तमाचा - 39 - (गुल ) नन्दलाल सुथार राही द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तमाचा - 39 - (गुल )

"नमस्ते आंटी जी।" बिंदु ने घर का मुख्य दरवाज़ा खोलते हुए कहा। जहाँ सारिका खड़ी थी।
"नमस्ते ,कैसी हो बिटिया?"
"अच्छी हूँ। आप कैसे हो?"
"मैं भी ठीक हूँ। अब अंदर आऊँ या यहीं से सब बातचीत करे।" सारिका ने हास्य भाव के साथ बोला।
"आइए ना! आप आजकल ऐसे कम ही आती हो ना घर पर। तो मैंने सोचा कोई काम है।" बिंदु ने सारिका को अंदर बुलाते हुए कहा।
"नहीं , आज तो मैं घर पर बैठी बोर हो रही थी। तब सोचा तुम्हारे पास आ जाऊँ कुछ गपशप लगाने।" सारिका ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
"यह तो अच्छा किया ना आपने। आया करो ऐसे मेरे भी टाइम पास हो जाया करेगा।" बिंदु ने उन्हें पानी का गिलास थमाते हुए बोला।
"तुम बैठो भी अब। अभी चाय वाय मत बनाने लग जाना। अभी पीकर ही आयी हूँ। बस तुमसे बातें करने आई हूँ।" सारिका ने बिंदु को पास बैठाते हुए कहा।
"यह क्या बात हुई! थोड़ी सी तो पीनी पड़ेगी।" बिंदु ने कुछ आग्रह करते हुए बोला।
"चलो अभी नहीं थोड़ी देर बाद पीते है। अच्छा एक बात बताओ। मैं तो एक दिन भी अकेली हो जाऊं तो मेरा दम घुटने लगता है। तुम भला कैसे दिन भर अकेली रह लेती हो? तुम बोर नहीं होती?" सारिका ने अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु पहला प्रश्न पूछते हुए कहा।
"कभी - कभी मन बहुत ख़राब हो जाता है। बाकी अब तो आदत सी हो गयी है। " बिंदु ने एक गहरी आह भरकर कहा।
"हाँ , फिर भी कभी किसी फ्रेंड के साथ भी देखा नहीं तुम्हें। पता नहीं कैसे रह लेती हो ऐसे? मैं तो घड़ी भर न टिक पाउँ।" सारिका ने एक निरर्थक मुस्कान बिखरते हुए कहा।
"वैसे मेरे तो है नहीं ऐसे फ्रेंड्स जिसके साथ बातें करूँ ज्यादा। " बिंदु ने अपने बालों की एक लट को अपने कोमल कपोल से कान के पीछे रखते हुए बोला।
"अच्छा...तो फिर...बॉ..य... फ्रेंड..।" सारिका ने चुलबुले स्वर के साथ बोला।
"नहीं तो आंटी जी। कोई नहीं है।"बिंदु ने शर्माते हुए बोला।
"आज कल तो यह जैसे ट्रेंड जैसा चल रहा है। तुम भला कैसे पीछे रह गयी।" सारिका ने पुनः बिंदु से कुछ फ्रेंडली होते हुए कहा।
"बस ऐसे ही आंटी जी।" बिंदु ने अपनी नादान नजरों को हल्का सा झुकाते हुए कहा।
"अच्छा फिर लगता है विक्रम ने कोई लड़का देख लिया है तुम्हारे लिए और तुमने मुझे अभी तक बताया तक नहीं।" सारिका उसको कुछ छेड़ते हुए बोली।
"नहीं तो आंटी जी। अभी तक कुछ नहीं देखा।" बिंदु पुनः अपने शर्मीले स्वर में बोली।
"फिर भला क्या कर रहे है विक्रम जी? उनको तो लगता है फिक्र ही नहीं है। अच्छा ..मैं देंखूं तुम्हारे लिए लड़का।" सारिका ने तिरछी नजरों का प्रहार बिंदु पर करते हुए बोला।
"नहीं तो ऐसी जल्दी नहीं है आंटी जी।" बिंदु पहली बार किसी लड़के के बारे में सुनकर रोमांचित हो उठी। वह जानबूझकर बात टालते हुए बोली।
"ओये होये! शर्मा रही हो। मेरी नज़र में वैसे एक लड़का है। वह कुछ दिनों बाद जैसलमेर आने वाला भी है।उसको तुम्हें दिखाना ही है बस और तुम तो हो ही इतनी प्यारी की तुम्हें भला वो ना कैसे दे सकता है।" सारिका मन ही मन अपनी चाल पर सफल होती देख मुस्कुराते हुए बोली।
"जैसलमेर आने वाला है मतलब? वो कहाँ के है?" बिंदु ने अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु पूछा।
"अरे वाह! मतलब लड्डू तो इधर भी फूट रहा है।"सारिका पुनः उसको छेड़ते हुए बोली।
"क्या आंटी जी आप भी!" बिंदु सारिका का मीठा प्रतिकार करते हुए बोली।
"वैसे वो जोधपुर के है। नाम है शरद। अभी कुछ दिनों में आएगा तब मिल लेना। पर टेंशन यह है कि विक्रम जी कैसे मानेंगे?" सारिका ने बनावटी चिंता मुखमंडल पर लाते हुए कहा।
"हाँ आंटी जी। पापा नहीं मानेंगे। उनको क्या पड़ी है मेरी। वो तो अपनी दुनियाँ में मस्त है। आप मेरी टेंशन लेना छोड़ दो।" बिंदु के मन में विक्रम का ख़याल आते ही उसकी मासूमियत जैसे गुम हो गयी ।
"तुम्हारी टेंशन भला क्यों छोड़ दूँ। एक औरत हूँ ना! मैं ही तुम्हारी प्रॉब्लम समझ सकती हूँ। मर्दो को भला क्या पड़ी। तुम टेंशन मत लो। विक्रम जी को तो मैं मना ही लूँगी।" सारिका ने अपने चाल सफल होने पर अतिरिक्त अंहकार के भाव के साथ बिंदु को बोला।

बहुत समय के पश्चात आज बिंदु का मन हर्षित हुआ। उसने सोचा शायद अब उसकी जिंदगी कुछ बदलेगी। उसकी उदासी के बादल शायद अब कहीं दूर चले जायेंगे। उसकी जिंदगी भी अब किसी गुलाब के फूल की खुश्बू की जैसे महकेगी। पर वो अनजान थी कि उसकी जिंदगी आगे क्या -क्या गुल खिलाएगी........


क्रमशः.....