसम तू लिखना बंद नही करेगी।"
दोनो तरफ से अश्रुधारा फूट पड़ी थी और ह्रदय शीतल हो रहे थे।
इधर ऑफिस में सरोज के पति को जो सबसे ज्यादा परेशान करता था उसके लिये दो चार दिन खूब मेहनत से रिपोर्ट तैयार करके दी और कहा
"सर आपके लिये कार्य करके बहुत अच्छा लगा और मुझे खुशी है इस रिपोर्ट से आपकी और तरक्की हो जायेगी"
यह सुनकर वो सर झेंप गये और कुछ नही बोल पाये अगले दिन सरोज के पतिदेव की टेबिल पर प्रमोशन लेटर रखा था ।
और सरोज के बेटे ने भी ईर्ष्या करनी छोड़कर साईकिल वाले लडके की तरफ मुस्कराकर अभिवादन करना शुरू कर दिया जिससे उस लड़के ने उसे चिढ़ाना छोड़कर दोस्ती कर ली और आज दोनो साथ में साईकिल चलाते हैं।
क्योंकि अब सब की ह्रदय पर साँप नही प्रेम लोटता है।