कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 93 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 93

भाग 93

विक्टर बेहद थका हुआ था। तुरंत ही अपने कपड़े उतारे और बिना हाथ मुंह धोए ही सो गया।

सुबह जब अमन की आंख खुली और उठा तो देखा कि कोई जमीन पर चादर बिछाए सो रहा है। विक्टर को फोटो में देखा हुआ था इसलिए पहचान गया कि ये वैरोनिका आंटी का भाई ही है।

कोई अनजान किसी के लिए कितना कर सकता है ये आज अमन देख और महसूस कर रहा था। जिसका घर था वो जमीन पर सो रहा था और एक अनजान व्यक्ति को अपने बिस्तर पर सोने दिया था। ये दुनिया ऐसे ही नही चल रही। कुछ बख्तावर जैसे राक्षस है तो कुछ वैरोनिका और विक्टर जैसे निश्छल, प्रेम से परिपूर्ण लोग भी हैं।

गहरी नींद में विक्टर को उसे जगाना उचित नहीं लगा। इस लिए धीरे से बगल से उठ कर वो कमरे के बाहर चला गया।

वैरोनिका और पुरवा बाहर आंगन में बैठी हुई थी। धीमी आवाज में वैरोनिका पुरवा का ध्यान उसकी अम्मा के साथ हुई घटना से हटाने के लिए अपनी और विक्टर की बचपन की भुलबुली घटनाएं बता रही थी। पुरवा बस हूं हां कर रही थी। किसी भी बेटी के लिए बहुत मुश्किल होता है अपनी मां के जाने का सच स्वीकार करना। फिर इस तरह के हालात में हुई मौत तो पूरी जिंदगी एक नासूर की तरह रिसती रहती है।

विक्टर ने ऑमलेट बनाने की फरमाइश की थी। इतने दिनों में वैरोनिका जान गई थी कि अमन को तो इन चीजों से कोई परहेज नहीं है। पर पुरवा ये सब नही खाती। इस लिए वैरोनिका ने बीच का रास्ता निकाला। बेसन और चावल का आटा मिला कर उसमे सब्जी डाल कर वेज ऑमलेट बनाने का फैसला किया। इसी लिए वो सब्जी थाली में ले कर बारीक बारीक काट रही थी। अमन को आते देख कर बोली,

"गुड मॉर्निंग बच्चा…! आओ बैठो विक्टर को देखा।"

अमन बोला,

"गुड मॉर्निंग आंटी..! हां देखा ना आंटी। पर मुझे आपने जगा क्यों नहीं दिया..? वो नीचे सो रहे है। मैं नीचे सो जाता।"

वैरोनिका बोली,

"कोई बात नही बेटा..! विक्टर ने खुद ही कहा कि वो फर्श पर सो जायेगा। कोई परेशानी नही है। आज मैं तुम दोनो को विक्टर की फेवरेट डिश बना कर खिलाऊंगी। और अब तो डॉक्टर ने सारी चीजें अशोक भाई को भी देने को बोल दिया है। पुरवा..! तुम उनको भी खिलाना। अस्पताल का फीका खाना खा खा कर वो भी ऊब गए होंगे।

करीब आठ बजे विक्टर जागा। नीली आंखों वाला विक्टर जितना देखने में खूबसूरत था उतना ही जिंदादिल भी था। वैरोनिका के परिचय करवाने पर वो उनसे बड़े ही उत्साह से पुरवा और अमन से मिला। वैरोनिका ने बताया कि अमन ने यही किंग एडवर्ड में दाखिला लिया है एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए।

विक्टर ने हाथ मिला कर अमन को बधाई दी और बोला,

"बहुत ही अच्छा है। दीदी मुझे भी डॉक्टर बनाना चाहती थी। पर मेरा कोई इंट्रेस्ट नही था। मैं पढ़ने में इतना होशियार भी नही था। इस लिए मुझे तो ये ट्रेन का गार्ड बनने में खुशी है। मैं चलो जब हम बूढ़े होंगे तो कोई अपना परिचित डॉक्टर तो होगा हमारे इलाज के लिए। क्यों दीदी..?"

और बिलकुल वैरोनिका की तरह हो… हो… कर के हंस पड़ा।

कितनी समानता थी दोनो भाई बहन में।

इसके बाद विक्टर उठ गया ये कहते हुए कि भाई अब मुझे तो अपने फिर से चलने की तैयारी करनी है। चलूं नहा धो लूं। दीदी..! मेरा ऑमलेट बना रही हो ना।"

वैरोनिका बोली,

"हां.. छोटे बना रही हूं ना। पर ये पुरु वेजिटेरियन है ना इस लिए वेज ऑमलेट बना रही हूं।"

विक्टर ने मुस्कुरा को पुरवा को देखा और बोला,

"बिलकुल सही बात.. । इतनी ब्यूटी फुल, मासूम गर्ल किसी का कत्ल नही कर सकती। उसके लिए तो लोग खुद ही कत्ल होने को तैयार खड़े होंगे। क्यों अमन..! सही कहा ना… मैने।"

अमन बिना कुछ बोले खामोश ही रहा। कोई भी बात उसके दिल से उर्मिला मौसी के हुए हादसे को भुला नहीं पा रही थी। इतनी अच्छी, इतनी सीधी साधी थीं वो। उनके साथ ये कैसा अनर्थ हो गया। शायद अम्मी जान ने उनको आने के लिए नही राजी किया होता तो ये सब कुछ नही हुआ होता। वो अपनी अम्मी को भी दोषी समझ रहा था। आने के तीन दिन बाद ही तार करके अपने दाखिले और कुछ दिन आने की खबर दे दी थी। जिससे वो परेशान ना हो।

अपनी दीदी के बनाए वेज ऑमलेट को खा कर विक्टर अपनी ड्यूटी पर वापस चला गया। वैरोनिका के ये पूछने पर कि कब वापस आएगा वो…? तो विक्टर ने बताया

"देखो दीदी.!! मेरा आना जाना मेरे हाथ में तो होता नहीं है। जब जहा जाने का आदेश मिलेगा चला जाऊंगा।"

उदास टूटी पुरवा को अमन ने अकेले नहीं छोड़ा आज। वो साथ में अशोक चच्चा के लिए टिफिन ले कर गया। आज कॉलेज ना जा कर पूरे समय पुरवा के साथ हॉस्पिटल में ही रहा। उसका इस समय साथ देना बहुत जरूरी था।

अम्मा को खो कर अब पुरवा का एक मात्र सहारा बाऊ जी ही बचे थे। उनकी हालत अब बहुत बेहतर थी। बस वो किसी को पहचान नहीं रहे थे। जितना पुरवा, अमन उनको बताते उतना वो मान लेते थे।

आज जब डॉक्टर अशोक की जांच करने आए तो अमन ने डॉक्टर से बात की कि अशोक की हालत कब तक ठीक होगी..? कब उसे डिस्चार्ज किया जाएगा।

डॉक्टर बोले,

"वो अब ठीक हैं घाव सारे भर चुके हैं। आप चाहे तो आज या कल जब भी चाहे घर ले जा सकते हैं। वो मानसिक रूप से कब ठीक होंगे…? होंगें भी कभी या नही, इस बारे में कुछ नही बता सकता मैं।"

रेडियो पर खबर आ रही थी के अब जिस तरह का माहौल देश में बन गया है। इस तरह के माहौल में दोनों कौमों के लोगों का एक साथ मिल जुल कर रहना संभव नहीं है। इस लिए इस देश का बंटवारा हो जाना ही बेहतर है। जिन्ना की अलग देश की मांग पर गांधी जी की अन शान का कोई असर नहीं हुआ। अब ब्रिटिश सरकार ने दो हिस्से में देश को बांट कर देश को छोड़ कर जाने का फैसला कर लिया था। अब बस लाइन खींचनी बाकी थी।