वसीयत सीमा द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वसीयत

अम्बर जी और सुलोचना जी की शादी की 55वी सालग्रह का जश्न पूरा परिवार साथ मना रहा है और उसी खुशी में सब तैयारियों में लगे हुए है, तीन बेटे, तीन बहुएं, दो दामाद दोनो बेटियां और उन सबके बच्चें।
 
पर आज सुलोचना जी का मन इन सब तैयारियों को देख कर भी उदास है। उदास हो भी क्यों ना, पूरा परिवार साथ है, खुश है पर इस घर का सबसे बड़ा बेटा और उसका परिवार इस घर से इन खुशियों से दूर है।
 
सालों से इस घर ने उससे रिश्ता तोड़ दिया क्योंकि उसने एक अंतरजातीय विवाह जो किया था। तो क्यों कोई उसे माफ करे?
 
पर मां को कहां दिखता है ये सब, उसे तो सिर्फ अपना बच्चा और उसकी खुशियां ही दिखती है।
 
अम्बर जी ने आकर सुलोचना जी को आवाज दी पर सुलोचना जी तो गुमसुम सी बैठी थी।
 
अम्बर जी ने सुलोचना के कंधे पर हाथ रखा और पूछा क्या हुआ है ऐसे क्यों बैठी हो?
 
सुलोचना जी ने आज अपने मन की बात अपने पति अम्बर जी को बताई और आज अपने मन में दबे इतने साल के दर्द को रोकर बहा दिया।
 
आज अंबर जी को अपनी गलती का पछतावा हो रहा था कि समाज में अपने मान के लिए उन्होंने अपने बच्चे की, अपने परिवार की खुशियों की बलि चढ़ा दी।
 
फिर उन्होंने अपने बेटे को फोन करके बुलाया पर ये क्या उनका बेटा अब इस दुनियां में है ही नही, दो साल पहले एक दुर्घटना में वो तो चला गया पर अपने पीछे अपने दो बच्चे एक बेटा एक बेटी और अपनी पत्नी को छोड़ गया।
 
अम्बर जी ने उन्हें अपने पास आने को कहा
 
वो सब आए उनके पास और अपने परिवार से मिलकर वो सब खुश हो गए।
 
शादी के समारोह में अम्बर जी ने ऐलान किया कि उनकी वसीयत में अब उनके बड़े बेटे के परिवार का भी हिस्सा है। पूरा परिवार उनके इस फैसले से बहुत खुश हुआ।
 
पर आज उनकी बड़ी बहू और उनके पोता पोती ने उनसे बहुत प्यार और सम्मान के साथ हाथ जोडकर कहा कि हमे आपकी वसीयत में कोई हिस्सा नहीं चाहिए बस हमे आप सभी का प्यार ओर आशीर्वाद चाहिए।
 
उन तीनों की ये बाते सुन कर आज अंबर जी भी उन्हें लगे लगाए बिना नहीं रह पाए।