कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 91 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 91

भाग 91

पुरवा ने वैरोनिका के मना करने के बावजूद उससे स्टोव जलाना सीख कर सब्जी रोटी खुद ही बनाई। इतनी नेक महिला के लिए जो भी उसके वश में था वो करना चाहती थी।

अमन ने रात के खाना खाते समय वैरोनिका आंटी और पुरवा से बताया कि उसका दाखिला मेडिकल कॉलेज में हो गया है।

अमन के दाखिले की बात सुन कर वैरोनिका बहुत खुश हुई। वो बोली,

"गॉड ब्लेस यू माई सन..! बहुत ही नेक राह चुनी है तुमने। गरीबों दुखियो की सेवा करके जो सुकून मिलता है ना, वो और किसी भी काम से नही मिलता। मैं भी अपनी शादी के बाद यही सोचती थी कि अगर मेरा कोई बेटा या बेटी होगा तो उसे मैं डॉक्टर ही बनाऊगीं। (फिक्क से उदासी भरी हंस कर बोली) पर उस कमबख्त ने मुझे मां बनने का सुख मिलने से पहले ही छोड़ दिया। पर कोई बात नही.. तुम भी तो मेरे बेटे जैसे ही हो। मैं तुमको ही डॉक्टर बना देख कर खुश हो जाऊंगी और समझूंगी मेरा बेटा ही डॉक्टर बन गया है। क्यों अमन..?"

"अमन ने वैरोनिका आंटी के हाथ पर अपना तसल्ली पूर्ण हाथ रक्खा और बोला,

"बिलकुल आंटी..! मैं हूं ना आपका बेटा….! आपके साथ ही तो रहेगा ही अब। पांच साल पढ़ाई जो यहीं से करनी है।"

वैरोनिका में अपनी आंखो में छलक आए आंसू को अपने अंदर ही जब्त कर लिया। सच मुच अगर उसकी शादी में सब कुछ ठीक रहता तो आज उसका अमन जितना बेटा होता।

पुरवा ने आज फिर से वैरोनिका आंटी को जबरन सोने भेज दिया और खुद सब कुछ साफ सफाई का काम निपटा दिया।

अगले दिन रविवार था। वैरोनिका की छुट्टी थी। उसने देखा था पुरवा के पास कपड़े नही हैं। वो दोपहर में बाजार चली गई और पुरवा के लिए कुछ कपड़े और उसकी जरूरत का और भी समान खरीद लाई। उसके पास रुपए पैसे की कोई कमी नही थी। विक्टर भी पर्याप्त कमाता था। अब ये दो बच्चे उसके घर भाग्य से आए थे तो वो उनके लिए बहुत कुछ कर के अपना शौख पूरा करना चाहती थी। पुरवा के लिए कांच की चूड़ियां, पैरो में पहने के लिए घुंघरू वाले पायल, माथे पर लगाने के लिए रंग बिरंगी बिंदी, कान के लिए बूंदे। उसके हाथों में तो चमकता हुआ था ही, उसमे रंग बिरंगी कांच की चूड़ियां लग जाएंगी तो कितना सुंदर लगेगा। कितनी सुंदर है ये लड़की…! बिना किसी बनवा श्रृंगार के। अगर सज संवर जाएगी तो कितनी सुंदर लगेगी..! यही सोच कर जो कुछ भी उसे पुरवा और अमन के लायक दिखा सब कुछ उठा लाई।

बाजार से आते ही सब कुछ फैला दिया पुरवा और अमन के सामने। अगर पहले वाली पुरवा होती तो अपने लिए इतनी सारी चीजें देख कर खुशी से उछल पड़ती। पर अब वाली पुरवा के लिए ये सब कुछ कोई मायने नहीं रखती थी। वक्त ने उसके दिल पर ऐसा जख्म दिया था कि उसके लिए ये सब चीजें कोई महत्व नहीं रह गया था।

अब वैरोनिका आंटी ने उसके लिए इतना कुछ किया था, पहले ही उसे अपने घर में शरण दिया था। उनका एहसान किसी भी तरह चुकता नही हो सकता था। अब इतना सब खर्च उस पर और कर रही हैं। अब वो इतने चाव से ये सब कुछ खरीद कर लाई थीं तो बस आंटी का दिल रखने के लिए एक फीकी हंसी हंस कर बोली,

"आप क्यों इतना परेशान हुई आंटी..! मैं इन सब का क्या करूंगी..?"

"क्या मतलब क्या करोगी.…? पहनोगी और क्या करोगी..! जब अशोक भाई ठीक हो जाएंगे तो तुम्हें अच्छे से रहते देख कर खुश होंगे।"

पुरवा ने वैरोनिका आंटी को घर के काम काज की जिम्मेदारी से बिल्कुल मुक्त कर दिया। अब वो सारा काम समय से पहले निपटा देती थी।

कभी काम खत्म हो जाता था तो आंटी के साथ ही अस्पताल चली जाती। नही हो पाता था तो बाद में अमन के साथ जाती थीं। सारा दिन अपने बाऊ जी की सेवा करती, उनकी साफ सफाई, खाना खिलाना सब कुछ नर्स के बताए अनुसार अपने हाथों से करती। पर अशोक पुरवा की ओर देखते तो जरूर थे पर उसमें पुरवा के लिए कोई अपनापन, कोई भावना नही दिखती थी। पुरवा को यही लगता कि शायद बाऊ जी तबियत खराब है इसी लिए वो उसे देख कर खुशी जाहिर नही कर रहे हैं।

अमन भी अपने नए कॉलेज के बारे में जानने के लिए पुरवा को अस्पताल छोड़ कर कुछ देर के लिए रोज चला जाता।

अपने वरिष्ठ छात्रों से जानकारी लेता, उनकी किताबे मांग कर देखता और फिर वही किताब दुकान से खरीद कर ले आता। वो कॉलेज शुरू होने के पहले ही अपनी पढ़ाई की पूरी तैयारी कर लेना चाहता था। उसे एक ऐसा डॉक्टर बनना था जिसके पास हर बीमार का दर्द, तकलीफ दूर करने का हुनर हो।

ऐसे पूरा दस दिन बीत गया। उर्मिला की खोज में कोई सफलता नहीं मिली अमन को। उसकी तरफ से अमन और पुरवा दोनो ही निराश हो चुके थे।

अशोक की हालत में तेजी से सुधार हो रहा था। पर ये सुधार सिर्फ शारीरिक रूप से हो रहा था, मानसिक रूप से कोई सुधार नहीं हो रहा था। वो पुरवा और अमन दोनो में से किसी को भी नही पहचान रहा था।

रोज की ही तरह उस दिन भी अमन कॉलेज गया था। वरिष्ठ छात्र जसबीर से उसका दोस्ताना व्यवहार हो गया था। वो अमन को कॉलेज के बारे में हर छोटी बड़ी बात बड़े अच्छे से समझाता था। जसबीर उसे अपने होस्टल के कमरे पर ले कर गया। वहां जब वो मुंगफली खाने लगा तो अमन को भी एक अखबार के टुकड़े में अमन को भी दिया।

अमन भी जसबीर के साथ बैठ कर मुंगफली खाने लगा। जब मुंगफली खत्म हो गई तो अचानक से अमन की नजर उस पर छपे एक तस्वीर पर पड़ी। अमन का दिल जोरों से धड़कने लगा। उसने जल्दी से अखबार के टुकड़े को पोछा और गौर से देखने लगा। खिड़की के पास आ कर रौशनी में उस पर लिखी खबर को पढ़ने लगा।

जब उसने पढ़ा दिल दिमाग दोनो ही शून्य हो गया। या खुदा…! ये तुमने क्या कहर ढा दिया..! पांव कांपने लगे, वो वही खिड़की पकड़ कर कुर्सी पर बैठ गया।