Garib ki Izzat - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

गरीब की इज्जत - पार्ट 3

रोज की तरह उसे जंगल का अफसर बेसब्री से उसका इंतजार करता हुआ मिला।लाजो को देखते ही वह मुस्कराकर बोला"आज तो तुमने देर कर दी।कब से तुम्हारी राह देख रहा हूँ"
"क्यो/"
"तुम्हारा सुंदर मुखड़ा देखकर दिल खुश हो जाता है।मन प्रफुल्लित हो जाता है।"
लाजो अपने रूप और सुंदरता की प्रशंसा सुनकर खुश हो गयी थी।पति न सही कोई तो है जो उसके रंग रूप की कद्र तो करता है।
लाजो लकड़ियां तोड़ने लगी।जंगलात का अफसर उसके साथ लकड़ी तुड़वाने लगा।उसने लाजो के साथ गट्ठर बनवाने मे भी उसकी बहुत मदद की।जब गट्ठर बन गया तब जंगलात का अफसर उससे बोला,"आज तुम्हे मेरे बंगले पर चलना होगा।"
"क्यो?"
"चाय पीने के लिए।""
"नही""
"क्यो?"
"मुझे घर पहुचने में देर हो जाएगी।"
"चिंता मत करो।ज्यादा देर नही लगेगी।"
लाजो जंगलात के अफसर के बंगले पर जाना नही चाहती थी।पर बार बार उसके कहने पर वह उसके आग्रह को टाल नही सकी।और लाजो को उसके साथ जाना पड़ा।
"तुम बैठो।मैं अभी आया।"लाजो को ड्राइंगरूम में बैठाकर वह किचन में चला गया।लाजो कमरे को निहारने लगी।दीवारों पर जंगल के चित्र लगे हुए थे।कुछ देर बाद वह चाय की ट्रे लेकर आया था।चाय की ट्रे मेज पर रखते हुए वह बोला,"इस तरह क्या देख रही हो लाजो?
"तुम घर मे अकेले रहते हो?"
"फिलहाल तो मैं अकेला ही हूँ,"जंगलात का अफसर बोला,"तुम अगर आ जाओ तो हम दो हो जाएंगे "
"धत्त",लाजो शरमा गयी।
"क्या कुछ गलत कह दिया?"उसे शरमातेहुए देखकर वह बोला,"मैं किसी की लुगाई हूँ।"
"अब तुम किसी की हो।पहले मिली होती तो अपने दिल की रानी बना लेता।"
हश"लाजो के शरमाने पर जंगलात का अफसर हंसते हुए बोला,"मै तो मजाक कर रहा था।लो चाय पीओ।"
अफसर ने एक कप लाजो को दिया था।चाय पीते हुए अफसर लाजो से बाते भी कर रहा था।चाय पीने के बाद लाजो बोली,"अब चलू"
लाजो चलने के लिए उठी और फिर सिर पर हाथ रखकर बैठ गयी।
"क्या हुआ लाजो।"
"मुझे चक्कर आ रहे है।मेरा सिर घूम रहा है।मुझ से चला नही जा रहा।"लाजो ने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया।
"अरे।चक्कर आ रहे है।आओ मेरे साथ
अफसर ने लाजो को हाथ पकड़कर उठाया।वह उसे अपने बेड रूम में ले गया।उसे बिस्तर पर लेटाते हुए बोला,"कुछ देर आंखे बंद करके ऐसे ही लेटी रहो।आराम आ जायेगा।"
लाजो बिस्तर में लेट गयी।आराम मिलने की जगह उसका सिर तेजी से घूमता रहा।आंखे झुकती हुई चली गयी।लाख प्रयास करने पर भी वह अपनी पलको को खुला नही रख पाई।उसे ऐसा लग रहा था,मानो वह ऊंचाई से दूर घाटी में नीचे गिरती जा रही हो।
और जब लाजो की आंखे खुली तो वह बेडरूम का दृश्य देखकर दंग रह गयी थी।हतप्रद थी।हक्की बक्की रह गयी थी।
लाजो छोटे से गांव की रहने वाली अनपढ़,गंवार जरूर थी।लेकिन थी तो औरत।भले ही गंवार हो लेकिन ना समझ नही।वह अपनी अवस्था देखकर समझ गयी थी कि उसके साथ क्या हुआ होगा।वह जंगलात के अफसर को देवता समझती थी।लेकिन वह तो देवता के लिबास में दानव था।जिसे वह राम समझती थी,वह रावण था।
उसने उसे अपनी सज्जनता के कुटिल जाल में फंसाया था।और वह उसकी कुटिलता को पढ़ नही पाई और उस पर विश्वास कर लिया।जब उसका विश्वास जम गया तब वह उसे अपने घर ले आया और चाय में कुछ मिलाकर

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