कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 92 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 92

भाग 92

अमन को ऐसी हालत देख कर जसबीर घबड़ा गया। उसने अमन के हाथों से वो कागज का टुकड़ा ले लिया और पढ़ा। पढ़ कर अनुमान लगाया कि जरूर कोई करीबी जानने वाली होंगी तभी अमन को इतना दुख हो रहा है। उसने अखबार के टुकड़े को अमन के सामने करते हुए उससे पूछा,

"क्यों.. अमन ..! कोई खास परिचित हैं क्या..? संभालो खुद को। अब जो हो गया है उसे बदला तो नही जा सकता ना। बहुत बुरा हुआ इनके साथ। वैसे कौन हैं ये..?"

अमन खुद को संभालते हुए अपने आंखो में भर आए आंसू को पोछते हुए बोला,

"क्या बताऊं आपको..? ये मेरी अम्मी जान की बहुत खास सहेली हैं। इनके पति मेयो में एडमिट है। इनकी बेटी और मैं अस्पताल की ही नर्स वैरोनिका आंटी के घर रह रहे हैं।"

फिर अमन और नही रुक सका वहां।

हताश, निराश चल पड़ा।

अस्पताल आकर पुरवा से मिला।

अशोक चच्चा अब ठीक थे। पुरवा उन्हें टहला रही थी। जैसे ही अमन को देखा खुश हो कर अमन को बताते लगी,

"देखो अमन..! अब बाऊ जी चल पा रहे है कितने आराम से।"

अमन ने बस हूं कह कर जवाब दिया।

पुरवा बोली,

"बस अब बाऊ जी को सेब खिला दूं फिर क्वार्टर चलें।"

अमन बोला,

"ठीक है तब तक मैं वैरोनिका आंटी के पास हो आता हूं।"

वो सीधा वैरोनिका आंटी के ड्यूटी वाले में गया और उन्हे देखते ही उनके गले लग कर फफक पड़ा।

वैरोनिका इस तरह अमन को रोते देख कर घबड़ा गई उसे लगा कहीं अशोक भाई को तो कुछ नही हो गया। उसके कंधे को सहलाते हुए पूछा,

"क्या हुआ…मेरे बच्चे..! अशोक भाई तो ठीक हैं ना।"

अमन ने जवाब में वही अखबार का टुकड़ा उनको पकड़ा दिया।

वैरोनिका ने उसे पढ़ा कैसे उन दरिंदों ने चार दिन तक एक घर में कैद कर के अपनी हवस का शिकार बनाया। एक रात मौका देख कर भागने की कोशिश की। पर उन्होंने देख लिया। पकड़ने के लिए दौड़ाया। भागने भागते वो दोनो तरफ से घिर गई। किधर जाएं…? सामने एक कुआं था। या तो वो पकड़ी जाती और फिर से उसी नरक समान कमरे में कैद हो कर उनकी हवस का शिकार होती। या फिर कुएं में कूद कर अपनी जान दे देती। उसे ऐसी जिंदगी से जान देना ज्यादा बेहतर लगा। फिर बिना एक पल गंवाए उर्मिला ने कुएं में छलांग लगा दी। आस पास कुछ भले लोग भी थे उन्होंने ये सब कुछ देखा था पर उन बदमाशों के डर से अपनी जुबान सीए हुए थे। उन्ही मे से किसी ने चुपके से थाने में खबर की। फिर उर्मिला का शव कुएं से निकाल कर लावारिस समझ कर जला दिया गया। फिर उसकी फोटो को अखबार में निकलवाया गया कि अगर कोई जानने वाला हो तो पहचान ले।

ये सब पढ़ कर वैरोनिका एक लंबी सांस ले कर बोली,

"ओह..जीसस..! कैसे कैसे लोग बनाए है तुमने…? ये इंसान हैं या जानवर..! कभी माफ मत करना इन्हें। एक औरत का जो सम्मान नही कर सके वो इंसान कहलाने के काबिल नही। तुम दुखी मत हो बेटा..! इन्हें इनके किए की सजा वो ऊपर वाला जरूएकर देगा। जो कुछ इन्होंने किया है ना.. इनके साथ इससे भी बुरा होगा … मेरा यकीन करो।"

अमन ने पूछा,

"आंटी…! पुरवा को कैसे बताऊं…? वो तो रोज उनके मिलने की राह देख रही है।"

वो बोली,

"बताना तो पड़ेगा ही बेटा..! मौका देख कर बता देंगे।"

इसके बाद अमन पुरवा को साथ ले कर वापस क्वार्टर लौट आया।

रात के खाने के बाद वैरोनिका आंटी ने पुरवा को अपने पास बिठा कर समझाते हुए कहा,

"बेटा…! अब जो कुछ भी हम बताएंगे उसे बहुत ही धैर्य से सुनना। घबरा कर आपा खोना किसी भी समस्या का हल नहीं होता। अशोक भाई को तुम्हारी जरूरत है।"

पुरवा की दिल बैठने लगा वैरोनिका आंटी की बातें सुन कर। आखिर क्या हो गया जो वो इस तरह से बोल रही हैं। बेताबी से उसने अटकते हुए पूछा,

"क.. क्या… हुआ.. आंटी…!सब ठीक तो है ना।"

वैरोनिका ने अखबार का वो टुकड़ा पुरवा को पकड़ा दिया। पुरवा ने जिस हालत में अम्मा की फोटो देखी.. बिना पढ़े ही समझ गई कि अम्मा अब इस दुनिया में नही है। अमन भी नही चाहता था कि पुरवा के सामने पूरी सच्चाई आए। वो बस ये जान ले कि अब अम्मा इस दुनिया में नही है। उसके सिर से ममता के आंचल की मीठी छांव छिन गई है। अब हर छोटी बड़ी मुसीबत में अम्मा उसके आगे ढाल बन कर कभी खड़ी होने नही आयेगी।

बस इसके बाद अमन ने पुरवा के बिना पढ़े ही अखबार का वो टुकड़ा उसके हाथों से ले लिया। अब अम्मा तो जा ही चुकी थी। उनका अंत इस बुरी तरह हुआ ये जान कर पुरवा सारी जिंदगी घुटेगी। इस लिए वो उसे ना पढ़े यही बेहतर है।

पुरवा बिलख पड़ी। अमन…! आंटी… अम्मा हमको अकेला छोड़ कर चली गई। अम्मा हमको अकेला छोड़ कर चली गई।"

कहते हुए पुरवा वैरोनिका आंटी को अपने बाजुओं में भींचे जोर जोर से रो पड़ी।

वैरोनिक उसके सिर को सहलाते हुए दिलासा दे कर चुप कराने लगी बोली,

"मत रो मेरी बच्ची..! मत रो…! मैं हूं ना… अब तुम्हारी अम्मा की कमी तो कोई पूरी नहीं यार सकता पर जब भी जरूरत होगी तुम्हें मुझे बस एक आवाज देना। मैं हर हाल में तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी।"

पुरवा फिर सारी रात रोती रही। बगल में अपने बिस्तर पर लेटी वैरोनिका अनजान नही थी उसके निरंतर बहते आंसुओ से। बीच बीच में पुरवा की सिसकियां सुन कर उसका भी दिल भर आता था।

सुबह होने में दो घंटा बाकी होगा कि दरवाजे पर दस्तक हुई। वैरोनिका समझ गई कि ये विक्टर ही है। इस तरह अचानक आना और अचानक जाना उसी का काम है। उसने उठ कर दरवाजा खोला।

वैरोनिका ने इतने दिन बाद भाई को देख कर गले लगा लिया और पूछा,

"कुछ खायेगा..?"

वो बोला,

नही दीदी..! बहुत थका हूं बस सोऊंगा। उठूंगा तब तुम्हारे हाथ का ऑमलेट खाऊंगा।"

कह कर विक्टर अपने कमरे की ओर जाने लगा।

वैरोनिका उसे रोकते हुए बोली,

"एक मिनट ठहर विक्टर..!"

फिर अमन और पुरवा के अपने साथ लाने की पूरी बात काम से कम शब्दों में भाई को बता दी। और बोली,

कैसे भी एडजस्ट कर लो भाई। अब अमन सो रहा है उसे कैसे उठा दूं..!"

विक्टर भी अपनी दीदी से कुछ अलग नही था। अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर जरूरत मंदो की मदद करता था। बोला, "कोई बात नही दीदी..! मुझे एक चादर दे दो नीचे बाई बिछा कर सो जाऊंगा। सुबह दस बजे मुझे फिर से कालका मेल ले कर जाना है। बस कुछ घंटे ही मुझे रहना है।"