अपना आकाश - 20 - निर्धन घरों के बच्चे कैसे पढ़ पाएँगे? Dr. Suryapal Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपना आकाश - 20 - निर्धन घरों के बच्चे कैसे पढ़ पाएँगे?

अनुच्छेद- 20

निर्धन घरों के बच्चे कैसे पढ़ पाएँगे?

तन्नी की परीक्षा का पहला दिन। भौतिकी प्रथम प्रश्न पत्र प्रबन्धक के आदमियों ने आकर पूछा, 'आपने रुपये नहीं जमा कराए। अच्छे अंक की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं हो सकता है उत्तीर्ण होने में भी बाधा आए।'
'दस दिन बाद रसायन का प्रश्न पत्र है । उस दिन दे दूँगी।' तन्नी के मुख से कैसे निकल गया यह वह स्वयं न जान पाई। बापू पैसा पाते ही पाँच हजार दे देंगे। इतना वह अनुभव करती है। किसी काम के लिए उन्होंने मना नहीं किया, चाहे गेहूँ बेचकर ही देना पड़ा हो। बापू का सहज स्वभाव ही तो उसका सम्बल है ।
परीक्षा कक्ष से निकलते ही उसका मस्तिष्क चकरा गया। ' तूने पाँच हजार देने का वादा कर लिया। क्या ज़रूरत थी वादा करने की । तुमने पढ़ा है पढ़कर पास होना है, रिश्वत देकर नहीं । अब न पाएँगे वे तो? कुछ नुकसान कर सकते हैं। तुझे देना ही है।' मन उद्विग्न हो गया। बहिनजी भी रुपया देने के पक्ष में नहीं थीं। तेरा आत्मविश्वास डगमगा गया। आत्म विश्वास डोलते ही उनका काम बना। ज्यादा से ज्यादा अनुत्तीर्ण हो जाती तू । अनेक तरह की बातें मन में उगती रहीं।
लड़कियाँ सड़क पर आ गईं। अनेक के अभिभावक लेने के लिए आए थे । तन्नी किसी टैक्सी की प्रतीक्षा में खड़ी रही। उसी के पास एक लड़की अपने छोटे भाई के साथ खड़ी थी।
'आपने परीक्षा दी है?" तन्नी ने पूछ लिया ।
'नहीं, बी०एड० में प्रवेश लिया है।'
'सुना है बी०एड० में फीस बहुत पड़ती है।'
'हाँ सत्तर हजार तो फीस के नाम पर।
'क्या इसके बाद भी...........।
'इसके बाद यदि आप नहीं आना चाहते तो पन्द्रह हजार और....।'
'अरे.......।'
'इतना ही नहीं यदि आप प्रयोगात्मक में भी नहीं आना चाहते और अंक अस्सी प्रतिशत से अधिक चाहते हैं तो पन्द्रह हजार और ।'
'इसका मतलब एक लाख दे दो तो सीधे परीक्षा में बैठो।'
'हाँ, सरकार ने फीस तो सत्ताइस हजार पाँच सौ छत्तीस रुपये निर्धारित किया है। लेकिन किया करे। कोई वे रसीद देते हैं। सिद्धान्त की पढ़ाई और लिखाई अपने से कर लो।'
तब तक एक टैक्सी आ गई। तीनों उसी में किसी प्रकार बैठ गए। चालीस मिनट बाद तन्नी वत्सला की माँ के सामने थी ।
'पर्चा अच्छा हुआ न?' अंजलीधर ने पूछा ।
'हाँ माँ जी' ।
"मैं जानती थी कि तेरा पर्चा अच्छा होगा। इतनी सुशील एवं मेहनती लड़की का पर्चा कैसे खराब हो सकता है? ऊपरवाला भी कुछ देखता है न?" 'लेकिन माँ जी, ऊपरवाला गलत लोगों के कामों को क्यों नहीं देखता?" 'इस सवाल का जवाब दे पाना कठिन है रे। गजक का टुकड़ा खाकर पानी पी लो। फिर बैठो।' अंजली ने निर्देश दिया। तन्नी उठ गई। पानी पीकर सब्जी काटने लगी। अभी वत्सला जी नहीं आई थीं।
बापू को दो तीन दिन में रुपये मिल जाएंगे। क्या वह रुपये न दे?.........परेशान करेंगे वे । कुछ भी कर सकते हैं। रुपये का नोट क्या न करा दे। कैसा समाज बन गया है? बच्चे कैसे पढ़ पाएँगे? बी.एड. की लड़की ने जो कुछ बताया वह ? मुझे अगर कुछ करने का मौका मिले तो इस तरह के कामों को बन्दा करा दूँ । पर तुझे अवसर ही क्यों मिलेगा ? सुनती हूँ रुपये लेकर मान्यता दी जा रही है। उन्हें कमाने की छूट है तभी तो बिना किसी भय के लोग रुपये वसूल रहे हैं।
सब्जी काट चुकी तो मेज पर रखे अखबार पर नज़र पड़ गई। 'महाविद्यालयों में परीक्षा के दौरान वसूली' शीर्षक देखकर पढ़ने लगी अरे यह तो उसके ही परीक्षा केन्द्र की खबर है। किसी पत्रकार की दृष्टि में यह वसूली आ गई है। उसने अच्छा काम किया है। हो सकता है रुपये देने से छुट्टी मिल जाए उसे पत्रकार को उसने मन ही मन धन्यवाद दिया ।
दूसरे दिन शाम को एक युवक वत्सला जी से मिलने आया। तन्नी ने ही दरवाजा खोला। 'बहिन जी हैं?' उसने पूछा ।
'हाँ हैं। आइए।'
युवक ऊपर आ गया । वत्सला जी भी बैठक में आ गईं। युवक का नाम विपिन सरकार पत्रकारिता से जुड़ा हुआ।
'पत्रकारों के काम की तारीफ कर रही थी तन्नी । आपने महाविद्यालय में वसूली के बारे में लिखा, यह अच्छी बात है। लोगों को पता तो चले।' वत्सला जी ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। 'कल ही से मुझे धमकियाँ मिल रही हैं।'
विपिन ने बताया ।
"क्या?"
'हाँ । हो सकता है पत्र के मालिक भी मुझे हटा दें।'
'क्यों?"
'क्योंकि गलत करने वाले महाविद्यालय लाखों का विज्ञापन देते हैं। उनकी शिकायत ।'
'तब तो महाविद्यालय के प्रबन्धक पर कोई असर नहीं होगा।'
'कहाँ असर हो ही रहा है। इससे इतना ही होगा कि अधिकारीगण उस रुपये में कुछ बँटा लेंगे।'
"कैसे सुधरेंगे लोग?”
‘कौन सुधर रहा है। नेता और अधिकारी भी सुधार नहीं चाहते हैं। वे पीठ ठोंकेंगे कि आपने ही सही रिपोर्ट दी और चुपके से उस रिपोर्ट से लाभ उठा लेंगे। एक बार मुझे पता चला कि एक चावल मिल में बिजली चोरी हो रही है। मैंने एक छोटी सी खबर बनाई। वह छप भी गई। कमिश्नर साहब ने बुलाकर मेरी पीठ ठोंकी। कुछ दिन बाद पता चला कि मिल मालिक से उनके पेशकार ने कहा की पाँच बोरी चावल भेजवा दो। तुम्हारे खिलाफ बिजली चोरी की शिकायत हुई है। पाँच बोरी चावल भेजकर वह निश्चिन्त हो बिजली चोरी करता रहा। मेरी रिपोर्ट से कमिश्नर साहब को पाँच बोरा चावल मिल गया। कभी मैं उम्मीद नहीं करता था कि कमिश्नर साहब के यहाँ से ऐसा होगा।' 'जिसकी उम्मीद नहीं थी वही हो रहा है।' वत्सला की टिप्पणी के साथ ही तन्नी ने दो कप चाय नमकीन लाकर रखा।
'अपना कप भी यहीं ले आओ।' बहिन जी ने कहा। तन्नी अपना कप लेकर बैठ गई । 'तन्नी भी उसी महाविद्यालय में परीक्षा दे रही है।'
'अच्छा!' सरकार कुछ चकित हुआ ।
'अनुदानित में प्रवेश नहीं मिल पाया इसीलिए.....।'
वत्सला जी ने भी लम्बी साँस ली।
'निर्धन घरों के बच्चे कैसे पढ़ पाएँगे अब?"
'अब चलूँगा । यदि यहाँ रहा तो फिर आऊँगा।'
विपिन सरकार की पीड़ा अन्दर से फूट रही थी।
'हताश होने की ज़रूरत नहीं। मूल्यों की लड़ाई हमेशा कठिन रही है।'
विपिन सरकार चला गया। तन्नी ने तीनों कप उठाया और धोकर रख दिया ।
'सही रिपोर्ट करना भी कितना कठिन होता जा रहा है। कैसे पूरा होगा चौथे खम्भे का उद्देश्य?' बहिन जी स्वयं भी विपिन सरकार की पीड़ा में सम्मिलित होते हुए उठीं।