हवाई सफ़र.. Diya Jethwani द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हवाई सफ़र..

हवाई सफर.... जब भी कोई पहली बार हवाई सफर करता हैं तो उसके लिए यह कभी ना भूलने वाला पल बन जाता हैं..। मेरा पहला हवाई सफर कुछ ज्यादा ही अविस्मरणीय था..। मैं अपने पहले हवाई सफर को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित था..। महीने भर पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी थी..। आखिर सफर भी तो लंबा था ना...। मैं अपने बड़े भाई से मिलने जो की साऊदी में रहता था.... वहाँ जा रहा था..। टिकट , वीसा.... हर तरह का इंतजाम भाई ने ही किया था..। मेरे परिवार में सिर्फ भाई -भाभी ही थे...। माँ - बाऊजी की मृत्यु के बाद भाई बाहर कमाने चले गए..। बाद में भाभी को भी लेकर गए..। मुझसे भी बहुत कहा... पर मैं भारत से बाहर जाना ही नहीं चाहता था...। वो भी अपने घर को छोड़कर तो बिल्कुल भी नहीं..।
खैर अभी बात करते हैं मेरे सफर की... पहली बार हवाई जहाज में बैठ रहा था... वो भी अकेले...। उत्साह के साथ थोड़ा डर ओर बैचेनी भी थी...। लेकिन कुछ देर बाद ही जब हवाई जहाज हवा में उड़ा तो सारी बैचेनी और डर ना जाने कहां घुम हो गया...। मैं अब सफर के मजे ले रहा था...।
बादलों के बीच उड़ता जहाज... कितना मनमोहक दृश्य था वो...। ऊपर से दुनिया कितनी प्यारी और छोटी लगती हैं...। एक एक पल का आंनद उठा रहा था...।
प्लेन को उड़े अभी कुछ ही समय हुआ होगा की मेरा सारा उत्साह धुमिल हो गया...।
अचानक अनांऊस हुआ की प्लेन में तकनीकी खराबी हो गई हैं..। थोड़ी ही देर में प्लेन हिचकोले खाने लगा...। प्लेन में बैठा हर शख्स पसीने से तर बतर हो गया...। सभी के चेहरे पर डर साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था...। चारो तरफ़ डर और भय का माहौल पसर गया...। बुजुर्गों और बच्चों का रोना , अन्य यात्रियों की प्रार्थनाएं, शोर शराबा.... एक डरा देने वाला दृश्य छा गया था...। ऐसा लग रहा था जैसे हम सभी मौत की आगोश में जा रहे हैं...।
लेकिन इन सब के बीच मेरी नजर एक नौ - दस साल की छोटी बच्ची पर गई....। बाकी सभी यात्रियों के विपरीत वो बिल्कुल शांत और चुपचाप बैठी थीं...।
मैं कुछ देर उसको देखता रहा.... फिर रहा नहीं गया तो पूछ बैठा... बेटा तुम्हें पता हैं अभी क्या हो रहा हैं..?

उसने बड़ी मासुमियत से जवाब दिया :- हां अंकल.... प्लेन में कुछ खराबी हो गई हैं..। इसलिए सब डर रहें हैं...।

मैंने फिर कहा :- तो तुम्हें डर नहीं लग रहा..?

उसने फिर से बड़े प्यार से उतर दिया :- नहीं अंकल... मुझे बिल्कुल डर नहीं लग रहा हैं...।

क्या मैं इसकी वजह जान सकता हूँ..?

हां... अंकल... दर असल इस प्लेन के जो पायलट हैं... वो मेरे पापा हैं...। मुझे उन पर पूरा विश्वास हैं... वो मेरा बाल भी बांका नहीं होने देंगे...। वो जरूर पूरी कोशिश करेंगे... ओर हम सभी को सुरक्षित पहुंचा देंगे... इसलिए मुझे बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा....।


उस बच्ची की बात सुनकर मैं कुछ क्षण के लिए सोच में पर गया...।ओर मन ही मन बच्ची के विश्वास को बनाए रखने की दुआ भी करने लगा...।


इसे एक चमत्कार समझूँ या उस बच्ची का विश्वास की कुछ मिनटों में ही प्लेन की खराबी को ठीक कर दिया गया... और हम सभी ने सकुशल अपनी यात्रा पूरी की...।


मैं आज भी जब कभी जिंदगी में हिम्मत हारने लगता हूँ... या किसी परेशानी में पड़ जाता हूँ तो उस बच्ची की बातों को याद करता हूँ... ओर अपनी सारी परेशानी ऊपरवाले के सामने बयां कर देता हूँ...। विश्वास और श्रद्धा इन्ही दो चीजों से मैं हर मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति में भी कभी नहीं हारता...। वो बच्ची हमेशा मेरे लिए एक मार्गदर्शक बन गई...।