अपना आकाश - 5 - आपका लक्ष्य? Dr. Suryapal Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपना आकाश - 5 - आपका लक्ष्य?

अनुच्छेद-5
आपका लक्ष्य?

दशहरे के एक सप्ताह पूर्व कक्षाएँ प्रारम्भ हो गई। बी.एस-सी. प्रथम वर्ष की अन्तिम प्रवेश सूची में इण्टरमीडिएट में ६४.७ प्रतिशत से ऊपर जिनके अंक थे केवल उन्हीं का प्रवेश हो पाया। वे छात्र जो छात्रसंघ का चुनाव लड़ना चाहते थे, दौड़-धूप कर छात्र-छात्राओं को आश्वस्त करते रहे पर कोई दबाव नहीं बना सके । पिन्टू और उनके साथी क्रमिक अनशन पर बैठे ।
इसी बीच शासन ने लिंगदोह समिति की संस्तुतियों को आधार बनाकर छात्रसंघ गठन के नए नियम बना दिए। इन नियमों के आधार पर पिन्टू चुनाव नहीं लड़ सकते। उन्होंने कहना प्रारम्भ किया कि वे छात्रहितों की रक्षा के लिए अनशन पर बैठे हैं। चुनाव लड़ना उद्देश्य नहीं । कालेज प्रशासन ने दशहरा की छुट्टी दो दिन पहले से कर दी । अनशनकारी छात्रों को अपना आन्दोलन स्थगित करना पड़ा। छात्र नेताओं ने कहा- हमने आन्दोलन स्थगित किया है, खत्म नहीं ।
दशहरे की छुट्टी के बाद कालेज खुला तो छात्र संघ चुनाव की तिथियाँ घोषित हो गई। अब छात्र विभिन्न गुटों में बँटकर प्रचार करने लगे । प्रशासन को थोड़ी मुक्ति मिली। छात्र आन्दोलन भी अपनी चमक खो बैठा है। स्ववित्त महाविद्यालयों की संख्या अनुदानित महाविद्यालयों से काफी अधिक है।
कई जनपदों में अनुदानित महाविद्यालय एक या दो हैं तो स्ववित्त पोषित महाविद्यालय अठारह-बीस इन महाविद्यालयों में प्रबन्ध तंत्र की इतनी हनक रहती है कि छात्र संघ बनने का प्रश्न ही नहीं उठता। निजीकरण बढ़ा तो छात्रसंघों की गतिविधियों पर भी असर पड़ा।
उम्र अधिक होने के कारण 'पिन्टू' प्रत्याशी नहीं बन सके पर उनकी जानकारी और समझ छात्रहित को भली भाँति पहचानती थी। धन और बाहुबल उनका अस्त्र नहीं था। वे सरल थे। छात्रहित के लिए काम भी करना चाहते थे। प्रारम्भिक कक्षाओं में उनकी उम्र उनके बड़े भाई के बराबर लिख गई और वही उनके प्रमाण पत्र में भी आ गई। उन्होंने एम. ए. इतिहास के छात्र रामनरेश से अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए कहा। पहले तो वह हिचका पर 'पिन्टू' के समझाने पर तैयार हो गया । पिन्टू जाति के आधार पर वोट नहीं माँगना चाहते थे। रामनरेश मौर्य थे। मौर्य बच्चों की संख्या महाविद्यालय में अधिक नहीं थी। 'पिन्टू' ने राम नरेश को आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराकर पुष्ट किया। मैदान में दो बाहुबली भी थे जिनके साथ कट्टा लिए हुए लड़के घूमते । वे दोनों जीप और कार से प्रचार करते । एक को सत्ताधारी दल का दूसरे को विपक्षीदल के विधायक का समर्थन प्राप्त था। दोनों ऊभ- चूभ थे। रात तीन बजे तक प्रचार कार्य में जुटे रहते। गाँव गाँव घर घर विद्यार्थियों के पाँव पकड़ते । पिन्टू के साथ राम नरेश भी साइकिल से चलते। रात में क्षेत्र में ही किसी के यहाँ रुक जाते। दो दिन बाद अड्डे पर लौटते । राम नरेश का एक बैनर कालेज के समीप लगा था। दोनों प्रत्याशियों के बैनर, पोस्टर से शहर पटा पड़ा था। यद्यपि प्रचार के लिए बहुत समय नहीं मिला था पर उपलब्ध समय का प्रत्याशियों ने भरपूर उपयोग किया।
बहुत से विद्यार्थी मतदान के लिए नहीं आते थे । पिन्टू और रामनरेश ने उन्हें समझाया। उन्होंने बताया कि जिन वर्षो में छात्रसंघ नहीं रहा, विद्यार्थियों के लिए पुस्तकें कम खरीदी गईं, वाचनालय में पत्रिका कम आई । वाचनालय पूरे समय नहीं खुला। यही नहीं महाविद्यालय में किसी बहाने छुट्टी भी अधिक कर दी गई। हम चाहते हैं कि महाविद्यालय में पठन-पाठन का परिवेश बने । कक्षाएँ सुचारु रूप से चलें। उपयुक्त परिवेश बनाने में जो बाधाएँ आएँ, उन्हें दूर किया जाए। अध्यापकों का सम्मान हो और छात्र अपने भविष्य की तैयारी कर सकें। प्रयास यह किया जाए कि महाविद्यालय 180 दिन खुल सके। इन बातों को उसने एक पर्चे में छपवाकर छात्र / छात्राओं में वितरित किया। दोनों अन्य प्रत्याशियों के भी पर्चे छपे थे। पर उनकी भाषा और सामग्री भी युद्ध छेड़ने जैसी थी। उसमें तार्किकता एवं समझ का अभाव था ।
शनिवार को मतदान था । रातभर प्रत्याशी और उनके समर्थक भागते रहे । सबेरे सभी प्रत्याशियों के शिविर लगे। गहमागहमी के बीच मतदान शुरू हुआ। पुलिस व्यवस्था चुस्त एवं पर्याप्त होने के कारण शान्ति पूर्वक चुनाव सम्पन्न हुआ। जनपद के सभी थानों से पुलिस बल आहूत कर लिया गया था। लंच और उपाहार की उत्तम व्यवस्था से पुलिस बल, अध्यापक, कर्मचारी सभी संतुष्ट । चार बजे सायं मतदान खत्म हुआ। अल्पाहार के बाद पाँच बजे से मत गणना प्रारम्भ हुई। सभी प्रत्याशी, उनके समर्थक साँस रोके परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे। बाहर सड़क पर कभी कभी नारे भी लग जाते, फिर शान्ति छा जाती । सायं आठ बजे जब रामनरेश अध्यक्ष पद का चुनाव जीते, सभी बाहुबली चौंक गए। सीधे सादे रामनरेश समर्थक खुशी से झूम उठे । प्रशासन को भी लगा कि अच्छा ही हुआ । फूल मालाओं से लदे रामनरेश से एक पत्रकार ने पूछा, 'आपका लक्ष्य ?' 'बेहतर पठन-पाठन का परिवेश निर्मित करना', रामनरेश ने तपाक से कहा। उपस्थित जन भी रामनरेश के इस सटीक जवाब से प्रसन्न हो उठे। महामंत्री पद पर भी आमोद तिवारी को चुना गया। उसकी साख अच्छी थी, मेहनती, प्रबुद्ध। अन्य पदों पर भी जीतने वाले छात्र पठन-पाठन के परिवेश को समुन्नत करने के ही पक्ष में। बाहुबलियों की पूरी गोल ही छात्रसंघ से गायब थी। जो भी सुनता, चकित हो जाता पर यह सच था। सीधे सरल छात्र छात्रसंघ में पहुँच गए थे बाहुबलियों, धनिकों को हराकर । बाहुबली सांसदों विधायकों को भी एक झटका लगा। उनके उम्मीदवारों का पटखनी खा जाना उन्हें कैसे अच्छा लगता? अपने लोगों को उन्होंने समझाया, 'चलेगी तुम्हीं लोगों की, हार गए तो इससे क्या हुआ? वह लड़का क्या कर पायेगा? ठेका पट्टा तो मुझे देना है वह तुम लोगों को मिलता रहेगा । धैर्य रखकर कार्य करो।'
हारे हुए बाहुबलियों को संतोष मिला। उन्होंने कमर कसा प्रचार करना शुरू किया कि वर्तमान अध्यक्ष किसी काम का नहीं है। वह प्रशासन से लड़कर कोई काम नहीं करा सकता। प्राचार्य के सामने भी चुनौती थी । हारे हुए बाहुबली बौखलाए हुए थे। वे रामनरेश के सामने अनेक समस्याएं खड़ी करते । प्राचार्य और रामनरेश की संवेदनशीलता के कारण उनका निदान हो जाता पर निरन्तर सचेत रहना पड़ता ।
हारे हुए प्रत्याशियों ने प्रवेश का मामला फिर उठाया। प्राचार्य ने विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित सीटों का विवरण देते हुए बताया कि सीटों की संख्या से अधिक का प्रवेश सम्भव नहीं है। छात्र संघ के पदाधिकारियों ने प्राचार्य के तर्कों से सहमति क्या जताई कि हारे हुए प्रत्याशी एक जुट हो चिल्ला पड़े, 'अध्यक्ष चापलूस है, नकारा है। हम इन्हें अध्यक्ष नहीं मानते।' पर रामनरेश की समझदारी और छात्रहित के कामों से महाविद्यालय में पठन-पाठन का परिवेश सुधरने लगा । वाचनालय समय से खुलता। छात्र उसमें बैठकर पढ़ते। छात्राओं के लिए अलग सीटों की व्यवस्था हुई। नई पुस्तकें आईं। छात्रों को आवंटित की जाने लगीं। इन सकारात्मक कदमों का अच्छा प्रभाव पड़ा। छात्रों में रामनरेश की साख बढ़ी। हारे हुए छात्रों का व्यवधान डालने का प्रयत्न उनके लिए भी कोई सार्थक उपलब्धि नहीं दे पाया। प्राचार्य ने भी ध्यान रखा कि छात्रहित का कोई भी कार्य जो वित्तीय सीमाओं के अन्दर सम्भव है, अधूरा न रह जाए। नकारात्मक दृष्टि वालों के प्रयास कब तक चलते? वे सभी कालेज से गायब रहने लगे। कभी कभी आ जाते। जब कभी आते, कोई न कोई समस्या खड़ी करने का प्रयास करते। कुछ अध्यापक भी दबे दबे उनके कामों में सहयोग करते। कुछ लोग अव्यवस्था का लाभ उठाते हैं, उन्हें अच्छी व्यवस्था खलती है। इसीलिए कहा जाता है कि हर नवाचार का कुछ समर्थन करते हैं, अधिकतर तटस्थ रहते हैं और कुछ विरोध करते हैं। कुशल प्रशासक तटस्थ लोगों को भी सक्रिय कर लेता है। प्राचार्य और राम नरेश के संयुक्त प्रयास से यह स्थिति बनी। कालेज में पठन-पाठन का परिवेश सुधरा तो सामान्य छात्रों को प्रसन्नता हुई। वे लाभान्वित हुए।